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Home ताज़ा समाचार

अंतर्कलह में फंसी मप्र भाजपा के लिए कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व बड़ी चुनौती

by
June 18, 2023
in ताज़ा समाचार
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अंतर्कलह में फंसी मप्र भाजपा के लिए कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व बड़ी चुनौती
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नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में 2018 के विधान सभा चुनाव में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी से मात खा चुकी भाजपा इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में बड़े बदलाव की योजना बना रखी है लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बदलाव की योजना में थोड़ा ब्रेक लगा है।

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हालांकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान की अंतिम सोच का अभी इंतजार किया जा रहा है। पार्टी को मध्य प्रदेश में अभी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है। राष्ट्रीय टीम में मध्य प्रदेश के किन-किन नेताओं को क्या-क्या पद दिया जाएगा, इस पर भी प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें बनी हुई हैं।

भाजपा के लिए मध्य प्रदेश सरकार और संगठन में मचा आंतरिक बवाल भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बल पर 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया था, उनमें से लगभग आधे विधायकों के हारने की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी वहां बदलाव का मूड बना रही है लेकिन उससे पहले ही सिंधिया समर्थक ने भाजपा को छोड़ना शुरू कर दिया है।

कई सीटों पर सिंधिया गुट के वर्तमान विधायक और भाजपा के स्थापित पुराने नेताओं के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार की मानें तो पार्टी नेताओं या टिकट दावेदारों की आपसी लड़ाई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, भाजपा के लिए असली चुनौती कमलनाथ और कांग्रेस नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे बड़े-बड़े वादे हैं क्योंकि कांग्रेस के इन्ही वादों और गारंटियों के फेर में फंसकर भाजपा को कर्नाटक में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। पार्टी को एक लंबे अरसे बाद मध्य प्रदेश में एक नई कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है।

कमलनाथ की यह नई कांग्रेस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस से अलग हटकर है जो सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेलकर भाजपा की परेशानी बढ़ा रही है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में अपने मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे की शुरूआत नर्मदा की पूजा और आरती से कर यह साफ कर दिया कि कांग्रेस आलाकमान भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर कमलनाथ की रणनीति के साथ खड़ा है।

कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाने में कामयाब रही, उसी तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

हालांकि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं।

भाजपा अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बल पर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास करेगी तो वहीं चुनावी रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़ी भूमिका निभाएंगे। जेपी नड्डा प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी समन्वय बनाने का प्रयास करेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी सप्ताह 14 जून, बुधवार को दिल्ली आकर अमित शाह को राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर सारी जानकारियां दी थी। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा हुई और शाह ने भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर शिवराज को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए।

आपको बता दें कि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 के लगातर तीन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई थी। लेकिन 2018 में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2018 में राज्य की कुल 230 सदस्यीय विधान सभा में कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल कर अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर उस समय भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया था।

चुनाव हारने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। लेकिन 15 महीने बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में दोबारा से भाजपा की सरकार बनी। उस समय बदलाव की तमाम अटकलों के बीच तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को फिर से भोपाल भेज कर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था।

हालांकि इसके साथ ही पार्टी प्रदेश में छिटपुट बदलाव करती रही है। मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को पार्टी ने लोक सभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है।

पिछले साल, मार्च 2022 में भाजपा ने मध्य प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पार्टी के तत्कालीन प्रदेश महासचिव (संगठन) सुहास भगत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापस भेजकर हितानंद शर्मा को प्रदेश भाजपा का नया महासचिव (संगठन ) नियुक्त किया था।

–आईएएनएस

एसटीपी/एसकेपी

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नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में 2018 के विधान सभा चुनाव में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी से मात खा चुकी भाजपा इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में बड़े बदलाव की योजना बना रखी है लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बदलाव की योजना में थोड़ा ब्रेक लगा है।

हालांकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान की अंतिम सोच का अभी इंतजार किया जा रहा है। पार्टी को मध्य प्रदेश में अभी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है। राष्ट्रीय टीम में मध्य प्रदेश के किन-किन नेताओं को क्या-क्या पद दिया जाएगा, इस पर भी प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें बनी हुई हैं।

भाजपा के लिए मध्य प्रदेश सरकार और संगठन में मचा आंतरिक बवाल भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बल पर 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया था, उनमें से लगभग आधे विधायकों के हारने की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी वहां बदलाव का मूड बना रही है लेकिन उससे पहले ही सिंधिया समर्थक ने भाजपा को छोड़ना शुरू कर दिया है।

कई सीटों पर सिंधिया गुट के वर्तमान विधायक और भाजपा के स्थापित पुराने नेताओं के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार की मानें तो पार्टी नेताओं या टिकट दावेदारों की आपसी लड़ाई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, भाजपा के लिए असली चुनौती कमलनाथ और कांग्रेस नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे बड़े-बड़े वादे हैं क्योंकि कांग्रेस के इन्ही वादों और गारंटियों के फेर में फंसकर भाजपा को कर्नाटक में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। पार्टी को एक लंबे अरसे बाद मध्य प्रदेश में एक नई कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है।

कमलनाथ की यह नई कांग्रेस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस से अलग हटकर है जो सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेलकर भाजपा की परेशानी बढ़ा रही है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में अपने मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे की शुरूआत नर्मदा की पूजा और आरती से कर यह साफ कर दिया कि कांग्रेस आलाकमान भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर कमलनाथ की रणनीति के साथ खड़ा है।

कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाने में कामयाब रही, उसी तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

हालांकि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं।

भाजपा अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बल पर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास करेगी तो वहीं चुनावी रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़ी भूमिका निभाएंगे। जेपी नड्डा प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी समन्वय बनाने का प्रयास करेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी सप्ताह 14 जून, बुधवार को दिल्ली आकर अमित शाह को राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर सारी जानकारियां दी थी। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा हुई और शाह ने भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर शिवराज को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए।

आपको बता दें कि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 के लगातर तीन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई थी। लेकिन 2018 में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2018 में राज्य की कुल 230 सदस्यीय विधान सभा में कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल कर अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर उस समय भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया था।

चुनाव हारने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। लेकिन 15 महीने बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में दोबारा से भाजपा की सरकार बनी। उस समय बदलाव की तमाम अटकलों के बीच तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को फिर से भोपाल भेज कर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था।

हालांकि इसके साथ ही पार्टी प्रदेश में छिटपुट बदलाव करती रही है। मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को पार्टी ने लोक सभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है।

