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Home ताज़ा समाचार

चांद पर पहला कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रॉन्ग का आज ही के दिन हुआ था निधन, मौत पर उठे थे कई सवाल

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August 25, 2024
in ताज़ा समाचार
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नई दिल्ली, 25 अगस्त (आईएएनएस)। 2012 की 25 अगस्त ही थी जब दुनिया से वह एस्ट्रोनॉट रुखसत हो गया जिसने न जाने कितनों में चांद को छूने की ललक जगाई थी। जिस तरह इनके चांद पर रखे कदम ने सबको हैरान कर दिया था ठीक उसी तरह इनकी मौत पर यकीन करना मुश्किल था।

दो हफ्ते पहले ही तो बायपास सर्जरी हुई थी। हालात में सुधार हो रहा था कि उनके निधन की दुखद खबर आ गई। खूब बवाल मचा। अमेरिका के एक रसूखदार अस्पताल में इलाज हो रहा था, सब कुछ दुरुस्त था कि अनहोनी हो गई। अमेरिकी मीडिया में हलचल मची और आखिरकार मामला ‘सेटल’ किया गया। कथित तौर पर छह मिलियन डॉलर आर्मस्ट्रांग फैमिली को दिए गए। औपचारिक तौर पर मौत की वजह “हृदवाहिका प्रक्रियाओं में जटिलताओं” को बताया गया।

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आर्मस्ट्रांग अमेरिका के ही नहीं पूरी दुनिया के हीरो थे। ऐसा शख्स जिसकी बायोग्राफी ‘फर्स्ट मैन: लाइफ ऑफ नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग’ में कई रोमांचक क्षणों का उल्लेख है। जैसे उनके पिता के हवाले से कि उनके बेटे की “कभी लड़कियों से नजदीकी नहीं रही” और “इसलिए उसे कार की जरूरत नहीं थी” बल्कि बस “उसे… हवाई अड्डे तक पहुंचना था।” उनके ये शब्द ही नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग की आसमान के प्रति दीवानगी का एहसास कराते हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए भी कहा था क्योंकि नील ने ऑटोमोबाइल लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। ऑटोमोबाइल से पहले प्लेन चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

आसमान को छूने का जुनून आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही था। जब महज दो साल के थे, तब पिता उन्हें क्लीवलैंड एयर रेस दिखाने ले गए वहां हवाई उड़ानें देख छोटा नील बहुत उत्साहित हुआ। पांच-छह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरी। थोड़े बड़े हुए तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने ब्लूम हाई स्कूल में पढ़ाई की और वापाकोनेटा हवाई क्षेत्र में ट्रेनिंग ली। अपने 16वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया।

करियर की बात करें तो साल 1949 से 1952 तक अमेरिकी नौसैनिक एविएटर के रूप में सेवा देने के बाद 1955 में नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनॉटिक्स (NACA) में शामिल हुए। जिसे बाद में NASA के ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम दिया गया। अगले 17 वर्षों में उन्होंने NACA और इसकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के एक इंजीनियर, परीक्षण पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर खुद को साबित किया।

फिर आया वो दिन जब उन्होंने धरती से चांद तक की दूरी मापने की ओर कदम बढ़ाया। 16 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपने सह यात्रियों बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स संग अपोलो 11 लूनर मिशन से चंद्रमा की ओर रवाना हुए। चार दिन बाद चांद पर इसकी लैंडिंग हुई। चंद्र मॉड्यूल (एलएम) को ‘ईगल’ (एक अंतरिक्ष यान) नाम दिया गया था। ईगल को आर्मस्ट्रॉन्ग ने मैन्युअली ऑपरेट किया था।

ईगल से उतरने के साथ ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था ‘मानव का यह छोटा कदम मानवजाति के लिए बड़ी छलांग है।’ वाकई ये एक बड़ी छलांग थी धरती से सीधे चांद तक।

–आईएएनएस

केआर/

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नई दिल्ली, 25 अगस्त (आईएएनएस)। 2012 की 25 अगस्त ही थी जब दुनिया से वह एस्ट्रोनॉट रुखसत हो गया जिसने न जाने कितनों में चांद को छूने की ललक जगाई थी। जिस तरह इनके चांद पर रखे कदम ने सबको हैरान कर दिया था ठीक उसी तरह इनकी मौत पर यकीन करना मुश्किल था।

दो हफ्ते पहले ही तो बायपास सर्जरी हुई थी। हालात में सुधार हो रहा था कि उनके निधन की दुखद खबर आ गई। खूब बवाल मचा। अमेरिका के एक रसूखदार अस्पताल में इलाज हो रहा था, सब कुछ दुरुस्त था कि अनहोनी हो गई। अमेरिकी मीडिया में हलचल मची और आखिरकार मामला ‘सेटल’ किया गया। कथित तौर पर छह मिलियन डॉलर आर्मस्ट्रांग फैमिली को दिए गए। औपचारिक तौर पर मौत की वजह “हृदवाहिका प्रक्रियाओं में जटिलताओं” को बताया गया।

आर्मस्ट्रांग अमेरिका के ही नहीं पूरी दुनिया के हीरो थे। ऐसा शख्स जिसकी बायोग्राफी ‘फर्स्ट मैन: लाइफ ऑफ नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग’ में कई रोमांचक क्षणों का उल्लेख है। जैसे उनके पिता के हवाले से कि उनके बेटे की “कभी लड़कियों से नजदीकी नहीं रही” और “इसलिए उसे कार की जरूरत नहीं थी” बल्कि बस “उसे… हवाई अड्डे तक पहुंचना था।” उनके ये शब्द ही नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग की आसमान के प्रति दीवानगी का एहसास कराते हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए भी कहा था क्योंकि नील ने ऑटोमोबाइल लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। ऑटोमोबाइल से पहले प्लेन चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

आसमान को छूने का जुनून आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही था। जब महज दो साल के थे, तब पिता उन्हें क्लीवलैंड एयर रेस दिखाने ले गए वहां हवाई उड़ानें देख छोटा नील बहुत उत्साहित हुआ। पांच-छह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरी। थोड़े बड़े हुए तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने ब्लूम हाई स्कूल में पढ़ाई की और वापाकोनेटा हवाई क्षेत्र में ट्रेनिंग ली। अपने 16वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया।

करियर की बात करें तो साल 1949 से 1952 तक अमेरिकी नौसैनिक एविएटर के रूप में सेवा देने के बाद 1955 में नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनॉटिक्स (NACA) में शामिल हुए। जिसे बाद में NASA के ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम दिया गया। अगले 17 वर्षों में उन्होंने NACA और इसकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के एक इंजीनियर, परीक्षण पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर खुद को साबित किया।

