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Home राष्ट्रीय

चौटाला परिवार को बड़ा झटका, दुष्यंत का सूरज अस्त, अर्जुन चौटाला हरियाणा में जाट राजनीति की नई उम्मीद

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October 8, 2024
in राष्ट्रीय
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चौटाला परिवार को बड़ा झटका, दुष्यंत का सूरज अस्त, अर्जुन चौटाला हरियाणा में जाट राजनीति की नई उम्मीद
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नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। हरियाणा से आए चुनाव परिणाम ने साफ साबित कर दिया कि चौटाला परिवार के लिए यह चुनाव बेहद ही खराब रहा। गुटों में बंटना चौटाला परिवार के लिए भारी पड़ गया।

कभी हरियाणा की सत्ता पर चौटाला परिवार का डंका बजता था। लेकिन, अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे बीजेपी के साथ ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती को कहीं का नहीं छोड़ा, वैसे ही हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी की चौधराहट जमीन में धंस गई।

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हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझती रही। परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार गए।

हालांकि, हरियाणा में जाट राजनीति की उम्मीद के तौर पर अर्जुन चौटाला अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 2019 में किंगमेकर रहे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से करारी हार का सामना करना पड़ा और वह छठे स्थान पर रहे। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) तो यहां खाता खोलने में भी नाकामयाब रही। जेजेपी हरियाणा में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 70 सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे और वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

2019 में भाजपा को समर्थन देकर मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाना और किसानों का विरोध जेजेपी को भारी पड़ गया। जेजेपी के नेता किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ खड़े दिखे और इसकी वजह से पार्टी के उम्मीदवारों को किसानों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था।

दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मतलब, भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला जेजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।

अभय चौटाला की इनेलो हो या दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, दोनों के बड़े-बड़े किले ढहते नजर आए और जाटलैंड की राजनीति में जाटों के लिए नई उम्मीद की किरण बनकर केवल इनेलो के अर्जुन चौटाला ही उभरे और वह अपनी रानिया सीट बचा पाए।

इनेलो और जेजेपी को मिलाकर चौटाला परिवार के कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें, दुष्यंत चौटाला, सुनैना चौटाला, अभय चौटाला, आदित्य चौटाला, दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला शामिल थे।

इनमें से केवल अर्जुन चौटाला को ही जीत मिली। ये वहीं परिवार है जिनका दबदबा यहां की राजनीति में प्रदेश के गठन के बाद से ही रहा है। चौधरी देवीलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला तक लंबे समय तक दोनों यहां सत्ता के शिखर पर रहे और अब इस बार के चुनाव में चौटाला परिवार की सियासी जमीन ही धंसती चली गई।

अब ऐसे में इस राजनीतिक परिवार के सारे सियासी सूरमाओं के बीच जो नाम जाट राजनीति के उम्मीद के तौर पर उभरकर सामने आया है, वह अर्जुन चौटाला का है।

–आईएएनएस

जीकेटी/

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नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। हरियाणा से आए चुनाव परिणाम ने साफ साबित कर दिया कि चौटाला परिवार के लिए यह चुनाव बेहद ही खराब रहा। गुटों में बंटना चौटाला परिवार के लिए भारी पड़ गया।

कभी हरियाणा की सत्ता पर चौटाला परिवार का डंका बजता था। लेकिन, अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे बीजेपी के साथ ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती को कहीं का नहीं छोड़ा, वैसे ही हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी की चौधराहट जमीन में धंस गई।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझती रही। परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार गए।

हालांकि, हरियाणा में जाट राजनीति की उम्मीद के तौर पर अर्जुन चौटाला अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 2019 में किंगमेकर रहे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से करारी हार का सामना करना पड़ा और वह छठे स्थान पर रहे। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) तो यहां खाता खोलने में भी नाकामयाब रही। जेजेपी हरियाणा में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 70 सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे और वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

2019 में भाजपा को समर्थन देकर मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाना और किसानों का विरोध जेजेपी को भारी पड़ गया। जेजेपी के नेता किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ खड़े दिखे और इसकी वजह से पार्टी के उम्मीदवारों को किसानों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था।

दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मतलब, भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला जेजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।

अभय चौटाला की इनेलो हो या दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, दोनों के बड़े-बड़े किले ढहते नजर आए और जाटलैंड की राजनीति में जाटों के लिए नई उम्मीद की किरण बनकर केवल इनेलो के अर्जुन चौटाला ही उभरे और वह अपनी रानिया सीट बचा पाए।