पिछले साल, मार्च 2022 में भाजपा ने मध्य प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पार्टी के तत्कालीन प्रदेश महासचिव (संगठन) सुहास भगत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापस भेजकर हितानंद शर्मा को प्रदेश भाजपा का नया महासचिव (संगठन ) नियुक्त किया था।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में 2018 के विधान सभा चुनाव में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी से मात खा चुकी भाजपा इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में बड़े बदलाव की योजना बना रखी है लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बदलाव की योजना में थोड़ा ब्रेक लगा है।

हालांकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान की अंतिम सोच का अभी इंतजार किया जा रहा है। पार्टी को मध्य प्रदेश में अभी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है। राष्ट्रीय टीम में मध्य प्रदेश के किन-किन नेताओं को क्या-क्या पद दिया जाएगा, इस पर भी प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें बनी हुई हैं।

भाजपा के लिए मध्य प्रदेश सरकार और संगठन में मचा आंतरिक बवाल भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बल पर 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया था, उनमें से लगभग आधे विधायकों के हारने की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी वहां बदलाव का मूड बना रही है लेकिन उससे पहले ही सिंधिया समर्थक ने भाजपा को छोड़ना शुरू कर दिया है।

कई सीटों पर सिंधिया गुट के वर्तमान विधायक और भाजपा के स्थापित पुराने नेताओं के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार की मानें तो पार्टी नेताओं या टिकट दावेदारों की आपसी लड़ाई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, भाजपा के लिए असली चुनौती कमलनाथ और कांग्रेस नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे बड़े-बड़े वादे हैं क्योंकि कांग्रेस के इन्ही वादों और गारंटियों के फेर में फंसकर भाजपा को कर्नाटक में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। पार्टी को एक लंबे अरसे बाद मध्य प्रदेश में एक नई कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है।

कमलनाथ की यह नई कांग्रेस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस से अलग हटकर है जो सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेलकर भाजपा की परेशानी बढ़ा रही है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में अपने मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे की शुरूआत नर्मदा की पूजा और आरती से कर यह साफ कर दिया कि कांग्रेस आलाकमान भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर कमलनाथ की रणनीति के साथ खड़ा है।

कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाने में कामयाब रही, उसी तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

हालांकि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं।

भाजपा अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बल पर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास करेगी तो वहीं चुनावी रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़ी भूमिका निभाएंगे। जेपी नड्डा प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी समन्वय बनाने का प्रयास करेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी सप्ताह 14 जून, बुधवार को दिल्ली आकर अमित शाह को राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर सारी जानकारियां दी थी। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा हुई और शाह ने भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर शिवराज को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए।

आपको बता दें कि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 के लगातर तीन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई थी। लेकिन 2018 में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2018 में राज्य की कुल 230 सदस्यीय विधान सभा में कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल कर अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर उस समय भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया था।

चुनाव हारने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। लेकिन 15 महीने बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में दोबारा से भाजपा की सरकार बनी। उस समय बदलाव की तमाम अटकलों के बीच तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को फिर से भोपाल भेज कर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था।

हालांकि इसके साथ ही पार्टी प्रदेश में छिटपुट बदलाव करती रही है। मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को पार्टी ने लोक सभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है।

पिछले साल, मार्च 2022 में भाजपा ने मध्य प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पार्टी के तत्कालीन प्रदेश महासचिव (संगठन) सुहास भगत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापस भेजकर हितानंद शर्मा को प्रदेश भाजपा का नया महासचिव (संगठन ) नियुक्त किया था।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में 2018 के विधान सभा चुनाव में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी से मात खा चुकी भाजपा इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में बड़े बदलाव की योजना बना रखी है लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बदलाव की योजना में थोड़ा ब्रेक लगा है।

हालांकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान की अंतिम सोच का अभी इंतजार किया जा रहा है। पार्टी को मध्य प्रदेश में अभी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है। राष्ट्रीय टीम में मध्य प्रदेश के किन-किन नेताओं को क्या-क्या पद दिया जाएगा, इस पर भी प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें बनी हुई हैं।

भाजपा के लिए मध्य प्रदेश सरकार और संगठन में मचा आंतरिक बवाल भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बल पर 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया था, उनमें से लगभग आधे विधायकों के हारने की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी वहां बदलाव का मूड बना रही है लेकिन उससे पहले ही सिंधिया समर्थक ने भाजपा को छोड़ना शुरू कर दिया है।

कई सीटों पर सिंधिया गुट के वर्तमान विधायक और भाजपा के स्थापित पुराने नेताओं के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार की मानें तो पार्टी नेताओं या टिकट दावेदारों की आपसी लड़ाई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, भाजपा के लिए असली चुनौती कमलनाथ और कांग्रेस नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे बड़े-बड़े वादे हैं क्योंकि कांग्रेस के इन्ही वादों और गारंटियों के फेर में फंसकर भाजपा को कर्नाटक में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। पार्टी को एक लंबे अरसे बाद मध्य प्रदेश में एक नई कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है।

कमलनाथ की यह नई कांग्रेस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस से अलग हटकर है जो सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेलकर भाजपा की परेशानी बढ़ा रही है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में अपने मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे की शुरूआत नर्मदा की पूजा और आरती से कर यह साफ कर दिया कि कांग्रेस आलाकमान भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर कमलनाथ की रणनीति के साथ खड़ा है।

कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाने में कामयाब रही, उसी तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

हालांकि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं।

भाजपा अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बल पर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास करेगी तो वहीं चुनावी रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़ी भूमिका निभाएंगे। जेपी नड्डा प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी समन्वय बनाने का प्रयास करेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी सप्ताह 14 जून, बुधवार को दिल्ली आकर अमित शाह को राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर सारी जानकारियां दी थी। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा हुई और शाह ने भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर शिवराज को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए।

आपको बता दें कि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 के लगातर तीन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई थी। लेकिन 2018 में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2018 में राज्य की कुल 230 सदस्यीय विधान सभा में कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल कर अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर उस समय भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया था।

चुनाव हारने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। लेकिन 15 महीने बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में दोबारा से भाजपा की सरकार बनी। उस समय बदलाव की तमाम अटकलों के बीच तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को फिर से भोपाल भेज कर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था।

हालांकि इसके साथ ही पार्टी प्रदेश में छिटपुट बदलाव करती रही है। मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को पार्टी ने लोक सभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है।

पिछले साल, मार्च 2022 में भाजपा ने मध्य प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पार्टी के तत्कालीन प्रदेश महासचिव (संगठन) सुहास भगत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापस भेजकर हितानंद शर्मा को प्रदेश भाजपा का नया महासचिव (संगठन ) नियुक्त किया था।

