नई दिल्ली, 11 दिसंबर (आईएएनएस)। मल्लिकार्जुन खड़गे एक ऐसे नेता हैं, जो कांग्रेस के इतिहास को अच्छी तरह जानते हैं। खड़गे कांग्रेस के लिए एक अहम नेता के रूप में उभरे हैं। वह भारत के सबसे पुराने राजनीतिक संगठन का नेतृत्व करने वाले योग्य राजनेता भी हैं। 80 वर्षीय खड़गे 1969 से पार्टी के साथ जुड़े रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस की हर स्थिति को बेहद करीब से देखा है। दो बैलों की जोड़ी से लेकर दाहिनी हथेली (पंजा) के चिन्ह तक वह कांग्रेस के सफर में साथ रहे हैं।
मल्लिकार्जुन खड़गे ऐसे वक्त में कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं। जब पार्टी अपने इतिहास के सबसे कमजोर मुकाम पर खड़ी है। कांग्रेस का जनाधार लगातार सिमटा है। हिमाचल की जीत से जरूर कांग्रेस को थोड़ी राहत मिली है। ऐसे वक्त में खड़गे के सामने कांग्रेस के खोए हुए जनाधार को वापस लाने और खुद के साबित करने जैसी बड़ी बड़ी चुनौतियां हैं।
1- कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास पैदा करना भी एक चुनौती
सबसे पहले तो कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास पैदा करना भी खड़गे के लिए एक चुनौती है। कई राज्यों में लगातार हार का सामना करने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास में कुछ कमी आई है। खड़गे को उनका आत्मविश्वास जगाना होगा और इसके अलावा जमीनी स्तर पर कांग्रेस संगठन का काम करने वाले कार्यकतार्ओं में भी उत्साह भरना होगा।
2- कांग्रेस के अंदर होने वाली गुटबाजी को खत्म करना भी एक चुनौती है
कांग्रेस के अंदर खाने एक जो मतभेद चल रहा है, वह यह भी है कि कांग्रेस के अंदर युवा और वरिष्ठ नेताओं के बीच कोई तालमेल कोई संतुलन नहीं है। एक उदाहरण राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच 36 के आंकड़े हैं, तो कर्नाटक में भी डी. शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच भी कोई खास बनती नहीं है। स्थिति में हर राज्य में युवा और वरिष्ठ नेताओं के बीच बेहतर तालमेल बनाना भी एक चुनौती है।
3- पार्टी को राज्यों के स्तर पर मजबूत करना भी एक बड़ी चुनौती
जानकार बताते हैं कि कांग्रेस की हार की सबसे बड़ी वजह राज्यों में कांग्रेस पार्टी का खस्ताहाल ढांचा और लचर व्यवस्थाएं हैं। बिहार बंगाल, उत्तर प्रदेश, गुजरात, ओड़िशा, गोवा, आंध्र प्रदेश राज्यों में पुरानी पीढ़ी के नेताओं की फौज है, जिनकी सोच और नजरिया अलग है। किसी भी राष्ट्रीय पार्टी की राज्यों में मजबूती ही राष्ट्रीय राजनीति में उसकी पकड़ को मजबूत करती है।
4- दोबारा से दलितों के बीच एक मजबूत पकड़ बनाना बड़ी चुनौती
सूत्रों के अनुसार, दलित समुदाय के बीच कांग्रेस का आधार पिछले कुछ वर्षो में सिकुड़ता गया है। दलितों के बीच आंतरिक आरक्षण को लेकर वामपंथी और दक्षिणपंथी समुदाय के बीच मतभेदों को सुलझाने में कांग्रेस के फेल होने के कारण भी पार्टी ने वामपंथी दलितों का समर्थन खो दिया है।
कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षक बताते हैं कि दलितों का लंबे समय से समर्थन मिलने के बावजूद कांग्रेस ने किसी दलित को राज्य का मुख्यमंत्री नहीं बनाया। लेकिन अब
दलित को पार्टी का अध्यक्ष ही बना दिया है। तो अब देखना यह होगा कि कांग्रेस पार्टी का यह फार्मूला आने वाले चुनाव में कितना काम करता है।
कांग्रेस अब समझ चुकी है कि जनता के बीच जाकर जनता से जुड़ना होगा और जनता के मुद्दों को और जनता की समस्याओं को जनता के बीच में जाकर ही बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। इसलिए राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा शुरू की है। वह इस यात्रा से सीधे तौर पर जनता से जुड़ना चाहते हैं। अपने इस प्रयास में राहुल गांधी कितना सफल होते हैं या असफल होते हैं, यह तो कई राज्यों के आने वाले चुनाव और लोकसभा चुनाव के अलावा वक्त ही तय करेगा। जानकार बताते हैं, फिलहाल तो कांग्रेस की आगे की राह चुनौतियों से भरी है।
–आईएएनएस
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