फिर आया वो दिन जब उन्होंने धरती से चांद तक की दूरी मापने की ओर कदम बढ़ाया। 16 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपने सह यात्रियों बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स संग अपोलो 11 लूनर मिशन से चंद्रमा की ओर रवाना हुए। चार दिन बाद चांद पर इसकी लैंडिंग हुई। चंद्र मॉड्यूल (एलएम) को ‘ईगल’ (एक अंतरिक्ष यान) नाम दिया गया था। ईगल को आर्मस्ट्रॉन्ग ने मैन्युअली ऑपरेट किया था।

ईगल से उतरने के साथ ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था ‘मानव का यह छोटा कदम मानवजाति के लिए बड़ी छलांग है।’ वाकई ये एक बड़ी छलांग थी धरती से सीधे चांद तक।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 25 अगस्त (आईएएनएस)। 2012 की 25 अगस्त ही थी जब दुनिया से वह एस्ट्रोनॉट रुखसत हो गया जिसने न जाने कितनों में चांद को छूने की ललक जगाई थी। जिस तरह इनके चांद पर रखे कदम ने सबको हैरान कर दिया था ठीक उसी तरह इनकी मौत पर यकीन करना मुश्किल था।

दो हफ्ते पहले ही तो बायपास सर्जरी हुई थी। हालात में सुधार हो रहा था कि उनके निधन की दुखद खबर आ गई। खूब बवाल मचा। अमेरिका के एक रसूखदार अस्पताल में इलाज हो रहा था, सब कुछ दुरुस्त था कि अनहोनी हो गई। अमेरिकी मीडिया में हलचल मची और आखिरकार मामला ‘सेटल’ किया गया। कथित तौर पर छह मिलियन डॉलर आर्मस्ट्रांग फैमिली को दिए गए। औपचारिक तौर पर मौत की वजह “हृदवाहिका प्रक्रियाओं में जटिलताओं” को बताया गया।

आर्मस्ट्रांग अमेरिका के ही नहीं पूरी दुनिया के हीरो थे। ऐसा शख्स जिसकी बायोग्राफी ‘फर्स्ट मैन: लाइफ ऑफ नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग’ में कई रोमांचक क्षणों का उल्लेख है। जैसे उनके पिता के हवाले से कि उनके बेटे की “कभी लड़कियों से नजदीकी नहीं रही” और “इसलिए उसे कार की जरूरत नहीं थी” बल्कि बस “उसे… हवाई अड्डे तक पहुंचना था।” उनके ये शब्द ही नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग की आसमान के प्रति दीवानगी का एहसास कराते हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए भी कहा था क्योंकि नील ने ऑटोमोबाइल लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। ऑटोमोबाइल से पहले प्लेन चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

आसमान को छूने का जुनून आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही था। जब महज दो साल के थे, तब पिता उन्हें क्लीवलैंड एयर रेस दिखाने ले गए वहां हवाई उड़ानें देख छोटा नील बहुत उत्साहित हुआ। पांच-छह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरी। थोड़े बड़े हुए तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने ब्लूम हाई स्कूल में पढ़ाई की और वापाकोनेटा हवाई क्षेत्र में ट्रेनिंग ली। अपने 16वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया।

करियर की बात करें तो साल 1949 से 1952 तक अमेरिकी नौसैनिक एविएटर के रूप में सेवा देने के बाद 1955 में नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनॉटिक्स (NACA) में शामिल हुए। जिसे बाद में NASA के ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम दिया गया। अगले 17 वर्षों में उन्होंने NACA और इसकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के एक इंजीनियर, परीक्षण पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर खुद को साबित किया।

फिर आया वो दिन जब उन्होंने धरती से चांद तक की दूरी मापने की ओर कदम बढ़ाया। 16 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपने सह यात्रियों बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स संग अपोलो 11 लूनर मिशन से चंद्रमा की ओर रवाना हुए। चार दिन बाद चांद पर इसकी लैंडिंग हुई। चंद्र मॉड्यूल (एलएम) को ‘ईगल’ (एक अंतरिक्ष यान) नाम दिया गया था। ईगल को आर्मस्ट्रॉन्ग ने मैन्युअली ऑपरेट किया था।

ईगल से उतरने के साथ ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था ‘मानव का यह छोटा कदम मानवजाति के लिए बड़ी छलांग है।’ वाकई ये एक बड़ी छलांग थी धरती से सीधे चांद तक।

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दो हफ्ते पहले ही तो बायपास सर्जरी हुई थी। हालात में सुधार हो रहा था कि उनके निधन की दुखद खबर आ गई। खूब बवाल मचा। अमेरिका के एक रसूखदार अस्पताल में इलाज हो रहा था, सब कुछ दुरुस्त था कि अनहोनी हो गई। अमेरिकी मीडिया में हलचल मची और आखिरकार मामला ‘सेटल’ किया गया। कथित तौर पर छह मिलियन डॉलर आर्मस्ट्रांग फैमिली को दिए गए। औपचारिक तौर पर मौत की वजह “हृदवाहिका प्रक्रियाओं में जटिलताओं” को बताया गया।

आर्मस्ट्रांग अमेरिका के ही नहीं पूरी दुनिया के हीरो थे। ऐसा शख्स जिसकी बायोग्राफी ‘फर्स्ट मैन: लाइफ ऑफ नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग’ में कई रोमांचक क्षणों का उल्लेख है। जैसे उनके पिता के हवाले से कि उनके बेटे की “कभी लड़कियों से नजदीकी नहीं रही” और “इसलिए उसे कार की जरूरत नहीं थी” बल्कि बस “उसे… हवाई अड्डे तक पहुंचना था।” उनके ये शब्द ही नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग की आसमान के प्रति दीवानगी का एहसास कराते हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए भी कहा था क्योंकि नील ने ऑटोमोबाइल लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। ऑटोमोबाइल से पहले प्लेन चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

आसमान को छूने का जुनून आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही था। जब महज दो साल के थे, तब पिता उन्हें क्लीवलैंड एयर रेस दिखाने ले गए वहां हवाई उड़ानें देख छोटा नील बहुत उत्साहित हुआ। पांच-छह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरी। थोड़े बड़े हुए तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने ब्लूम हाई स्कूल में पढ़ाई की और वापाकोनेटा हवाई क्षेत्र में ट्रेनिंग ली। अपने 16वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया।

करियर की बात करें तो साल 1949 से 1952 तक अमेरिकी नौसैनिक एविएटर के रूप में सेवा देने के बाद 1955 में नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनॉटिक्स (NACA) में शामिल हुए। जिसे बाद में NASA के ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम दिया गया। अगले 17 वर्षों में उन्होंने NACA और इसकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के एक इंजीनियर, परीक्षण पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर खुद को साबित किया।

