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Home ताज़ा समाचार

अनुच्छेद 370 मामला : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा – संविधान के अन्य विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप का इरादा नहीं

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August 23, 2023
in ताज़ा समाचार
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नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को संविधान पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर-पूर्व राज्यों या देश के किसी अन्य भाग में लागू संविधान के विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में कहा कि हमें अस्थायी प्रावधान, जो कि अनुच्छेद 370 है, और उत्तर-पूर्व सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का (संविधान के) किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है, जो उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देता है।

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अरुणाचल प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ द्वारा जो व्याख्या दी जाएगी, उसका अनुच्छेद 371 जैसे अन्य विशेष प्रावधानों, छह उप-भागों पर प्रभाव पड़ेगा, जो उत्तर-पूर्व पर लागू होते हैं। संविधान के भाग XXI और छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम पर लागू होते हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के तहत स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत कमोबेश एक जैसा है। इसलिए, इस मामले में जो भी होगा, उसका अनुच्छेद 371 पर प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमा में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। वर्तमान में आप मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रहे हैं।

एसजी तुषार मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छीनने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि आशंका पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं केंद्र की ओर से उस आशंका को दूर कर रहा हूं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि हमें किसी भी चीज को प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटाना चाहिए? हम एक विशिष्ट प्रावधान, अर्थात धारा 370, से निपट रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि एसजी ने अदालत में बयान दिया है कि सरकार का संविधान के अन्य विशेष प्रावधानों को छीनने का कोई इरादा नहीं है।

अधिवक्ता मनीष तिवारी ने अपनी दलील का बचाव किया और कहा कि वह मौजूदा केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि राज्य में (संघवाद के) सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे।

मनीष तिवारी ने कहा कि मैं अस्थायी, जिसे (अनुच्छेद 370 के संदर्भ में) स्थायी के रूप में तर्क दिया गया है, विशेष प्रावधानों के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। लेकिन, स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत, जो 370 और 371 के माध्यम से चलता है, वही है।

संविधान पीठ ने कहा कि वह इस तरह उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी और हस्तक्षेपकर्ता से कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दिये गये बयानों से उसकी आशंकाएं दूर हो गयी हैं।

आपके पास धारा 370 पर कहने के लिए कुछ नहीं है। तो, हम क्यों सुनें? सॉलिसिटर जनरल की दलील को रिकॉर्ड पर लेकर हम आपके आईए (हस्तक्षेप आवेदन) को बंद कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रुख को देखते हुए हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आईए (हस्तक्षेप आवेदन) और संविधान पीठ द्वारा सुने जा रहे संदर्भ में हितों की कोई समानता नहीं है।

बता दें कि मनीष तिवारी सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग वकील हैं। वह पंजाब से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं।

–आईएएनएस

एबीएम

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नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को संविधान पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर-पूर्व राज्यों या देश के किसी अन्य भाग में लागू संविधान के विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में कहा कि हमें अस्थायी प्रावधान, जो कि अनुच्छेद 370 है, और उत्तर-पूर्व सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का (संविधान के) किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है, जो उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देता है।

अरुणाचल प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ द्वारा जो व्याख्या दी जाएगी, उसका अनुच्छेद 371 जैसे अन्य विशेष प्रावधानों, छह उप-भागों पर प्रभाव पड़ेगा, जो उत्तर-पूर्व पर लागू होते हैं। संविधान के भाग XXI और छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम पर लागू होते हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के तहत स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत कमोबेश एक जैसा है। इसलिए, इस मामले में जो भी होगा, उसका अनुच्छेद 371 पर प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमा में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। वर्तमान में आप मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रहे हैं।

एसजी तुषार मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छीनने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि आशंका पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं केंद्र की ओर से उस आशंका को दूर कर रहा हूं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि हमें किसी भी चीज को प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटाना चाहिए? हम एक विशिष्ट प्रावधान, अर्थात धारा 370, से निपट रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि एसजी ने अदालत में बयान दिया है कि सरकार का संविधान के अन्य विशेष प्रावधानों को छीनने का कोई इरादा नहीं है।

अधिवक्ता मनीष तिवारी ने अपनी दलील का बचाव किया और कहा कि वह मौजूदा केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि राज्य में (संघवाद के) सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे।

मनीष तिवारी ने कहा कि मैं अस्थायी, जिसे (अनुच्छेद 370 के संदर्भ में) स्थायी के रूप में तर्क दिया गया है, विशेष प्रावधानों के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। लेकिन, स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत, जो 370 और 371 के माध्यम से चलता है, वही है।

संविधान पीठ ने कहा कि वह इस तरह उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी और हस्तक्षेपकर्ता से कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दिये गये बयानों से उसकी आशंकाएं दूर हो गयी हैं।

आपके पास धारा 370 पर कहने के लिए कुछ नहीं है। तो, हम क्यों सुनें? सॉलिसिटर जनरल की दलील को रिकॉर्ड पर लेकर हम आपके आईए (हस्तक्षेप आवेदन) को बंद कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रुख को देखते हुए हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आईए (हस्तक्षेप आवेदन) और संविधान पीठ द्वारा सुने जा रहे संदर्भ में हितों की कोई समानता नहीं है।

