नई दिल्ली, 25 अप्रैल (आईएएनएस)। गुरुवार को सामने आई एक नई रिपोर्ट के अनुसार लगभग चार में से एक भारतीय (22 प्रतिशत) का मानना है कि उन्होंने हाल ही में पॉलिटिकल डीपफेक सामग्री देखी है।
साइबर सुरक्षा कंपनी मैकेफी के अनुसार, लगभग 75 प्रतिशत भारतीय ने डीपफेक सामग्री का सामना किया है। अधिकांश (44 प्रतिशत) लोगों का कहना है कि इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया गया। ये चिंता का विषय है। वहीं मीडिया में जनता के विश्वास को कम (37 प्रतिशत) करने और चुनावों को प्रभावित (31 प्रतिशत) करने को लेकर भी लोग परेशान हैं।
मैकेफी के वरिष्ठ इंजीनियरिंग निदेशक प्रतीम मुखर्जी ने कहा, ”हाल ही में भारत में सार्वजनिक और निजी हस्तियों से जुड़े डीपफेक कंटेंट के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। एआई जिस आसानी से आवाजों और दृश्यों में हेरफेर कर सकता है, वह विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष के दौरान सामग्री की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर सवाल उठाता है।”
रिपोर्ट में इस साल जनवरी और फरवरी में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में वैश्विक स्तर पर 7,000 उपभोक्ताओं का सर्वेक्षण किया गया।
रिपोर्ट में डीपफेक के संभावित उपयोग जो चिंताजनक हैं, उनमें साइबर बुलिंग (55 प्रतिशत), नकली अश्लील सामग्री बनाना (52 प्रतिशत), स्कैम (49 प्रतिशत), और ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करना (27 प्रतिशत) शामिल है।
लगभग 64 प्रतिशत ने कहा कि एआई ने उनके लिए ऑनलाइन स्कैम को पहचानना कठिन बना दिया है।
लगभग 57 प्रतिशत ने किसी सेलिब्रिटी का वीडियो, इमेज या रिकॉर्डिंग देखी और सोचा कि यह वास्तविक है। वहीं, 31 प्रतिशत ने स्कैम में पैसा खो दिया।
मुखर्जी ने कहा, “यह जरूरी है कि उपभोक्ता सतर्क रहें और सही कदम उठाएं, साथ ही गलत सूचना और डीपफेक घोटालों से खुद को सुरक्षित रखें।”
–आईएएनएस
एमकेएस/एसकेपी
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नई दिल्ली, 25 अप्रैल (आईएएनएस)। गुरुवार को सामने आई एक नई रिपोर्ट के अनुसार लगभग चार में से एक भारतीय (22 प्रतिशत) का मानना है कि उन्होंने हाल ही में पॉलिटिकल डीपफेक सामग्री देखी है।
साइबर सुरक्षा कंपनी मैकेफी के अनुसार, लगभग 75 प्रतिशत भारतीय ने डीपफेक सामग्री का सामना किया है। अधिकांश (44 प्रतिशत) लोगों का कहना है कि इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया गया। ये चिंता का विषय है। वहीं मीडिया में जनता के विश्वास को कम (37 प्रतिशत) करने और चुनावों को प्रभावित (31 प्रतिशत) करने को लेकर भी लोग परेशान हैं।
मैकेफी के वरिष्ठ इंजीनियरिंग निदेशक प्रतीम मुखर्जी ने कहा, ”हाल ही में भारत में सार्वजनिक और निजी हस्तियों से जुड़े डीपफेक कंटेंट के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। एआई जिस आसानी से आवाजों और दृश्यों में हेरफेर कर सकता है, वह विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष के दौरान सामग्री की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर सवाल उठाता है।”
रिपोर्ट में इस साल जनवरी और फरवरी में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में वैश्विक स्तर पर 7,000 उपभोक्ताओं का सर्वेक्षण किया गया।
रिपोर्ट में डीपफेक के संभावित उपयोग जो चिंताजनक हैं, उनमें साइबर बुलिंग (55 प्रतिशत), नकली अश्लील सामग्री बनाना (52 प्रतिशत), स्कैम (49 प्रतिशत), और ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करना (27 प्रतिशत) शामिल है।
लगभग 64 प्रतिशत ने कहा कि एआई ने उनके लिए ऑनलाइन स्कैम को पहचानना कठिन बना दिया है।