इनेलो और जेजेपी को मिलाकर चौटाला परिवार के कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें, दुष्यंत चौटाला, सुनैना चौटाला, अभय चौटाला, आदित्य चौटाला, दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला शामिल थे।

इनमें से केवल अर्जुन चौटाला को ही जीत मिली। ये वहीं परिवार है जिनका दबदबा यहां की राजनीति में प्रदेश के गठन के बाद से ही रहा है। चौधरी देवीलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला तक लंबे समय तक दोनों यहां सत्ता के शिखर पर रहे और अब इस बार के चुनाव में चौटाला परिवार की सियासी जमीन ही धंसती चली गई।

अब ऐसे में इस राजनीतिक परिवार के सारे सियासी सूरमाओं के बीच जो नाम जाट राजनीति के उम्मीद के तौर पर उभरकर सामने आया है, वह अर्जुन चौटाला का है।

–आईएएनएस

जीकेटी/

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कभी हरियाणा की सत्ता पर चौटाला परिवार का डंका बजता था। लेकिन, अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे बीजेपी के साथ ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती को कहीं का नहीं छोड़ा, वैसे ही हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी की चौधराहट जमीन में धंस गई।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझती रही। परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार गए।

हालांकि, हरियाणा में जाट राजनीति की उम्मीद के तौर पर अर्जुन चौटाला अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 2019 में किंगमेकर रहे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से करारी हार का सामना करना पड़ा और वह छठे स्थान पर रहे। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) तो यहां खाता खोलने में भी नाकामयाब रही। जेजेपी हरियाणा में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 70 सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे और वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

2019 में भाजपा को समर्थन देकर मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाना और किसानों का विरोध जेजेपी को भारी पड़ गया। जेजेपी के नेता किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ खड़े दिखे और इसकी वजह से पार्टी के उम्मीदवारों को किसानों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था।

दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मतलब, भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला जेजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।

अभय चौटाला की इनेलो हो या दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, दोनों के बड़े-बड़े किले ढहते नजर आए और जाटलैंड की राजनीति में जाटों के लिए नई उम्मीद की किरण बनकर केवल इनेलो के अर्जुन चौटाला ही उभरे और वह अपनी रानिया सीट बचा पाए।

इनेलो और जेजेपी को मिलाकर चौटाला परिवार के कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें, दुष्यंत चौटाला, सुनैना चौटाला, अभय चौटाला, आदित्य चौटाला, दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला शामिल थे।

इनमें से केवल अर्जुन चौटाला को ही जीत मिली। ये वहीं परिवार है जिनका दबदबा यहां की राजनीति में प्रदेश के गठन के बाद से ही रहा है। चौधरी देवीलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला तक लंबे समय तक दोनों यहां सत्ता के शिखर पर रहे और अब इस बार के चुनाव में चौटाला परिवार की सियासी जमीन ही धंसती चली गई।

अब ऐसे में इस राजनीतिक परिवार के सारे सियासी सूरमाओं के बीच जो नाम जाट राजनीति के उम्मीद के तौर पर उभरकर सामने आया है, वह अर्जुन चौटाला का है।

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कभी हरियाणा की सत्ता पर चौटाला परिवार का डंका बजता था। लेकिन, अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे बीजेपी के साथ ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती को कहीं का नहीं छोड़ा, वैसे ही हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी की चौधराहट जमीन में धंस गई।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझती रही। परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार गए।

हालांकि, हरियाणा में जाट राजनीति की उम्मीद के तौर पर अर्जुन चौटाला अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 2019 में किंगमेकर रहे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से करारी हार का सामना करना पड़ा और वह छठे स्थान पर रहे। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) तो यहां खाता खोलने में भी नाकामयाब रही। जेजेपी हरियाणा में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 70 सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे और वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

2019 में भाजपा को समर्थन देकर मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाना और किसानों का विरोध जेजेपी को भारी पड़ गया। जेजेपी के नेता किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ खड़े दिखे और इसकी वजह से पार्टी के उम्मीदवारों को किसानों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था।

दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मतलब, भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला जेजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।

अभय चौटाला की इनेलो हो या दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, दोनों के बड़े-बड़े किले ढहते नजर आए और जाटलैंड की राजनीति में जाटों के लिए नई उम्मीद की किरण बनकर केवल इनेलो के अर्जुन चौटाला ही उभरे और वह अपनी रानिया सीट बचा पाए।