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नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में 2018 के विधान सभा चुनाव में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी से मात खा चुकी भाजपा इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में बड़े बदलाव की योजना बना रखी है लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बदलाव की योजना में थोड़ा ब्रेक लगा है।

हालांकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान की अंतिम सोच का अभी इंतजार किया जा रहा है। पार्टी को मध्य प्रदेश में अभी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है। राष्ट्रीय टीम में मध्य प्रदेश के किन-किन नेताओं को क्या-क्या पद दिया जाएगा, इस पर भी प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें बनी हुई हैं।

भाजपा के लिए मध्य प्रदेश सरकार और संगठन में मचा आंतरिक बवाल भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बल पर 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया था, उनमें से लगभग आधे विधायकों के हारने की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी वहां बदलाव का मूड बना रही है लेकिन उससे पहले ही सिंधिया समर्थक ने भाजपा को छोड़ना शुरू कर दिया है।

कई सीटों पर सिंधिया गुट के वर्तमान विधायक और भाजपा के स्थापित पुराने नेताओं के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार की मानें तो पार्टी नेताओं या टिकट दावेदारों की आपसी लड़ाई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, भाजपा के लिए असली चुनौती कमलनाथ और कांग्रेस नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे बड़े-बड़े वादे हैं क्योंकि कांग्रेस के इन्ही वादों और गारंटियों के फेर में फंसकर भाजपा को कर्नाटक में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। पार्टी को एक लंबे अरसे बाद मध्य प्रदेश में एक नई कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है।

कमलनाथ की यह नई कांग्रेस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस से अलग हटकर है जो सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेलकर भाजपा की परेशानी बढ़ा रही है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में अपने मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे की शुरूआत नर्मदा की पूजा और आरती से कर यह साफ कर दिया कि कांग्रेस आलाकमान भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर कमलनाथ की रणनीति के साथ खड़ा है।

कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाने में कामयाब रही, उसी तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

हालांकि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं।

भाजपा अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बल पर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास करेगी तो वहीं चुनावी रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़ी भूमिका निभाएंगे। जेपी नड्डा प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी समन्वय बनाने का प्रयास करेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी सप्ताह 14 जून, बुधवार को दिल्ली आकर अमित शाह को राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर सारी जानकारियां दी थी। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा हुई और शाह ने भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर शिवराज को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए।

आपको बता दें कि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 के लगातर तीन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई थी। लेकिन 2018 में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2018 में राज्य की कुल 230 सदस्यीय विधान सभा में कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल कर अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर उस समय भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया था।

चुनाव हारने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। लेकिन 15 महीने बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में दोबारा से भाजपा की सरकार बनी। उस समय बदलाव की तमाम अटकलों के बीच तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को फिर से भोपाल भेज कर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था।

हालांकि इसके साथ ही पार्टी प्रदेश में छिटपुट बदलाव करती रही है। मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को पार्टी ने लोक सभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है।

पिछले साल, मार्च 2022 में भाजपा ने मध्य प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पार्टी के तत्कालीन प्रदेश महासचिव (संगठन) सुहास भगत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापस भेजकर हितानंद शर्मा को प्रदेश भाजपा का नया महासचिव (संगठन ) नियुक्त किया था।

–आईएएनएस

एसटीपी/एसकेपी

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नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में 2018 के विधान सभा चुनाव में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी से मात खा चुकी भाजपा इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में बड़े बदलाव की योजना बना रखी है लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बदलाव की योजना में थोड़ा ब्रेक लगा है।

हालांकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान की अंतिम सोच का अभी इंतजार किया जा रहा है। पार्टी को मध्य प्रदेश में अभी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है। राष्ट्रीय टीम में मध्य प्रदेश के किन-किन नेताओं को क्या-क्या पद दिया जाएगा, इस पर भी प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें बनी हुई हैं।

भाजपा के लिए मध्य प्रदेश सरकार और संगठन में मचा आंतरिक बवाल भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बल पर 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया था, उनमें से लगभग आधे विधायकों के हारने की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी वहां बदलाव का मूड बना रही है लेकिन उससे पहले ही सिंधिया समर्थक ने भाजपा को छोड़ना शुरू कर दिया है।

कई सीटों पर सिंधिया गुट के वर्तमान विधायक और भाजपा के स्थापित पुराने नेताओं के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार की मानें तो पार्टी नेताओं या टिकट दावेदारों की आपसी लड़ाई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, भाजपा के लिए असली चुनौती कमलनाथ और कांग्रेस नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे बड़े-बड़े वादे हैं क्योंकि कांग्रेस के इन्ही वादों और गारंटियों के फेर में फंसकर भाजपा को कर्नाटक में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। पार्टी को एक लंबे अरसे बाद मध्य प्रदेश में एक नई कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है।

कमलनाथ की यह नई कांग्रेस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस से अलग हटकर है जो सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेलकर भाजपा की परेशानी बढ़ा रही है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में अपने मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे की शुरूआत नर्मदा की पूजा और आरती से कर यह साफ कर दिया कि कांग्रेस आलाकमान भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर कमलनाथ की रणनीति के साथ खड़ा है।

कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाने में कामयाब रही, उसी तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

हालांकि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं।

भाजपा अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बल पर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास करेगी तो वहीं चुनावी रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़ी भूमिका निभाएंगे। जेपी नड्डा प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी समन्वय बनाने का प्रयास करेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी सप्ताह 14 जून, बुधवार को दिल्ली आकर अमित शाह को राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर सारी जानकारियां दी थी। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा हुई और शाह ने भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर शिवराज को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए।

आपको बता दें कि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 के लगातर तीन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई थी। लेकिन 2018 में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2018 में राज्य की कुल 230 सदस्यीय विधान सभा में कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल कर अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर उस समय भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया था।

चुनाव हारने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। लेकिन 15 महीने बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में दोबारा से भाजपा की सरकार बनी। उस समय बदलाव की तमाम अटकलों के बीच तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को फिर से भोपाल भेज कर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था।

हालांकि इसके साथ ही पार्टी प्रदेश में छिटपुट बदलाव करती रही है। मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को पार्टी ने लोक सभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है।

पिछले साल, मार्च 2022 में भाजपा ने मध्य प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पार्टी के तत्कालीन प्रदेश महासचिव (संगठन) सुहास भगत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापस भेजकर हितानंद शर्मा को प्रदेश भाजपा का नया महासचिव (संगठन ) नियुक्त किया था।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में 2018 के विधान सभा चुनाव में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी से मात खा चुकी भाजपा इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में बड़े बदलाव की योजना बना रखी है लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बदलाव की योजना में थोड़ा ब्रेक लगा है।

हालांकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान की अंतिम सोच का अभी इंतजार किया जा रहा है। पार्टी को मध्य प्रदेश में अभी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है। राष्ट्रीय टीम में मध्य प्रदेश के किन-किन नेताओं को क्या-क्या पद दिया जाएगा, इस पर भी प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें बनी हुई हैं।

भाजपा के लिए मध्य प्रदेश सरकार और संगठन में मचा आंतरिक बवाल भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बल पर 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया था, उनमें से लगभग आधे विधायकों के हारने की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी वहां बदलाव का मूड बना रही है लेकिन उससे पहले ही सिंधिया समर्थक ने भाजपा को छोड़ना शुरू कर दिया है।

कई सीटों पर सिंधिया गुट के वर्तमान विधायक और भाजपा के स्थापित पुराने नेताओं के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार की मानें तो पार्टी नेताओं या टिकट दावेदारों की आपसी लड़ाई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, भाजपा के लिए असली चुनौती कमलनाथ और कांग्रेस नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे बड़े-बड़े वादे हैं क्योंकि कांग्रेस के इन्ही वादों और गारंटियों के फेर में फंसकर भाजपा को कर्नाटक में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। पार्टी को एक लंबे अरसे बाद मध्य प्रदेश में एक नई कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है।

कमलनाथ की यह नई कांग्रेस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस से अलग हटकर है जो सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेलकर भाजपा की परेशानी बढ़ा रही है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में अपने मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे की शुरूआत नर्मदा की पूजा और आरती से कर यह साफ कर दिया कि कांग्रेस आलाकमान भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर कमलनाथ की रणनीति के साथ खड़ा है।

कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाने में कामयाब रही, उसी तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

हालांकि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं।

भाजपा अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बल पर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास करेगी तो वहीं चुनावी रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़ी भूमिका निभाएंगे। जेपी नड्डा प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी समन्वय बनाने का प्रयास करेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी सप्ताह 14 जून, बुधवार को दिल्ली आकर अमित शाह को राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर सारी जानकारियां दी थी। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा हुई और शाह ने भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर शिवराज को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए।

आपको बता दें कि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 के लगातर तीन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई थी। लेकिन 2018 में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2018 में राज्य की कुल 230 सदस्यीय विधान सभा में कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल कर अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर उस समय भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया था।

चुनाव हारने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। लेकिन 15 महीने बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में दोबारा से भाजपा की सरकार बनी। उस समय बदलाव की तमाम अटकलों के बीच तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को फिर से भोपाल भेज कर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था।

हालांकि इसके साथ ही पार्टी प्रदेश में छिटपुट बदलाव करती रही है। मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को पार्टी ने लोक सभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है।

पिछले साल, मार्च 2022 में भाजपा ने मध्य प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पार्टी के तत्कालीन प्रदेश महासचिव (संगठन) सुहास भगत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापस भेजकर हितानंद शर्मा को प्रदेश भाजपा का नया महासचिव (संगठन ) नियुक्त किया था।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में 2018 के विधान सभा चुनाव में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी से मात खा चुकी भाजपा इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में बड़े बदलाव की योजना बना रखी है लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बदलाव की योजना में थोड़ा ब्रेक लगा है।

हालांकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान की अंतिम सोच का अभी इंतजार किया जा रहा है। पार्टी को मध्य प्रदेश में अभी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है। राष्ट्रीय टीम में मध्य प्रदेश के किन-किन नेताओं को क्या-क्या पद दिया जाएगा, इस पर भी प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें बनी हुई हैं।

भाजपा के लिए मध्य प्रदेश सरकार और संगठन में मचा आंतरिक बवाल भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बल पर 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया था, उनमें से लगभग आधे विधायकों के हारने की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी वहां बदलाव का मूड बना रही है लेकिन उससे पहले ही सिंधिया समर्थक ने भाजपा को छोड़ना शुरू कर दिया है।

कई सीटों पर सिंधिया गुट के वर्तमान विधायक और भाजपा के स्थापित पुराने नेताओं के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार की मानें तो पार्टी नेताओं या टिकट दावेदारों की आपसी लड़ाई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, भाजपा के लिए असली चुनौती कमलनाथ और कांग्रेस नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे बड़े-बड़े वादे हैं क्योंकि कांग्रेस के इन्ही वादों और गारंटियों के फेर में फंसकर भाजपा को कर्नाटक में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। पार्टी को एक लंबे अरसे बाद मध्य प्रदेश में एक नई कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है।

कमलनाथ की यह नई कांग्रेस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस से अलग हटकर है जो सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेलकर भाजपा की परेशानी बढ़ा रही है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में अपने मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे की शुरूआत नर्मदा की पूजा और आरती से कर यह साफ कर दिया कि कांग्रेस आलाकमान भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर कमलनाथ की रणनीति के साथ खड़ा है।

कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाने में कामयाब रही, उसी तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

हालांकि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं।

भाजपा अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बल पर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास करेगी तो वहीं चुनावी रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़ी भूमिका निभाएंगे। जेपी नड्डा प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी समन्वय बनाने का प्रयास करेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी सप्ताह 14 जून, बुधवार को दिल्ली आकर अमित शाह को राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर सारी जानकारियां दी थी। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा हुई और शाह ने भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर शिवराज को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए।

आपको बता दें कि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 के लगातर तीन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई थी। लेकिन 2018 में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2018 में राज्य की कुल 230 सदस्यीय विधान सभा में कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल कर अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर उस समय भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया था।

चुनाव हारने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। लेकिन 15 महीने बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में दोबारा से भाजपा की सरकार बनी। उस समय बदलाव की तमाम अटकलों के बीच तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को फिर से भोपाल भेज कर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था।

हालांकि इसके साथ ही पार्टी प्रदेश में छिटपुट बदलाव करती रही है। मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को पार्टी ने लोक सभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है।

पिछले साल, मार्च 2022 में भाजपा ने मध्य प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पार्टी के तत्कालीन प्रदेश महासचिव (संगठन) सुहास भगत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापस भेजकर हितानंद शर्मा को प्रदेश भाजपा का नया महासचिव (संगठन ) नियुक्त किया था।

