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जब पीएम मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की आखिरी इच्छा की पूरी, केंद्रीय मंत्री ने बताया घटनाक्रम

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October 4, 2024
in राष्ट्रीय
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जब पीएम मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की आखिरी इच्छा की पूरी, केंद्रीय मंत्री ने बताया घटनाक्रम
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नई दिल्ली, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)। केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने शुक्रवार को स्विट्जरलैंड में भारतीय राजदूत के रूप में अपने कार्यकाल को याद किया और बताया कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा की ‘आखिरी इच्छा’ को पूरा किया। उन्होंने ऐसा कुछ किया, जिसे किसी अन्य प्रधानमंत्री ने करने का प्रयास नहीं किया या यहां तक ​​कि इसके बारे में सोचा भी नहीं था।

केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस बात पर भी दुख जताया कि देश को आजादी मिलने के दशकों बाद भी महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

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केंद्रीय मंत्री ने एक वीडियो संदेश में पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, “स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की अस्थियों को भारत लाने के प्रयास में वो भी किस तरह भावुक हो गए थे।”

हरदीप पुरी ने कहा, “जुलाई 2003 में मुझे फोन आया और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनेवा आने की इच्छा जताई। चूंकि, मैं वहां राजदूत के रूप में तैनात था, इसलिए मुझे जिनेवा में एक समारोह आयोजित करने का सम्मान और सौभाग्य मिला, जिसमें श्यामजी की अस्थियां उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी) को सौंपी गईं।”

उन्होंने आगे बताया, “स्वतंत्र भारत में किसी अन्य नेता ने अस्थियों को वापस लाने और राष्ट्र के इस महान सपूत को सम्मानित करने के बारे में नहीं सोचा था। मगर, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अस्थियों को वापस लाए, श्यामजी के जन्मस्थान मांडवी में अंतिम संस्कार किया और एक स्मारक बनवाया।”

केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया, “श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्विस कब्रिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार उनकी और पत्नी भानुमति की अस्थियां वहां रखी जाएंगी। लेकिन, जब भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा, तो इसे वापस उनके स्वदेश लाया जाएगा।”

श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन 1930 में स्विटजरलैंड में हुआ, जबकि उनकी आखिरी उम्मीद यह थी कि जब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा तो उनकी अस्थियां वापस भारत लाई जाएगी। हालांकि, उनकी ‘अंतिम इच्छा’ आजादी के 56 साल बाद ही पूरी हुई।

अगस्त 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम अनुरोध का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को जिनेवा से भारत लेकर आए। 22 अगस्त 2003 को सीएम मोदी विले डी जिनेवे और स्विस सरकार से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लेने के लिए जिनेवा के सेंट जॉर्ज कब्रिस्तान, स्विट्जरलैंड पहुंचे। जिससे इस देशभक्त की लंबे समय से अधूरी रही इच्छा पूरी हुई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक भव्य ‘वीरांजलि यात्रा’ का आयोजन किया, जो एक स्मारकीय यात्रा थी। इस यात्रा में श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा, जो दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों से होकर गुजरा और उसके बाद कच्छ के मांडवी में वर्मा परिवार को सौंपा गया।

–आईएएनएस

एसके/एबीएम

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नई दिल्ली, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)। केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने शुक्रवार को स्विट्जरलैंड में भारतीय राजदूत के रूप में अपने कार्यकाल को याद किया और बताया कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा की ‘आखिरी इच्छा’ को पूरा किया। उन्होंने ऐसा कुछ किया, जिसे किसी अन्य प्रधानमंत्री ने करने का प्रयास नहीं किया या यहां तक ​​कि इसके बारे में सोचा भी नहीं था।

केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस बात पर भी दुख जताया कि देश को आजादी मिलने के दशकों बाद भी महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

केंद्रीय मंत्री ने एक वीडियो संदेश में पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, “स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की अस्थियों को भारत लाने के प्रयास में वो भी किस तरह भावुक हो गए थे।”

हरदीप पुरी ने कहा, “जुलाई 2003 में मुझे फोन आया और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनेवा आने की इच्छा जताई। चूंकि, मैं वहां राजदूत के रूप में तैनात था, इसलिए मुझे जिनेवा में एक समारोह आयोजित करने का सम्मान और सौभाग्य मिला, जिसमें श्यामजी की अस्थियां उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी) को सौंपी गईं।”

