deshbandhu

deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Menu
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Facebook Twitter Youtube
  • भोपाल
  • इंदौर
  • उज्जैन
  • ग्वालियर
  • जबलपुर
  • रीवा
  • चंबल
  • नर्मदापुरम
  • शहडोल
  • सागर
  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
ADVERTISEMENT
Home ताज़ा समाचार

कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में ‘करो या मरो’ जैसी स्थिति

by
March 26, 2024
in ताज़ा समाचार
0
0
SHARES
0
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp
ADVERTISEMENT

लखनऊ, 26 मार्च (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश को एक समय कांग्रेस पार्टी का गढ़ माना जाता था। अमेठी और रायबरेली निर्वाचन क्षेत्रों ने हमेशा गांधी-परिवार के लोगों को संसद भेजा। हालांकि, कांग्रेस अब लोकसभा में केवल एक सांसद और 403 सदस्यीय उत्तर प्रदेश विधान सभा में केवल दो विधायक तक सिमट कर रह गई है।

इस लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में करो या मरो की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी में आत्मविश्वास और नेतृत्व की कमी है, साथ ही उम्मीदवार भी नहीं मिल रहे हैं।

READ ALSO

पीएम मोदी का मां हीराबेन से था गहरा लगाव, शिमला रोड शो के दौरान पोर्ट्रेट देखकर तोड़ दिया था प्रोटोकॉल

भारत-कनाडा के बीच बहुत जरूरी रीसेट का क्षण’ : पीएम मोदी-कार्नी मुलाकात पर सांसद विक्रमजीत सिंह

उत्तर प्रदेश विधान परिषद में फिलहाल कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को यूपी में 6.36 फीसदी वोट मिले थे।

इन चुनावों में सबसे बड़ा झटका यह था कि पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को अमेठी में हार का सामना करना पड़ा, जहां पिछले चुनाव में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी विजयी हुई थीं।

कार्यकर्ता निराशा में डूब गए और 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में पार्टी का वोट शेयर घटकर मात्र 2.33 प्रतिशत रह गया।

अगर इस बार पार्टी का प्रदर्शन और गिरता है तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं रह जाएगा। यह एक ऐसा राज्य है, जिसने देश को 9 प्रधानमंत्री दिए हैं।

कांग्रेस को राजनीतिक समीकरणों को साधने और जीतने की क्षमता का मूल्यांकन करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वह 2024 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है।

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती न केवल रायबरेली को बचाना है, बल्कि उत्तर प्रदेश में अपनी सीटें बढ़ाना भी है।

पार्टी को अभी दो प्रमुख संसदीय (अमेठी और रायबरेली) निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा करना बाकी है। अभी तक यह पता नहीं चला है कि गांधी परिवार का कोई सदस्य इन सीटों पर चुनाव लड़ेगा या नहीं।

सोनिया गांधी 2019 में उत्तर प्रदेश में जीतने वाली एकमात्र कांग्रेस उम्मीदवार थीं। उन्हें रायबरेली में 55.78 प्रतिशत वोट मिले। राहुल गांधी 43.84 फीसदी वोटों के साथ अमेठी में स्मृति ईरानी से हार गए थे। ईरानी ने 49.69 फीसदी वोटों के साथ जीत हासिल की।

सोनिया गांधी ने अब राजस्थान से राज्यसभा जाने का रास्ता अपनाया है।

कांग्रेस की किस्मत 2009 से ख़राब होती जा रही है जब पार्टी ने 21 सीटें जीतीं थी। 2014 में उसे केवल दो सीटें और 2019 के लोकसभा चुनाव में एक सीट मिली।

यूपीसीसी के एक पूर्व अध्यक्ष, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर आईएएनएस से बातचीत में कहा कि समस्या यह है कि यूपी में उम्मीदवारों का मार्गदर्शन करने या उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए कोई नहीं है।

यूपीसीसी अध्यक्ष अजय राय खुद एक उम्मीदवार हैं। साथ ही अभियान की कोई दिशा भी नहीं है। अन्य सभी पार्टियों ने अपना प्रचार अभियान तैयार कर लिया है, लेकिन हमारे उम्मीदवार अंधेरे में भटक रहे हैं।

हर चुनावी अंकगणित में सबसे पुरानी पार्टी के खिलाफ खड़े होने के साथ, क्या कांग्रेस असंभव काम कर सकती है और देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य में अपनी स्थिति को पुनर्जीवित कर सकती है?