बता दें कि मनीष तिवारी सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग वकील हैं। वह पंजाब से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं।

–आईएएनएस

एबीएम

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नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को संविधान पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर-पूर्व राज्यों या देश के किसी अन्य भाग में लागू संविधान के विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में कहा कि हमें अस्थायी प्रावधान, जो कि अनुच्छेद 370 है, और उत्तर-पूर्व सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का (संविधान के) किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है, जो उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देता है।

अरुणाचल प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ द्वारा जो व्याख्या दी जाएगी, उसका अनुच्छेद 371 जैसे अन्य विशेष प्रावधानों, छह उप-भागों पर प्रभाव पड़ेगा, जो उत्तर-पूर्व पर लागू होते हैं। संविधान के भाग XXI और छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम पर लागू होते हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के तहत स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत कमोबेश एक जैसा है। इसलिए, इस मामले में जो भी होगा, उसका अनुच्छेद 371 पर प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमा में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। वर्तमान में आप मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रहे हैं।

एसजी तुषार मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छीनने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि आशंका पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं केंद्र की ओर से उस आशंका को दूर कर रहा हूं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि हमें किसी भी चीज को प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटाना चाहिए? हम एक विशिष्ट प्रावधान, अर्थात धारा 370, से निपट रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि एसजी ने अदालत में बयान दिया है कि सरकार का संविधान के अन्य विशेष प्रावधानों को छीनने का कोई इरादा नहीं है।

अधिवक्ता मनीष तिवारी ने अपनी दलील का बचाव किया और कहा कि वह मौजूदा केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि राज्य में (संघवाद के) सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे।

मनीष तिवारी ने कहा कि मैं अस्थायी, जिसे (अनुच्छेद 370 के संदर्भ में) स्थायी के रूप में तर्क दिया गया है, विशेष प्रावधानों के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। लेकिन, स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत, जो 370 और 371 के माध्यम से चलता है, वही है।

संविधान पीठ ने कहा कि वह इस तरह उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी और हस्तक्षेपकर्ता से कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दिये गये बयानों से उसकी आशंकाएं दूर हो गयी हैं।

आपके पास धारा 370 पर कहने के लिए कुछ नहीं है। तो, हम क्यों सुनें? सॉलिसिटर जनरल की दलील को रिकॉर्ड पर लेकर हम आपके आईए (हस्तक्षेप आवेदन) को बंद कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रुख को देखते हुए हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आईए (हस्तक्षेप आवेदन) और संविधान पीठ द्वारा सुने जा रहे संदर्भ में हितों की कोई समानता नहीं है।

बता दें कि मनीष तिवारी सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग वकील हैं। वह पंजाब से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं।

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नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को संविधान पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर-पूर्व राज्यों या देश के किसी अन्य भाग में लागू संविधान के विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में कहा कि हमें अस्थायी प्रावधान, जो कि अनुच्छेद 370 है, और उत्तर-पूर्व सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का (संविधान के) किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है, जो उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देता है।

अरुणाचल प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ द्वारा जो व्याख्या दी जाएगी, उसका अनुच्छेद 371 जैसे अन्य विशेष प्रावधानों, छह उप-भागों पर प्रभाव पड़ेगा, जो उत्तर-पूर्व पर लागू होते हैं। संविधान के भाग XXI और छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम पर लागू होते हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के तहत स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत कमोबेश एक जैसा है। इसलिए, इस मामले में जो भी होगा, उसका अनुच्छेद 371 पर प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमा में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। वर्तमान में आप मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रहे हैं।

एसजी तुषार मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छीनने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि आशंका पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं केंद्र की ओर से उस आशंका को दूर कर रहा हूं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि हमें किसी भी चीज को प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटाना चाहिए? हम एक विशिष्ट प्रावधान, अर्थात धारा 370, से निपट रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि एसजी ने अदालत में बयान दिया है कि सरकार का संविधान के अन्य विशेष प्रावधानों को छीनने का कोई इरादा नहीं है।

अधिवक्ता मनीष तिवारी ने अपनी दलील का बचाव किया और कहा कि वह मौजूदा केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि राज्य में (संघवाद के) सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे।

मनीष तिवारी ने कहा कि मैं अस्थायी, जिसे (अनुच्छेद 370 के संदर्भ में) स्थायी के रूप में तर्क दिया गया है, विशेष प्रावधानों के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। लेकिन, स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत, जो 370 और 371 के माध्यम से चलता है, वही है।

संविधान पीठ ने कहा कि वह इस तरह उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी और हस्तक्षेपकर्ता से कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दिये गये बयानों से उसकी आशंकाएं दूर हो गयी हैं।

आपके पास धारा 370 पर कहने के लिए कुछ नहीं है। तो, हम क्यों सुनें? सॉलिसिटर जनरल की दलील को रिकॉर्ड पर लेकर हम आपके आईए (हस्तक्षेप आवेदन) को बंद कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रुख को देखते हुए हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आईए (हस्तक्षेप आवेदन) और संविधान पीठ द्वारा सुने जा रहे संदर्भ में हितों की कोई समानता नहीं है।