उन्होंने आगे बताया, “स्वतंत्र भारत में किसी अन्य नेता ने अस्थियों को वापस लाने और राष्ट्र के इस महान सपूत को सम्मानित करने के बारे में नहीं सोचा था। मगर, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अस्थियों को वापस लाए, श्यामजी के जन्मस्थान मांडवी में अंतिम संस्कार किया और एक स्मारक बनवाया।”

केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया, “श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्विस कब्रिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार उनकी और पत्नी भानुमति की अस्थियां वहां रखी जाएंगी। लेकिन, जब भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा, तो इसे वापस उनके स्वदेश लाया जाएगा।”

श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन 1930 में स्विटजरलैंड में हुआ, जबकि उनकी आखिरी उम्मीद यह थी कि जब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा तो उनकी अस्थियां वापस भारत लाई जाएगी। हालांकि, उनकी ‘अंतिम इच्छा’ आजादी के 56 साल बाद ही पूरी हुई।

अगस्त 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम अनुरोध का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को जिनेवा से भारत लेकर आए। 22 अगस्त 2003 को सीएम मोदी विले डी जिनेवे और स्विस सरकार से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लेने के लिए जिनेवा के सेंट जॉर्ज कब्रिस्तान, स्विट्जरलैंड पहुंचे। जिससे इस देशभक्त की लंबे समय से अधूरी रही इच्छा पूरी हुई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक भव्य ‘वीरांजलि यात्रा’ का आयोजन किया, जो एक स्मारकीय यात्रा थी। इस यात्रा में श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा, जो दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों से होकर गुजरा और उसके बाद कच्छ के मांडवी में वर्मा परिवार को सौंपा गया।

–आईएएनएस

एसके/एबीएम

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नई दिल्ली, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)। केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने शुक्रवार को स्विट्जरलैंड में भारतीय राजदूत के रूप में अपने कार्यकाल को याद किया और बताया कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा की ‘आखिरी इच्छा’ को पूरा किया। उन्होंने ऐसा कुछ किया, जिसे किसी अन्य प्रधानमंत्री ने करने का प्रयास नहीं किया या यहां तक ​​कि इसके बारे में सोचा भी नहीं था।

केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस बात पर भी दुख जताया कि देश को आजादी मिलने के दशकों बाद भी महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

केंद्रीय मंत्री ने एक वीडियो संदेश में पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, “स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की अस्थियों को भारत लाने के प्रयास में वो भी किस तरह भावुक हो गए थे।”

हरदीप पुरी ने कहा, “जुलाई 2003 में मुझे फोन आया और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनेवा आने की इच्छा जताई। चूंकि, मैं वहां राजदूत के रूप में तैनात था, इसलिए मुझे जिनेवा में एक समारोह आयोजित करने का सम्मान और सौभाग्य मिला, जिसमें श्यामजी की अस्थियां उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी) को सौंपी गईं।”

उन्होंने आगे बताया, “स्वतंत्र भारत में किसी अन्य नेता ने अस्थियों को वापस लाने और राष्ट्र के इस महान सपूत को सम्मानित करने के बारे में नहीं सोचा था। मगर, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अस्थियों को वापस लाए, श्यामजी के जन्मस्थान मांडवी में अंतिम संस्कार किया और एक स्मारक बनवाया।”

केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया, “श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्विस कब्रिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार उनकी और पत्नी भानुमति की अस्थियां वहां रखी जाएंगी। लेकिन, जब भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा, तो इसे वापस उनके स्वदेश लाया जाएगा।”

श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन 1930 में स्विटजरलैंड में हुआ, जबकि उनकी आखिरी उम्मीद यह थी कि जब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा तो उनकी अस्थियां वापस भारत लाई जाएगी। हालांकि, उनकी ‘अंतिम इच्छा’ आजादी के 56 साल बाद ही पूरी हुई।

अगस्त 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम अनुरोध का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को जिनेवा से भारत लेकर आए। 22 अगस्त 2003 को सीएम मोदी विले डी जिनेवे और स्विस सरकार से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लेने के लिए जिनेवा के सेंट जॉर्ज कब्रिस्तान, स्विट्जरलैंड पहुंचे। जिससे इस देशभक्त की लंबे समय से अधूरी रही इच्छा पूरी हुई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक भव्य ‘वीरांजलि यात्रा’ का आयोजन किया, जो एक स्मारकीय यात्रा थी। इस यात्रा में श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा, जो दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों से होकर गुजरा और उसके बाद कच्छ के मांडवी में वर्मा परिवार को सौंपा गया।