–आईएएनएस

एसएचके/एसकेपी

ADVERTISEMENT

लखनऊ, 26 मार्च (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश को एक समय कांग्रेस पार्टी का गढ़ माना जाता था। अमेठी और रायबरेली निर्वाचन क्षेत्रों ने हमेशा गांधी-परिवार के लोगों को संसद भेजा। हालांकि, कांग्रेस अब लोकसभा में केवल एक सांसद और 403 सदस्यीय उत्तर प्रदेश विधान सभा में केवल दो विधायक तक सिमट कर रह गई है।

इस लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में करो या मरो की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी में आत्मविश्वास और नेतृत्व की कमी है, साथ ही उम्मीदवार भी नहीं मिल रहे हैं।

उत्तर प्रदेश विधान परिषद में फिलहाल कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को यूपी में 6.36 फीसदी वोट मिले थे।

इन चुनावों में सबसे बड़ा झटका यह था कि पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को अमेठी में हार का सामना करना पड़ा, जहां पिछले चुनाव में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी विजयी हुई थीं।

कार्यकर्ता निराशा में डूब गए और 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में पार्टी का वोट शेयर घटकर मात्र 2.33 प्रतिशत रह गया।

अगर इस बार पार्टी का प्रदर्शन और गिरता है तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं रह जाएगा। यह एक ऐसा राज्य है, जिसने देश को 9 प्रधानमंत्री दिए हैं।

कांग्रेस को राजनीतिक समीकरणों को साधने और जीतने की क्षमता का मूल्यांकन करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वह 2024 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है।

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती न केवल रायबरेली को बचाना है, बल्कि उत्तर प्रदेश में अपनी सीटें बढ़ाना भी है।

पार्टी को अभी दो प्रमुख संसदीय (अमेठी और रायबरेली) निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा करना बाकी है। अभी तक यह पता नहीं चला है कि गांधी परिवार का कोई सदस्य इन सीटों पर चुनाव लड़ेगा या नहीं।

सोनिया गांधी 2019 में उत्तर प्रदेश में जीतने वाली एकमात्र कांग्रेस उम्मीदवार थीं। उन्हें रायबरेली में 55.78 प्रतिशत वोट मिले। राहुल गांधी 43.84 फीसदी वोटों के साथ अमेठी में स्मृति ईरानी से हार गए थे। ईरानी ने 49.69 फीसदी वोटों के साथ जीत हासिल की।

सोनिया गांधी ने अब राजस्थान से राज्यसभा जाने का रास्ता अपनाया है।

कांग्रेस की किस्मत 2009 से ख़राब होती जा रही है जब पार्टी ने 21 सीटें जीतीं थी। 2014 में उसे केवल दो सीटें और 2019 के लोकसभा चुनाव में एक सीट मिली।

यूपीसीसी के एक पूर्व अध्यक्ष, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर आईएएनएस से बातचीत में कहा कि समस्या यह है कि यूपी में उम्मीदवारों का मार्गदर्शन करने या उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए कोई नहीं है।

यूपीसीसी अध्यक्ष अजय राय खुद एक उम्मीदवार हैं। साथ ही अभियान की कोई दिशा भी नहीं है। अन्य सभी पार्टियों ने अपना प्रचार अभियान तैयार कर लिया है, लेकिन हमारे उम्मीदवार अंधेरे में भटक रहे हैं।

हर चुनावी अंकगणित में सबसे पुरानी पार्टी के खिलाफ खड़े होने के साथ, क्या कांग्रेस असंभव काम कर सकती है और देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य में अपनी स्थिति को पुनर्जीवित कर सकती है?