बता दें कि मनीष तिवारी सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग वकील हैं। वह पंजाब से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को संविधान पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर-पूर्व राज्यों या देश के किसी अन्य भाग में लागू संविधान के विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में कहा कि हमें अस्थायी प्रावधान, जो कि अनुच्छेद 370 है, और उत्तर-पूर्व सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का (संविधान के) किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है, जो उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देता है।

अरुणाचल प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ द्वारा जो व्याख्या दी जाएगी, उसका अनुच्छेद 371 जैसे अन्य विशेष प्रावधानों, छह उप-भागों पर प्रभाव पड़ेगा, जो उत्तर-पूर्व पर लागू होते हैं। संविधान के भाग XXI और छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम पर लागू होते हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के तहत स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत कमोबेश एक जैसा है। इसलिए, इस मामले में जो भी होगा, उसका अनुच्छेद 371 पर प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमा में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। वर्तमान में आप मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रहे हैं।

एसजी तुषार मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छीनने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि आशंका पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं केंद्र की ओर से उस आशंका को दूर कर रहा हूं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि हमें किसी भी चीज को प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटाना चाहिए? हम एक विशिष्ट प्रावधान, अर्थात धारा 370, से निपट रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि एसजी ने अदालत में बयान दिया है कि सरकार का संविधान के अन्य विशेष प्रावधानों को छीनने का कोई इरादा नहीं है।

अधिवक्ता मनीष तिवारी ने अपनी दलील का बचाव किया और कहा कि वह मौजूदा केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि राज्य में (संघवाद के) सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे।

मनीष तिवारी ने कहा कि मैं अस्थायी, जिसे (अनुच्छेद 370 के संदर्भ में) स्थायी के रूप में तर्क दिया गया है, विशेष प्रावधानों के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। लेकिन, स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत, जो 370 और 371 के माध्यम से चलता है, वही है।

संविधान पीठ ने कहा कि वह इस तरह उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी और हस्तक्षेपकर्ता से कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दिये गये बयानों से उसकी आशंकाएं दूर हो गयी हैं।

आपके पास धारा 370 पर कहने के लिए कुछ नहीं है। तो, हम क्यों सुनें? सॉलिसिटर जनरल की दलील को रिकॉर्ड पर लेकर हम आपके आईए (हस्तक्षेप आवेदन) को बंद कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रुख को देखते हुए हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आईए (हस्तक्षेप आवेदन) और संविधान पीठ द्वारा सुने जा रहे संदर्भ में हितों की कोई समानता नहीं है।

बता दें कि मनीष तिवारी सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग वकील हैं। वह पंजाब से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं।

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नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को संविधान पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर-पूर्व राज्यों या देश के किसी अन्य भाग में लागू संविधान के विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में कहा कि हमें अस्थायी प्रावधान, जो कि अनुच्छेद 370 है, और उत्तर-पूर्व सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का (संविधान के) किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है, जो उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देता है।

अरुणाचल प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ द्वारा जो व्याख्या दी जाएगी, उसका अनुच्छेद 371 जैसे अन्य विशेष प्रावधानों, छह उप-भागों पर प्रभाव पड़ेगा, जो उत्तर-पूर्व पर लागू होते हैं। संविधान के भाग XXI और छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम पर लागू होते हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के तहत स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत कमोबेश एक जैसा है। इसलिए, इस मामले में जो भी होगा, उसका अनुच्छेद 371 पर प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमा में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। वर्तमान में आप मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रहे हैं।

एसजी तुषार मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छीनने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि आशंका पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं केंद्र की ओर से उस आशंका को दूर कर रहा हूं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि हमें किसी भी चीज को प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटाना चाहिए? हम एक विशिष्ट प्रावधान, अर्थात धारा 370, से निपट रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि एसजी ने अदालत में बयान दिया है कि सरकार का संविधान के अन्य विशेष प्रावधानों को छीनने का कोई इरादा नहीं है।

अधिवक्ता मनीष तिवारी ने अपनी दलील का बचाव किया और कहा कि वह मौजूदा केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि राज्य में (संघवाद के) सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे।

मनीष तिवारी ने कहा कि मैं अस्थायी, जिसे (अनुच्छेद 370 के संदर्भ में) स्थायी के रूप में तर्क दिया गया है, विशेष प्रावधानों के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। लेकिन, स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत, जो 370 और 371 के माध्यम से चलता है, वही है।

संविधान पीठ ने कहा कि वह इस तरह उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी और हस्तक्षेपकर्ता से कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दिये गये बयानों से उसकी आशंकाएं दूर हो गयी हैं।

आपके पास धारा 370 पर कहने के लिए कुछ नहीं है। तो, हम क्यों सुनें? सॉलिसिटर जनरल की दलील को रिकॉर्ड पर लेकर हम आपके आईए (हस्तक्षेप आवेदन) को बंद कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रुख को देखते हुए हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आईए (हस्तक्षेप आवेदन) और संविधान पीठ द्वारा सुने जा रहे संदर्भ में हितों की कोई समानता नहीं है।

