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Home ताज़ा समाचार

छत्तीसगढ़ में बागियों में हरवाने की ताकत, मगर जीत की गुंजाइश कम

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November 19, 2023
in ताज़ा समाचार
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रायपुर, 19 नवंबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के चुनाव में बागी अपना असर दिखा सकते हैं, लेकिन उनकी भूमिका उम्मीदवार को हरवाने यानी कि खेल बिगाड़ने में ज्यादा रहने की संभावना है। वे चुनाव जीतेंगे, इस बात की गुंजाइश कम ही नजर आ रही है।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इन पर दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण में 20 सीटों और शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ।

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इन 90 सीटों में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं। इनमें ज्यादा संख्या कांग्रेस के बागियों की है।

कांग्रेस के बागियों पर गौर करें तो गौरेला पेंड्रा से गुलाब राज, अंतागढ़ से अनूप नाग और मंटू राम पवार, मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल, सामरी से चिंतामणि महाराज, लोरमी से सागर सिंह बैंस, महासमुंद के खल्लारी से बसंता ठाकुर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। यह उम्मीदवार कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं।

वहीं, भाजपा की बात करें तो महासमुंद के खल्लारी से बीजेपी बागी हुए भेखू लाल साहू, मस्तूरी से चांदनी भारद्वाज बगावत कर मैदान में हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की तुलना में कांग्रेस के बागी ज्यादा हैं और यही कारण है कि कई विधानसभा सीटों पर नतीजे के गड़बड़ाने की संभावना नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते। अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है।

तो, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया। इस बार भी ऐसा ही होगा, यह संभावना कहीं ज्यादा है।

हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है। मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है।

–आईएएनएस

एसएनपी/एबीएम

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रायपुर, 19 नवंबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के चुनाव में बागी अपना असर दिखा सकते हैं, लेकिन उनकी भूमिका उम्मीदवार को हरवाने यानी कि खेल बिगाड़ने में ज्यादा रहने की संभावना है। वे चुनाव जीतेंगे, इस बात की गुंजाइश कम ही नजर आ रही है।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इन पर दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण में 20 सीटों और शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ।

इन 90 सीटों में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं। इनमें ज्यादा संख्या कांग्रेस के बागियों की है।

कांग्रेस के बागियों पर गौर करें तो गौरेला पेंड्रा से गुलाब राज, अंतागढ़ से अनूप नाग और मंटू राम पवार, मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल, सामरी से चिंतामणि महाराज, लोरमी से सागर सिंह बैंस, महासमुंद के खल्लारी से बसंता ठाकुर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। यह उम्मीदवार कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं।

वहीं, भाजपा की बात करें तो महासमुंद के खल्लारी से बीजेपी बागी हुए भेखू लाल साहू, मस्तूरी से चांदनी भारद्वाज बगावत कर मैदान में हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की तुलना में कांग्रेस के बागी ज्यादा हैं और यही कारण है कि कई विधानसभा सीटों पर नतीजे के गड़बड़ाने की संभावना नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते। अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है।

तो, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया। इस बार भी ऐसा ही होगा, यह संभावना कहीं ज्यादा है।

हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है। मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है।

–आईएएनएस

एसएनपी/एबीएम

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रायपुर, 19 नवंबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के चुनाव में बागी अपना असर दिखा सकते हैं, लेकिन उनकी भूमिका उम्मीदवार को हरवाने यानी कि खेल बिगाड़ने में ज्यादा रहने की संभावना है। वे चुनाव जीतेंगे, इस बात की गुंजाइश कम ही नजर आ रही है।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इन पर दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण में 20 सीटों और शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ।

इन 90 सीटों में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं। इनमें ज्यादा संख्या कांग्रेस के बागियों की है।

कांग्रेस के बागियों पर गौर करें तो गौरेला पेंड्रा से गुलाब राज, अंतागढ़ से अनूप नाग और मंटू राम पवार, मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल, सामरी से चिंतामणि महाराज, लोरमी से सागर सिंह बैंस, महासमुंद के खल्लारी से बसंता ठाकुर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। यह उम्मीदवार कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं।

वहीं, भाजपा की बात करें तो महासमुंद के खल्लारी से बीजेपी बागी हुए भेखू लाल साहू, मस्तूरी से चांदनी भारद्वाज बगावत कर मैदान में हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की तुलना में कांग्रेस के बागी ज्यादा हैं और यही कारण है कि कई विधानसभा सीटों पर नतीजे के गड़बड़ाने की संभावना नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते। अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है।