–आईएएनएस

एसएचके/एसकेपी

ADVERTISEMENT

लखनऊ, 26 मार्च (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश को एक समय कांग्रेस पार्टी का गढ़ माना जाता था। अमेठी और रायबरेली निर्वाचन क्षेत्रों ने हमेशा गांधी-परिवार के लोगों को संसद भेजा। हालांकि, कांग्रेस अब लोकसभा में केवल एक सांसद और 403 सदस्यीय उत्तर प्रदेश विधान सभा में केवल दो विधायक तक सिमट कर रह गई है।

इस लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में करो या मरो की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी में आत्मविश्वास और नेतृत्व की कमी है, साथ ही उम्मीदवार भी नहीं मिल रहे हैं।

उत्तर प्रदेश विधान परिषद में फिलहाल कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को यूपी में 6.36 फीसदी वोट मिले थे।

इन चुनावों में सबसे बड़ा झटका यह था कि पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को अमेठी में हार का सामना करना पड़ा, जहां पिछले चुनाव में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी विजयी हुई थीं।

कार्यकर्ता निराशा में डूब गए और 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में पार्टी का वोट शेयर घटकर मात्र 2.33 प्रतिशत रह गया।

अगर इस बार पार्टी का प्रदर्शन और गिरता है तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं रह जाएगा। यह एक ऐसा राज्य है, जिसने देश को 9 प्रधानमंत्री दिए हैं।

कांग्रेस को राजनीतिक समीकरणों को साधने और जीतने की क्षमता का मूल्यांकन करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वह 2024 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है।

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती न केवल रायबरेली को बचाना है, बल्कि उत्तर प्रदेश में अपनी सीटें बढ़ाना भी है।

पार्टी को अभी दो प्रमुख संसदीय (अमेठी और रायबरेली) निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा करना बाकी है। अभी तक यह पता नहीं चला है कि गांधी परिवार का कोई सदस्य इन सीटों पर चुनाव लड़ेगा या नहीं।

सोनिया गांधी 2019 में उत्तर प्रदेश में जीतने वाली एकमात्र कांग्रेस उम्मीदवार थीं। उन्हें रायबरेली में 55.78 प्रतिशत वोट मिले। राहुल गांधी 43.84 फीसदी वोटों के साथ अमेठी में स्मृति ईरानी से हार गए थे। ईरानी ने 49.69 फीसदी वोटों के साथ जीत हासिल की।

सोनिया गांधी ने अब राजस्थान से राज्यसभा जाने का रास्ता अपनाया है।

कांग्रेस की किस्मत 2009 से ख़राब होती जा रही है जब पार्टी ने 21 सीटें जीतीं थी। 2014 में उसे केवल दो सीटें और 2019 के लोकसभा चुनाव में एक सीट मिली।

यूपीसीसी के एक पूर्व अध्यक्ष, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर आईएएनएस से बातचीत में कहा कि समस्या यह है कि यूपी में उम्मीदवारों का मार्गदर्शन करने या उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए कोई नहीं है।

यूपीसीसी अध्यक्ष अजय राय खुद एक उम्मीदवार हैं। साथ ही अभियान की कोई दिशा भी नहीं है। अन्य सभी पार्टियों ने अपना प्रचार अभियान तैयार कर लिया है, लेकिन हमारे उम्मीदवार अंधेरे में भटक रहे हैं।

हर चुनावी अंकगणित में सबसे पुरानी पार्टी के खिलाफ खड़े होने के साथ, क्या कांग्रेस असंभव काम कर सकती है और देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य में अपनी स्थिति को पुनर्जीवित कर सकती है?

