नई दिल्ली, 15 फरवरी (आईएएनएस)। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. ने चंद्रचूड़ ने गुरुवार को कहा कि किसी राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने से बदले में उपकार करने की संभावना बन सकती है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को गुमनाम चंदे वाली चुनावी बांड योजना संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत प्रदत्त मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है।
चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “इस बात की भी वैध संभावना है कि किसी राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने से धन और राजनीति के बीच बंद संबंध के कारण प्रति-उपकार की व्यवस्था हो जाएगी। यह नीति में बदलाव लाने या सत्ता में राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने वाले व्यक्ति को लाइसेंस देने के रूप में हो सकती है।”
यह कहते हुए कि राजनीतिक चंदा योगदानकर्ता को मेज पर एक जगह देता है, यानी यह विधायकों तक पहुंच बढ़ाता है और यह पहुंच नीति निर्माण पर प्रभाव में भी तब्दील हो जाती है, सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग की जानकारी मतदान का विकल्प के प्रभावी अभ्यास के लिए आवश्यक है।
“राजनीतिक असमानता में योगदान देने वाले कारकों में से एक, आर्थिक असमानता के कारण व्यक्तियों की राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित करने की क्षमता में अंतर है। उन्होंने कहा, ”आर्थिक असमानता के कारण धन और राजनीति के बीच गहरे संबंध के कारण राजनीतिक जुड़ाव के स्तर में गिरावट आती है।”
नवंबर 2023 में सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने लगातार तीन दिनों तक दलीलें सुनने के बाद चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, बी.आर. गवई, जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा शामिल थे।
शीर्ष अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि चुनावी बांड योजना अनुच्छेद 19 (1) के तहत नागरिकों के सूचना के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है और यह पिछले दरवाजे से लॉबिंग को संभव बनाती है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है तथा विपक्ष में राजनीतिक दलों के लिए समान अवसर को समाप्त करती है।
–आईएएनएस
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