फिर आया वो दिन जब उन्होंने धरती से चांद तक की दूरी मापने की ओर कदम बढ़ाया। 16 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपने सह यात्रियों बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स संग अपोलो 11 लूनर मिशन से चंद्रमा की ओर रवाना हुए। चार दिन बाद चांद पर इसकी लैंडिंग हुई। चंद्र मॉड्यूल (एलएम) को ‘ईगल’ (एक अंतरिक्ष यान) नाम दिया गया था। ईगल को आर्मस्ट्रॉन्ग ने मैन्युअली ऑपरेट किया था।

ईगल से उतरने के साथ ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था ‘मानव का यह छोटा कदम मानवजाति के लिए बड़ी छलांग है।’ वाकई ये एक बड़ी छलांग थी धरती से सीधे चांद तक।

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दो हफ्ते पहले ही तो बायपास सर्जरी हुई थी। हालात में सुधार हो रहा था कि उनके निधन की दुखद खबर आ गई। खूब बवाल मचा। अमेरिका के एक रसूखदार अस्पताल में इलाज हो रहा था, सब कुछ दुरुस्त था कि अनहोनी हो गई। अमेरिकी मीडिया में हलचल मची और आखिरकार मामला ‘सेटल’ किया गया। कथित तौर पर छह मिलियन डॉलर आर्मस्ट्रांग फैमिली को दिए गए। औपचारिक तौर पर मौत की वजह “हृदवाहिका प्रक्रियाओं में जटिलताओं” को बताया गया।

आर्मस्ट्रांग अमेरिका के ही नहीं पूरी दुनिया के हीरो थे। ऐसा शख्स जिसकी बायोग्राफी ‘फर्स्ट मैन: लाइफ ऑफ नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग’ में कई रोमांचक क्षणों का उल्लेख है। जैसे उनके पिता के हवाले से कि उनके बेटे की “कभी लड़कियों से नजदीकी नहीं रही” और “इसलिए उसे कार की जरूरत नहीं थी” बल्कि बस “उसे… हवाई अड्डे तक पहुंचना था।” उनके ये शब्द ही नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग की आसमान के प्रति दीवानगी का एहसास कराते हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए भी कहा था क्योंकि नील ने ऑटोमोबाइल लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। ऑटोमोबाइल से पहले प्लेन चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

आसमान को छूने का जुनून आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही था। जब महज दो साल के थे, तब पिता उन्हें क्लीवलैंड एयर रेस दिखाने ले गए वहां हवाई उड़ानें देख छोटा नील बहुत उत्साहित हुआ। पांच-छह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरी। थोड़े बड़े हुए तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने ब्लूम हाई स्कूल में पढ़ाई की और वापाकोनेटा हवाई क्षेत्र में ट्रेनिंग ली। अपने 16वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया।

करियर की बात करें तो साल 1949 से 1952 तक अमेरिकी नौसैनिक एविएटर के रूप में सेवा देने के बाद 1955 में नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनॉटिक्स (NACA) में शामिल हुए। जिसे बाद में NASA के ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम दिया गया। अगले 17 वर्षों में उन्होंने NACA और इसकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के एक इंजीनियर, परीक्षण पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर खुद को साबित किया।

फिर आया वो दिन जब उन्होंने धरती से चांद तक की दूरी मापने की ओर कदम बढ़ाया। 16 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपने सह यात्रियों बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स संग अपोलो 11 लूनर मिशन से चंद्रमा की ओर रवाना हुए। चार दिन बाद चांद पर इसकी लैंडिंग हुई। चंद्र मॉड्यूल (एलएम) को ‘ईगल’ (एक अंतरिक्ष यान) नाम दिया गया था। ईगल को आर्मस्ट्रॉन्ग ने मैन्युअली ऑपरेट किया था।

ईगल से उतरने के साथ ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था ‘मानव का यह छोटा कदम मानवजाति के लिए बड़ी छलांग है।’ वाकई ये एक बड़ी छलांग थी धरती से सीधे चांद तक।

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दो हफ्ते पहले ही तो बायपास सर्जरी हुई थी। हालात में सुधार हो रहा था कि उनके निधन की दुखद खबर आ गई। खूब बवाल मचा। अमेरिका के एक रसूखदार अस्पताल में इलाज हो रहा था, सब कुछ दुरुस्त था कि अनहोनी हो गई। अमेरिकी मीडिया में हलचल मची और आखिरकार मामला ‘सेटल’ किया गया। कथित तौर पर छह मिलियन डॉलर आर्मस्ट्रांग फैमिली को दिए गए। औपचारिक तौर पर मौत की वजह “हृदवाहिका प्रक्रियाओं में जटिलताओं” को बताया गया।

आर्मस्ट्रांग अमेरिका के ही नहीं पूरी दुनिया के हीरो थे। ऐसा शख्स जिसकी बायोग्राफी ‘फर्स्ट मैन: लाइफ ऑफ नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग’ में कई रोमांचक क्षणों का उल्लेख है। जैसे उनके पिता के हवाले से कि उनके बेटे की “कभी लड़कियों से नजदीकी नहीं रही” और “इसलिए उसे कार की जरूरत नहीं थी” बल्कि बस “उसे… हवाई अड्डे तक पहुंचना था।” उनके ये शब्द ही नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग की आसमान के प्रति दीवानगी का एहसास कराते हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए भी कहा था क्योंकि नील ने ऑटोमोबाइल लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। ऑटोमोबाइल से पहले प्लेन चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

आसमान को छूने का जुनून आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही था। जब महज दो साल के थे, तब पिता उन्हें क्लीवलैंड एयर रेस दिखाने ले गए वहां हवाई उड़ानें देख छोटा नील बहुत उत्साहित हुआ। पांच-छह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरी। थोड़े बड़े हुए तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने ब्लूम हाई स्कूल में पढ़ाई की और वापाकोनेटा हवाई क्षेत्र में ट्रेनिंग ली। अपने 16वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया।

करियर की बात करें तो साल 1949 से 1952 तक अमेरिकी नौसैनिक एविएटर के रूप में सेवा देने के बाद 1955 में नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनॉटिक्स (NACA) में शामिल हुए। जिसे बाद में NASA के ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम दिया गया। अगले 17 वर्षों में उन्होंने NACA और इसकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के एक इंजीनियर, परीक्षण पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर खुद को साबित किया।

फिर आया वो दिन जब उन्होंने धरती से चांद तक की दूरी मापने की ओर कदम बढ़ाया। 16 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपने सह यात्रियों बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स संग अपोलो 11 लूनर मिशन से चंद्रमा की ओर रवाना हुए। चार दिन बाद चांद पर इसकी लैंडिंग हुई। चंद्र मॉड्यूल (एलएम) को ‘ईगल’ (एक अंतरिक्ष यान) नाम दिया गया था। ईगल को आर्मस्ट्रॉन्ग ने मैन्युअली ऑपरेट किया था।

ईगल से उतरने के साथ ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था ‘मानव का यह छोटा कदम मानवजाति के लिए बड़ी छलांग है।’ वाकई ये एक बड़ी छलांग थी धरती से सीधे चांद तक।