लगभग 57 प्रतिशत ने किसी सेलिब्रिटी का वीडियो, इमेज या रिकॉर्डिंग देखी और सोचा कि यह वास्तविक है। वहीं, 31 प्रतिशत ने स्कैम में पैसा खो दिया।
मुखर्जी ने कहा, “यह जरूरी है कि उपभोक्ता सतर्क रहें और सही कदम उठाएं, साथ ही गलत सूचना और डीपफेक घोटालों से खुद को सुरक्षित रखें।”
–आईएएनएस
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नई दिल्ली, 25 अप्रैल (आईएएनएस)। गुरुवार को सामने आई एक नई रिपोर्ट के अनुसार लगभग चार में से एक भारतीय (22 प्रतिशत) का मानना है कि उन्होंने हाल ही में पॉलिटिकल डीपफेक सामग्री देखी है।
साइबर सुरक्षा कंपनी मैकेफी के अनुसार, लगभग 75 प्रतिशत भारतीय ने डीपफेक सामग्री का सामना किया है। अधिकांश (44 प्रतिशत) लोगों का कहना है कि इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया गया। ये चिंता का विषय है। वहीं मीडिया में जनता के विश्वास को कम (37 प्रतिशत) करने और चुनावों को प्रभावित (31 प्रतिशत) करने को लेकर भी लोग परेशान हैं।
मैकेफी के वरिष्ठ इंजीनियरिंग निदेशक प्रतीम मुखर्जी ने कहा, ”हाल ही में भारत में सार्वजनिक और निजी हस्तियों से जुड़े डीपफेक कंटेंट के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। एआई जिस आसानी से आवाजों और दृश्यों में हेरफेर कर सकता है, वह विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष के दौरान सामग्री की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर सवाल उठाता है।”
रिपोर्ट में इस साल जनवरी और फरवरी में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में वैश्विक स्तर पर 7,000 उपभोक्ताओं का सर्वेक्षण किया गया।
रिपोर्ट में डीपफेक के संभावित उपयोग जो चिंताजनक हैं, उनमें साइबर बुलिंग (55 प्रतिशत), नकली अश्लील सामग्री बनाना (52 प्रतिशत), स्कैम (49 प्रतिशत), और ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करना (27 प्रतिशत) शामिल है।
लगभग 64 प्रतिशत ने कहा कि एआई ने उनके लिए ऑनलाइन स्कैम को पहचानना कठिन बना दिया है।
लगभग 57 प्रतिशत ने किसी सेलिब्रिटी का वीडियो, इमेज या रिकॉर्डिंग देखी और सोचा कि यह वास्तविक है। वहीं, 31 प्रतिशत ने स्कैम में पैसा खो दिया।
मुखर्जी ने कहा, “यह जरूरी है कि उपभोक्ता सतर्क रहें और सही कदम उठाएं, साथ ही गलत सूचना और डीपफेक घोटालों से खुद को सुरक्षित रखें।”
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नई दिल्ली, 25 अप्रैल (आईएएनएस)। गुरुवार को सामने आई एक नई रिपोर्ट के अनुसार लगभग चार में से एक भारतीय (22 प्रतिशत) का मानना है कि उन्होंने हाल ही में पॉलिटिकल डीपफेक सामग्री देखी है।
साइबर सुरक्षा कंपनी मैकेफी के अनुसार, लगभग 75 प्रतिशत भारतीय ने डीपफेक सामग्री का सामना किया है। अधिकांश (44 प्रतिशत) लोगों का कहना है कि इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया गया। ये चिंता का विषय है। वहीं मीडिया में जनता के विश्वास को कम (37 प्रतिशत) करने और चुनावों को प्रभावित (31 प्रतिशत) करने को लेकर भी लोग परेशान हैं।
मैकेफी के वरिष्ठ इंजीनियरिंग निदेशक प्रतीम मुखर्जी ने कहा, ”हाल ही में भारत में सार्वजनिक और निजी हस्तियों से जुड़े डीपफेक कंटेंट के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। एआई जिस आसानी से आवाजों और दृश्यों में हेरफेर कर सकता है, वह विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष के दौरान सामग्री की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर सवाल उठाता है।”
रिपोर्ट में इस साल जनवरी और फरवरी में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में वैश्विक स्तर पर 7,000 उपभोक्ताओं का सर्वेक्षण किया गया।
