नई दिल्ली, 5 अप्रैल (आईएएनएस)। कांग्रेस ने बुधवार को सरकार से मांग की है कि चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव को लेकर केंद्र सभी विपक्षी दलों की बैठक बुलाकर दोनों देशों के बीच पिछले 35 महीनों के घटनाक्रमों के बारे में जानकारी दे।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने बुधवार को प्रेसवार्ता कर केंद्र पर सवाल उठाते हुए कहा कि पिछले 35 महीनों में कोई जवाब नहीं आया कि आखिर इतने व्यापक, इतनी जगह पर नियंत्रण रेखा पर यह घुसपैठ क्यों हुई। उन्होंने कहा कि बेहतर होता कि चीन के मामले में संसद के भीतर चर्चा होती।
उन्होंने कहा कि एलएसी पर शांति बनाए रखने और स्थिति को संभालने को लेकर दोनों देशों के बीच तय व्यवस्था पहले से थी, लेकिन फिर भी यह स्थिति पैदा हुई।
उन्होंने कहा कि ये बात और गंभीर इसलिए हो जाती है, क्योंकि हाल ही में चर्चा है कि चीन और भूटान के बीच जो सरहद को लेकर वार्तालाप है, वो एक बहुत एडवांस्ड स्टेज पर है। भूटान के जो राजा हैं, वो हाल ही में भारत आए हुए थे। उन्होंने अपनी तरफ से आश्वासन तो दिया है, पर ये चिंता सभी को है कि डोकलाम घाटी को लेकर ऐसा कोई समझौता ना हो जाए, जिससे भारत की जो सामरिक सुरक्षा है, उसके ऊपर सीधा-सीधा असर पड़े।
उन्होंने दावा किया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2013 से लेकर अब तक 19 बार शी जिनपिंग से मिले और 5 बार चीन गए हैं। इसके बावजूद 2014 में चुमार, 2017 में डोकलाम, 2020 में गलवान की घटना और 2022 में तवांग में झड़प हुई।
कांग्रेस सांसद ने कहा, भारत-चीन रिश्तों का एक नया मील पत्थर बन गई है। एक तरफ तो ये घुसपैठ है और दूसरी तरफ पिछले कुछ वर्षो में चीन के साथ व्यापार तेजी से बढ़ा है। पिछले साल चीन के साथ 136 अरब डॉलर का व्यापार हुआ, जिनमें से भारत ने 119 अरब डॉलर का आयात किया। इस व्यापार असंतुलन से चीन को फायदा मिल रहा है जो आज 100 अरब यूएस डॉलर से ज्यादा है।
उन्होंने कहा, संसद नहीं चल रही है। बेहतर यह होता कि संसद में इस विषय पर चर्चा होती। हम यह मांग करना चाहते हैं कि सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए। पूरे विपक्ष के शीर्ष नेताओं को भरोसे में लेकर सरकार को यह बताना चाहिए कि तीन वर्षो का पूरा घटनाक्रम क्या है। सैन्य वार्ता के बारे में भी जानकारी देनी चाहिए।
तिवारी ने कहा, हमारा मानना है कि भारत की संसद के लिए, भारत की रक्षा और सुरक्षा से सर्वोच्च और कोई मुद्दा नहीं हो सकता और भारत की रक्षा और सुरक्षा के ऊपर अगर भारत की संसद में बहस नहीं होगी या भारत की संसद में चर्चा नहीं होगी तो और कहां पर चर्चा होगी? भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के ऊपर चुनौती आई तो उस समय की जो सरकारें थीं, उस समय की सरकारों ने कोई उससे बचने की कोशिश नहीं की, उन्होंने साफ तौर पर जो परिस्थितियां थीं, वो संसद के समक्ष रखीं और संसद ने एक स्वर में चाहे सत्ता पक्ष के सांसद हों, चाहे विपक्ष के सांसद हों, सभी ने एक स्वर में कहा कि भारत की जो एकता और अखंडता है, भारत की संप्रभुता है, उसके साथ कभी हम कोई समझौता न करेंगे और न होने देंगे।
–आईएएनएस
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