–आईएएनएस

एसएचके/एसकेपी

ADVERTISEMENT

लखनऊ, 26 मार्च (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश को एक समय कांग्रेस पार्टी का गढ़ माना जाता था। अमेठी और रायबरेली निर्वाचन क्षेत्रों ने हमेशा गांधी-परिवार के लोगों को संसद भेजा। हालांकि, कांग्रेस अब लोकसभा में केवल एक सांसद और 403 सदस्यीय उत्तर प्रदेश विधान सभा में केवल दो विधायक तक सिमट कर रह गई है।

इस लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में करो या मरो की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी में आत्मविश्वास और नेतृत्व की कमी है, साथ ही उम्मीदवार भी नहीं मिल रहे हैं।

उत्तर प्रदेश विधान परिषद में फिलहाल कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को यूपी में 6.36 फीसदी वोट मिले थे।

इन चुनावों में सबसे बड़ा झटका यह था कि पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को अमेठी में हार का सामना करना पड़ा, जहां पिछले चुनाव में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी विजयी हुई थीं।

कार्यकर्ता निराशा में डूब गए और 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में पार्टी का वोट शेयर घटकर मात्र 2.33 प्रतिशत रह गया।

अगर इस बार पार्टी का प्रदर्शन और गिरता है तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं रह जाएगा। यह एक ऐसा राज्य है, जिसने देश को 9 प्रधानमंत्री दिए हैं।

कांग्रेस को राजनीतिक समीकरणों को साधने और जीतने की क्षमता का मूल्यांकन करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वह 2024 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है।

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती न केवल रायबरेली को बचाना है, बल्कि उत्तर प्रदेश में अपनी सीटें बढ़ाना भी है।

पार्टी को अभी दो प्रमुख संसदीय (अमेठी और रायबरेली) निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा करना बाकी है। अभी तक यह पता नहीं चला है कि गांधी परिवार का कोई सदस्य इन सीटों पर चुनाव लड़ेगा या नहीं।

सोनिया गांधी 2019 में उत्तर प्रदेश में जीतने वाली एकमात्र कांग्रेस उम्मीदवार थीं। उन्हें रायबरेली में 55.78 प्रतिशत वोट मिले। राहुल गांधी 43.84 फीसदी वोटों के साथ अमेठी में स्मृति ईरानी से हार गए थे। ईरानी ने 49.69 फीसदी वोटों के साथ जीत हासिल की।

सोनिया गांधी ने अब राजस्थान से राज्यसभा जाने का रास्ता अपनाया है।

कांग्रेस की किस्मत 2009 से ख़राब होती जा रही है जब पार्टी ने 21 सीटें जीतीं थी। 2014 में उसे केवल दो सीटें और 2019 के लोकसभा चुनाव में एक सीट मिली।

यूपीसीसी के एक पूर्व अध्यक्ष, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर आईएएनएस से बातचीत में कहा कि समस्या यह है कि यूपी में उम्मीदवारों का मार्गदर्शन करने या उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए कोई नहीं है।

यूपीसीसी अध्यक्ष अजय राय खुद एक उम्मीदवार हैं। साथ ही अभियान की कोई दिशा भी नहीं है। अन्य सभी पार्टियों ने अपना प्रचार अभियान तैयार कर लिया है, लेकिन हमारे उम्मीदवार अंधेरे में भटक रहे हैं।

हर चुनावी अंकगणित में सबसे पुरानी पार्टी के खिलाफ खड़े होने के साथ, क्या कांग्रेस असंभव काम कर सकती है और देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य में अपनी स्थिति को पुनर्जीवित कर सकती है?

–आईएएनएस

एसएचके/एसकेपी

ADVERTISEMENT

लखनऊ, 26 मार्च (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश को एक समय कांग्रेस पार्टी का गढ़ माना जाता था। अमेठी और रायबरेली निर्वाचन क्षेत्रों ने हमेशा गांधी-परिवार के लोगों को संसद भेजा। हालांकि, कांग्रेस अब लोकसभा में केवल एक सांसद और 403 सदस्यीय उत्तर प्रदेश विधान सभा में केवल दो विधायक तक सिमट कर रह गई है।

इस लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में करो या मरो की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी में आत्मविश्वास और नेतृत्व की कमी है, साथ ही उम्मीदवार भी नहीं मिल रहे हैं।

उत्तर प्रदेश विधान परिषद में फिलहाल कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को यूपी में 6.36 फीसदी वोट मिले थे।

