deshbandhu

deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Menu
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Facebook Twitter Youtube
  • भोपाल
  • इंदौर
  • उज्जैन
  • ग्वालियर
  • जबलपुर
  • रीवा
  • चंबल
  • नर्मदापुरम
  • शहडोल
  • सागर
  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
ADVERTISEMENT
Home Uncategorized

कल्याणकारी राज्य को बकाये की मांग के लिए मजबूर किए बिना अनुबंध कार्य के लिए भुगतान करना चाहिए : केरल एचसी

by
March 3, 2023
in Uncategorized, राष्ट्रीय
0
कल्याणकारी राज्य को बकाये की मांग के लिए मजबूर किए बिना अनुबंध कार्य के लिए भुगतान करना चाहिए : केरल एचसी
0
SHARES
1
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp
ADVERTISEMENT

तिरुवनंतपुरम, 3 मार्च (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े।

अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।

READ ALSO

महिला उपयंत्री के व्यवहार से नाखुश पार्षद हुए लामबंद

ईपीएफओ ने सदस्यों को अनधिकृत एजेंटों से संपर्क न करने की दी सलाह

अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

तिरुवनंतपुरम, 3 मार्च (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े।

अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।

अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

तिरुवनंतपुरम, 3 मार्च (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े।

अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।

अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

तिरुवनंतपुरम, 3 मार्च (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े।

अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।

अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

तिरुवनंतपुरम, 3 मार्च (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े।

अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।

अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

तिरुवनंतपुरम, 3 मार्च (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े।

अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।

अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

तिरुवनंतपुरम, 3 मार्च (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े।

अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।

अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

तिरुवनंतपुरम, 3 मार्च (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े।

अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।

अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

तिरुवनंतपुरम, 3 मार्च (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े।

अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।

अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

तिरुवनंतपुरम, 3 मार्च (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े।

अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।

अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

तिरुवनंतपुरम, 3 मार्च (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े।

अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।

अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

तिरुवनंतपुरम, 3 मार्च (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े।

अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।

अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

तिरुवनंतपुरम, 3 मार्च (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े।

अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।

अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

तिरुवनंतपुरम, 3 मार्च (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े।

अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।

अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

तिरुवनंतपुरम, 3 मार्च (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े।

अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।

अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

तिरुवनंतपुरम, 3 मार्च (आईएएनएस)। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े।

अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।

अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

Related Posts

Councillors unhappy with the behavior of the female sub-engineer mobilized
Uncategorized

महिला उपयंत्री के व्यवहार से नाखुश पार्षद हुए लामबंद

June 16, 2025
Uncategorized

ईपीएफओ ने सदस्यों को अनधिकृत एजेंटों से संपर्क न करने की दी सलाह

June 16, 2025
बीकानेर: लव कुश वाटिका का लोकार्पण, मंत्री संजय शर्मा बोले, ’10 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य’
राष्ट्रीय

बीकानेर: लव कुश वाटिका का लोकार्पण, मंत्री संजय शर्मा बोले, ’10 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य’

June 16, 2025
ताज़ा समाचार

यूपी: महोबा में भीषण सड़क दुर्घटना, कार से टकराई बाइक, 5 की मौत

June 16, 2025
राष्ट्रीय

डब्ल्यूपीआई आधारित मुद्रास्फीति में लगातार नरमी भारत में उच्च आर्थिक विकास के लिए एक सकारात्मक संकेत : अर्थशास्त्री

June 16, 2025
राष्ट्रीय

झारखंड हाईकोर्ट ने डीजीपी पद पर अनुराग गुप्ता की नियुक्ति और सरकार की नियमावली पर किया जवाब तलब

June 16, 2025
Next Post
एएफसी एशियन कप का फाइनल ड्रॉ 11 मई को कतर में होगा

एएफसी एशियन कप का फाइनल ड्रॉ 11 मई को कतर में होगा

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ADVERTISEMENT

Contact us

Address

Deshbandhu Complex, Naudra Bridge Jabalpur 482001

Mail

deshbandhump@gmail.com

Mobile

9425156056

Important links

  • राशि-भविष्य
  • वर्गीकृत विज्ञापन
  • लाइफ स्टाइल
  • मनोरंजन
  • ब्लॉग

Important links

  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
  • ई पेपर

Related Links

  • Mayaram Surjan
  • Swayamsiddha
  • Deshbandhu

Social Links

084620
Total views : 5894253
Powered By WPS Visitor Counter

Published by Abhas Surjan on behalf of Patrakar Prakashan Pvt.Ltd., Deshbandhu Complex, Naudra Bridge, Jabalpur – 482001 |T:+91 761 4006577 |M: +91 9425156056 Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions The contents of this website is for reading only. Any unauthorised attempt to temper / edit / change the contents of this website comes under cyber crime and is punishable.

Copyright @ 2022 Deshbandhu. All rights are reserved.

  • Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions
No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर

Copyright @ 2022 Deshbandhu-MP All rights are reserved.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In