इनेलो और जेजेपी को मिलाकर चौटाला परिवार के कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें, दुष्यंत चौटाला, सुनैना चौटाला, अभय चौटाला, आदित्य चौटाला, दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला शामिल थे।

इनमें से केवल अर्जुन चौटाला को ही जीत मिली। ये वहीं परिवार है जिनका दबदबा यहां की राजनीति में प्रदेश के गठन के बाद से ही रहा है। चौधरी देवीलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला तक लंबे समय तक दोनों यहां सत्ता के शिखर पर रहे और अब इस बार के चुनाव में चौटाला परिवार की सियासी जमीन ही धंसती चली गई।

अब ऐसे में इस राजनीतिक परिवार के सारे सियासी सूरमाओं के बीच जो नाम जाट राजनीति के उम्मीद के तौर पर उभरकर सामने आया है, वह अर्जुन चौटाला का है।

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कभी हरियाणा की सत्ता पर चौटाला परिवार का डंका बजता था। लेकिन, अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे बीजेपी के साथ ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती को कहीं का नहीं छोड़ा, वैसे ही हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी की चौधराहट जमीन में धंस गई।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझती रही। परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार गए।

हालांकि, हरियाणा में जाट राजनीति की उम्मीद के तौर पर अर्जुन चौटाला अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 2019 में किंगमेकर रहे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से करारी हार का सामना करना पड़ा और वह छठे स्थान पर रहे। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) तो यहां खाता खोलने में भी नाकामयाब रही। जेजेपी हरियाणा में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 70 सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे और वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

2019 में भाजपा को समर्थन देकर मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाना और किसानों का विरोध जेजेपी को भारी पड़ गया। जेजेपी के नेता किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ खड़े दिखे और इसकी वजह से पार्टी के उम्मीदवारों को किसानों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था।

दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मतलब, भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला जेजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।

अभय चौटाला की इनेलो हो या दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, दोनों के बड़े-बड़े किले ढहते नजर आए और जाटलैंड की राजनीति में जाटों के लिए नई उम्मीद की किरण बनकर केवल इनेलो के अर्जुन चौटाला ही उभरे और वह अपनी रानिया सीट बचा पाए।

इनेलो और जेजेपी को मिलाकर चौटाला परिवार के कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें, दुष्यंत चौटाला, सुनैना चौटाला, अभय चौटाला, आदित्य चौटाला, दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला शामिल थे।

इनमें से केवल अर्जुन चौटाला को ही जीत मिली। ये वहीं परिवार है जिनका दबदबा यहां की राजनीति में प्रदेश के गठन के बाद से ही रहा है। चौधरी देवीलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला तक लंबे समय तक दोनों यहां सत्ता के शिखर पर रहे और अब इस बार के चुनाव में चौटाला परिवार की सियासी जमीन ही धंसती चली गई।

अब ऐसे में इस राजनीतिक परिवार के सारे सियासी सूरमाओं के बीच जो नाम जाट राजनीति के उम्मीद के तौर पर उभरकर सामने आया है, वह अर्जुन चौटाला का है।

–आईएएनएस

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कभी हरियाणा की सत्ता पर चौटाला परिवार का डंका बजता था। लेकिन, अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे बीजेपी के साथ ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती को कहीं का नहीं छोड़ा, वैसे ही हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी की चौधराहट जमीन में धंस गई।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझती रही। परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार गए।

हालांकि, हरियाणा में जाट राजनीति की उम्मीद के तौर पर अर्जुन चौटाला अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 2019 में किंगमेकर रहे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से करारी हार का सामना करना पड़ा और वह छठे स्थान पर रहे। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) तो यहां खाता खोलने में भी नाकामयाब रही। जेजेपी हरियाणा में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 70 सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे और वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

2019 में भाजपा को समर्थन देकर मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाना और किसानों का विरोध जेजेपी को भारी पड़ गया। जेजेपी के नेता किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ खड़े दिखे और इसकी वजह से पार्टी के उम्मीदवारों को किसानों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था।

दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मतलब, भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला जेजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।

अभय चौटाला की इनेलो हो या दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, दोनों के बड़े-बड़े किले ढहते नजर आए और जाटलैंड की राजनीति में जाटों के लिए नई उम्मीद की किरण बनकर केवल इनेलो के अर्जुन चौटाला ही उभरे और वह अपनी रानिया सीट बचा पाए।