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दो हफ्ते पहले ही तो बायपास सर्जरी हुई थी। हालात में सुधार हो रहा था कि उनके निधन की दुखद खबर आ गई। खूब बवाल मचा। अमेरिका के एक रसूखदार अस्पताल में इलाज हो रहा था, सब कुछ दुरुस्त था कि अनहोनी हो गई। अमेरिकी मीडिया में हलचल मची और आखिरकार मामला ‘सेटल’ किया गया। कथित तौर पर छह मिलियन डॉलर आर्मस्ट्रांग फैमिली को दिए गए। औपचारिक तौर पर मौत की वजह “हृदवाहिका प्रक्रियाओं में जटिलताओं” को बताया गया।

आर्मस्ट्रांग अमेरिका के ही नहीं पूरी दुनिया के हीरो थे। ऐसा शख्स जिसकी बायोग्राफी ‘फर्स्ट मैन: लाइफ ऑफ नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग’ में कई रोमांचक क्षणों का उल्लेख है। जैसे उनके पिता के हवाले से कि उनके बेटे की “कभी लड़कियों से नजदीकी नहीं रही” और “इसलिए उसे कार की जरूरत नहीं थी” बल्कि बस “उसे… हवाई अड्डे तक पहुंचना था।” उनके ये शब्द ही नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग की आसमान के प्रति दीवानगी का एहसास कराते हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए भी कहा था क्योंकि नील ने ऑटोमोबाइल लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। ऑटोमोबाइल से पहले प्लेन चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

आसमान को छूने का जुनून आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही था। जब महज दो साल के थे, तब पिता उन्हें क्लीवलैंड एयर रेस दिखाने ले गए वहां हवाई उड़ानें देख छोटा नील बहुत उत्साहित हुआ। पांच-छह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरी। थोड़े बड़े हुए तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने ब्लूम हाई स्कूल में पढ़ाई की और वापाकोनेटा हवाई क्षेत्र में ट्रेनिंग ली। अपने 16वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया।

करियर की बात करें तो साल 1949 से 1952 तक अमेरिकी नौसैनिक एविएटर के रूप में सेवा देने के बाद 1955 में नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनॉटिक्स (NACA) में शामिल हुए। जिसे बाद में NASA के ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम दिया गया। अगले 17 वर्षों में उन्होंने NACA और इसकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के एक इंजीनियर, परीक्षण पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर खुद को साबित किया।

फिर आया वो दिन जब उन्होंने धरती से चांद तक की दूरी मापने की ओर कदम बढ़ाया। 16 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपने सह यात्रियों बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स संग अपोलो 11 लूनर मिशन से चंद्रमा की ओर रवाना हुए। चार दिन बाद चांद पर इसकी लैंडिंग हुई। चंद्र मॉड्यूल (एलएम) को ‘ईगल’ (एक अंतरिक्ष यान) नाम दिया गया था। ईगल को आर्मस्ट्रॉन्ग ने मैन्युअली ऑपरेट किया था।

ईगल से उतरने के साथ ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था ‘मानव का यह छोटा कदम मानवजाति के लिए बड़ी छलांग है।’ वाकई ये एक बड़ी छलांग थी धरती से सीधे चांद तक।

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नई दिल्ली, 25 अगस्त (आईएएनएस)। 2012 की 25 अगस्त ही थी जब दुनिया से वह एस्ट्रोनॉट रुखसत हो गया जिसने न जाने कितनों में चांद को छूने की ललक जगाई थी। जिस तरह इनके चांद पर रखे कदम ने सबको हैरान कर दिया था ठीक उसी तरह इनकी मौत पर यकीन करना मुश्किल था।

दो हफ्ते पहले ही तो बायपास सर्जरी हुई थी। हालात में सुधार हो रहा था कि उनके निधन की दुखद खबर आ गई। खूब बवाल मचा। अमेरिका के एक रसूखदार अस्पताल में इलाज हो रहा था, सब कुछ दुरुस्त था कि अनहोनी हो गई। अमेरिकी मीडिया में हलचल मची और आखिरकार मामला ‘सेटल’ किया गया। कथित तौर पर छह मिलियन डॉलर आर्मस्ट्रांग फैमिली को दिए गए। औपचारिक तौर पर मौत की वजह “हृदवाहिका प्रक्रियाओं में जटिलताओं” को बताया गया।

आर्मस्ट्रांग अमेरिका के ही नहीं पूरी दुनिया के हीरो थे। ऐसा शख्स जिसकी बायोग्राफी ‘फर्स्ट मैन: लाइफ ऑफ नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग’ में कई रोमांचक क्षणों का उल्लेख है। जैसे उनके पिता के हवाले से कि उनके बेटे की “कभी लड़कियों से नजदीकी नहीं रही” और “इसलिए उसे कार की जरूरत नहीं थी” बल्कि बस “उसे… हवाई अड्डे तक पहुंचना था।” उनके ये शब्द ही नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग की आसमान के प्रति दीवानगी का एहसास कराते हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए भी कहा था क्योंकि नील ने ऑटोमोबाइल लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। ऑटोमोबाइल से पहले प्लेन चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

आसमान को छूने का जुनून आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही था। जब महज दो साल के थे, तब पिता उन्हें क्लीवलैंड एयर रेस दिखाने ले गए वहां हवाई उड़ानें देख छोटा नील बहुत उत्साहित हुआ। पांच-छह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरी। थोड़े बड़े हुए तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने ब्लूम हाई स्कूल में पढ़ाई की और वापाकोनेटा हवाई क्षेत्र में ट्रेनिंग ली। अपने 16वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया।

करियर की बात करें तो साल 1949 से 1952 तक अमेरिकी नौसैनिक एविएटर के रूप में सेवा देने के बाद 1955 में नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनॉटिक्स (NACA) में शामिल हुए। जिसे बाद में NASA के ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम दिया गया। अगले 17 वर्षों में उन्होंने NACA और इसकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के एक इंजीनियर, परीक्षण पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर खुद को साबित किया।

फिर आया वो दिन जब उन्होंने धरती से चांद तक की दूरी मापने की ओर कदम बढ़ाया। 16 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपने सह यात्रियों बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स संग अपोलो 11 लूनर मिशन से चंद्रमा की ओर रवाना हुए। चार दिन बाद चांद पर इसकी लैंडिंग हुई। चंद्र मॉड्यूल (एलएम) को ‘ईगल’ (एक अंतरिक्ष यान) नाम दिया गया था। ईगल को आर्मस्ट्रॉन्ग ने मैन्युअली ऑपरेट किया था।

ईगल से उतरने के साथ ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था ‘मानव का यह छोटा कदम मानवजाति के लिए बड़ी छलांग है।’ वाकई ये एक बड़ी छलांग थी धरती से सीधे चांद तक।

