नई दिल्ली, 27 जनवरी (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप सरकार से सुप्रीम कोर्ट के 2018 के एक फैसले के अनुपालन में हर जिले में महिलाओं और बच्चों के लिए वन-स्टॉप सेंटर स्थापित करने को कहा।
अदालत का निर्देश तब आया, जब मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ हैदराबाद के एक बलात्कार मामले में पीड़िता की पहचान और आरोपी व्यक्तियों के नाम का खुलासा करने के लिए मीडिया घरानों के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
अदालत ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वह भारतीय दंड संहिता की प्रासंगिक धारा (धाराओं) के तहत कार्य करे और सामाजिक कल्याण संस्थानों या संगठनों की पहचान करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित मानदंड तय करे।
अदालत ने 11 दिसंबर, 2018 को पारित निपुण सक्सेना बनाम भारत संघ में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख किया।
पीठ ने यह भी कहा कि दिल्ली सरकार ने आज तक सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया है, जिसमें अदालत ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से अनुरोध किया था कि वे फैसले के एक साल के भीतर हर जिले में कम से कम एक वन-स्टॉप सेंटर स्थापित करें।
शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि केंद्रों को अच्छी तरह से प्रशिक्षित कर्मचारियों को नियुक्त करना चाहिए, कॉल पर काउंसलर और मनोचिकित्सकों के साथ पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हों और पीड़ितों के बयान दर्ज करने और ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए अदालत कक्ष में के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा हो। इसके अलावा एक केंद्रीय पुलिस स्टेशन हो, जहां महिलाओं और बच्चों से संबंधित सभी अपराध दर्ज किए जाएं।
पीठ ने कहा, 11 दिसंबर, 2018 को पारित निर्णय की तारीख से एक वर्ष के भीतर ऐसे केंद्र स्थापित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित समय सीमा का पालन नहीं कर राज्य सरकारें अदालत की अवमानना कर रही हैं।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि मीडिया घरानों और रिपोर्ट किए गए व्यक्तियों के खिलाफ कार्यवाही शुरू करना या जांच अधिकारियों को अपराध का संज्ञान लेने का निर्देश देना उचित नहीं लगता।
अदालत ने कहा, इन टिप्पणियों के साथ यदि कोई लंबित आवेदन होने पर रिट याचिका का निस्तारण किया जाता है।
–आईएएनएस
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