बता दें कि मनीष तिवारी सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग वकील हैं। वह पंजाब से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं।

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नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को संविधान पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर-पूर्व राज्यों या देश के किसी अन्य भाग में लागू संविधान के विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में कहा कि हमें अस्थायी प्रावधान, जो कि अनुच्छेद 370 है, और उत्तर-पूर्व सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का (संविधान के) किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है, जो उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देता है।

अरुणाचल प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ द्वारा जो व्याख्या दी जाएगी, उसका अनुच्छेद 371 जैसे अन्य विशेष प्रावधानों, छह उप-भागों पर प्रभाव पड़ेगा, जो उत्तर-पूर्व पर लागू होते हैं। संविधान के भाग XXI और छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम पर लागू होते हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के तहत स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत कमोबेश एक जैसा है। इसलिए, इस मामले में जो भी होगा, उसका अनुच्छेद 371 पर प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमा में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। वर्तमान में आप मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रहे हैं।

एसजी तुषार मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छीनने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि आशंका पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं केंद्र की ओर से उस आशंका को दूर कर रहा हूं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि हमें किसी भी चीज को प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटाना चाहिए? हम एक विशिष्ट प्रावधान, अर्थात धारा 370, से निपट रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि एसजी ने अदालत में बयान दिया है कि सरकार का संविधान के अन्य विशेष प्रावधानों को छीनने का कोई इरादा नहीं है।

अधिवक्ता मनीष तिवारी ने अपनी दलील का बचाव किया और कहा कि वह मौजूदा केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि राज्य में (संघवाद के) सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे।

मनीष तिवारी ने कहा कि मैं अस्थायी, जिसे (अनुच्छेद 370 के संदर्भ में) स्थायी के रूप में तर्क दिया गया है, विशेष प्रावधानों के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। लेकिन, स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत, जो 370 और 371 के माध्यम से चलता है, वही है।

संविधान पीठ ने कहा कि वह इस तरह उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी और हस्तक्षेपकर्ता से कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दिये गये बयानों से उसकी आशंकाएं दूर हो गयी हैं।

आपके पास धारा 370 पर कहने के लिए कुछ नहीं है। तो, हम क्यों सुनें? सॉलिसिटर जनरल की दलील को रिकॉर्ड पर लेकर हम आपके आईए (हस्तक्षेप आवेदन) को बंद कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रुख को देखते हुए हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आईए (हस्तक्षेप आवेदन) और संविधान पीठ द्वारा सुने जा रहे संदर्भ में हितों की कोई समानता नहीं है।

बता दें कि मनीष तिवारी सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग वकील हैं। वह पंजाब से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं।

–आईएएनएस

एबीएम

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नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को संविधान पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर-पूर्व राज्यों या देश के किसी अन्य भाग में लागू संविधान के विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में कहा कि हमें अस्थायी प्रावधान, जो कि अनुच्छेद 370 है, और उत्तर-पूर्व सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का (संविधान के) किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है, जो उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देता है।

अरुणाचल प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ द्वारा जो व्याख्या दी जाएगी, उसका अनुच्छेद 371 जैसे अन्य विशेष प्रावधानों, छह उप-भागों पर प्रभाव पड़ेगा, जो उत्तर-पूर्व पर लागू होते हैं। संविधान के भाग XXI और छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम पर लागू होते हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के तहत स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत कमोबेश एक जैसा है। इसलिए, इस मामले में जो भी होगा, उसका अनुच्छेद 371 पर प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमा में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। वर्तमान में आप मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रहे हैं।

एसजी तुषार मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छीनने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि आशंका पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं केंद्र की ओर से उस आशंका को दूर कर रहा हूं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि हमें किसी भी चीज को प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटाना चाहिए? हम एक विशिष्ट प्रावधान, अर्थात धारा 370, से निपट रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि एसजी ने अदालत में बयान दिया है कि सरकार का संविधान के अन्य विशेष प्रावधानों को छीनने का कोई इरादा नहीं है।

अधिवक्ता मनीष तिवारी ने अपनी दलील का बचाव किया और कहा कि वह मौजूदा केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि राज्य में (संघवाद के) सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे।

मनीष तिवारी ने कहा कि मैं अस्थायी, जिसे (अनुच्छेद 370 के संदर्भ में) स्थायी के रूप में तर्क दिया गया है, विशेष प्रावधानों के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। लेकिन, स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत, जो 370 और 371 के माध्यम से चलता है, वही है।

संविधान पीठ ने कहा कि वह इस तरह उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी और हस्तक्षेपकर्ता से कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दिये गये बयानों से उसकी आशंकाएं दूर हो गयी हैं।