रिपोर्ट में डीपफेक के संभावित उपयोग जो चिंताजनक हैं, उनमें साइबर बुलिंग (55 प्रतिशत), नकली अश्लील सामग्री बनाना (52 प्रतिशत), स्कैम (49 प्रतिशत), और ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करना (27 प्रतिशत) शामिल है।
लगभग 64 प्रतिशत ने कहा कि एआई ने उनके लिए ऑनलाइन स्कैम को पहचानना कठिन बना दिया है।
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मैकेफी के वरिष्ठ इंजीनियरिंग निदेशक प्रतीम मुखर्जी ने कहा, ”हाल ही में भारत में सार्वजनिक और निजी हस्तियों से जुड़े डीपफेक कंटेंट के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। एआई जिस आसानी से आवाजों और दृश्यों में हेरफेर कर सकता है, वह विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष के दौरान सामग्री की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर सवाल उठाता है।”
रिपोर्ट में इस साल जनवरी और फरवरी में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में वैश्विक स्तर पर 7,000 उपभोक्ताओं का सर्वेक्षण किया गया।
रिपोर्ट में डीपफेक के संभावित उपयोग जो चिंताजनक हैं, उनमें साइबर बुलिंग (55 प्रतिशत), नकली अश्लील सामग्री बनाना (52 प्रतिशत), स्कैम (49 प्रतिशत), और ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करना (27 प्रतिशत) शामिल है।
लगभग 64 प्रतिशत ने कहा कि एआई ने उनके लिए ऑनलाइन स्कैम को पहचानना कठिन बना दिया है।
लगभग 57 प्रतिशत ने किसी सेलिब्रिटी का वीडियो, इमेज या रिकॉर्डिंग देखी और सोचा कि यह वास्तविक है। वहीं, 31 प्रतिशत ने स्कैम में पैसा खो दिया।
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मैकेफी के वरिष्ठ इंजीनियरिंग निदेशक प्रतीम मुखर्जी ने कहा, ”हाल ही में भारत में सार्वजनिक और निजी हस्तियों से जुड़े डीपफेक कंटेंट के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। एआई जिस आसानी से आवाजों और दृश्यों में हेरफेर कर सकता है, वह विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष के दौरान सामग्री की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर सवाल उठाता है।”
रिपोर्ट में इस साल जनवरी और फरवरी में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में वैश्विक स्तर पर 7,000 उपभोक्ताओं का सर्वेक्षण किया गया।
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लगभग 64 प्रतिशत ने कहा कि एआई ने उनके लिए ऑनलाइन स्कैम को पहचानना कठिन बना दिया है।
लगभग 57 प्रतिशत ने किसी सेलिब्रिटी का वीडियो, इमेज या रिकॉर्डिंग देखी और सोचा कि यह वास्तविक है। वहीं, 31 प्रतिशत ने स्कैम में पैसा खो दिया।
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मैकेफी के वरिष्ठ इंजीनियरिंग निदेशक प्रतीम मुखर्जी ने कहा, ”हाल ही में भारत में सार्वजनिक और निजी हस्तियों से जुड़े डीपफेक कंटेंट के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। एआई जिस आसानी से आवाजों और दृश्यों में हेरफेर कर सकता है, वह विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष के दौरान सामग्री की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर सवाल उठाता है।”
रिपोर्ट में इस साल जनवरी और फरवरी में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में वैश्विक स्तर पर 7,000 उपभोक्ताओं का सर्वेक्षण किया गया।
रिपोर्ट में डीपफेक के संभावित उपयोग जो चिंताजनक हैं, उनमें साइबर बुलिंग (55 प्रतिशत), नकली अश्लील सामग्री बनाना (52 प्रतिशत), स्कैम (49 प्रतिशत), और ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करना (27 प्रतिशत) शामिल है।
