नई दिल्ली, 25 जनवरी (आईएएनएस)। इंडो-एशियन न्यूज सर्विस (आईएएनएस) ने बुधवार को 1946 के भारतीय नौ सेना (रॉयल इंडियन नेवी) विद्रोह पर द लास्ट पुश शीर्षक नामक एक डॉक्यूमेंट्री जारी की है।
स्वतंत्र भारत के अमृत महोत्सव के दौरान वरिष्ठ पत्रकार सुजय ने स्वतंत्रता संग्राम के भूले हुए घटनाक्रम पर एक लघु फिल्म का निर्माण किया है। नई दिल्ली के महादेव रोड़ स्थित फिल्म डिविजन ऑडिटोरियम इसकी पहली श्रृंखला रिलीज की गई। इस दौरान भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्री महेंद्र नाथ पांडे भी मौजूद रहे।
ब्रिटेन में इम्पीरियल वॉर म्यूजि़यम और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से प्राप्त भूले हुए फुटेज व भारत और पाकिस्तान से प्रेस क्लिपिंग व विशेषज्ञों की राय के आधार पर इस डॉक्युमेंट्री को बनाया गया है। द लास्ट पुश विद्रोह के 72 घंटों का पुनर्निर्माण है, जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज और ब्रिटिश राज के अंत को दर्शाती है। इसमें दर्शाया गया है कि 18 फरवरी, 1946 को, भारतीय नौ सेना (रॉयल इंडियन नेवी) बॉम्बे में हड़ताल पर चली गई थी, ब्रिटिश झंडे उतारे गए और तीन दिनों में 78 जहाजों और 21 तटीय प्रतिष्ठानों पर नियंत्रण कर लिया। विद्रोह का प्रभाव ब्रिटिश भारतीय सैन्य संरचनाओं में महसूस किया गया था। 48 घंटों तक ब्रिटिश साम्राज्य ने सेना पर नियंत्रण खो दिया था, लेकिन विद्रोह के समय से अंतत: समाप्त हो गया। तब अंग्रेजों को पता चल गया था कि उनके पास भारत छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
फिर भी, आजादी के 75 साल बाद, 1946 के इस रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह को स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में जगह नहीं मिल पाई।
इस साहसिक कार्य के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करते हुए आईएएनएस के प्रबंध निदेशक, सीईओ और प्रधान संपादक संदीप बामजई ने बुधवार को कहा लंदन में युद्ध के बाद, उस सरकार को एहसास हुआ कि आरआईएन विद्रोह ने भारत से ब्रिटेन के बाहर निकलने की गति को एक धार दे दी थी। सशस्त्र बलों के समर्थन पर, जो स्वतंत्रता की भावना से ओतप्रोत थे। एक स्वत: स्फूर्त विद्रोह था, जिसका देशभर में सशस्त्र बलों पर प्रभाव पड़ा।
संदीप बामजई ने कहा, विद्रोह के तुरंत बाद, ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने सत्ता के हस्तांतरण के विवरण पर बातचीत करने के लिए भारत में कैबिनेट मिशन की भी घोषणा की थी।
वहीं डॉक्युमेंट्री जारी करने के बाद द लास्ट पुश के निर्माण के साथ अपने जुड़ाव को याद करते हुए सुजय ने कहा, हो सकता है कि कोई इतिहास का आजीवन छात्र रहा हो, लेकिन फिर भी, ऐसी घटनाएं हैं, यहां तक कि समकालीन समय से भी, जो किसी तरह ध्यान में नहीं हैं। जब मैंने एक फिल्म निर्माता के रूप में इस विषय पर शोध करना शुरू किया, तो मुझे एहसास हुआ कि ऐसी अनकही कहानियां हैं, जो प्रासंगिक और विश्वसनीय हैं, जिन्हें पूरी तरह से समझने के लिए याद रखने की जरूरत है कि भारत ने अपनी आजादी कैसे हासिल की।
उन्होंने कहा, यह विडंबना ही है कि लोग वास्तव में वर्दी में उन जवानों की बहादुरी और बलिदान को भूल गए।
–आईएएनएस
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