इनेलो और जेजेपी को मिलाकर चौटाला परिवार के कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें, दुष्यंत चौटाला, सुनैना चौटाला, अभय चौटाला, आदित्य चौटाला, दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला शामिल थे।

इनमें से केवल अर्जुन चौटाला को ही जीत मिली। ये वहीं परिवार है जिनका दबदबा यहां की राजनीति में प्रदेश के गठन के बाद से ही रहा है। चौधरी देवीलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला तक लंबे समय तक दोनों यहां सत्ता के शिखर पर रहे और अब इस बार के चुनाव में चौटाला परिवार की सियासी जमीन ही धंसती चली गई।

अब ऐसे में इस राजनीतिक परिवार के सारे सियासी सूरमाओं के बीच जो नाम जाट राजनीति के उम्मीद के तौर पर उभरकर सामने आया है, वह अर्जुन चौटाला का है।

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कभी हरियाणा की सत्ता पर चौटाला परिवार का डंका बजता था। लेकिन, अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे बीजेपी के साथ ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती को कहीं का नहीं छोड़ा, वैसे ही हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी की चौधराहट जमीन में धंस गई।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझती रही। परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार गए।

हालांकि, हरियाणा में जाट राजनीति की उम्मीद के तौर पर अर्जुन चौटाला अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 2019 में किंगमेकर रहे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से करारी हार का सामना करना पड़ा और वह छठे स्थान पर रहे। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) तो यहां खाता खोलने में भी नाकामयाब रही। जेजेपी हरियाणा में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 70 सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे और वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

2019 में भाजपा को समर्थन देकर मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाना और किसानों का विरोध जेजेपी को भारी पड़ गया। जेजेपी के नेता किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ खड़े दिखे और इसकी वजह से पार्टी के उम्मीदवारों को किसानों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था।

दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मतलब, भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला जेजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।

अभय चौटाला की इनेलो हो या दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, दोनों के बड़े-बड़े किले ढहते नजर आए और जाटलैंड की राजनीति में जाटों के लिए नई उम्मीद की किरण बनकर केवल इनेलो के अर्जुन चौटाला ही उभरे और वह अपनी रानिया सीट बचा पाए।

इनेलो और जेजेपी को मिलाकर चौटाला परिवार के कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें, दुष्यंत चौटाला, सुनैना चौटाला, अभय चौटाला, आदित्य चौटाला, दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला शामिल थे।

इनमें से केवल अर्जुन चौटाला को ही जीत मिली। ये वहीं परिवार है जिनका दबदबा यहां की राजनीति में प्रदेश के गठन के बाद से ही रहा है। चौधरी देवीलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला तक लंबे समय तक दोनों यहां सत्ता के शिखर पर रहे और अब इस बार के चुनाव में चौटाला परिवार की सियासी जमीन ही धंसती चली गई।

अब ऐसे में इस राजनीतिक परिवार के सारे सियासी सूरमाओं के बीच जो नाम जाट राजनीति के उम्मीद के तौर पर उभरकर सामने आया है, वह अर्जुन चौटाला का है।

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कभी हरियाणा की सत्ता पर चौटाला परिवार का डंका बजता था। लेकिन, अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे बीजेपी के साथ ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती को कहीं का नहीं छोड़ा, वैसे ही हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी की चौधराहट जमीन में धंस गई।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझती रही। परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार गए।

हालांकि, हरियाणा में जाट राजनीति की उम्मीद के तौर पर अर्जुन चौटाला अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 2019 में किंगमेकर रहे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से करारी हार का सामना करना पड़ा और वह छठे स्थान पर रहे। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) तो यहां खाता खोलने में भी नाकामयाब रही। जेजेपी हरियाणा में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 70 सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे और वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

2019 में भाजपा को समर्थन देकर मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाना और किसानों का विरोध जेजेपी को भारी पड़ गया। जेजेपी के नेता किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ खड़े दिखे और इसकी वजह से पार्टी के उम्मीदवारों को किसानों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था।

दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मतलब, भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला जेजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।

अभय चौटाला की इनेलो हो या दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, दोनों के बड़े-बड़े किले ढहते नजर आए और जाटलैंड की राजनीति में जाटों के लिए नई उम्मीद की किरण बनकर केवल इनेलो के अर्जुन चौटाला ही उभरे और वह अपनी रानिया सीट बचा पाए।

इनेलो और जेजेपी को मिलाकर चौटाला परिवार के कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें, दुष्यंत चौटाला, सुनैना चौटाला, अभय चौटाला, आदित्य चौटाला, दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला शामिल थे।