लगभग 64 प्रतिशत ने कहा कि एआई ने उनके लिए ऑनलाइन स्कैम को पहचानना कठिन बना दिया है।
लगभग 57 प्रतिशत ने किसी सेलिब्रिटी का वीडियो, इमेज या रिकॉर्डिंग देखी और सोचा कि यह वास्तविक है। वहीं, 31 प्रतिशत ने स्कैम में पैसा खो दिया।
मुखर्जी ने कहा, “यह जरूरी है कि उपभोक्ता सतर्क रहें और सही कदम उठाएं, साथ ही गलत सूचना और डीपफेक घोटालों से खुद को सुरक्षित रखें।”
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साइबर सुरक्षा कंपनी मैकेफी के अनुसार, लगभग 75 प्रतिशत भारतीय ने डीपफेक सामग्री का सामना किया है। अधिकांश (44 प्रतिशत) लोगों का कहना है कि इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया गया। ये चिंता का विषय है। वहीं मीडिया में जनता के विश्वास को कम (37 प्रतिशत) करने और चुनावों को प्रभावित (31 प्रतिशत) करने को लेकर भी लोग परेशान हैं।
मैकेफी के वरिष्ठ इंजीनियरिंग निदेशक प्रतीम मुखर्जी ने कहा, ”हाल ही में भारत में सार्वजनिक और निजी हस्तियों से जुड़े डीपफेक कंटेंट के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। एआई जिस आसानी से आवाजों और दृश्यों में हेरफेर कर सकता है, वह विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष के दौरान सामग्री की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर सवाल उठाता है।”
रिपोर्ट में इस साल जनवरी और फरवरी में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में वैश्विक स्तर पर 7,000 उपभोक्ताओं का सर्वेक्षण किया गया।
रिपोर्ट में डीपफेक के संभावित उपयोग जो चिंताजनक हैं, उनमें साइबर बुलिंग (55 प्रतिशत), नकली अश्लील सामग्री बनाना (52 प्रतिशत), स्कैम (49 प्रतिशत), और ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करना (27 प्रतिशत) शामिल है।
लगभग 64 प्रतिशत ने कहा कि एआई ने उनके लिए ऑनलाइन स्कैम को पहचानना कठिन बना दिया है।
लगभग 57 प्रतिशत ने किसी सेलिब्रिटी का वीडियो, इमेज या रिकॉर्डिंग देखी और सोचा कि यह वास्तविक है। वहीं, 31 प्रतिशत ने स्कैम में पैसा खो दिया।
मुखर्जी ने कहा, “यह जरूरी है कि उपभोक्ता सतर्क रहें और सही कदम उठाएं, साथ ही गलत सूचना और डीपफेक घोटालों से खुद को सुरक्षित रखें।”
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मैकेफी के वरिष्ठ इंजीनियरिंग निदेशक प्रतीम मुखर्जी ने कहा, ”हाल ही में भारत में सार्वजनिक और निजी हस्तियों से जुड़े डीपफेक कंटेंट के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। एआई जिस आसानी से आवाजों और दृश्यों में हेरफेर कर सकता है, वह विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष के दौरान सामग्री की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर सवाल उठाता है।”
रिपोर्ट में इस साल जनवरी और फरवरी में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में वैश्विक स्तर पर 7,000 उपभोक्ताओं का सर्वेक्षण किया गया।
रिपोर्ट में डीपफेक के संभावित उपयोग जो चिंताजनक हैं, उनमें साइबर बुलिंग (55 प्रतिशत), नकली अश्लील सामग्री बनाना (52 प्रतिशत), स्कैम (49 प्रतिशत), और ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करना (27 प्रतिशत) शामिल है।
लगभग 64 प्रतिशत ने कहा कि एआई ने उनके लिए ऑनलाइन स्कैम को पहचानना कठिन बना दिया है।
लगभग 57 प्रतिशत ने किसी सेलिब्रिटी का वीडियो, इमेज या रिकॉर्डिंग देखी और सोचा कि यह वास्तविक है। वहीं, 31 प्रतिशत ने स्कैम में पैसा खो दिया।
मुखर्जी ने कहा, “यह जरूरी है कि उपभोक्ता सतर्क रहें और सही कदम उठाएं, साथ ही गलत सूचना और डीपफेक घोटालों से खुद को सुरक्षित रखें।”