–आईएएनएस

एसटीपी/एसकेपी

नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में 2018 के विधान सभा चुनाव में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी से मात खा चुकी भाजपा इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में बड़े बदलाव की योजना बना रखी है लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बदलाव की योजना में थोड़ा ब्रेक लगा है।

हालांकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान की अंतिम सोच का अभी इंतजार किया जा रहा है। पार्टी को मध्य प्रदेश में अभी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है। राष्ट्रीय टीम में मध्य प्रदेश के किन-किन नेताओं को क्या-क्या पद दिया जाएगा, इस पर भी प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें बनी हुई हैं।

भाजपा के लिए मध्य प्रदेश सरकार और संगठन में मचा आंतरिक बवाल भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बल पर 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया था, उनमें से लगभग आधे विधायकों के हारने की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी वहां बदलाव का मूड बना रही है लेकिन उससे पहले ही सिंधिया समर्थक ने भाजपा को छोड़ना शुरू कर दिया है।

कई सीटों पर सिंधिया गुट के वर्तमान विधायक और भाजपा के स्थापित पुराने नेताओं के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार की मानें तो पार्टी नेताओं या टिकट दावेदारों की आपसी लड़ाई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, भाजपा के लिए असली चुनौती कमलनाथ और कांग्रेस नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे बड़े-बड़े वादे हैं क्योंकि कांग्रेस के इन्ही वादों और गारंटियों के फेर में फंसकर भाजपा को कर्नाटक में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। पार्टी को एक लंबे अरसे बाद मध्य प्रदेश में एक नई कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है।

कमलनाथ की यह नई कांग्रेस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस से अलग हटकर है जो सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेलकर भाजपा की परेशानी बढ़ा रही है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में अपने मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे की शुरूआत नर्मदा की पूजा और आरती से कर यह साफ कर दिया कि कांग्रेस आलाकमान भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर कमलनाथ की रणनीति के साथ खड़ा है।

कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाने में कामयाब रही, उसी तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

हालांकि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं।

भाजपा अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बल पर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास करेगी तो वहीं चुनावी रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़ी भूमिका निभाएंगे। जेपी नड्डा प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी समन्वय बनाने का प्रयास करेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी सप्ताह 14 जून, बुधवार को दिल्ली आकर अमित शाह को राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर सारी जानकारियां दी थी। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा हुई और शाह ने भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर शिवराज को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए।

आपको बता दें कि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 के लगातर तीन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई थी। लेकिन 2018 में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2018 में राज्य की कुल 230 सदस्यीय विधान सभा में कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल कर अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर उस समय भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया था।

चुनाव हारने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। लेकिन 15 महीने बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में दोबारा से भाजपा की सरकार बनी। उस समय बदलाव की तमाम अटकलों के बीच तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को फिर से भोपाल भेज कर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था।

हालांकि इसके साथ ही पार्टी प्रदेश में छिटपुट बदलाव करती रही है। मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को पार्टी ने लोक सभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है।

पिछले साल, मार्च 2022 में भाजपा ने मध्य प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पार्टी के तत्कालीन प्रदेश महासचिव (संगठन) सुहास भगत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापस भेजकर हितानंद शर्मा को प्रदेश भाजपा का नया महासचिव (संगठन ) नियुक्त किया था।

–आईएएनएस

एसटीपी/एसकेपी

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नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में 2018 के विधान सभा चुनाव में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी से मात खा चुकी भाजपा इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में बड़े बदलाव की योजना बना रखी है लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बदलाव की योजना में थोड़ा ब्रेक लगा है।

हालांकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान की अंतिम सोच का अभी इंतजार किया जा रहा है। पार्टी को मध्य प्रदेश में अभी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है। राष्ट्रीय टीम में मध्य प्रदेश के किन-किन नेताओं को क्या-क्या पद दिया जाएगा, इस पर भी प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें बनी हुई हैं।

भाजपा के लिए मध्य प्रदेश सरकार और संगठन में मचा आंतरिक बवाल भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बल पर 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया था, उनमें से लगभग आधे विधायकों के हारने की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी वहां बदलाव का मूड बना रही है लेकिन उससे पहले ही सिंधिया समर्थक ने भाजपा को छोड़ना शुरू कर दिया है।

कई सीटों पर सिंधिया गुट के वर्तमान विधायक और भाजपा के स्थापित पुराने नेताओं के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार की मानें तो पार्टी नेताओं या टिकट दावेदारों की आपसी लड़ाई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, भाजपा के लिए असली चुनौती कमलनाथ और कांग्रेस नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे बड़े-बड़े वादे हैं क्योंकि कांग्रेस के इन्ही वादों और गारंटियों के फेर में फंसकर भाजपा को कर्नाटक में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। पार्टी को एक लंबे अरसे बाद मध्य प्रदेश में एक नई कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है।

कमलनाथ की यह नई कांग्रेस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस से अलग हटकर है जो सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेलकर भाजपा की परेशानी बढ़ा रही है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में अपने मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे की शुरूआत नर्मदा की पूजा और आरती से कर यह साफ कर दिया कि कांग्रेस आलाकमान भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर कमलनाथ की रणनीति के साथ खड़ा है।

कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाने में कामयाब रही, उसी तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

हालांकि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं।

भाजपा अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बल पर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास करेगी तो वहीं चुनावी रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़ी भूमिका निभाएंगे। जेपी नड्डा प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी समन्वय बनाने का प्रयास करेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी सप्ताह 14 जून, बुधवार को दिल्ली आकर अमित शाह को राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर सारी जानकारियां दी थी। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा हुई और शाह ने भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर शिवराज को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए।

आपको बता दें कि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 के लगातर तीन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई थी। लेकिन 2018 में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2018 में राज्य की कुल 230 सदस्यीय विधान सभा में कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल कर अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर उस समय भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया था।

चुनाव हारने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। लेकिन 15 महीने बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में दोबारा से भाजपा की सरकार बनी। उस समय बदलाव की तमाम अटकलों के बीच तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को फिर से भोपाल भेज कर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था।

हालांकि इसके साथ ही पार्टी प्रदेश में छिटपुट बदलाव करती रही है। मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को पार्टी ने लोक सभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है।

पिछले साल, मार्च 2022 में भाजपा ने मध्य प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पार्टी के तत्कालीन प्रदेश महासचिव (संगठन) सुहास भगत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापस भेजकर हितानंद शर्मा को प्रदेश भाजपा का नया महासचिव (संगठन ) नियुक्त किया था।