–आईएएनएस

केआर/

नई दिल्ली, 25 अगस्त (आईएएनएस)। 2012 की 25 अगस्त ही थी जब दुनिया से वह एस्ट्रोनॉट रुखसत हो गया जिसने न जाने कितनों में चांद को छूने की ललक जगाई थी। जिस तरह इनके चांद पर रखे कदम ने सबको हैरान कर दिया था ठीक उसी तरह इनकी मौत पर यकीन करना मुश्किल था।

दो हफ्ते पहले ही तो बायपास सर्जरी हुई थी। हालात में सुधार हो रहा था कि उनके निधन की दुखद खबर आ गई। खूब बवाल मचा। अमेरिका के एक रसूखदार अस्पताल में इलाज हो रहा था, सब कुछ दुरुस्त था कि अनहोनी हो गई। अमेरिकी मीडिया में हलचल मची और आखिरकार मामला ‘सेटल’ किया गया। कथित तौर पर छह मिलियन डॉलर आर्मस्ट्रांग फैमिली को दिए गए। औपचारिक तौर पर मौत की वजह “हृदवाहिका प्रक्रियाओं में जटिलताओं” को बताया गया।

आर्मस्ट्रांग अमेरिका के ही नहीं पूरी दुनिया के हीरो थे। ऐसा शख्स जिसकी बायोग्राफी ‘फर्स्ट मैन: लाइफ ऑफ नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग’ में कई रोमांचक क्षणों का उल्लेख है। जैसे उनके पिता के हवाले से कि उनके बेटे की “कभी लड़कियों से नजदीकी नहीं रही” और “इसलिए उसे कार की जरूरत नहीं थी” बल्कि बस “उसे… हवाई अड्डे तक पहुंचना था।” उनके ये शब्द ही नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग की आसमान के प्रति दीवानगी का एहसास कराते हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए भी कहा था क्योंकि नील ने ऑटोमोबाइल लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। ऑटोमोबाइल से पहले प्लेन चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

आसमान को छूने का जुनून आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही था। जब महज दो साल के थे, तब पिता उन्हें क्लीवलैंड एयर रेस दिखाने ले गए वहां हवाई उड़ानें देख छोटा नील बहुत उत्साहित हुआ। पांच-छह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरी। थोड़े बड़े हुए तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने ब्लूम हाई स्कूल में पढ़ाई की और वापाकोनेटा हवाई क्षेत्र में ट्रेनिंग ली। अपने 16वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया।

करियर की बात करें तो साल 1949 से 1952 तक अमेरिकी नौसैनिक एविएटर के रूप में सेवा देने के बाद 1955 में नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनॉटिक्स (NACA) में शामिल हुए। जिसे बाद में NASA के ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम दिया गया। अगले 17 वर्षों में उन्होंने NACA और इसकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के एक इंजीनियर, परीक्षण पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर खुद को साबित किया।

फिर आया वो दिन जब उन्होंने धरती से चांद तक की दूरी मापने की ओर कदम बढ़ाया। 16 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपने सह यात्रियों बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स संग अपोलो 11 लूनर मिशन से चंद्रमा की ओर रवाना हुए। चार दिन बाद चांद पर इसकी लैंडिंग हुई। चंद्र मॉड्यूल (एलएम) को ‘ईगल’ (एक अंतरिक्ष यान) नाम दिया गया था। ईगल को आर्मस्ट्रॉन्ग ने मैन्युअली ऑपरेट किया था।

ईगल से उतरने के साथ ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था ‘मानव का यह छोटा कदम मानवजाति के लिए बड़ी छलांग है।’ वाकई ये एक बड़ी छलांग थी धरती से सीधे चांद तक।

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नई दिल्ली, 25 अगस्त (आईएएनएस)। 2012 की 25 अगस्त ही थी जब दुनिया से वह एस्ट्रोनॉट रुखसत हो गया जिसने न जाने कितनों में चांद को छूने की ललक जगाई थी। जिस तरह इनके चांद पर रखे कदम ने सबको हैरान कर दिया था ठीक उसी तरह इनकी मौत पर यकीन करना मुश्किल था।

दो हफ्ते पहले ही तो बायपास सर्जरी हुई थी। हालात में सुधार हो रहा था कि उनके निधन की दुखद खबर आ गई। खूब बवाल मचा। अमेरिका के एक रसूखदार अस्पताल में इलाज हो रहा था, सब कुछ दुरुस्त था कि अनहोनी हो गई। अमेरिकी मीडिया में हलचल मची और आखिरकार मामला ‘सेटल’ किया गया। कथित तौर पर छह मिलियन डॉलर आर्मस्ट्रांग फैमिली को दिए गए। औपचारिक तौर पर मौत की वजह “हृदवाहिका प्रक्रियाओं में जटिलताओं” को बताया गया।

आर्मस्ट्रांग अमेरिका के ही नहीं पूरी दुनिया के हीरो थे। ऐसा शख्स जिसकी बायोग्राफी ‘फर्स्ट मैन: लाइफ ऑफ नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग’ में कई रोमांचक क्षणों का उल्लेख है। जैसे उनके पिता के हवाले से कि उनके बेटे की “कभी लड़कियों से नजदीकी नहीं रही” और “इसलिए उसे कार की जरूरत नहीं थी” बल्कि बस “उसे… हवाई अड्डे तक पहुंचना था।” उनके ये शब्द ही नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग की आसमान के प्रति दीवानगी का एहसास कराते हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए भी कहा था क्योंकि नील ने ऑटोमोबाइल लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। ऑटोमोबाइल से पहले प्लेन चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

आसमान को छूने का जुनून आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही था। जब महज दो साल के थे, तब पिता उन्हें क्लीवलैंड एयर रेस दिखाने ले गए वहां हवाई उड़ानें देख छोटा नील बहुत उत्साहित हुआ। पांच-छह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरी। थोड़े बड़े हुए तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने ब्लूम हाई स्कूल में पढ़ाई की और वापाकोनेटा हवाई क्षेत्र में ट्रेनिंग ली। अपने 16वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया।

करियर की बात करें तो साल 1949 से 1952 तक अमेरिकी नौसैनिक एविएटर के रूप में सेवा देने के बाद 1955 में नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनॉटिक्स (NACA) में शामिल हुए। जिसे बाद में NASA के ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम दिया गया। अगले 17 वर्षों में उन्होंने NACA और इसकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के एक इंजीनियर, परीक्षण पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर खुद को साबित किया।

फिर आया वो दिन जब उन्होंने धरती से चांद तक की दूरी मापने की ओर कदम बढ़ाया। 16 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपने सह यात्रियों बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स संग अपोलो 11 लूनर मिशन से चंद्रमा की ओर रवाना हुए। चार दिन बाद चांद पर इसकी लैंडिंग हुई। चंद्र मॉड्यूल (एलएम) को ‘ईगल’ (एक अंतरिक्ष यान) नाम दिया गया था। ईगल को आर्मस्ट्रॉन्ग ने मैन्युअली ऑपरेट किया था।