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साइबर सुरक्षा कंपनी मैकेफी के अनुसार, लगभग 75 प्रतिशत भारतीय ने डीपफेक सामग्री का सामना किया है। अधिकांश (44 प्रतिशत) लोगों का कहना है कि इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया गया। ये चिंता का विषय है। वहीं मीडिया में जनता के विश्वास को कम (37 प्रतिशत) करने और चुनावों को प्रभावित (31 प्रतिशत) करने को लेकर भी लोग परेशान हैं।
मैकेफी के वरिष्ठ इंजीनियरिंग निदेशक प्रतीम मुखर्जी ने कहा, ”हाल ही में भारत में सार्वजनिक और निजी हस्तियों से जुड़े डीपफेक कंटेंट के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। एआई जिस आसानी से आवाजों और दृश्यों में हेरफेर कर सकता है, वह विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष के दौरान सामग्री की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर सवाल उठाता है।”
रिपोर्ट में इस साल जनवरी और फरवरी में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में वैश्विक स्तर पर 7,000 उपभोक्ताओं का सर्वेक्षण किया गया।
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लगभग 64 प्रतिशत ने कहा कि एआई ने उनके लिए ऑनलाइन स्कैम को पहचानना कठिन बना दिया है।
लगभग 57 प्रतिशत ने किसी सेलिब्रिटी का वीडियो, इमेज या रिकॉर्डिंग देखी और सोचा कि यह वास्तविक है। वहीं, 31 प्रतिशत ने स्कैम में पैसा खो दिया।
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लगभग 64 प्रतिशत ने कहा कि एआई ने उनके लिए ऑनलाइन स्कैम को पहचानना कठिन बना दिया है।
लगभग 57 प्रतिशत ने किसी सेलिब्रिटी का वीडियो, इमेज या रिकॉर्डिंग देखी और सोचा कि यह वास्तविक है। वहीं, 31 प्रतिशत ने स्कैम में पैसा खो दिया।
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साइबर सुरक्षा कंपनी मैकेफी के अनुसार, लगभग 75 प्रतिशत भारतीय ने डीपफेक सामग्री का सामना किया है। अधिकांश (44 प्रतिशत) लोगों का कहना है कि इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया गया। ये चिंता का विषय है। वहीं मीडिया में जनता के विश्वास को कम (37 प्रतिशत) करने और चुनावों को प्रभावित (31 प्रतिशत) करने को लेकर भी लोग परेशान हैं।
मैकेफी के वरिष्ठ इंजीनियरिंग निदेशक प्रतीम मुखर्जी ने कहा, ”हाल ही में भारत में सार्वजनिक और निजी हस्तियों से जुड़े डीपफेक कंटेंट के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। एआई जिस आसानी से आवाजों और दृश्यों में हेरफेर कर सकता है, वह विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष के दौरान सामग्री की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर सवाल उठाता है।”
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लगभग 64 प्रतिशत ने कहा कि एआई ने उनके लिए ऑनलाइन स्कैम को पहचानना कठिन बना दिया है।
लगभग 57 प्रतिशत ने किसी सेलिब्रिटी का वीडियो, इमेज या रिकॉर्डिंग देखी और सोचा कि यह वास्तविक है। वहीं, 31 प्रतिशत ने स्कैम में पैसा खो दिया।
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साइबर सुरक्षा कंपनी मैकेफी के अनुसार, लगभग 75 प्रतिशत भारतीय ने डीपफेक सामग्री का सामना किया है। अधिकांश (44 प्रतिशत) लोगों का कहना है कि इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया गया। ये चिंता का विषय है। वहीं मीडिया में जनता के विश्वास को कम (37 प्रतिशत) करने और चुनावों को प्रभावित (31 प्रतिशत) करने को लेकर भी लोग परेशान हैं।