–आईएएनएस

एसटीपी/एसकेपी

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नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में 2018 के विधान सभा चुनाव में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी से मात खा चुकी भाजपा इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में बड़े बदलाव की योजना बना रखी है लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बदलाव की योजना में थोड़ा ब्रेक लगा है।

हालांकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान की अंतिम सोच का अभी इंतजार किया जा रहा है। पार्टी को मध्य प्रदेश में अभी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है। राष्ट्रीय टीम में मध्य प्रदेश के किन-किन नेताओं को क्या-क्या पद दिया जाएगा, इस पर भी प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें बनी हुई हैं।

भाजपा के लिए मध्य प्रदेश सरकार और संगठन में मचा आंतरिक बवाल भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बल पर 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया था, उनमें से लगभग आधे विधायकों के हारने की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी वहां बदलाव का मूड बना रही है लेकिन उससे पहले ही सिंधिया समर्थक ने भाजपा को छोड़ना शुरू कर दिया है।

कई सीटों पर सिंधिया गुट के वर्तमान विधायक और भाजपा के स्थापित पुराने नेताओं के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार की मानें तो पार्टी नेताओं या टिकट दावेदारों की आपसी लड़ाई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, भाजपा के लिए असली चुनौती कमलनाथ और कांग्रेस नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे बड़े-बड़े वादे हैं क्योंकि कांग्रेस के इन्ही वादों और गारंटियों के फेर में फंसकर भाजपा को कर्नाटक में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। पार्टी को एक लंबे अरसे बाद मध्य प्रदेश में एक नई कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है।

कमलनाथ की यह नई कांग्रेस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस से अलग हटकर है जो सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेलकर भाजपा की परेशानी बढ़ा रही है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में अपने मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे की शुरूआत नर्मदा की पूजा और आरती से कर यह साफ कर दिया कि कांग्रेस आलाकमान भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर कमलनाथ की रणनीति के साथ खड़ा है।

कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाने में कामयाब रही, उसी तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

हालांकि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं।

भाजपा अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बल पर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास करेगी तो वहीं चुनावी रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़ी भूमिका निभाएंगे। जेपी नड्डा प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी समन्वय बनाने का प्रयास करेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी सप्ताह 14 जून, बुधवार को दिल्ली आकर अमित शाह को राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर सारी जानकारियां दी थी। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा हुई और शाह ने भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर शिवराज को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए।

आपको बता दें कि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 के लगातर तीन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई थी। लेकिन 2018 में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2018 में राज्य की कुल 230 सदस्यीय विधान सभा में कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल कर अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर उस समय भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया था।

चुनाव हारने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। लेकिन 15 महीने बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में दोबारा से भाजपा की सरकार बनी। उस समय बदलाव की तमाम अटकलों के बीच तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को फिर से भोपाल भेज कर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था।

हालांकि इसके साथ ही पार्टी प्रदेश में छिटपुट बदलाव करती रही है। मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को पार्टी ने लोक सभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है।

पिछले साल, मार्च 2022 में भाजपा ने मध्य प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पार्टी के तत्कालीन प्रदेश महासचिव (संगठन) सुहास भगत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापस भेजकर हितानंद शर्मा को प्रदेश भाजपा का नया महासचिव (संगठन ) नियुक्त किया था।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में 2018 के विधान सभा चुनाव में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी से मात खा चुकी भाजपा इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में बड़े बदलाव की योजना बना रखी है लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बदलाव की योजना में थोड़ा ब्रेक लगा है।

हालांकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान की अंतिम सोच का अभी इंतजार किया जा रहा है। पार्टी को मध्य प्रदेश में अभी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है। राष्ट्रीय टीम में मध्य प्रदेश के किन-किन नेताओं को क्या-क्या पद दिया जाएगा, इस पर भी प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें बनी हुई हैं।

भाजपा के लिए मध्य प्रदेश सरकार और संगठन में मचा आंतरिक बवाल भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बल पर 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया था, उनमें से लगभग आधे विधायकों के हारने की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी वहां बदलाव का मूड बना रही है लेकिन उससे पहले ही सिंधिया समर्थक ने भाजपा को छोड़ना शुरू कर दिया है।

कई सीटों पर सिंधिया गुट के वर्तमान विधायक और भाजपा के स्थापित पुराने नेताओं के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार की मानें तो पार्टी नेताओं या टिकट दावेदारों की आपसी लड़ाई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, भाजपा के लिए असली चुनौती कमलनाथ और कांग्रेस नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे बड़े-बड़े वादे हैं क्योंकि कांग्रेस के इन्ही वादों और गारंटियों के फेर में फंसकर भाजपा को कर्नाटक में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। पार्टी को एक लंबे अरसे बाद मध्य प्रदेश में एक नई कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है।

कमलनाथ की यह नई कांग्रेस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस से अलग हटकर है जो सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेलकर भाजपा की परेशानी बढ़ा रही है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में अपने मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे की शुरूआत नर्मदा की पूजा और आरती से कर यह साफ कर दिया कि कांग्रेस आलाकमान भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर कमलनाथ की रणनीति के साथ खड़ा है।

कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाने में कामयाब रही, उसी तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

हालांकि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं।

भाजपा अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बल पर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास करेगी तो वहीं चुनावी रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़ी भूमिका निभाएंगे। जेपी नड्डा प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी समन्वय बनाने का प्रयास करेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी सप्ताह 14 जून, बुधवार को दिल्ली आकर अमित शाह को राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर सारी जानकारियां दी थी। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा हुई और शाह ने भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर शिवराज को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए।

आपको बता दें कि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 के लगातर तीन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई थी। लेकिन 2018 में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2018 में राज्य की कुल 230 सदस्यीय विधान सभा में कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल कर अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर उस समय भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया था।

चुनाव हारने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। लेकिन 15 महीने बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में दोबारा से भाजपा की सरकार बनी। उस समय बदलाव की तमाम अटकलों के बीच तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को फिर से भोपाल भेज कर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था।

हालांकि इसके साथ ही पार्टी प्रदेश में छिटपुट बदलाव करती रही है। मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को पार्टी ने लोक सभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है।

पिछले साल, मार्च 2022 में भाजपा ने मध्य प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पार्टी के तत्कालीन प्रदेश महासचिव (संगठन) सुहास भगत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापस भेजकर हितानंद शर्मा को प्रदेश भाजपा का नया महासचिव (संगठन ) नियुक्त किया था।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में 2018 के विधान सभा चुनाव में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी से मात खा चुकी भाजपा इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में बड़े बदलाव की योजना बना रखी है लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बदलाव की योजना में थोड़ा ब्रेक लगा है।

हालांकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान की अंतिम सोच का अभी इंतजार किया जा रहा है। पार्टी को मध्य प्रदेश में अभी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है। राष्ट्रीय टीम में मध्य प्रदेश के किन-किन नेताओं को क्या-क्या पद दिया जाएगा, इस पर भी प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें बनी हुई हैं।

भाजपा के लिए मध्य प्रदेश सरकार और संगठन में मचा आंतरिक बवाल भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बल पर 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया था, उनमें से लगभग आधे विधायकों के हारने की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी वहां बदलाव का मूड बना रही है लेकिन उससे पहले ही सिंधिया समर्थक ने भाजपा को छोड़ना शुरू कर दिया है।

कई सीटों पर सिंधिया गुट के वर्तमान विधायक और भाजपा के स्थापित पुराने नेताओं के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार की मानें तो पार्टी नेताओं या टिकट दावेदारों की आपसी लड़ाई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, भाजपा के लिए असली चुनौती कमलनाथ और कांग्रेस नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे बड़े-बड़े वादे हैं क्योंकि कांग्रेस के इन्ही वादों और गारंटियों के फेर में फंसकर भाजपा को कर्नाटक में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। पार्टी को एक लंबे अरसे बाद मध्य प्रदेश में एक नई कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है।

कमलनाथ की यह नई कांग्रेस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस से अलग हटकर है जो सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेलकर भाजपा की परेशानी बढ़ा रही है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में अपने मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे की शुरूआत नर्मदा की पूजा और आरती से कर यह साफ कर दिया कि कांग्रेस आलाकमान भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर कमलनाथ की रणनीति के साथ खड़ा है।

कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाने में कामयाब रही, उसी तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

हालांकि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं।

भाजपा अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बल पर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास करेगी तो वहीं चुनावी रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़ी भूमिका निभाएंगे। जेपी नड्डा प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी समन्वय बनाने का प्रयास करेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी सप्ताह 14 जून, बुधवार को दिल्ली आकर अमित शाह को राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर सारी जानकारियां दी थी। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा हुई और शाह ने भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर शिवराज को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए।

आपको बता दें कि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 के लगातर तीन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई थी। लेकिन 2018 में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2018 में राज्य की कुल 230 सदस्यीय विधान सभा में कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल कर अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर उस समय भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया था।

चुनाव हारने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। लेकिन 15 महीने बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में दोबारा से भाजपा की सरकार बनी। उस समय बदलाव की तमाम अटकलों के बीच तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को फिर से भोपाल भेज कर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था।

हालांकि इसके साथ ही पार्टी प्रदेश में छिटपुट बदलाव करती रही है। मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को पार्टी ने लोक सभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है।

पिछले साल, मार्च 2022 में भाजपा ने मध्य प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पार्टी के तत्कालीन प्रदेश महासचिव (संगठन) सुहास भगत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापस भेजकर हितानंद शर्मा को प्रदेश भाजपा का नया महासचिव (संगठन ) नियुक्त किया था।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में 2018 के विधान सभा चुनाव में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी से मात खा चुकी भाजपा इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में बड़े बदलाव की योजना बना रखी है लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बदलाव की योजना में थोड़ा ब्रेक लगा है।

हालांकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान की अंतिम सोच का अभी इंतजार किया जा रहा है। पार्टी को मध्य प्रदेश में अभी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है। राष्ट्रीय टीम में मध्य प्रदेश के किन-किन नेताओं को क्या-क्या पद दिया जाएगा, इस पर भी प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें बनी हुई हैं।

भाजपा के लिए मध्य प्रदेश सरकार और संगठन में मचा आंतरिक बवाल भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बल पर 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया था, उनमें से लगभग आधे विधायकों के हारने की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी वहां बदलाव का मूड बना रही है लेकिन उससे पहले ही सिंधिया समर्थक ने भाजपा को छोड़ना शुरू कर दिया है।

कई सीटों पर सिंधिया गुट के वर्तमान विधायक और भाजपा के स्थापित पुराने नेताओं के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार की मानें तो पार्टी नेताओं या टिकट दावेदारों की आपसी लड़ाई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, भाजपा के लिए असली चुनौती कमलनाथ और कांग्रेस नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे बड़े-बड़े वादे हैं क्योंकि कांग्रेस के इन्ही वादों और गारंटियों के फेर में फंसकर भाजपा को कर्नाटक में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। पार्टी को एक लंबे अरसे बाद मध्य प्रदेश में एक नई कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है।

कमलनाथ की यह नई कांग्रेस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस से अलग हटकर है जो सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेलकर भाजपा की परेशानी बढ़ा रही है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में अपने मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे की शुरूआत नर्मदा की पूजा और आरती से कर यह साफ कर दिया कि कांग्रेस आलाकमान भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर कमलनाथ की रणनीति के साथ खड़ा है।

कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाने में कामयाब रही, उसी तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

हालांकि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं।

भाजपा अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बल पर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास करेगी तो वहीं चुनावी रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़ी भूमिका निभाएंगे। जेपी नड्डा प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी समन्वय बनाने का प्रयास करेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी सप्ताह 14 जून, बुधवार को दिल्ली आकर अमित शाह को राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर सारी जानकारियां दी थी। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा हुई और शाह ने भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर शिवराज को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए।

आपको बता दें कि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 के लगातर तीन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई थी। लेकिन 2018 में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2018 में राज्य की कुल 230 सदस्यीय विधान सभा में कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल कर अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर उस समय भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया था।

चुनाव हारने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। लेकिन 15 महीने बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में दोबारा से भाजपा की सरकार बनी। उस समय बदलाव की तमाम अटकलों के बीच तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को फिर से भोपाल भेज कर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था।

हालांकि इसके साथ ही पार्टी प्रदेश में छिटपुट बदलाव करती रही है। मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को पार्टी ने लोक सभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है।

पिछले साल, मार्च 2022 में भाजपा ने मध्य प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पार्टी के तत्कालीन प्रदेश महासचिव (संगठन) सुहास भगत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापस भेजकर हितानंद शर्मा को प्रदेश भाजपा का नया महासचिव (संगठन ) नियुक्त किया था।

–आईएएनएस

एसटीपी/एसकेपी

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नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में 2018 के विधान सभा चुनाव में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी से मात खा चुकी भाजपा इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में बड़े बदलाव की योजना बना रखी है लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बदलाव की योजना में थोड़ा ब्रेक लगा है।

हालांकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान की अंतिम सोच का अभी इंतजार किया जा रहा है। पार्टी को मध्य प्रदेश में अभी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है। राष्ट्रीय टीम में मध्य प्रदेश के किन-किन नेताओं को क्या-क्या पद दिया जाएगा, इस पर भी प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें बनी हुई हैं।

भाजपा के लिए मध्य प्रदेश सरकार और संगठन में मचा आंतरिक बवाल भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बल पर 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया था, उनमें से लगभग आधे विधायकों के हारने की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी वहां बदलाव का मूड बना रही है लेकिन उससे पहले ही सिंधिया समर्थक ने भाजपा को छोड़ना शुरू कर दिया है।

कई सीटों पर सिंधिया गुट के वर्तमान विधायक और भाजपा के स्थापित पुराने नेताओं के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार की मानें तो पार्टी नेताओं या टिकट दावेदारों की आपसी लड़ाई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, भाजपा के लिए असली चुनौती कमलनाथ और कांग्रेस नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे बड़े-बड़े वादे हैं क्योंकि कांग्रेस के इन्ही वादों और गारंटियों के फेर में फंसकर भाजपा को कर्नाटक में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। पार्टी को एक लंबे अरसे बाद मध्य प्रदेश में एक नई कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है।

कमलनाथ की यह नई कांग्रेस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस से अलग हटकर है जो सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेलकर भाजपा की परेशानी बढ़ा रही है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में अपने मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे की शुरूआत नर्मदा की पूजा और आरती से कर यह साफ कर दिया कि कांग्रेस आलाकमान भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर कमलनाथ की रणनीति के साथ खड़ा है।

कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाने में कामयाब रही, उसी तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

हालांकि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं।

भाजपा अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बल पर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास करेगी तो वहीं चुनावी रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़ी भूमिका निभाएंगे। जेपी नड्डा प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी समन्वय बनाने का प्रयास करेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी सप्ताह 14 जून, बुधवार को दिल्ली आकर अमित शाह को राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर सारी जानकारियां दी थी। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा हुई और शाह ने भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर शिवराज को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए।

आपको बता दें कि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 के लगातर तीन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई थी। लेकिन 2018 में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2018 में राज्य की कुल 230 सदस्यीय विधान सभा में कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल कर अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर उस समय भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया था।

चुनाव हारने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। लेकिन 15 महीने बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में दोबारा से भाजपा की सरकार बनी। उस समय बदलाव की तमाम अटकलों के बीच तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को फिर से भोपाल भेज कर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था।

हालांकि इसके साथ ही पार्टी प्रदेश में छिटपुट बदलाव करती रही है। मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को पार्टी ने लोक सभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है।

पिछले साल, मार्च 2022 में भाजपा ने मध्य प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पार्टी के तत्कालीन प्रदेश महासचिव (संगठन) सुहास भगत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापस भेजकर हितानंद शर्मा को प्रदेश भाजपा का नया महासचिव (संगठन ) नियुक्त किया था।

–आईएएनएस

एसटीपी/एसकेपी

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नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में 2018 के विधान सभा चुनाव में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी से मात खा चुकी भाजपा इस वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में बड़े बदलाव की योजना बना रखी है लेकिन कर्नाटक विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बदलाव की योजना में थोड़ा ब्रेक लगा है।

हालांकि मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान की अंतिम सोच का अभी इंतजार किया जा रहा है। पार्टी को मध्य प्रदेश में अभी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है। राष्ट्रीय टीम में मध्य प्रदेश के किन-किन नेताओं को क्या-क्या पद दिया जाएगा, इस पर भी प्रदेश के सभी नेताओं की निगाहें बनी हुई हैं।

भाजपा के लिए मध्य प्रदेश सरकार और संगठन में मचा आंतरिक बवाल भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बल पर 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया था, उनमें से लगभग आधे विधायकों के हारने की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी वहां बदलाव का मूड बना रही है लेकिन उससे पहले ही सिंधिया समर्थक ने भाजपा को छोड़ना शुरू कर दिया है।

कई सीटों पर सिंधिया गुट के वर्तमान विधायक और भाजपा के स्थापित पुराने नेताओं के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार की मानें तो पार्टी नेताओं या टिकट दावेदारों की आपसी लड़ाई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, भाजपा के लिए असली चुनौती कमलनाथ और कांग्रेस नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे बड़े-बड़े वादे हैं क्योंकि कांग्रेस के इन्ही वादों और गारंटियों के फेर में फंसकर भाजपा को कर्नाटक में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। पार्टी को एक लंबे अरसे बाद मध्य प्रदेश में एक नई कांग्रेस से जूझना पड़ रहा है।

कमलनाथ की यह नई कांग्रेस दिग्विजय सिंह की कांग्रेस से अलग हटकर है जो सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेलकर भाजपा की परेशानी बढ़ा रही है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में अपने मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे की शुरूआत नर्मदा की पूजा और आरती से कर यह साफ कर दिया कि कांग्रेस आलाकमान भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मसले पर कमलनाथ की रणनीति के साथ खड़ा है।

कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाने में कामयाब रही, उसी तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में भी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

हालांकि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य को किसी भी हालत में गंवाना नहीं चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं।

भाजपा अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के बल पर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने का प्रयास करेगी तो वहीं चुनावी रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़ी भूमिका निभाएंगे। जेपी नड्डा प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी समन्वय बनाने का प्रयास करेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी सप्ताह 14 जून, बुधवार को दिल्ली आकर अमित शाह को राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर सारी जानकारियां दी थी। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा हुई और शाह ने भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर शिवराज को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए।

आपको बता दें कि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 के लगातर तीन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई थी। लेकिन 2018 में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2018 में राज्य की कुल 230 सदस्यीय विधान सभा में कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल कर अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर उस समय भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया था।

चुनाव हारने के बाद भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। लेकिन 15 महीने बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में दोबारा से भाजपा की सरकार बनी। उस समय बदलाव की तमाम अटकलों के बीच तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को फिर से भोपाल भेज कर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था।

हालांकि इसके साथ ही पार्टी प्रदेश में छिटपुट बदलाव करती रही है। मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को पार्टी ने लोक सभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है।

पिछले साल, मार्च 2022 में भाजपा ने मध्य प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पार्टी के तत्कालीन प्रदेश महासचिव (संगठन) सुहास भगत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापस भेजकर हितानंद शर्मा को प्रदेश भाजपा का नया महासचिव (संगठन ) नियुक्त किया था।

–आईएएनएस

एसटीपी/एसकेपी

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