इनमें से केवल अर्जुन चौटाला को ही जीत मिली। ये वहीं परिवार है जिनका दबदबा यहां की राजनीति में प्रदेश के गठन के बाद से ही रहा है। चौधरी देवीलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला तक लंबे समय तक दोनों यहां सत्ता के शिखर पर रहे और अब इस बार के चुनाव में चौटाला परिवार की सियासी जमीन ही धंसती चली गई।

अब ऐसे में इस राजनीतिक परिवार के सारे सियासी सूरमाओं के बीच जो नाम जाट राजनीति के उम्मीद के तौर पर उभरकर सामने आया है, वह अर्जुन चौटाला का है।

–आईएएनएस

जीकेटी/

नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। हरियाणा से आए चुनाव परिणाम ने साफ साबित कर दिया कि चौटाला परिवार के लिए यह चुनाव बेहद ही खराब रहा। गुटों में बंटना चौटाला परिवार के लिए भारी पड़ गया।

कभी हरियाणा की सत्ता पर चौटाला परिवार का डंका बजता था। लेकिन, अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे बीजेपी के साथ ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती को कहीं का नहीं छोड़ा, वैसे ही हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी की चौधराहट जमीन में धंस गई।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझती रही। परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार गए।

हालांकि, हरियाणा में जाट राजनीति की उम्मीद के तौर पर अर्जुन चौटाला अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 2019 में किंगमेकर रहे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से करारी हार का सामना करना पड़ा और वह छठे स्थान पर रहे। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) तो यहां खाता खोलने में भी नाकामयाब रही। जेजेपी हरियाणा में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 70 सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे और वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

2019 में भाजपा को समर्थन देकर मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाना और किसानों का विरोध जेजेपी को भारी पड़ गया। जेजेपी के नेता किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ खड़े दिखे और इसकी वजह से पार्टी के उम्मीदवारों को किसानों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था।

दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मतलब, भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला जेजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।

अभय चौटाला की इनेलो हो या दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, दोनों के बड़े-बड़े किले ढहते नजर आए और जाटलैंड की राजनीति में जाटों के लिए नई उम्मीद की किरण बनकर केवल इनेलो के अर्जुन चौटाला ही उभरे और वह अपनी रानिया सीट बचा पाए।

इनेलो और जेजेपी को मिलाकर चौटाला परिवार के कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें, दुष्यंत चौटाला, सुनैना चौटाला, अभय चौटाला, आदित्य चौटाला, दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला शामिल थे।

इनमें से केवल अर्जुन चौटाला को ही जीत मिली। ये वहीं परिवार है जिनका दबदबा यहां की राजनीति में प्रदेश के गठन के बाद से ही रहा है। चौधरी देवीलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला तक लंबे समय तक दोनों यहां सत्ता के शिखर पर रहे और अब इस बार के चुनाव में चौटाला परिवार की सियासी जमीन ही धंसती चली गई।

अब ऐसे में इस राजनीतिक परिवार के सारे सियासी सूरमाओं के बीच जो नाम जाट राजनीति के उम्मीद के तौर पर उभरकर सामने आया है, वह अर्जुन चौटाला का है।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। हरियाणा से आए चुनाव परिणाम ने साफ साबित कर दिया कि चौटाला परिवार के लिए यह चुनाव बेहद ही खराब रहा। गुटों में बंटना चौटाला परिवार के लिए भारी पड़ गया।

कभी हरियाणा की सत्ता पर चौटाला परिवार का डंका बजता था। लेकिन, अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे बीजेपी के साथ ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती को कहीं का नहीं छोड़ा, वैसे ही हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी की चौधराहट जमीन में धंस गई।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझती रही। परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार गए।

हालांकि, हरियाणा में जाट राजनीति की उम्मीद के तौर पर अर्जुन चौटाला अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 2019 में किंगमेकर रहे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से करारी हार का सामना करना पड़ा और वह छठे स्थान पर रहे। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) तो यहां खाता खोलने में भी नाकामयाब रही। जेजेपी हरियाणा में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 70 सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे और वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

2019 में भाजपा को समर्थन देकर मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाना और किसानों का विरोध जेजेपी को भारी पड़ गया। जेजेपी के नेता किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ खड़े दिखे और इसकी वजह से पार्टी के उम्मीदवारों को किसानों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था।

दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मतलब, भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला जेजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।