मैकेफी के वरिष्ठ इंजीनियरिंग निदेशक प्रतीम मुखर्जी ने कहा, ”हाल ही में भारत में सार्वजनिक और निजी हस्तियों से जुड़े डीपफेक कंटेंट के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। एआई जिस आसानी से आवाजों और दृश्यों में हेरफेर कर सकता है, वह विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष के दौरान सामग्री की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर सवाल उठाता है।”
रिपोर्ट में इस साल जनवरी और फरवरी में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में वैश्विक स्तर पर 7,000 उपभोक्ताओं का सर्वेक्षण किया गया।
रिपोर्ट में डीपफेक के संभावित उपयोग जो चिंताजनक हैं, उनमें साइबर बुलिंग (55 प्रतिशत), नकली अश्लील सामग्री बनाना (52 प्रतिशत), स्कैम (49 प्रतिशत), और ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करना (27 प्रतिशत) शामिल है।
लगभग 64 प्रतिशत ने कहा कि एआई ने उनके लिए ऑनलाइन स्कैम को पहचानना कठिन बना दिया है।
लगभग 57 प्रतिशत ने किसी सेलिब्रिटी का वीडियो, इमेज या रिकॉर्डिंग देखी और सोचा कि यह वास्तविक है। वहीं, 31 प्रतिशत ने स्कैम में पैसा खो दिया।
मुखर्जी ने कहा, “यह जरूरी है कि उपभोक्ता सतर्क रहें और सही कदम उठाएं, साथ ही गलत सूचना और डीपफेक घोटालों से खुद को सुरक्षित रखें।”
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नई दिल्ली, 25 अप्रैल (आईएएनएस)। गुरुवार को सामने आई एक नई रिपोर्ट के अनुसार लगभग चार में से एक भारतीय (22 प्रतिशत) का मानना है कि उन्होंने हाल ही में पॉलिटिकल डीपफेक सामग्री देखी है।
साइबर सुरक्षा कंपनी मैकेफी के अनुसार, लगभग 75 प्रतिशत भारतीय ने डीपफेक सामग्री का सामना किया है। अधिकांश (44 प्रतिशत) लोगों का कहना है कि इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया गया। ये चिंता का विषय है। वहीं मीडिया में जनता के विश्वास को कम (37 प्रतिशत) करने और चुनावों को प्रभावित (31 प्रतिशत) करने को लेकर भी लोग परेशान हैं।
मैकेफी के वरिष्ठ इंजीनियरिंग निदेशक प्रतीम मुखर्जी ने कहा, ”हाल ही में भारत में सार्वजनिक और निजी हस्तियों से जुड़े डीपफेक कंटेंट के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। एआई जिस आसानी से आवाजों और दृश्यों में हेरफेर कर सकता है, वह विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष के दौरान सामग्री की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर सवाल उठाता है।”
रिपोर्ट में इस साल जनवरी और फरवरी में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में वैश्विक स्तर पर 7,000 उपभोक्ताओं का सर्वेक्षण किया गया।
रिपोर्ट में डीपफेक के संभावित उपयोग जो चिंताजनक हैं, उनमें साइबर बुलिंग (55 प्रतिशत), नकली अश्लील सामग्री बनाना (52 प्रतिशत), स्कैम (49 प्रतिशत), और ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करना (27 प्रतिशत) शामिल है।
लगभग 64 प्रतिशत ने कहा कि एआई ने उनके लिए ऑनलाइन स्कैम को पहचानना कठिन बना दिया है।
लगभग 57 प्रतिशत ने किसी सेलिब्रिटी का वीडियो, इमेज या रिकॉर्डिंग देखी और सोचा कि यह वास्तविक है। वहीं, 31 प्रतिशत ने स्कैम में पैसा खो दिया।
मुखर्जी ने कहा, “यह जरूरी है कि उपभोक्ता सतर्क रहें और सही कदम उठाएं, साथ ही गलत सूचना और डीपफेक घोटालों से खुद को सुरक्षित रखें।”
–आईएएनएस
एमकेएस/एसकेपी
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नई दिल्ली, 25 अप्रैल (आईएएनएस)। गुरुवार को सामने आई एक नई रिपोर्ट के अनुसार लगभग चार में से एक भारतीय (22 प्रतिशत) का मानना है कि उन्होंने हाल ही में पॉलिटिकल डीपफेक सामग्री देखी है।