तो, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया। इस बार भी ऐसा ही होगा, यह संभावना कहीं ज्यादा है।

हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है। मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है।

–आईएएनएस

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रायपुर, 19 नवंबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के चुनाव में बागी अपना असर दिखा सकते हैं, लेकिन उनकी भूमिका उम्मीदवार को हरवाने यानी कि खेल बिगाड़ने में ज्यादा रहने की संभावना है। वे चुनाव जीतेंगे, इस बात की गुंजाइश कम ही नजर आ रही है।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इन पर दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण में 20 सीटों और शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ।

इन 90 सीटों में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं। इनमें ज्यादा संख्या कांग्रेस के बागियों की है।

कांग्रेस के बागियों पर गौर करें तो गौरेला पेंड्रा से गुलाब राज, अंतागढ़ से अनूप नाग और मंटू राम पवार, मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल, सामरी से चिंतामणि महाराज, लोरमी से सागर सिंह बैंस, महासमुंद के खल्लारी से बसंता ठाकुर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। यह उम्मीदवार कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं।

वहीं, भाजपा की बात करें तो महासमुंद के खल्लारी से बीजेपी बागी हुए भेखू लाल साहू, मस्तूरी से चांदनी भारद्वाज बगावत कर मैदान में हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की तुलना में कांग्रेस के बागी ज्यादा हैं और यही कारण है कि कई विधानसभा सीटों पर नतीजे के गड़बड़ाने की संभावना नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते। अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है।

तो, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया। इस बार भी ऐसा ही होगा, यह संभावना कहीं ज्यादा है।

हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है। मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है।

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रायपुर, 19 नवंबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के चुनाव में बागी अपना असर दिखा सकते हैं, लेकिन उनकी भूमिका उम्मीदवार को हरवाने यानी कि खेल बिगाड़ने में ज्यादा रहने की संभावना है। वे चुनाव जीतेंगे, इस बात की गुंजाइश कम ही नजर आ रही है।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इन पर दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण में 20 सीटों और शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ।

इन 90 सीटों में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं। इनमें ज्यादा संख्या कांग्रेस के बागियों की है।

कांग्रेस के बागियों पर गौर करें तो गौरेला पेंड्रा से गुलाब राज, अंतागढ़ से अनूप नाग और मंटू राम पवार, मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल, सामरी से चिंतामणि महाराज, लोरमी से सागर सिंह बैंस, महासमुंद के खल्लारी से बसंता ठाकुर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। यह उम्मीदवार कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं।

वहीं, भाजपा की बात करें तो महासमुंद के खल्लारी से बीजेपी बागी हुए भेखू लाल साहू, मस्तूरी से चांदनी भारद्वाज बगावत कर मैदान में हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की तुलना में कांग्रेस के बागी ज्यादा हैं और यही कारण है कि कई विधानसभा सीटों पर नतीजे के गड़बड़ाने की संभावना नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते। अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है।

तो, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया। इस बार भी ऐसा ही होगा, यह संभावना कहीं ज्यादा है।

हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है। मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है।

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छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इन पर दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण में 20 सीटों और शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ।

इन 90 सीटों में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं। इनमें ज्यादा संख्या कांग्रेस के बागियों की है।

कांग्रेस के बागियों पर गौर करें तो गौरेला पेंड्रा से गुलाब राज, अंतागढ़ से अनूप नाग और मंटू राम पवार, मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल, सामरी से चिंतामणि महाराज, लोरमी से सागर सिंह बैंस, महासमुंद के खल्लारी से बसंता ठाकुर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। यह उम्मीदवार कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं।

वहीं, भाजपा की बात करें तो महासमुंद के खल्लारी से बीजेपी बागी हुए भेखू लाल साहू, मस्तूरी से चांदनी भारद्वाज बगावत कर मैदान में हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की तुलना में कांग्रेस के बागी ज्यादा हैं और यही कारण है कि कई विधानसभा सीटों पर नतीजे के गड़बड़ाने की संभावना नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते। अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है।

तो, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया। इस बार भी ऐसा ही होगा, यह संभावना कहीं ज्यादा है।

हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है। मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है।

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छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इन पर दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण में 20 सीटों और शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ।

इन 90 सीटों में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं। इनमें ज्यादा संख्या कांग्रेस के बागियों की है।