आपके पास धारा 370 पर कहने के लिए कुछ नहीं है। तो, हम क्यों सुनें? सॉलिसिटर जनरल की दलील को रिकॉर्ड पर लेकर हम आपके आईए (हस्तक्षेप आवेदन) को बंद कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रुख को देखते हुए हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आईए (हस्तक्षेप आवेदन) और संविधान पीठ द्वारा सुने जा रहे संदर्भ में हितों की कोई समानता नहीं है।

बता दें कि मनीष तिवारी सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग वकील हैं। वह पंजाब से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को संविधान पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर-पूर्व राज्यों या देश के किसी अन्य भाग में लागू संविधान के विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में कहा कि हमें अस्थायी प्रावधान, जो कि अनुच्छेद 370 है, और उत्तर-पूर्व सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का (संविधान के) किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है, जो उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देता है।

अरुणाचल प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ द्वारा जो व्याख्या दी जाएगी, उसका अनुच्छेद 371 जैसे अन्य विशेष प्रावधानों, छह उप-भागों पर प्रभाव पड़ेगा, जो उत्तर-पूर्व पर लागू होते हैं। संविधान के भाग XXI और छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम पर लागू होते हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के तहत स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत कमोबेश एक जैसा है। इसलिए, इस मामले में जो भी होगा, उसका अनुच्छेद 371 पर प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमा में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। वर्तमान में आप मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रहे हैं।

एसजी तुषार मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छीनने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि आशंका पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं केंद्र की ओर से उस आशंका को दूर कर रहा हूं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि हमें किसी भी चीज को प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटाना चाहिए? हम एक विशिष्ट प्रावधान, अर्थात धारा 370, से निपट रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि एसजी ने अदालत में बयान दिया है कि सरकार का संविधान के अन्य विशेष प्रावधानों को छीनने का कोई इरादा नहीं है।

अधिवक्ता मनीष तिवारी ने अपनी दलील का बचाव किया और कहा कि वह मौजूदा केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि राज्य में (संघवाद के) सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे।

मनीष तिवारी ने कहा कि मैं अस्थायी, जिसे (अनुच्छेद 370 के संदर्भ में) स्थायी के रूप में तर्क दिया गया है, विशेष प्रावधानों के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। लेकिन, स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत, जो 370 और 371 के माध्यम से चलता है, वही है।

संविधान पीठ ने कहा कि वह इस तरह उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी और हस्तक्षेपकर्ता से कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दिये गये बयानों से उसकी आशंकाएं दूर हो गयी हैं।

आपके पास धारा 370 पर कहने के लिए कुछ नहीं है। तो, हम क्यों सुनें? सॉलिसिटर जनरल की दलील को रिकॉर्ड पर लेकर हम आपके आईए (हस्तक्षेप आवेदन) को बंद कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रुख को देखते हुए हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आईए (हस्तक्षेप आवेदन) और संविधान पीठ द्वारा सुने जा रहे संदर्भ में हितों की कोई समानता नहीं है।

बता दें कि मनीष तिवारी सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग वकील हैं। वह पंजाब से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं।

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नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को संविधान पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर-पूर्व राज्यों या देश के किसी अन्य भाग में लागू संविधान के विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में कहा कि हमें अस्थायी प्रावधान, जो कि अनुच्छेद 370 है, और उत्तर-पूर्व सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का (संविधान के) किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है, जो उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देता है।

अरुणाचल प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ द्वारा जो व्याख्या दी जाएगी, उसका अनुच्छेद 371 जैसे अन्य विशेष प्रावधानों, छह उप-भागों पर प्रभाव पड़ेगा, जो उत्तर-पूर्व पर लागू होते हैं। संविधान के भाग XXI और छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम पर लागू होते हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के तहत स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत कमोबेश एक जैसा है। इसलिए, इस मामले में जो भी होगा, उसका अनुच्छेद 371 पर प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमा में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। वर्तमान में आप मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रहे हैं।

एसजी तुषार मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छीनने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि आशंका पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं केंद्र की ओर से उस आशंका को दूर कर रहा हूं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि हमें किसी भी चीज को प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटाना चाहिए? हम एक विशिष्ट प्रावधान, अर्थात धारा 370, से निपट रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि एसजी ने अदालत में बयान दिया है कि सरकार का संविधान के अन्य विशेष प्रावधानों को छीनने का कोई इरादा नहीं है।

अधिवक्ता मनीष तिवारी ने अपनी दलील का बचाव किया और कहा कि वह मौजूदा केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि राज्य में (संघवाद के) सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे।

मनीष तिवारी ने कहा कि मैं अस्थायी, जिसे (अनुच्छेद 370 के संदर्भ में) स्थायी के रूप में तर्क दिया गया है, विशेष प्रावधानों के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। लेकिन, स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत, जो 370 और 371 के माध्यम से चलता है, वही है।

संविधान पीठ ने कहा कि वह इस तरह उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी और हस्तक्षेपकर्ता से कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दिये गये बयानों से उसकी आशंकाएं दूर हो गयी हैं।