अभय चौटाला की इनेलो हो या दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, दोनों के बड़े-बड़े किले ढहते नजर आए और जाटलैंड की राजनीति में जाटों के लिए नई उम्मीद की किरण बनकर केवल इनेलो के अर्जुन चौटाला ही उभरे और वह अपनी रानिया सीट बचा पाए।

इनेलो और जेजेपी को मिलाकर चौटाला परिवार के कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें, दुष्यंत चौटाला, सुनैना चौटाला, अभय चौटाला, आदित्य चौटाला, दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला शामिल थे।

इनमें से केवल अर्जुन चौटाला को ही जीत मिली। ये वहीं परिवार है जिनका दबदबा यहां की राजनीति में प्रदेश के गठन के बाद से ही रहा है। चौधरी देवीलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला तक लंबे समय तक दोनों यहां सत्ता के शिखर पर रहे और अब इस बार के चुनाव में चौटाला परिवार की सियासी जमीन ही धंसती चली गई।

अब ऐसे में इस राजनीतिक परिवार के सारे सियासी सूरमाओं के बीच जो नाम जाट राजनीति के उम्मीद के तौर पर उभरकर सामने आया है, वह अर्जुन चौटाला का है।

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कभी हरियाणा की सत्ता पर चौटाला परिवार का डंका बजता था। लेकिन, अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे बीजेपी के साथ ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती को कहीं का नहीं छोड़ा, वैसे ही हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी की चौधराहट जमीन में धंस गई।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझती रही। परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार गए।

हालांकि, हरियाणा में जाट राजनीति की उम्मीद के तौर पर अर्जुन चौटाला अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 2019 में किंगमेकर रहे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से करारी हार का सामना करना पड़ा और वह छठे स्थान पर रहे। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) तो यहां खाता खोलने में भी नाकामयाब रही। जेजेपी हरियाणा में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 70 सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे और वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

2019 में भाजपा को समर्थन देकर मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाना और किसानों का विरोध जेजेपी को भारी पड़ गया। जेजेपी के नेता किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ खड़े दिखे और इसकी वजह से पार्टी के उम्मीदवारों को किसानों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था।

दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मतलब, भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला जेजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।

अभय चौटाला की इनेलो हो या दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, दोनों के बड़े-बड़े किले ढहते नजर आए और जाटलैंड की राजनीति में जाटों के लिए नई उम्मीद की किरण बनकर केवल इनेलो के अर्जुन चौटाला ही उभरे और वह अपनी रानिया सीट बचा पाए।

इनेलो और जेजेपी को मिलाकर चौटाला परिवार के कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें, दुष्यंत चौटाला, सुनैना चौटाला, अभय चौटाला, आदित्य चौटाला, दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला शामिल थे।

इनमें से केवल अर्जुन चौटाला को ही जीत मिली। ये वहीं परिवार है जिनका दबदबा यहां की राजनीति में प्रदेश के गठन के बाद से ही रहा है। चौधरी देवीलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला तक लंबे समय तक दोनों यहां सत्ता के शिखर पर रहे और अब इस बार के चुनाव में चौटाला परिवार की सियासी जमीन ही धंसती चली गई।

अब ऐसे में इस राजनीतिक परिवार के सारे सियासी सूरमाओं के बीच जो नाम जाट राजनीति के उम्मीद के तौर पर उभरकर सामने आया है, वह अर्जुन चौटाला का है।

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कभी हरियाणा की सत्ता पर चौटाला परिवार का डंका बजता था। लेकिन, अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे बीजेपी के साथ ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती को कहीं का नहीं छोड़ा, वैसे ही हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी की चौधराहट जमीन में धंस गई।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझती रही। परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार गए।

हालांकि, हरियाणा में जाट राजनीति की उम्मीद के तौर पर अर्जुन चौटाला अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 2019 में किंगमेकर रहे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से करारी हार का सामना करना पड़ा और वह छठे स्थान पर रहे। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) तो यहां खाता खोलने में भी नाकामयाब रही। जेजेपी हरियाणा में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 70 सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे और वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

2019 में भाजपा को समर्थन देकर मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाना और किसानों का विरोध जेजेपी को भारी पड़ गया। जेजेपी के नेता किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ खड़े दिखे और इसकी वजह से पार्टी के उम्मीदवारों को किसानों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था।

दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मतलब, भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला जेजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।