साइबर सुरक्षा कंपनी मैकेफी के अनुसार, लगभग 75 प्रतिशत भारतीय ने डीपफेक सामग्री का सामना किया है। अधिकांश (44 प्रतिशत) लोगों का कहना है कि इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया गया। ये चिंता का विषय है। वहीं मीडिया में जनता के विश्वास को कम (37 प्रतिशत) करने और चुनावों को प्रभावित (31 प्रतिशत) करने को लेकर भी लोग परेशान हैं।
मैकेफी के वरिष्ठ इंजीनियरिंग निदेशक प्रतीम मुखर्जी ने कहा, ”हाल ही में भारत में सार्वजनिक और निजी हस्तियों से जुड़े डीपफेक कंटेंट के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। एआई जिस आसानी से आवाजों और दृश्यों में हेरफेर कर सकता है, वह विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष के दौरान सामग्री की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर सवाल उठाता है।”
रिपोर्ट में इस साल जनवरी और फरवरी में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में वैश्विक स्तर पर 7,000 उपभोक्ताओं का सर्वेक्षण किया गया।
रिपोर्ट में डीपफेक के संभावित उपयोग जो चिंताजनक हैं, उनमें साइबर बुलिंग (55 प्रतिशत), नकली अश्लील सामग्री बनाना (52 प्रतिशत), स्कैम (49 प्रतिशत), और ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करना (27 प्रतिशत) शामिल है।
लगभग 64 प्रतिशत ने कहा कि एआई ने उनके लिए ऑनलाइन स्कैम को पहचानना कठिन बना दिया है।
लगभग 57 प्रतिशत ने किसी सेलिब्रिटी का वीडियो, इमेज या रिकॉर्डिंग देखी और सोचा कि यह वास्तविक है। वहीं, 31 प्रतिशत ने स्कैम में पैसा खो दिया।
मुखर्जी ने कहा, “यह जरूरी है कि उपभोक्ता सतर्क रहें और सही कदम उठाएं, साथ ही गलत सूचना और डीपफेक घोटालों से खुद को सुरक्षित रखें।”
–आईएएनएस
एमकेएस/एसकेपी
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नई दिल्ली, 25 अप्रैल (आईएएनएस)। गुरुवार को सामने आई एक नई रिपोर्ट के अनुसार लगभग चार में से एक भारतीय (22 प्रतिशत) का मानना है कि उन्होंने हाल ही में पॉलिटिकल डीपफेक सामग्री देखी है।
साइबर सुरक्षा कंपनी मैकेफी के अनुसार, लगभग 75 प्रतिशत भारतीय ने डीपफेक सामग्री का सामना किया है। अधिकांश (44 प्रतिशत) लोगों का कहना है कि इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया गया। ये चिंता का विषय है। वहीं मीडिया में जनता के विश्वास को कम (37 प्रतिशत) करने और चुनावों को प्रभावित (31 प्रतिशत) करने को लेकर भी लोग परेशान हैं।
मैकेफी के वरिष्ठ इंजीनियरिंग निदेशक प्रतीम मुखर्जी ने कहा, ”हाल ही में भारत में सार्वजनिक और निजी हस्तियों से जुड़े डीपफेक कंटेंट के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। एआई जिस आसानी से आवाजों और दृश्यों में हेरफेर कर सकता है, वह विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष के दौरान सामग्री की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर सवाल उठाता है।”
रिपोर्ट में इस साल जनवरी और फरवरी में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में वैश्विक स्तर पर 7,000 उपभोक्ताओं का सर्वेक्षण किया गया।
रिपोर्ट में डीपफेक के संभावित उपयोग जो चिंताजनक हैं, उनमें साइबर बुलिंग (55 प्रतिशत), नकली अश्लील सामग्री बनाना (52 प्रतिशत), स्कैम (49 प्रतिशत), और ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करना (27 प्रतिशत) शामिल है।
लगभग 64 प्रतिशत ने कहा कि एआई ने उनके लिए ऑनलाइन स्कैम को पहचानना कठिन बना दिया है।
लगभग 57 प्रतिशत ने किसी सेलिब्रिटी का वीडियो, इमेज या रिकॉर्डिंग देखी और सोचा कि यह वास्तविक है। वहीं, 31 प्रतिशत ने स्कैम में पैसा खो दिया।
मुखर्जी ने कहा, “यह जरूरी है कि उपभोक्ता सतर्क रहें और सही कदम उठाएं, साथ ही गलत सूचना और डीपफेक घोटालों से खुद को सुरक्षित रखें।”