आपके पास धारा 370 पर कहने के लिए कुछ नहीं है। तो, हम क्यों सुनें? सॉलिसिटर जनरल की दलील को रिकॉर्ड पर लेकर हम आपके आईए (हस्तक्षेप आवेदन) को बंद कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रुख को देखते हुए हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आईए (हस्तक्षेप आवेदन) और संविधान पीठ द्वारा सुने जा रहे संदर्भ में हितों की कोई समानता नहीं है।

बता दें कि मनीष तिवारी सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग वकील हैं। वह पंजाब से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं।

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नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को संविधान पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर-पूर्व राज्यों या देश के किसी अन्य भाग में लागू संविधान के विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में कहा कि हमें अस्थायी प्रावधान, जो कि अनुच्छेद 370 है, और उत्तर-पूर्व सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का (संविधान के) किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है, जो उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देता है।

अरुणाचल प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ द्वारा जो व्याख्या दी जाएगी, उसका अनुच्छेद 371 जैसे अन्य विशेष प्रावधानों, छह उप-भागों पर प्रभाव पड़ेगा, जो उत्तर-पूर्व पर लागू होते हैं। संविधान के भाग XXI और छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम पर लागू होते हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के तहत स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत कमोबेश एक जैसा है। इसलिए, इस मामले में जो भी होगा, उसका अनुच्छेद 371 पर प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमा में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। वर्तमान में आप मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रहे हैं।

एसजी तुषार मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छीनने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि आशंका पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं केंद्र की ओर से उस आशंका को दूर कर रहा हूं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि हमें किसी भी चीज को प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटाना चाहिए? हम एक विशिष्ट प्रावधान, अर्थात धारा 370, से निपट रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि एसजी ने अदालत में बयान दिया है कि सरकार का संविधान के अन्य विशेष प्रावधानों को छीनने का कोई इरादा नहीं है।

अधिवक्ता मनीष तिवारी ने अपनी दलील का बचाव किया और कहा कि वह मौजूदा केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि राज्य में (संघवाद के) सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे।

मनीष तिवारी ने कहा कि मैं अस्थायी, जिसे (अनुच्छेद 370 के संदर्भ में) स्थायी के रूप में तर्क दिया गया है, विशेष प्रावधानों के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। लेकिन, स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत, जो 370 और 371 के माध्यम से चलता है, वही है।

संविधान पीठ ने कहा कि वह इस तरह उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी और हस्तक्षेपकर्ता से कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दिये गये बयानों से उसकी आशंकाएं दूर हो गयी हैं।

आपके पास धारा 370 पर कहने के लिए कुछ नहीं है। तो, हम क्यों सुनें? सॉलिसिटर जनरल की दलील को रिकॉर्ड पर लेकर हम आपके आईए (हस्तक्षेप आवेदन) को बंद कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रुख को देखते हुए हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आईए (हस्तक्षेप आवेदन) और संविधान पीठ द्वारा सुने जा रहे संदर्भ में हितों की कोई समानता नहीं है।

बता दें कि मनीष तिवारी सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग वकील हैं। वह पंजाब से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को संविधान पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर-पूर्व राज्यों या देश के किसी अन्य भाग में लागू संविधान के विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में कहा कि हमें अस्थायी प्रावधान, जो कि अनुच्छेद 370 है, और उत्तर-पूर्व सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का (संविधान के) किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है, जो उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देता है।

अरुणाचल प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ द्वारा जो व्याख्या दी जाएगी, उसका अनुच्छेद 371 जैसे अन्य विशेष प्रावधानों, छह उप-भागों पर प्रभाव पड़ेगा, जो उत्तर-पूर्व पर लागू होते हैं। संविधान के भाग XXI और छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम पर लागू होते हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के तहत स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत कमोबेश एक जैसा है। इसलिए, इस मामले में जो भी होगा, उसका अनुच्छेद 371 पर प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमा में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। वर्तमान में आप मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रहे हैं।

एसजी तुषार मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छीनने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि आशंका पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं केंद्र की ओर से उस आशंका को दूर कर रहा हूं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि हमें किसी भी चीज को प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटाना चाहिए? हम एक विशिष्ट प्रावधान, अर्थात धारा 370, से निपट रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि एसजी ने अदालत में बयान दिया है कि सरकार का संविधान के अन्य विशेष प्रावधानों को छीनने का कोई इरादा नहीं है।

अधिवक्ता मनीष तिवारी ने अपनी दलील का बचाव किया और कहा कि वह मौजूदा केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि राज्य में (संघवाद के) सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे।

मनीष तिवारी ने कहा कि मैं अस्थायी, जिसे (अनुच्छेद 370 के संदर्भ में) स्थायी के रूप में तर्क दिया गया है, विशेष प्रावधानों के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। लेकिन, स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत, जो 370 और 371 के माध्यम से चलता है, वही है।

संविधान पीठ ने कहा कि वह इस तरह उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी और हस्तक्षेपकर्ता से कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दिये गये बयानों से उसकी आशंकाएं दूर हो गयी हैं।