अभय चौटाला की इनेलो हो या दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, दोनों के बड़े-बड़े किले ढहते नजर आए और जाटलैंड की राजनीति में जाटों के लिए नई उम्मीद की किरण बनकर केवल इनेलो के अर्जुन चौटाला ही उभरे और वह अपनी रानिया सीट बचा पाए।

इनेलो और जेजेपी को मिलाकर चौटाला परिवार के कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें, दुष्यंत चौटाला, सुनैना चौटाला, अभय चौटाला, आदित्य चौटाला, दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला शामिल थे।

इनमें से केवल अर्जुन चौटाला को ही जीत मिली। ये वहीं परिवार है जिनका दबदबा यहां की राजनीति में प्रदेश के गठन के बाद से ही रहा है। चौधरी देवीलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला तक लंबे समय तक दोनों यहां सत्ता के शिखर पर रहे और अब इस बार के चुनाव में चौटाला परिवार की सियासी जमीन ही धंसती चली गई।

अब ऐसे में इस राजनीतिक परिवार के सारे सियासी सूरमाओं के बीच जो नाम जाट राजनीति के उम्मीद के तौर पर उभरकर सामने आया है, वह अर्जुन चौटाला का है।

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कभी हरियाणा की सत्ता पर चौटाला परिवार का डंका बजता था। लेकिन, अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे बीजेपी के साथ ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती को कहीं का नहीं छोड़ा, वैसे ही हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी की चौधराहट जमीन में धंस गई।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझती रही। परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार गए।

हालांकि, हरियाणा में जाट राजनीति की उम्मीद के तौर पर अर्जुन चौटाला अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 2019 में किंगमेकर रहे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से करारी हार का सामना करना पड़ा और वह छठे स्थान पर रहे। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) तो यहां खाता खोलने में भी नाकामयाब रही। जेजेपी हरियाणा में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 70 सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे और वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

2019 में भाजपा को समर्थन देकर मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाना और किसानों का विरोध जेजेपी को भारी पड़ गया। जेजेपी के नेता किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ खड़े दिखे और इसकी वजह से पार्टी के उम्मीदवारों को किसानों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था।

दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मतलब, भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला जेजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।

अभय चौटाला की इनेलो हो या दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, दोनों के बड़े-बड़े किले ढहते नजर आए और जाटलैंड की राजनीति में जाटों के लिए नई उम्मीद की किरण बनकर केवल इनेलो के अर्जुन चौटाला ही उभरे और वह अपनी रानिया सीट बचा पाए।

इनेलो और जेजेपी को मिलाकर चौटाला परिवार के कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें, दुष्यंत चौटाला, सुनैना चौटाला, अभय चौटाला, आदित्य चौटाला, दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला शामिल थे।

इनमें से केवल अर्जुन चौटाला को ही जीत मिली। ये वहीं परिवार है जिनका दबदबा यहां की राजनीति में प्रदेश के गठन के बाद से ही रहा है। चौधरी देवीलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला तक लंबे समय तक दोनों यहां सत्ता के शिखर पर रहे और अब इस बार के चुनाव में चौटाला परिवार की सियासी जमीन ही धंसती चली गई।

अब ऐसे में इस राजनीतिक परिवार के सारे सियासी सूरमाओं के बीच जो नाम जाट राजनीति के उम्मीद के तौर पर उभरकर सामने आया है, वह अर्जुन चौटाला का है।

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कभी हरियाणा की सत्ता पर चौटाला परिवार का डंका बजता था। लेकिन, अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे बीजेपी के साथ ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती को कहीं का नहीं छोड़ा, वैसे ही हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी की चौधराहट जमीन में धंस गई।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझती रही। परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार गए।

हालांकि, हरियाणा में जाट राजनीति की उम्मीद के तौर पर अर्जुन चौटाला अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 2019 में किंगमेकर रहे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से करारी हार का सामना करना पड़ा और वह छठे स्थान पर रहे। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) तो यहां खाता खोलने में भी नाकामयाब रही। जेजेपी हरियाणा में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 70 सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे और वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

2019 में भाजपा को समर्थन देकर मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाना और किसानों का विरोध जेजेपी को भारी पड़ गया। जेजेपी के नेता किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ खड़े दिखे और इसकी वजह से पार्टी के उम्मीदवारों को किसानों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था।

दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मतलब, भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला जेजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।

अभय चौटाला की इनेलो हो या दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, दोनों के बड़े-बड़े किले ढहते नजर आए और जाटलैंड की राजनीति में जाटों के लिए नई उम्मीद की किरण बनकर केवल इनेलो के अर्जुन चौटाला ही उभरे और वह अपनी रानिया सीट बचा पाए।