इन चुनावों में सबसे बड़ा झटका यह था कि पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को अमेठी में हार का सामना करना पड़ा, जहां पिछले चुनाव में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी विजयी हुई थीं।

कार्यकर्ता निराशा में डूब गए और 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में पार्टी का वोट शेयर घटकर मात्र 2.33 प्रतिशत रह गया।

अगर इस बार पार्टी का प्रदर्शन और गिरता है तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं रह जाएगा। यह एक ऐसा राज्य है, जिसने देश को 9 प्रधानमंत्री दिए हैं।

कांग्रेस को राजनीतिक समीकरणों को साधने और जीतने की क्षमता का मूल्यांकन करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वह 2024 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है।

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती न केवल रायबरेली को बचाना है, बल्कि उत्तर प्रदेश में अपनी सीटें बढ़ाना भी है।

पार्टी को अभी दो प्रमुख संसदीय (अमेठी और रायबरेली) निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा करना बाकी है। अभी तक यह पता नहीं चला है कि गांधी परिवार का कोई सदस्य इन सीटों पर चुनाव लड़ेगा या नहीं।

सोनिया गांधी 2019 में उत्तर प्रदेश में जीतने वाली एकमात्र कांग्रेस उम्मीदवार थीं। उन्हें रायबरेली में 55.78 प्रतिशत वोट मिले। राहुल गांधी 43.84 फीसदी वोटों के साथ अमेठी में स्मृति ईरानी से हार गए थे। ईरानी ने 49.69 फीसदी वोटों के साथ जीत हासिल की।

सोनिया गांधी ने अब राजस्थान से राज्यसभा जाने का रास्ता अपनाया है।

कांग्रेस की किस्मत 2009 से ख़राब होती जा रही है जब पार्टी ने 21 सीटें जीतीं थी। 2014 में उसे केवल दो सीटें और 2019 के लोकसभा चुनाव में एक सीट मिली।

यूपीसीसी के एक पूर्व अध्यक्ष, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर आईएएनएस से बातचीत में कहा कि समस्या यह है कि यूपी में उम्मीदवारों का मार्गदर्शन करने या उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए कोई नहीं है।

यूपीसीसी अध्यक्ष अजय राय खुद एक उम्मीदवार हैं। साथ ही अभियान की कोई दिशा भी नहीं है। अन्य सभी पार्टियों ने अपना प्रचार अभियान तैयार कर लिया है, लेकिन हमारे उम्मीदवार अंधेरे में भटक रहे हैं।

हर चुनावी अंकगणित में सबसे पुरानी पार्टी के खिलाफ खड़े होने के साथ, क्या कांग्रेस असंभव काम कर सकती है और देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य में अपनी स्थिति को पुनर्जीवित कर सकती है?

–आईएएनएस

एसएचके/एसकेपी

ADVERTISEMENT

लखनऊ, 26 मार्च (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश को एक समय कांग्रेस पार्टी का गढ़ माना जाता था। अमेठी और रायबरेली निर्वाचन क्षेत्रों ने हमेशा गांधी-परिवार के लोगों को संसद भेजा। हालांकि, कांग्रेस अब लोकसभा में केवल एक सांसद और 403 सदस्यीय उत्तर प्रदेश विधान सभा में केवल दो विधायक तक सिमट कर रह गई है।

इस लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में करो या मरो की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी में आत्मविश्वास और नेतृत्व की कमी है, साथ ही उम्मीदवार भी नहीं मिल रहे हैं।

उत्तर प्रदेश विधान परिषद में फिलहाल कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को यूपी में 6.36 फीसदी वोट मिले थे।

इन चुनावों में सबसे बड़ा झटका यह था कि पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को अमेठी में हार का सामना करना पड़ा, जहां पिछले चुनाव में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी विजयी हुई थीं।

कार्यकर्ता निराशा में डूब गए और 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में पार्टी का वोट शेयर घटकर मात्र 2.33 प्रतिशत रह गया।

अगर इस बार पार्टी का प्रदर्शन और गिरता है तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं रह जाएगा। यह एक ऐसा राज्य है, जिसने देश को 9 प्रधानमंत्री दिए हैं।