ईगल से उतरने के साथ ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था ‘मानव का यह छोटा कदम मानवजाति के लिए बड़ी छलांग है।’ वाकई ये एक बड़ी छलांग थी धरती से सीधे चांद तक।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 25 अगस्त (आईएएनएस)। 2012 की 25 अगस्त ही थी जब दुनिया से वह एस्ट्रोनॉट रुखसत हो गया जिसने न जाने कितनों में चांद को छूने की ललक जगाई थी। जिस तरह इनके चांद पर रखे कदम ने सबको हैरान कर दिया था ठीक उसी तरह इनकी मौत पर यकीन करना मुश्किल था।

दो हफ्ते पहले ही तो बायपास सर्जरी हुई थी। हालात में सुधार हो रहा था कि उनके निधन की दुखद खबर आ गई। खूब बवाल मचा। अमेरिका के एक रसूखदार अस्पताल में इलाज हो रहा था, सब कुछ दुरुस्त था कि अनहोनी हो गई। अमेरिकी मीडिया में हलचल मची और आखिरकार मामला ‘सेटल’ किया गया। कथित तौर पर छह मिलियन डॉलर आर्मस्ट्रांग फैमिली को दिए गए। औपचारिक तौर पर मौत की वजह “हृदवाहिका प्रक्रियाओं में जटिलताओं” को बताया गया।

आर्मस्ट्रांग अमेरिका के ही नहीं पूरी दुनिया के हीरो थे। ऐसा शख्स जिसकी बायोग्राफी ‘फर्स्ट मैन: लाइफ ऑफ नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग’ में कई रोमांचक क्षणों का उल्लेख है। जैसे उनके पिता के हवाले से कि उनके बेटे की “कभी लड़कियों से नजदीकी नहीं रही” और “इसलिए उसे कार की जरूरत नहीं थी” बल्कि बस “उसे… हवाई अड्डे तक पहुंचना था।” उनके ये शब्द ही नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग की आसमान के प्रति दीवानगी का एहसास कराते हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए भी कहा था क्योंकि नील ने ऑटोमोबाइल लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। ऑटोमोबाइल से पहले प्लेन चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

आसमान को छूने का जुनून आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही था। जब महज दो साल के थे, तब पिता उन्हें क्लीवलैंड एयर रेस दिखाने ले गए वहां हवाई उड़ानें देख छोटा नील बहुत उत्साहित हुआ। पांच-छह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरी। थोड़े बड़े हुए तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने ब्लूम हाई स्कूल में पढ़ाई की और वापाकोनेटा हवाई क्षेत्र में ट्रेनिंग ली। अपने 16वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया।

करियर की बात करें तो साल 1949 से 1952 तक अमेरिकी नौसैनिक एविएटर के रूप में सेवा देने के बाद 1955 में नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनॉटिक्स (NACA) में शामिल हुए। जिसे बाद में NASA के ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम दिया गया। अगले 17 वर्षों में उन्होंने NACA और इसकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के एक इंजीनियर, परीक्षण पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर खुद को साबित किया।

फिर आया वो दिन जब उन्होंने धरती से चांद तक की दूरी मापने की ओर कदम बढ़ाया। 16 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपने सह यात्रियों बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स संग अपोलो 11 लूनर मिशन से चंद्रमा की ओर रवाना हुए। चार दिन बाद चांद पर इसकी लैंडिंग हुई। चंद्र मॉड्यूल (एलएम) को ‘ईगल’ (एक अंतरिक्ष यान) नाम दिया गया था। ईगल को आर्मस्ट्रॉन्ग ने मैन्युअली ऑपरेट किया था।

ईगल से उतरने के साथ ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था ‘मानव का यह छोटा कदम मानवजाति के लिए बड़ी छलांग है।’ वाकई ये एक बड़ी छलांग थी धरती से सीधे चांद तक।

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दो हफ्ते पहले ही तो बायपास सर्जरी हुई थी। हालात में सुधार हो रहा था कि उनके निधन की दुखद खबर आ गई। खूब बवाल मचा। अमेरिका के एक रसूखदार अस्पताल में इलाज हो रहा था, सब कुछ दुरुस्त था कि अनहोनी हो गई। अमेरिकी मीडिया में हलचल मची और आखिरकार मामला ‘सेटल’ किया गया। कथित तौर पर छह मिलियन डॉलर आर्मस्ट्रांग फैमिली को दिए गए। औपचारिक तौर पर मौत की वजह “हृदवाहिका प्रक्रियाओं में जटिलताओं” को बताया गया।

आर्मस्ट्रांग अमेरिका के ही नहीं पूरी दुनिया के हीरो थे। ऐसा शख्स जिसकी बायोग्राफी ‘फर्स्ट मैन: लाइफ ऑफ नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग’ में कई रोमांचक क्षणों का उल्लेख है। जैसे उनके पिता के हवाले से कि उनके बेटे की “कभी लड़कियों से नजदीकी नहीं रही” और “इसलिए उसे कार की जरूरत नहीं थी” बल्कि बस “उसे… हवाई अड्डे तक पहुंचना था।” उनके ये शब्द ही नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग की आसमान के प्रति दीवानगी का एहसास कराते हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए भी कहा था क्योंकि नील ने ऑटोमोबाइल लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। ऑटोमोबाइल से पहले प्लेन चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

आसमान को छूने का जुनून आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही था। जब महज दो साल के थे, तब पिता उन्हें क्लीवलैंड एयर रेस दिखाने ले गए वहां हवाई उड़ानें देख छोटा नील बहुत उत्साहित हुआ। पांच-छह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरी। थोड़े बड़े हुए तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने ब्लूम हाई स्कूल में पढ़ाई की और वापाकोनेटा हवाई क्षेत्र में ट्रेनिंग ली। अपने 16वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया।

करियर की बात करें तो साल 1949 से 1952 तक अमेरिकी नौसैनिक एविएटर के रूप में सेवा देने के बाद 1955 में नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनॉटिक्स (NACA) में शामिल हुए। जिसे बाद में NASA के ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम दिया गया। अगले 17 वर्षों में उन्होंने NACA और इसकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के एक इंजीनियर, परीक्षण पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर खुद को साबित किया।

फिर आया वो दिन जब उन्होंने धरती से चांद तक की दूरी मापने की ओर कदम बढ़ाया। 16 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपने सह यात्रियों बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स संग अपोलो 11 लूनर मिशन से चंद्रमा की ओर रवाना हुए। चार दिन बाद चांद पर इसकी लैंडिंग हुई। चंद्र मॉड्यूल (एलएम) को ‘ईगल’ (एक अंतरिक्ष यान) नाम दिया गया था। ईगल को आर्मस्ट्रॉन्ग ने मैन्युअली ऑपरेट किया था।