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नई दिल्ली, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)। केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने शुक्रवार को स्विट्जरलैंड में भारतीय राजदूत के रूप में अपने कार्यकाल को याद किया और बताया कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा की ‘आखिरी इच्छा’ को पूरा किया। उन्होंने ऐसा कुछ किया, जिसे किसी अन्य प्रधानमंत्री ने करने का प्रयास नहीं किया या यहां तक ​​कि इसके बारे में सोचा भी नहीं था।

केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस बात पर भी दुख जताया कि देश को आजादी मिलने के दशकों बाद भी महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

केंद्रीय मंत्री ने एक वीडियो संदेश में पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, “स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की अस्थियों को भारत लाने के प्रयास में वो भी किस तरह भावुक हो गए थे।”

हरदीप पुरी ने कहा, “जुलाई 2003 में मुझे फोन आया और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनेवा आने की इच्छा जताई। चूंकि, मैं वहां राजदूत के रूप में तैनात था, इसलिए मुझे जिनेवा में एक समारोह आयोजित करने का सम्मान और सौभाग्य मिला, जिसमें श्यामजी की अस्थियां उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी) को सौंपी गईं।”

उन्होंने आगे बताया, “स्वतंत्र भारत में किसी अन्य नेता ने अस्थियों को वापस लाने और राष्ट्र के इस महान सपूत को सम्मानित करने के बारे में नहीं सोचा था। मगर, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अस्थियों को वापस लाए, श्यामजी के जन्मस्थान मांडवी में अंतिम संस्कार किया और एक स्मारक बनवाया।”

केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया, “श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्विस कब्रिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार उनकी और पत्नी भानुमति की अस्थियां वहां रखी जाएंगी। लेकिन, जब भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा, तो इसे वापस उनके स्वदेश लाया जाएगा।”

श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन 1930 में स्विटजरलैंड में हुआ, जबकि उनकी आखिरी उम्मीद यह थी कि जब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा तो उनकी अस्थियां वापस भारत लाई जाएगी। हालांकि, उनकी ‘अंतिम इच्छा’ आजादी के 56 साल बाद ही पूरी हुई।

अगस्त 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम अनुरोध का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को जिनेवा से भारत लेकर आए। 22 अगस्त 2003 को सीएम मोदी विले डी जिनेवे और स्विस सरकार से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लेने के लिए जिनेवा के सेंट जॉर्ज कब्रिस्तान, स्विट्जरलैंड पहुंचे। जिससे इस देशभक्त की लंबे समय से अधूरी रही इच्छा पूरी हुई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक भव्य ‘वीरांजलि यात्रा’ का आयोजन किया, जो एक स्मारकीय यात्रा थी। इस यात्रा में श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा, जो दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों से होकर गुजरा और उसके बाद कच्छ के मांडवी में वर्मा परिवार को सौंपा गया।

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केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस बात पर भी दुख जताया कि देश को आजादी मिलने के दशकों बाद भी महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

केंद्रीय मंत्री ने एक वीडियो संदेश में पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, “स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की अस्थियों को भारत लाने के प्रयास में वो भी किस तरह भावुक हो गए थे।”

हरदीप पुरी ने कहा, “जुलाई 2003 में मुझे फोन आया और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनेवा आने की इच्छा जताई। चूंकि, मैं वहां राजदूत के रूप में तैनात था, इसलिए मुझे जिनेवा में एक समारोह आयोजित करने का सम्मान और सौभाग्य मिला, जिसमें श्यामजी की अस्थियां उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी) को सौंपी गईं।”

उन्होंने आगे बताया, “स्वतंत्र भारत में किसी अन्य नेता ने अस्थियों को वापस लाने और राष्ट्र के इस महान सपूत को सम्मानित करने के बारे में नहीं सोचा था। मगर, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अस्थियों को वापस लाए, श्यामजी के जन्मस्थान मांडवी में अंतिम संस्कार किया और एक स्मारक बनवाया।”

केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया, “श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्विस कब्रिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार उनकी और पत्नी भानुमति की अस्थियां वहां रखी जाएंगी। लेकिन, जब भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा, तो इसे वापस उनके स्वदेश लाया जाएगा।”

श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन 1930 में स्विटजरलैंड में हुआ, जबकि उनकी आखिरी उम्मीद यह थी कि जब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा तो उनकी अस्थियां वापस भारत लाई जाएगी। हालांकि, उनकी ‘अंतिम इच्छा’ आजादी के 56 साल बाद ही पूरी हुई।