कांग्रेस के बागियों पर गौर करें तो गौरेला पेंड्रा से गुलाब राज, अंतागढ़ से अनूप नाग और मंटू राम पवार, मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल, सामरी से चिंतामणि महाराज, लोरमी से सागर सिंह बैंस, महासमुंद के खल्लारी से बसंता ठाकुर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। यह उम्मीदवार कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं।

वहीं, भाजपा की बात करें तो महासमुंद के खल्लारी से बीजेपी बागी हुए भेखू लाल साहू, मस्तूरी से चांदनी भारद्वाज बगावत कर मैदान में हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की तुलना में कांग्रेस के बागी ज्यादा हैं और यही कारण है कि कई विधानसभा सीटों पर नतीजे के गड़बड़ाने की संभावना नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते। अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है।

तो, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया। इस बार भी ऐसा ही होगा, यह संभावना कहीं ज्यादा है।

हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है। मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है।

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रायपुर, 19 नवंबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के चुनाव में बागी अपना असर दिखा सकते हैं, लेकिन उनकी भूमिका उम्मीदवार को हरवाने यानी कि खेल बिगाड़ने में ज्यादा रहने की संभावना है। वे चुनाव जीतेंगे, इस बात की गुंजाइश कम ही नजर आ रही है।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इन पर दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण में 20 सीटों और शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ।

इन 90 सीटों में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं। इनमें ज्यादा संख्या कांग्रेस के बागियों की है।

कांग्रेस के बागियों पर गौर करें तो गौरेला पेंड्रा से गुलाब राज, अंतागढ़ से अनूप नाग और मंटू राम पवार, मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल, सामरी से चिंतामणि महाराज, लोरमी से सागर सिंह बैंस, महासमुंद के खल्लारी से बसंता ठाकुर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। यह उम्मीदवार कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं।

वहीं, भाजपा की बात करें तो महासमुंद के खल्लारी से बीजेपी बागी हुए भेखू लाल साहू, मस्तूरी से चांदनी भारद्वाज बगावत कर मैदान में हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की तुलना में कांग्रेस के बागी ज्यादा हैं और यही कारण है कि कई विधानसभा सीटों पर नतीजे के गड़बड़ाने की संभावना नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते। अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है।

तो, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया। इस बार भी ऐसा ही होगा, यह संभावना कहीं ज्यादा है।

हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है। मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है।

–आईएएनएस

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रायपुर, 19 नवंबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के चुनाव में बागी अपना असर दिखा सकते हैं, लेकिन उनकी भूमिका उम्मीदवार को हरवाने यानी कि खेल बिगाड़ने में ज्यादा रहने की संभावना है। वे चुनाव जीतेंगे, इस बात की गुंजाइश कम ही नजर आ रही है।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इन पर दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण में 20 सीटों और शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ।

इन 90 सीटों में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं। इनमें ज्यादा संख्या कांग्रेस के बागियों की है।

कांग्रेस के बागियों पर गौर करें तो गौरेला पेंड्रा से गुलाब राज, अंतागढ़ से अनूप नाग और मंटू राम पवार, मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल, सामरी से चिंतामणि महाराज, लोरमी से सागर सिंह बैंस, महासमुंद के खल्लारी से बसंता ठाकुर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। यह उम्मीदवार कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं।

वहीं, भाजपा की बात करें तो महासमुंद के खल्लारी से बीजेपी बागी हुए भेखू लाल साहू, मस्तूरी से चांदनी भारद्वाज बगावत कर मैदान में हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की तुलना में कांग्रेस के बागी ज्यादा हैं और यही कारण है कि कई विधानसभा सीटों पर नतीजे के गड़बड़ाने की संभावना नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते। अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है।

तो, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया। इस बार भी ऐसा ही होगा, यह संभावना कहीं ज्यादा है।

हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है। मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है।

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रायपुर, 19 नवंबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के चुनाव में बागी अपना असर दिखा सकते हैं, लेकिन उनकी भूमिका उम्मीदवार को हरवाने यानी कि खेल बिगाड़ने में ज्यादा रहने की संभावना है। वे चुनाव जीतेंगे, इस बात की गुंजाइश कम ही नजर आ रही है।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इन पर दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण में 20 सीटों और शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ।

इन 90 सीटों में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं। इनमें ज्यादा संख्या कांग्रेस के बागियों की है।

कांग्रेस के बागियों पर गौर करें तो गौरेला पेंड्रा से गुलाब राज, अंतागढ़ से अनूप नाग और मंटू राम पवार, मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल, सामरी से चिंतामणि महाराज, लोरमी से सागर सिंह बैंस, महासमुंद के खल्लारी से बसंता ठाकुर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। यह उम्मीदवार कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं।