ईगल से उतरने के साथ ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था ‘मानव का यह छोटा कदम मानवजाति के लिए बड़ी छलांग है।’ वाकई ये एक बड़ी छलांग थी धरती से सीधे चांद तक।

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दो हफ्ते पहले ही तो बायपास सर्जरी हुई थी। हालात में सुधार हो रहा था कि उनके निधन की दुखद खबर आ गई। खूब बवाल मचा। अमेरिका के एक रसूखदार अस्पताल में इलाज हो रहा था, सब कुछ दुरुस्त था कि अनहोनी हो गई। अमेरिकी मीडिया में हलचल मची और आखिरकार मामला ‘सेटल’ किया गया। कथित तौर पर छह मिलियन डॉलर आर्मस्ट्रांग फैमिली को दिए गए। औपचारिक तौर पर मौत की वजह “हृदवाहिका प्रक्रियाओं में जटिलताओं” को बताया गया।

आर्मस्ट्रांग अमेरिका के ही नहीं पूरी दुनिया के हीरो थे। ऐसा शख्स जिसकी बायोग्राफी ‘फर्स्ट मैन: लाइफ ऑफ नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग’ में कई रोमांचक क्षणों का उल्लेख है। जैसे उनके पिता के हवाले से कि उनके बेटे की “कभी लड़कियों से नजदीकी नहीं रही” और “इसलिए उसे कार की जरूरत नहीं थी” बल्कि बस “उसे… हवाई अड्डे तक पहुंचना था।” उनके ये शब्द ही नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग की आसमान के प्रति दीवानगी का एहसास कराते हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए भी कहा था क्योंकि नील ने ऑटोमोबाइल लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। ऑटोमोबाइल से पहले प्लेन चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

आसमान को छूने का जुनून आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही था। जब महज दो साल के थे, तब पिता उन्हें क्लीवलैंड एयर रेस दिखाने ले गए वहां हवाई उड़ानें देख छोटा नील बहुत उत्साहित हुआ। पांच-छह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरी। थोड़े बड़े हुए तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने ब्लूम हाई स्कूल में पढ़ाई की और वापाकोनेटा हवाई क्षेत्र में ट्रेनिंग ली। अपने 16वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया।

करियर की बात करें तो साल 1949 से 1952 तक अमेरिकी नौसैनिक एविएटर के रूप में सेवा देने के बाद 1955 में नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनॉटिक्स (NACA) में शामिल हुए। जिसे बाद में NASA के ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम दिया गया। अगले 17 वर्षों में उन्होंने NACA और इसकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के एक इंजीनियर, परीक्षण पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर खुद को साबित किया।

फिर आया वो दिन जब उन्होंने धरती से चांद तक की दूरी मापने की ओर कदम बढ़ाया। 16 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपने सह यात्रियों बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स संग अपोलो 11 लूनर मिशन से चंद्रमा की ओर रवाना हुए। चार दिन बाद चांद पर इसकी लैंडिंग हुई। चंद्र मॉड्यूल (एलएम) को ‘ईगल’ (एक अंतरिक्ष यान) नाम दिया गया था। ईगल को आर्मस्ट्रॉन्ग ने मैन्युअली ऑपरेट किया था।

ईगल से उतरने के साथ ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था ‘मानव का यह छोटा कदम मानवजाति के लिए बड़ी छलांग है।’ वाकई ये एक बड़ी छलांग थी धरती से सीधे चांद तक।

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दो हफ्ते पहले ही तो बायपास सर्जरी हुई थी। हालात में सुधार हो रहा था कि उनके निधन की दुखद खबर आ गई। खूब बवाल मचा। अमेरिका के एक रसूखदार अस्पताल में इलाज हो रहा था, सब कुछ दुरुस्त था कि अनहोनी हो गई। अमेरिकी मीडिया में हलचल मची और आखिरकार मामला ‘सेटल’ किया गया। कथित तौर पर छह मिलियन डॉलर आर्मस्ट्रांग फैमिली को दिए गए। औपचारिक तौर पर मौत की वजह “हृदवाहिका प्रक्रियाओं में जटिलताओं” को बताया गया।

आर्मस्ट्रांग अमेरिका के ही नहीं पूरी दुनिया के हीरो थे। ऐसा शख्स जिसकी बायोग्राफी ‘फर्स्ट मैन: लाइफ ऑफ नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग’ में कई रोमांचक क्षणों का उल्लेख है। जैसे उनके पिता के हवाले से कि उनके बेटे की “कभी लड़कियों से नजदीकी नहीं रही” और “इसलिए उसे कार की जरूरत नहीं थी” बल्कि बस “उसे… हवाई अड्डे तक पहुंचना था।” उनके ये शब्द ही नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग की आसमान के प्रति दीवानगी का एहसास कराते हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए भी कहा था क्योंकि नील ने ऑटोमोबाइल लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। ऑटोमोबाइल से पहले प्लेन चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

आसमान को छूने का जुनून आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही था। जब महज दो साल के थे, तब पिता उन्हें क्लीवलैंड एयर रेस दिखाने ले गए वहां हवाई उड़ानें देख छोटा नील बहुत उत्साहित हुआ। पांच-छह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरी। थोड़े बड़े हुए तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने ब्लूम हाई स्कूल में पढ़ाई की और वापाकोनेटा हवाई क्षेत्र में ट्रेनिंग ली। अपने 16वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया।

करियर की बात करें तो साल 1949 से 1952 तक अमेरिकी नौसैनिक एविएटर के रूप में सेवा देने के बाद 1955 में नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनॉटिक्स (NACA) में शामिल हुए। जिसे बाद में NASA के ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम दिया गया। अगले 17 वर्षों में उन्होंने NACA और इसकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के एक इंजीनियर, परीक्षण पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर खुद को साबित किया।

फिर आया वो दिन जब उन्होंने धरती से चांद तक की दूरी मापने की ओर कदम बढ़ाया। 16 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपने सह यात्रियों बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स संग अपोलो 11 लूनर मिशन से चंद्रमा की ओर रवाना हुए। चार दिन बाद चांद पर इसकी लैंडिंग हुई। चंद्र मॉड्यूल (एलएम) को ‘ईगल’ (एक अंतरिक्ष यान) नाम दिया गया था। ईगल को आर्मस्ट्रॉन्ग ने मैन्युअली ऑपरेट किया था।

ईगल से उतरने के साथ ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था ‘मानव का यह छोटा कदम मानवजाति के लिए बड़ी छलांग है।’ वाकई ये एक बड़ी छलांग थी धरती से सीधे चांद तक।