कांग्रेस को राजनीतिक समीकरणों को साधने और जीतने की क्षमता का मूल्यांकन करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वह 2024 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है।

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती न केवल रायबरेली को बचाना है, बल्कि उत्तर प्रदेश में अपनी सीटें बढ़ाना भी है।

पार्टी को अभी दो प्रमुख संसदीय (अमेठी और रायबरेली) निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा करना बाकी है। अभी तक यह पता नहीं चला है कि गांधी परिवार का कोई सदस्य इन सीटों पर चुनाव लड़ेगा या नहीं।

सोनिया गांधी 2019 में उत्तर प्रदेश में जीतने वाली एकमात्र कांग्रेस उम्मीदवार थीं। उन्हें रायबरेली में 55.78 प्रतिशत वोट मिले। राहुल गांधी 43.84 फीसदी वोटों के साथ अमेठी में स्मृति ईरानी से हार गए थे। ईरानी ने 49.69 फीसदी वोटों के साथ जीत हासिल की।

सोनिया गांधी ने अब राजस्थान से राज्यसभा जाने का रास्ता अपनाया है।

कांग्रेस की किस्मत 2009 से ख़राब होती जा रही है जब पार्टी ने 21 सीटें जीतीं थी। 2014 में उसे केवल दो सीटें और 2019 के लोकसभा चुनाव में एक सीट मिली।

यूपीसीसी के एक पूर्व अध्यक्ष, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर आईएएनएस से बातचीत में कहा कि समस्या यह है कि यूपी में उम्मीदवारों का मार्गदर्शन करने या उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए कोई नहीं है।

यूपीसीसी अध्यक्ष अजय राय खुद एक उम्मीदवार हैं। साथ ही अभियान की कोई दिशा भी नहीं है। अन्य सभी पार्टियों ने अपना प्रचार अभियान तैयार कर लिया है, लेकिन हमारे उम्मीदवार अंधेरे में भटक रहे हैं।

हर चुनावी अंकगणित में सबसे पुरानी पार्टी के खिलाफ खड़े होने के साथ, क्या कांग्रेस असंभव काम कर सकती है और देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य में अपनी स्थिति को पुनर्जीवित कर सकती है?

–आईएएनएस

एसएचके/एसकेपी

ADVERTISEMENT

लखनऊ, 26 मार्च (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश को एक समय कांग्रेस पार्टी का गढ़ माना जाता था। अमेठी और रायबरेली निर्वाचन क्षेत्रों ने हमेशा गांधी-परिवार के लोगों को संसद भेजा। हालांकि, कांग्रेस अब लोकसभा में केवल एक सांसद और 403 सदस्यीय उत्तर प्रदेश विधान सभा में केवल दो विधायक तक सिमट कर रह गई है।

इस लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में करो या मरो की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी में आत्मविश्वास और नेतृत्व की कमी है, साथ ही उम्मीदवार भी नहीं मिल रहे हैं।

उत्तर प्रदेश विधान परिषद में फिलहाल कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को यूपी में 6.36 फीसदी वोट मिले थे।

इन चुनावों में सबसे बड़ा झटका यह था कि पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को अमेठी में हार का सामना करना पड़ा, जहां पिछले चुनाव में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी विजयी हुई थीं।

कार्यकर्ता निराशा में डूब गए और 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में पार्टी का वोट शेयर घटकर मात्र 2.33 प्रतिशत रह गया।

अगर इस बार पार्टी का प्रदर्शन और गिरता है तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं रह जाएगा। यह एक ऐसा राज्य है, जिसने देश को 9 प्रधानमंत्री दिए हैं।

कांग्रेस को राजनीतिक समीकरणों को साधने और जीतने की क्षमता का मूल्यांकन करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वह 2024 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है।

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती न केवल रायबरेली को बचाना है, बल्कि उत्तर प्रदेश में अपनी सीटें बढ़ाना भी है।