आपके पास धारा 370 पर कहने के लिए कुछ नहीं है। तो, हम क्यों सुनें? सॉलिसिटर जनरल की दलील को रिकॉर्ड पर लेकर हम आपके आईए (हस्तक्षेप आवेदन) को बंद कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रुख को देखते हुए हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आईए (हस्तक्षेप आवेदन) और संविधान पीठ द्वारा सुने जा रहे संदर्भ में हितों की कोई समानता नहीं है।

बता दें कि मनीष तिवारी सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग वकील हैं। वह पंजाब से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं।

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नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को संविधान पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर-पूर्व राज्यों या देश के किसी अन्य भाग में लागू संविधान के विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में कहा कि हमें अस्थायी प्रावधान, जो कि अनुच्छेद 370 है, और उत्तर-पूर्व सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का (संविधान के) किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है, जो उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देता है।

अरुणाचल प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ द्वारा जो व्याख्या दी जाएगी, उसका अनुच्छेद 371 जैसे अन्य विशेष प्रावधानों, छह उप-भागों पर प्रभाव पड़ेगा, जो उत्तर-पूर्व पर लागू होते हैं। संविधान के भाग XXI और छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम पर लागू होते हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के तहत स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत कमोबेश एक जैसा है। इसलिए, इस मामले में जो भी होगा, उसका अनुच्छेद 371 पर प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमा में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। वर्तमान में आप मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रहे हैं।

एसजी तुषार मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छीनने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि आशंका पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं केंद्र की ओर से उस आशंका को दूर कर रहा हूं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि हमें किसी भी चीज को प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटाना चाहिए? हम एक विशिष्ट प्रावधान, अर्थात धारा 370, से निपट रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि एसजी ने अदालत में बयान दिया है कि सरकार का संविधान के अन्य विशेष प्रावधानों को छीनने का कोई इरादा नहीं है।

अधिवक्ता मनीष तिवारी ने अपनी दलील का बचाव किया और कहा कि वह मौजूदा केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि राज्य में (संघवाद के) सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे।

मनीष तिवारी ने कहा कि मैं अस्थायी, जिसे (अनुच्छेद 370 के संदर्भ में) स्थायी के रूप में तर्क दिया गया है, विशेष प्रावधानों के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। लेकिन, स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत, जो 370 और 371 के माध्यम से चलता है, वही है।

संविधान पीठ ने कहा कि वह इस तरह उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी और हस्तक्षेपकर्ता से कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दिये गये बयानों से उसकी आशंकाएं दूर हो गयी हैं।

आपके पास धारा 370 पर कहने के लिए कुछ नहीं है। तो, हम क्यों सुनें? सॉलिसिटर जनरल की दलील को रिकॉर्ड पर लेकर हम आपके आईए (हस्तक्षेप आवेदन) को बंद कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रुख को देखते हुए हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आईए (हस्तक्षेप आवेदन) और संविधान पीठ द्वारा सुने जा रहे संदर्भ में हितों की कोई समानता नहीं है।

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उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में कहा कि हमें अस्थायी प्रावधान, जो कि अनुच्छेद 370 है, और उत्तर-पूर्व सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का (संविधान के) किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है, जो उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देता है।

अरुणाचल प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ द्वारा जो व्याख्या दी जाएगी, उसका अनुच्छेद 371 जैसे अन्य विशेष प्रावधानों, छह उप-भागों पर प्रभाव पड़ेगा, जो उत्तर-पूर्व पर लागू होते हैं। संविधान के भाग XXI और छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम पर लागू होते हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के तहत स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत कमोबेश एक जैसा है। इसलिए, इस मामले में जो भी होगा, उसका अनुच्छेद 371 पर प्रभाव पड़ेगा।

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सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि हमें किसी भी चीज को प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटाना चाहिए? हम एक विशिष्ट प्रावधान, अर्थात धारा 370, से निपट रहे हैं।

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मनीष तिवारी ने कहा कि मैं अस्थायी, जिसे (अनुच्छेद 370 के संदर्भ में) स्थायी के रूप में तर्क दिया गया है, विशेष प्रावधानों के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। लेकिन, स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत, जो 370 और 371 के माध्यम से चलता है, वही है।

संविधान पीठ ने कहा कि वह इस तरह उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी और हस्तक्षेपकर्ता से कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दिये गये बयानों से उसकी आशंकाएं दूर हो गयी हैं।

आपके पास धारा 370 पर कहने के लिए कुछ नहीं है। तो, हम क्यों सुनें? सॉलिसिटर जनरल की दलील को रिकॉर्ड पर लेकर हम आपके आईए (हस्तक्षेप आवेदन) को बंद कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रुख को देखते हुए हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आईए (हस्तक्षेप आवेदन) और संविधान पीठ द्वारा सुने जा रहे संदर्भ में हितों की कोई समानता नहीं है।

बता दें कि मनीष तिवारी सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग वकील हैं। वह पंजाब से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं।

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नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को संविधान पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर-पूर्व राज्यों या देश के किसी अन्य भाग में लागू संविधान के विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में कहा कि हमें अस्थायी प्रावधान, जो कि अनुच्छेद 370 है, और उत्तर-पूर्व सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का (संविधान के) किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है, जो उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देता है।