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दो हफ्ते पहले ही तो बायपास सर्जरी हुई थी। हालात में सुधार हो रहा था कि उनके निधन की दुखद खबर आ गई। खूब बवाल मचा। अमेरिका के एक रसूखदार अस्पताल में इलाज हो रहा था, सब कुछ दुरुस्त था कि अनहोनी हो गई। अमेरिकी मीडिया में हलचल मची और आखिरकार मामला ‘सेटल’ किया गया। कथित तौर पर छह मिलियन डॉलर आर्मस्ट्रांग फैमिली को दिए गए। औपचारिक तौर पर मौत की वजह “हृदवाहिका प्रक्रियाओं में जटिलताओं” को बताया गया।

आर्मस्ट्रांग अमेरिका के ही नहीं पूरी दुनिया के हीरो थे। ऐसा शख्स जिसकी बायोग्राफी ‘फर्स्ट मैन: लाइफ ऑफ नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग’ में कई रोमांचक क्षणों का उल्लेख है। जैसे उनके पिता के हवाले से कि उनके बेटे की “कभी लड़कियों से नजदीकी नहीं रही” और “इसलिए उसे कार की जरूरत नहीं थी” बल्कि बस “उसे… हवाई अड्डे तक पहुंचना था।” उनके ये शब्द ही नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग की आसमान के प्रति दीवानगी का एहसास कराते हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए भी कहा था क्योंकि नील ने ऑटोमोबाइल लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। ऑटोमोबाइल से पहले प्लेन चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

आसमान को छूने का जुनून आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही था। जब महज दो साल के थे, तब पिता उन्हें क्लीवलैंड एयर रेस दिखाने ले गए वहां हवाई उड़ानें देख छोटा नील बहुत उत्साहित हुआ। पांच-छह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरी। थोड़े बड़े हुए तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने ब्लूम हाई स्कूल में पढ़ाई की और वापाकोनेटा हवाई क्षेत्र में ट्रेनिंग ली। अपने 16वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया।

करियर की बात करें तो साल 1949 से 1952 तक अमेरिकी नौसैनिक एविएटर के रूप में सेवा देने के बाद 1955 में नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनॉटिक्स (NACA) में शामिल हुए। जिसे बाद में NASA के ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम दिया गया। अगले 17 वर्षों में उन्होंने NACA और इसकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के एक इंजीनियर, परीक्षण पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर खुद को साबित किया।

फिर आया वो दिन जब उन्होंने धरती से चांद तक की दूरी मापने की ओर कदम बढ़ाया। 16 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपने सह यात्रियों बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स संग अपोलो 11 लूनर मिशन से चंद्रमा की ओर रवाना हुए। चार दिन बाद चांद पर इसकी लैंडिंग हुई। चंद्र मॉड्यूल (एलएम) को ‘ईगल’ (एक अंतरिक्ष यान) नाम दिया गया था। ईगल को आर्मस्ट्रॉन्ग ने मैन्युअली ऑपरेट किया था।

ईगल से उतरने के साथ ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था ‘मानव का यह छोटा कदम मानवजाति के लिए बड़ी छलांग है।’ वाकई ये एक बड़ी छलांग थी धरती से सीधे चांद तक।

–आईएएनएस

केआर/

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नई दिल्ली, 25 अगस्त (आईएएनएस)। 2012 की 25 अगस्त ही थी जब दुनिया से वह एस्ट्रोनॉट रुखसत हो गया जिसने न जाने कितनों में चांद को छूने की ललक जगाई थी। जिस तरह इनके चांद पर रखे कदम ने सबको हैरान कर दिया था ठीक उसी तरह इनकी मौत पर यकीन करना मुश्किल था।

दो हफ्ते पहले ही तो बायपास सर्जरी हुई थी। हालात में सुधार हो रहा था कि उनके निधन की दुखद खबर आ गई। खूब बवाल मचा। अमेरिका के एक रसूखदार अस्पताल में इलाज हो रहा था, सब कुछ दुरुस्त था कि अनहोनी हो गई। अमेरिकी मीडिया में हलचल मची और आखिरकार मामला ‘सेटल’ किया गया। कथित तौर पर छह मिलियन डॉलर आर्मस्ट्रांग फैमिली को दिए गए। औपचारिक तौर पर मौत की वजह “हृदवाहिका प्रक्रियाओं में जटिलताओं” को बताया गया।

आर्मस्ट्रांग अमेरिका के ही नहीं पूरी दुनिया के हीरो थे। ऐसा शख्स जिसकी बायोग्राफी ‘फर्स्ट मैन: लाइफ ऑफ नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग’ में कई रोमांचक क्षणों का उल्लेख है। जैसे उनके पिता के हवाले से कि उनके बेटे की “कभी लड़कियों से नजदीकी नहीं रही” और “इसलिए उसे कार की जरूरत नहीं थी” बल्कि बस “उसे… हवाई अड्डे तक पहुंचना था।” उनके ये शब्द ही नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग की आसमान के प्रति दीवानगी का एहसास कराते हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए भी कहा था क्योंकि नील ने ऑटोमोबाइल लाइसेंस हासिल करने से पहले पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। ऑटोमोबाइल से पहले प्लेन चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

आसमान को छूने का जुनून आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही था। जब महज दो साल के थे, तब पिता उन्हें क्लीवलैंड एयर रेस दिखाने ले गए वहां हवाई उड़ानें देख छोटा नील बहुत उत्साहित हुआ। पांच-छह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरी। थोड़े बड़े हुए तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने ब्लूम हाई स्कूल में पढ़ाई की और वापाकोनेटा हवाई क्षेत्र में ट्रेनिंग ली। अपने 16वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया।

करियर की बात करें तो साल 1949 से 1952 तक अमेरिकी नौसैनिक एविएटर के रूप में सेवा देने के बाद 1955 में नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनॉटिक्स (NACA) में शामिल हुए। जिसे बाद में NASA के ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम दिया गया। अगले 17 वर्षों में उन्होंने NACA और इसकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के एक इंजीनियर, परीक्षण पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर खुद को साबित किया।

फिर आया वो दिन जब उन्होंने धरती से चांद तक की दूरी मापने की ओर कदम बढ़ाया। 16 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपने सह यात्रियों बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स संग अपोलो 11 लूनर मिशन से चंद्रमा की ओर रवाना हुए। चार दिन बाद चांद पर इसकी लैंडिंग हुई। चंद्र मॉड्यूल (एलएम) को ‘ईगल’ (एक अंतरिक्ष यान) नाम दिया गया था। ईगल को आर्मस्ट्रॉन्ग ने मैन्युअली ऑपरेट किया था।

ईगल से उतरने के साथ ही आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था ‘मानव का यह छोटा कदम मानवजाति के लिए बड़ी छलांग है।’ वाकई ये एक बड़ी छलांग थी धरती से सीधे चांद तक।

–आईएएनएस

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