वहीं, भाजपा की बात करें तो महासमुंद के खल्लारी से बीजेपी बागी हुए भेखू लाल साहू, मस्तूरी से चांदनी भारद्वाज बगावत कर मैदान में हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की तुलना में कांग्रेस के बागी ज्यादा हैं और यही कारण है कि कई विधानसभा सीटों पर नतीजे के गड़बड़ाने की संभावना नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते। अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है।

तो, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया। इस बार भी ऐसा ही होगा, यह संभावना कहीं ज्यादा है।

हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है। मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है।

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छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इन पर दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण में 20 सीटों और शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ।

इन 90 सीटों में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं। इनमें ज्यादा संख्या कांग्रेस के बागियों की है।

कांग्रेस के बागियों पर गौर करें तो गौरेला पेंड्रा से गुलाब राज, अंतागढ़ से अनूप नाग और मंटू राम पवार, मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल, सामरी से चिंतामणि महाराज, लोरमी से सागर सिंह बैंस, महासमुंद के खल्लारी से बसंता ठाकुर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। यह उम्मीदवार कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं।

वहीं, भाजपा की बात करें तो महासमुंद के खल्लारी से बीजेपी बागी हुए भेखू लाल साहू, मस्तूरी से चांदनी भारद्वाज बगावत कर मैदान में हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की तुलना में कांग्रेस के बागी ज्यादा हैं और यही कारण है कि कई विधानसभा सीटों पर नतीजे के गड़बड़ाने की संभावना नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते। अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है।

तो, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया। इस बार भी ऐसा ही होगा, यह संभावना कहीं ज्यादा है।

हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है। मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है।

–आईएएनएस

एसएनपी/एबीएम

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रायपुर, 19 नवंबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के चुनाव में बागी अपना असर दिखा सकते हैं, लेकिन उनकी भूमिका उम्मीदवार को हरवाने यानी कि खेल बिगाड़ने में ज्यादा रहने की संभावना है। वे चुनाव जीतेंगे, इस बात की गुंजाइश कम ही नजर आ रही है।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इन पर दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण में 20 सीटों और शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ।

इन 90 सीटों में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं। इनमें ज्यादा संख्या कांग्रेस के बागियों की है।

कांग्रेस के बागियों पर गौर करें तो गौरेला पेंड्रा से गुलाब राज, अंतागढ़ से अनूप नाग और मंटू राम पवार, मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल, सामरी से चिंतामणि महाराज, लोरमी से सागर सिंह बैंस, महासमुंद के खल्लारी से बसंता ठाकुर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। यह उम्मीदवार कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं।

वहीं, भाजपा की बात करें तो महासमुंद के खल्लारी से बीजेपी बागी हुए भेखू लाल साहू, मस्तूरी से चांदनी भारद्वाज बगावत कर मैदान में हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की तुलना में कांग्रेस के बागी ज्यादा हैं और यही कारण है कि कई विधानसभा सीटों पर नतीजे के गड़बड़ाने की संभावना नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते। अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है।

तो, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया। इस बार भी ऐसा ही होगा, यह संभावना कहीं ज्यादा है।

हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है। मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है।

–आईएएनएस

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रायपुर, 19 नवंबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के चुनाव में बागी अपना असर दिखा सकते हैं, लेकिन उनकी भूमिका उम्मीदवार को हरवाने यानी कि खेल बिगाड़ने में ज्यादा रहने की संभावना है। वे चुनाव जीतेंगे, इस बात की गुंजाइश कम ही नजर आ रही है।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इन पर दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण में 20 सीटों और शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ।

इन 90 सीटों में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं। इनमें ज्यादा संख्या कांग्रेस के बागियों की है।

कांग्रेस के बागियों पर गौर करें तो गौरेला पेंड्रा से गुलाब राज, अंतागढ़ से अनूप नाग और मंटू राम पवार, मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल, सामरी से चिंतामणि महाराज, लोरमी से सागर सिंह बैंस, महासमुंद के खल्लारी से बसंता ठाकुर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। यह उम्मीदवार कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं।

वहीं, भाजपा की बात करें तो महासमुंद के खल्लारी से बीजेपी बागी हुए भेखू लाल साहू, मस्तूरी से चांदनी भारद्वाज बगावत कर मैदान में हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की तुलना में कांग्रेस के बागी ज्यादा हैं और यही कारण है कि कई विधानसभा सीटों पर नतीजे के गड़बड़ाने की संभावना नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते। अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है।

