अदीस अबाबा, 21 दिसंबर (आईएएनएस). अफ्रीका में एमपॉक्स के मामले 70,000 के करीब पहुंच गए हैं. अफ्रीका रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (अफ्रीका सीडीसी) ने बताया कि इस साल अब तक अफ्रीका में एमपॉक्स के मामलों की संख्या 69,000 को पार कर गई है, जबकि मरने वालों की संख्या 1,260 से अधिक हो गई है.
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, अफ्रीका सीडीसी के चीफ ऑफ स्टाफ और कार्यकारी कार्यालय के प्रमुख नगाशी नगोंगो ने गुरुवार शाम को एक ऑनलाइन मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा कि अफ्रीकी महाद्वीप में साल की शुरुआत से अब तक 69,211 एमपॉक्स के मामले सामने आए हैं. इनमें से 14,794 की पुष्टि हुई और 1,268 से अधिक लोगों की मौतें हुई हैं.
अफ्रीकी संघ की विशेष स्वास्थ्य सेवा एजेंसी के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले सप्ताह ही इस महाद्वीप में एमपॉक्स के 3,095 नए मामले सामने आए, जिनमें 553 की पुष्टि हुई और 31 नई मौतें हुई हैं.
अफ्रीका सीडीसी के अनुसार, अफ्रीका में पिछले वर्ष दर्ज किए गए कुल मामलों की तुलना में इस साल 789 प्रतिशत से अधिक मामलों की पुष्टि हुई है.
नगोंगो ने कहा कि 15 अफ्रीकी देश वर्तमान में एमपॉक्स वायरस का सामना कर रहे हैं, जबकि पांच देश गैबॉन, दक्षिण अफ्रीका, मोरक्को, जाम्बिया और जिम्बाब्वे हाल के हफ्तों में सक्रिय संचरण से नियंत्रित चरण में स्थानांतरित हो गए हैं.
उन्होंने अफ्रीका में चल रहे एमपॉक्स प्रकोप से निपटने के लिए आठ तत्काल प्राथमिकताओं का उल्लेख किया है, जिसमें संसाधन जुटाने में तेजी लाना और सबसे अधिक प्रभावित देशों तक मदद पहुंचाना शामिल है.
नगोंगो ने कहा कि देशों को डेटा प्रबंधन प्रणाली में सुधार करने, टीकाकरण अभियानों में तेजी लाने की जरूरत है.
एमपॉक्स ने अब तक 20 अफ्रीकी देशों को प्रभावित किया है. अफ्रीका सीडीसी ने महामारी से प्रभावी ढंग से लड़ने के लिए देशों के बीच ठोस प्रयासों और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने का आह्वान किया है.
अगस्त के मध्य में अफ्रीका सीडीसी ने एमपॉक्स प्रकोप को महाद्वीपीय सुरक्षा के लिए एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया. इसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी वायरल बीमारी को लेकर चिंता व्यक्त की और अंतरराष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया.
पिछले दो सालों में दूसरी बार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एमपॉक्स को लेकर वैश्विक अलर्ट जारी किया है.
एमपॉक्स को पहले मंकीपॉक्स के नाम से जाना जाता था. जो पहली बार साल 1958 में बंदरों में पाया गया था. यह एक दुर्लभ वायरल बीमारी है जो आमतौर पर शरीर के तरल पदार्थ, श्वसन बूंदों और अन्य दूषित पदार्थों के माध्यम से फैलती है. इस संक्रमण से अक्सर बुखार, दाने और सूजे हुए लिम्फ नोड्स होते हैं.
–आईएएनएस
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