अरुणाचल प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ द्वारा जो व्याख्या दी जाएगी, उसका अनुच्छेद 371 जैसे अन्य विशेष प्रावधानों, छह उप-भागों पर प्रभाव पड़ेगा, जो उत्तर-पूर्व पर लागू होते हैं। संविधान के भाग XXI और छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम पर लागू होते हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के तहत स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत कमोबेश एक जैसा है। इसलिए, इस मामले में जो भी होगा, उसका अनुच्छेद 371 पर प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमा में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। वर्तमान में आप मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रहे हैं।

एसजी तुषार मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छीनने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि आशंका पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं केंद्र की ओर से उस आशंका को दूर कर रहा हूं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि हमें किसी भी चीज को प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटाना चाहिए? हम एक विशिष्ट प्रावधान, अर्थात धारा 370, से निपट रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि एसजी ने अदालत में बयान दिया है कि सरकार का संविधान के अन्य विशेष प्रावधानों को छीनने का कोई इरादा नहीं है।

अधिवक्ता मनीष तिवारी ने अपनी दलील का बचाव किया और कहा कि वह मौजूदा केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि राज्य में (संघवाद के) सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे।

मनीष तिवारी ने कहा कि मैं अस्थायी, जिसे (अनुच्छेद 370 के संदर्भ में) स्थायी के रूप में तर्क दिया गया है, विशेष प्रावधानों के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। लेकिन, स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत, जो 370 और 371 के माध्यम से चलता है, वही है।

संविधान पीठ ने कहा कि वह इस तरह उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी और हस्तक्षेपकर्ता से कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दिये गये बयानों से उसकी आशंकाएं दूर हो गयी हैं।

आपके पास धारा 370 पर कहने के लिए कुछ नहीं है। तो, हम क्यों सुनें? सॉलिसिटर जनरल की दलील को रिकॉर्ड पर लेकर हम आपके आईए (हस्तक्षेप आवेदन) को बंद कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रुख को देखते हुए हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आईए (हस्तक्षेप आवेदन) और संविधान पीठ द्वारा सुने जा रहे संदर्भ में हितों की कोई समानता नहीं है।

बता दें कि मनीष तिवारी सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग वकील हैं। वह पंजाब से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं।

–आईएएनएस

एबीएम

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नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को संविधान पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर-पूर्व राज्यों या देश के किसी अन्य भाग में लागू संविधान के विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में कहा कि हमें अस्थायी प्रावधान, जो कि अनुच्छेद 370 है, और उत्तर-पूर्व सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का (संविधान के) किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है, जो उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देता है।

अरुणाचल प्रदेश के एक पूर्व मंत्री की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ द्वारा जो व्याख्या दी जाएगी, उसका अनुच्छेद 371 जैसे अन्य विशेष प्रावधानों, छह उप-भागों पर प्रभाव पड़ेगा, जो उत्तर-पूर्व पर लागू होते हैं। संविधान के भाग XXI और छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम पर लागू होते हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के तहत स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत कमोबेश एक जैसा है। इसलिए, इस मामले में जो भी होगा, उसका अनुच्छेद 371 पर प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि भारत की सीमा में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। वर्तमान में आप मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रहे हैं।

एसजी तुषार मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का उत्तर पूर्व और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छीनने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि आशंका पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं केंद्र की ओर से उस आशंका को दूर कर रहा हूं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा कि हमें किसी भी चीज को प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटाना चाहिए? हम एक विशिष्ट प्रावधान, अर्थात धारा 370, से निपट रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि एसजी ने अदालत में बयान दिया है कि सरकार का संविधान के अन्य विशेष प्रावधानों को छीनने का कोई इरादा नहीं है।

अधिवक्ता मनीष तिवारी ने अपनी दलील का बचाव किया और कहा कि वह मौजूदा केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि राज्य में (संघवाद के) सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे।

मनीष तिवारी ने कहा कि मैं अस्थायी, जिसे (अनुच्छेद 370 के संदर्भ में) स्थायी के रूप में तर्क दिया गया है, विशेष प्रावधानों के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। लेकिन, स्वायत्तता का अंतर्निहित सिद्धांत, जो 370 और 371 के माध्यम से चलता है, वही है।

संविधान पीठ ने कहा कि वह इस तरह उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी और हस्तक्षेपकर्ता से कहा कि केंद्र सरकार की ओर से दिये गये बयानों से उसकी आशंकाएं दूर हो गयी हैं।

आपके पास धारा 370 पर कहने के लिए कुछ नहीं है। तो, हम क्यों सुनें? सॉलिसिटर जनरल की दलील को रिकॉर्ड पर लेकर हम आपके आईए (हस्तक्षेप आवेदन) को बंद कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रुख को देखते हुए हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आईए (हस्तक्षेप आवेदन) और संविधान पीठ द्वारा सुने जा रहे संदर्भ में हितों की कोई समानता नहीं है।

बता दें कि मनीष तिवारी सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग वकील हैं। वह पंजाब से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं।

–आईएएनएस

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