तो, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया। इस बार भी ऐसा ही होगा, यह संभावना कहीं ज्यादा है।

हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है। मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है।

–आईएएनएस

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रायपुर, 19 नवंबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के चुनाव में बागी अपना असर दिखा सकते हैं, लेकिन उनकी भूमिका उम्मीदवार को हरवाने यानी कि खेल बिगाड़ने में ज्यादा रहने की संभावना है। वे चुनाव जीतेंगे, इस बात की गुंजाइश कम ही नजर आ रही है।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इन पर दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण में 20 सीटों और शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ।

इन 90 सीटों में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं। इनमें ज्यादा संख्या कांग्रेस के बागियों की है।

कांग्रेस के बागियों पर गौर करें तो गौरेला पेंड्रा से गुलाब राज, अंतागढ़ से अनूप नाग और मंटू राम पवार, मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल, सामरी से चिंतामणि महाराज, लोरमी से सागर सिंह बैंस, महासमुंद के खल्लारी से बसंता ठाकुर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। यह उम्मीदवार कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं।

वहीं, भाजपा की बात करें तो महासमुंद के खल्लारी से बीजेपी बागी हुए भेखू लाल साहू, मस्तूरी से चांदनी भारद्वाज बगावत कर मैदान में हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की तुलना में कांग्रेस के बागी ज्यादा हैं और यही कारण है कि कई विधानसभा सीटों पर नतीजे के गड़बड़ाने की संभावना नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते। अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है।

तो, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया। इस बार भी ऐसा ही होगा, यह संभावना कहीं ज्यादा है।

हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है। मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है।

–आईएएनएस

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रायपुर, 19 नवंबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के चुनाव में बागी अपना असर दिखा सकते हैं, लेकिन उनकी भूमिका उम्मीदवार को हरवाने यानी कि खेल बिगाड़ने में ज्यादा रहने की संभावना है। वे चुनाव जीतेंगे, इस बात की गुंजाइश कम ही नजर आ रही है।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इन पर दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण में 20 सीटों और शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ।

इन 90 सीटों में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं। इनमें ज्यादा संख्या कांग्रेस के बागियों की है।

कांग्रेस के बागियों पर गौर करें तो गौरेला पेंड्रा से गुलाब राज, अंतागढ़ से अनूप नाग और मंटू राम पवार, मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल, सामरी से चिंतामणि महाराज, लोरमी से सागर सिंह बैंस, महासमुंद के खल्लारी से बसंता ठाकुर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। यह उम्मीदवार कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं।

वहीं, भाजपा की बात करें तो महासमुंद के खल्लारी से बीजेपी बागी हुए भेखू लाल साहू, मस्तूरी से चांदनी भारद्वाज बगावत कर मैदान में हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की तुलना में कांग्रेस के बागी ज्यादा हैं और यही कारण है कि कई विधानसभा सीटों पर नतीजे के गड़बड़ाने की संभावना नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते। अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है।

तो, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया। इस बार भी ऐसा ही होगा, यह संभावना कहीं ज्यादा है।

हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है। मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है।

–आईएएनएस

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छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इन पर दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण में 20 सीटों और शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ।

इन 90 सीटों में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं, जहां बागी खेल बिगाड़ सकते हैं। इनमें ज्यादा संख्या कांग्रेस के बागियों की है।

कांग्रेस के बागियों पर गौर करें तो गौरेला पेंड्रा से गुलाब राज, अंतागढ़ से अनूप नाग और मंटू राम पवार, मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल, सामरी से चिंतामणि महाराज, लोरमी से सागर सिंह बैंस, महासमुंद के खल्लारी से बसंता ठाकुर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। यह उम्मीदवार कहीं न कहीं कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं।

वहीं, भाजपा की बात करें तो महासमुंद के खल्लारी से बीजेपी बागी हुए भेखू लाल साहू, मस्तूरी से चांदनी भारद्वाज बगावत कर मैदान में हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की तुलना में कांग्रेस के बागी ज्यादा हैं और यही कारण है कि कई विधानसभा सीटों पर नतीजे के गड़बड़ाने की संभावना नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते। अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है।

तो, वहीं बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया। इस बार भी ऐसा ही होगा, यह संभावना कहीं ज्यादा है।

हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है। मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है।

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