पार्टी को अभी दो प्रमुख संसदीय (अमेठी और रायबरेली) निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा करना बाकी है। अभी तक यह पता नहीं चला है कि गांधी परिवार का कोई सदस्य इन सीटों पर चुनाव लड़ेगा या नहीं।

सोनिया गांधी 2019 में उत्तर प्रदेश में जीतने वाली एकमात्र कांग्रेस उम्मीदवार थीं। उन्हें रायबरेली में 55.78 प्रतिशत वोट मिले। राहुल गांधी 43.84 फीसदी वोटों के साथ अमेठी में स्मृति ईरानी से हार गए थे। ईरानी ने 49.69 फीसदी वोटों के साथ जीत हासिल की।

सोनिया गांधी ने अब राजस्थान से राज्यसभा जाने का रास्ता अपनाया है।

कांग्रेस की किस्मत 2009 से ख़राब होती जा रही है जब पार्टी ने 21 सीटें जीतीं थी। 2014 में उसे केवल दो सीटें और 2019 के लोकसभा चुनाव में एक सीट मिली।

यूपीसीसी के एक पूर्व अध्यक्ष, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर आईएएनएस से बातचीत में कहा कि समस्या यह है कि यूपी में उम्मीदवारों का मार्गदर्शन करने या उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए कोई नहीं है।

यूपीसीसी अध्यक्ष अजय राय खुद एक उम्मीदवार हैं। साथ ही अभियान की कोई दिशा भी नहीं है। अन्य सभी पार्टियों ने अपना प्रचार अभियान तैयार कर लिया है, लेकिन हमारे उम्मीदवार अंधेरे में भटक रहे हैं।

हर चुनावी अंकगणित में सबसे पुरानी पार्टी के खिलाफ खड़े होने के साथ, क्या कांग्रेस असंभव काम कर सकती है और देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य में अपनी स्थिति को पुनर्जीवित कर सकती है?

–आईएएनएस

एसएचके/एसकेपी

ADVERTISEMENT

लखनऊ, 26 मार्च (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश को एक समय कांग्रेस पार्टी का गढ़ माना जाता था। अमेठी और रायबरेली निर्वाचन क्षेत्रों ने हमेशा गांधी-परिवार के लोगों को संसद भेजा। हालांकि, कांग्रेस अब लोकसभा में केवल एक सांसद और 403 सदस्यीय उत्तर प्रदेश विधान सभा में केवल दो विधायक तक सिमट कर रह गई है।

इस लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में करो या मरो की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी में आत्मविश्वास और नेतृत्व की कमी है, साथ ही उम्मीदवार भी नहीं मिल रहे हैं।

उत्तर प्रदेश विधान परिषद में फिलहाल कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को यूपी में 6.36 फीसदी वोट मिले थे।

इन चुनावों में सबसे बड़ा झटका यह था कि पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को अमेठी में हार का सामना करना पड़ा, जहां पिछले चुनाव में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी विजयी हुई थीं।

कार्यकर्ता निराशा में डूब गए और 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में पार्टी का वोट शेयर घटकर मात्र 2.33 प्रतिशत रह गया।

अगर इस बार पार्टी का प्रदर्शन और गिरता है तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं रह जाएगा। यह एक ऐसा राज्य है, जिसने देश को 9 प्रधानमंत्री दिए हैं।

कांग्रेस को राजनीतिक समीकरणों को साधने और जीतने की क्षमता का मूल्यांकन करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वह 2024 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है।

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती न केवल रायबरेली को बचाना है, बल्कि उत्तर प्रदेश में अपनी सीटें बढ़ाना भी है।

पार्टी को अभी दो प्रमुख संसदीय (अमेठी और रायबरेली) निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा करना बाकी है। अभी तक यह पता नहीं चला है कि गांधी परिवार का कोई सदस्य इन सीटों पर चुनाव लड़ेगा या नहीं।

