कच्छ, 7 मार्च (आईएएनएस)। गुजरात के कच्छ जिले के कोटाई गांव की रहने वाली धर्मिलाबेन अहीर ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस से पहले पारंपरिक भरत काम (कढ़ाई का काम) कला को एक नई दिशा दी है, जो महिला सशक्तिकरण को दर्शाता है। कला को पेंटिंग के रूप में बदलकर वह न केवल आत्मनिर्भर बनी हैं, बल्कि 90 अन्य महिलाओं को रोजगार भी दिया है।
आईएएनएस से बात करते हुए, कलाकार धर्मिलाबेन अहीर ने कहा, “अहीर कढ़ाई पारंपरिक है। मैंने इसे तब सीखना शुरू किया जब मैं 5 साल की थी। हमारे समुदाय में, लड़कियां बचपन से ही यह काम सीखती हैं। मैंने यह शिल्प अपनी दादी और नानी से तब सीखा जब मैं 5 साल की थी।”
अपनी कला के लिए बेहद मशहूर कच्छ ने आज विदेशों में भी कच्छी कला को फैलाया है। धर्मिलाबेन अपनी कलाकारी के लिए विदेशों में भी जानी जाती हैं।
उन्होंने बताया कि जब एक चित्रकार ने उन्हें ‘भारत काम’ सिखाने से इनकार कर दिया तो उन्होंने इसे चुनौती के रूप में लिया।
धर्मिलाबेन ने आईएएनएस को बताया, “हमारे गांव में एक चित्रकार आया और मैंने उससे यह काम सिखाने को कहा, लेकिन उसने मना कर दिया। इस बात ने मुझे बहुत दुख पहुंचाया और मैंने फैसला किया कि मैं अपने काम को पेंटिंग की तरह बनाऊंगी और मैंने वही किया।”
अहीर कढ़ाई की प्रक्रिया समझाते हुए उन्होंने कहा, “सबसे पहले हम कपड़े पर अलग-अलग डिजाइन बनाते हैं। फिर हम इसे धागे से बनाते हैं।”
लागत के बारे में बात करते हुए धर्मिलाबेन ने आईएएनएस को बताया, “वैसे अगर कीमत की बात करें तो हर किसी की कीमत अलग-अलग होती है। शुरुआत में यह 10,000-15,000 रुपये होती है और बाद में यह 50,000-60,000 रुपये हो जाती है।”
उन्होंने आगे कहा कि उनकी कलाकृतियां कच्छ में खूब बिकी हैं और लंदन जैसे देशों में भी पहुंची हैं।
कढ़ाई की कला वर्षों से अहीर समुदाय में प्रचलित है और महिलाएं इस काम से होने वाली आय का उपयोग अपने परिवार की सहायता के लिए करती रही हैं।
धर्मिलाबेन ने सिर्फ सातवीं कक्षा तक पढ़ाई की है, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत, आत्मविश्वास और लगन से अहीर कढ़ाई को एक नई दिशा दी है। उन्होंने अपनी कला से कच्छ में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पक्षी की पेंटिंग भी बनाई है। इसे बनाने में उन्हें 4 से 6 महीने का समय लगा। इस काम के लिए उन्हें 2.5 लाख रुपए का पुरस्कार भी मिल चुका है।
धर्मिलाबेन न केवल अपना मनोबल ऊंचा रखते हुए आगे बढ़ी हैं, बल्कि अपने गांव और आस-पास के क्षेत्रों की महिलाओं को रोजगार भी दिलाया है, जिसमें उन्होंने करीब 90 महिलाओं को रोजगार दिया है और महिलाएं 10,000 से 15,000 रुपये प्रति माह कमा रही हैं।
उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए भी चुना गया।
–आईएएनएस
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