इनेलो और जेजेपी को मिलाकर चौटाला परिवार के कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें, दुष्यंत चौटाला, सुनैना चौटाला, अभय चौटाला, आदित्य चौटाला, दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला शामिल थे।

इनमें से केवल अर्जुन चौटाला को ही जीत मिली। ये वहीं परिवार है जिनका दबदबा यहां की राजनीति में प्रदेश के गठन के बाद से ही रहा है। चौधरी देवीलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला तक लंबे समय तक दोनों यहां सत्ता के शिखर पर रहे और अब इस बार के चुनाव में चौटाला परिवार की सियासी जमीन ही धंसती चली गई।

अब ऐसे में इस राजनीतिक परिवार के सारे सियासी सूरमाओं के बीच जो नाम जाट राजनीति के उम्मीद के तौर पर उभरकर सामने आया है, वह अर्जुन चौटाला का है।

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कभी हरियाणा की सत्ता पर चौटाला परिवार का डंका बजता था। लेकिन, अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे बीजेपी के साथ ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती को कहीं का नहीं छोड़ा, वैसे ही हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी की चौधराहट जमीन में धंस गई।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझती रही। परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार गए।

हालांकि, हरियाणा में जाट राजनीति की उम्मीद के तौर पर अर्जुन चौटाला अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 2019 में किंगमेकर रहे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से करारी हार का सामना करना पड़ा और वह छठे स्थान पर रहे। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) तो यहां खाता खोलने में भी नाकामयाब रही। जेजेपी हरियाणा में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 70 सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे और वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

2019 में भाजपा को समर्थन देकर मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाना और किसानों का विरोध जेजेपी को भारी पड़ गया। जेजेपी के नेता किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ खड़े दिखे और इसकी वजह से पार्टी के उम्मीदवारों को किसानों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था।

दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मतलब, भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला जेजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।

अभय चौटाला की इनेलो हो या दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, दोनों के बड़े-बड़े किले ढहते नजर आए और जाटलैंड की राजनीति में जाटों के लिए नई उम्मीद की किरण बनकर केवल इनेलो के अर्जुन चौटाला ही उभरे और वह अपनी रानिया सीट बचा पाए।

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हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार से जुड़ी इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी खाता खोलने को लेकर जूझती रही। परिवार के दो दिग्गज दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला अपनी-अपनी सीट से बुरी तरह हार गए।

हालांकि, हरियाणा में जाट राजनीति की उम्मीद के तौर पर अर्जुन चौटाला अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। 2019 में किंगमेकर रहे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से करारी हार का सामना करना पड़ा और वह छठे स्थान पर रहे। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) तो यहां खाता खोलने में भी नाकामयाब रही। जेजेपी हरियाणा में सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 70 सीटों पर जेजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे और वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

2019 में भाजपा को समर्थन देकर मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाना और किसानों का विरोध जेजेपी को भारी पड़ गया। जेजेपी के नेता किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के साथ खड़े दिखे और इसकी वजह से पार्टी के उम्मीदवारों को किसानों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था।

दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। मतलब, भाजपा से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला जेजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।

अभय चौटाला की इनेलो हो या दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, दोनों के बड़े-बड़े किले ढहते नजर आए और जाटलैंड की राजनीति में जाटों के लिए नई उम्मीद की किरण बनकर केवल इनेलो के अर्जुन चौटाला ही उभरे और वह अपनी रानिया सीट बचा पाए।

इनेलो और जेजेपी को मिलाकर चौटाला परिवार के कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें, दुष्यंत चौटाला, सुनैना चौटाला, अभय चौटाला, आदित्य चौटाला, दिग्विजय चौटाला और अर्जुन चौटाला शामिल थे।

इनमें से केवल अर्जुन चौटाला को ही जीत मिली। ये वहीं परिवार है जिनका दबदबा यहां की राजनीति में प्रदेश के गठन के बाद से ही रहा है। चौधरी देवीलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला तक लंबे समय तक दोनों यहां सत्ता के शिखर पर रहे और अब इस बार के चुनाव में चौटाला परिवार की सियासी जमीन ही धंसती चली गई।

अब ऐसे में इस राजनीतिक परिवार के सारे सियासी सूरमाओं के बीच जो नाम जाट राजनीति के उम्मीद के तौर पर उभरकर सामने आया है, वह अर्जुन चौटाला का है।

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