सोनिया गांधी 2019 में उत्तर प्रदेश में जीतने वाली एकमात्र कांग्रेस उम्मीदवार थीं। उन्हें रायबरेली में 55.78 प्रतिशत वोट मिले। राहुल गांधी 43.84 फीसदी वोटों के साथ अमेठी में स्मृति ईरानी से हार गए थे। ईरानी ने 49.69 फीसदी वोटों के साथ जीत हासिल की।

सोनिया गांधी ने अब राजस्थान से राज्यसभा जाने का रास्ता अपनाया है।

कांग्रेस की किस्मत 2009 से ख़राब होती जा रही है जब पार्टी ने 21 सीटें जीतीं थी। 2014 में उसे केवल दो सीटें और 2019 के लोकसभा चुनाव में एक सीट मिली।

यूपीसीसी के एक पूर्व अध्यक्ष, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर आईएएनएस से बातचीत में कहा कि समस्या यह है कि यूपी में उम्मीदवारों का मार्गदर्शन करने या उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए कोई नहीं है।

यूपीसीसी अध्यक्ष अजय राय खुद एक उम्मीदवार हैं। साथ ही अभियान की कोई दिशा भी नहीं है। अन्य सभी पार्टियों ने अपना प्रचार अभियान तैयार कर लिया है, लेकिन हमारे उम्मीदवार अंधेरे में भटक रहे हैं।

हर चुनावी अंकगणित में सबसे पुरानी पार्टी के खिलाफ खड़े होने के साथ, क्या कांग्रेस असंभव काम कर सकती है और देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य में अपनी स्थिति को पुनर्जीवित कर सकती है?

–आईएएनएस

एसएचके/एसकेपी

Related Posts

ताज़ा समाचार

पीएम मोदी का मां हीराबेन से था गहरा लगाव, शिमला रोड शो के दौरान पोर्ट्रेट देखकर तोड़ दिया था प्रोटोकॉल

June 19, 2025
ताज़ा समाचार

भारत-कनाडा के बीच बहुत जरूरी रीसेट का क्षण’ : पीएम मोदी-कार्नी मुलाकात पर सांसद विक्रमजीत सिंह

June 19, 2025
नमाज पर नहीं मिलता ब्रेक, फिर योगा डे पर राहत क्यों: एसटी हसन
ताज़ा समाचार

नमाज पर नहीं मिलता ब्रेक, फिर योगा डे पर राहत क्यों: एसटी हसन

June 19, 2025
ताज़ा समाचार

मोदी से बातचीत पर ट्रंप की प्रतिक्रिया का इंतजार : मणिकम टैगोर

June 19, 2025
ताज़ा समाचार

तीसरे देश की मध्यस्थता को नकारना भारत की कूटनीतिक जीत : रक्षा विशेषज्ञ

June 19, 2025
ताज़ा समाचार

केंद्र ने पीएमएवाई-शहरी 2.0 योजना के तहत 2.35 लाख अतिरिक्त घरों को मंजूरी दी

June 19, 2025
Next Post

झारखंड के साहिबगंज में होली पार्टी के बाद दोस्त की गोली मारकर हत्या, आरोपी गिरफ्तार

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ADVERTISEMENT

Contact us

Address

Deshbandhu Complex, Naudra Bridge Jabalpur 482001

Mail

deshbandhump@gmail.com

Mobile

9425156056

Important links

  • राशि-भविष्य
  • वर्गीकृत विज्ञापन
  • लाइफ स्टाइल
  • मनोरंजन
  • ब्लॉग

Important links

  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
  • ई पेपर

Related Links

  • Mayaram Surjan
  • Swayamsiddha
  • Deshbandhu

Social Links

084857
Total views : 5895377
Powered By WPS Visitor Counter

Published by Abhas Surjan on behalf of Patrakar Prakashan Pvt.Ltd., Deshbandhu Complex, Naudra Bridge, Jabalpur – 482001 |T:+91 761 4006577 |M: +91 9425156056 Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions The contents of this website is for reading only. Any unauthorised attempt to temper / edit / change the contents of this website comes under cyber crime and is punishable.

Copyright @ 2022 Deshbandhu. All rights are reserved.

  • Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions
No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर

Copyright @ 2022 Deshbandhu-MP All rights are reserved.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In