अगस्त 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम अनुरोध का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को जिनेवा से भारत लेकर आए। 22 अगस्त 2003 को सीएम मोदी विले डी जिनेवे और स्विस सरकार से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लेने के लिए जिनेवा के सेंट जॉर्ज कब्रिस्तान, स्विट्जरलैंड पहुंचे। जिससे इस देशभक्त की लंबे समय से अधूरी रही इच्छा पूरी हुई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक भव्य ‘वीरांजलि यात्रा’ का आयोजन किया, जो एक स्मारकीय यात्रा थी। इस यात्रा में श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा, जो दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों से होकर गुजरा और उसके बाद कच्छ के मांडवी में वर्मा परिवार को सौंपा गया।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)। केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने शुक्रवार को स्विट्जरलैंड में भारतीय राजदूत के रूप में अपने कार्यकाल को याद किया और बताया कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा की ‘आखिरी इच्छा’ को पूरा किया। उन्होंने ऐसा कुछ किया, जिसे किसी अन्य प्रधानमंत्री ने करने का प्रयास नहीं किया या यहां तक ​​कि इसके बारे में सोचा भी नहीं था।

केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस बात पर भी दुख जताया कि देश को आजादी मिलने के दशकों बाद भी महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

केंद्रीय मंत्री ने एक वीडियो संदेश में पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, “स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की अस्थियों को भारत लाने के प्रयास में वो भी किस तरह भावुक हो गए थे।”

हरदीप पुरी ने कहा, “जुलाई 2003 में मुझे फोन आया और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनेवा आने की इच्छा जताई। चूंकि, मैं वहां राजदूत के रूप में तैनात था, इसलिए मुझे जिनेवा में एक समारोह आयोजित करने का सम्मान और सौभाग्य मिला, जिसमें श्यामजी की अस्थियां उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी) को सौंपी गईं।”

उन्होंने आगे बताया, “स्वतंत्र भारत में किसी अन्य नेता ने अस्थियों को वापस लाने और राष्ट्र के इस महान सपूत को सम्मानित करने के बारे में नहीं सोचा था। मगर, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अस्थियों को वापस लाए, श्यामजी के जन्मस्थान मांडवी में अंतिम संस्कार किया और एक स्मारक बनवाया।”

केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया, “श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्विस कब्रिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार उनकी और पत्नी भानुमति की अस्थियां वहां रखी जाएंगी। लेकिन, जब भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा, तो इसे वापस उनके स्वदेश लाया जाएगा।”

श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन 1930 में स्विटजरलैंड में हुआ, जबकि उनकी आखिरी उम्मीद यह थी कि जब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा तो उनकी अस्थियां वापस भारत लाई जाएगी। हालांकि, उनकी ‘अंतिम इच्छा’ आजादी के 56 साल बाद ही पूरी हुई।

अगस्त 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम अनुरोध का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को जिनेवा से भारत लेकर आए। 22 अगस्त 2003 को सीएम मोदी विले डी जिनेवे और स्विस सरकार से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लेने के लिए जिनेवा के सेंट जॉर्ज कब्रिस्तान, स्विट्जरलैंड पहुंचे। जिससे इस देशभक्त की लंबे समय से अधूरी रही इच्छा पूरी हुई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक भव्य ‘वीरांजलि यात्रा’ का आयोजन किया, जो एक स्मारकीय यात्रा थी। इस यात्रा में श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा, जो दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों से होकर गुजरा और उसके बाद कच्छ के मांडवी में वर्मा परिवार को सौंपा गया।

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केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस बात पर भी दुख जताया कि देश को आजादी मिलने के दशकों बाद भी महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

केंद्रीय मंत्री ने एक वीडियो संदेश में पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, “स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की अस्थियों को भारत लाने के प्रयास में वो भी किस तरह भावुक हो गए थे।”

हरदीप पुरी ने कहा, “जुलाई 2003 में मुझे फोन आया और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनेवा आने की इच्छा जताई। चूंकि, मैं वहां राजदूत के रूप में तैनात था, इसलिए मुझे जिनेवा में एक समारोह आयोजित करने का सम्मान और सौभाग्य मिला, जिसमें श्यामजी की अस्थियां उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी) को सौंपी गईं।”

उन्होंने आगे बताया, “स्वतंत्र भारत में किसी अन्य नेता ने अस्थियों को वापस लाने और राष्ट्र के इस महान सपूत को सम्मानित करने के बारे में नहीं सोचा था। मगर, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अस्थियों को वापस लाए, श्यामजी के जन्मस्थान मांडवी में अंतिम संस्कार किया और एक स्मारक बनवाया।”

केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया, “श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्विस कब्रिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार उनकी और पत्नी भानुमति की अस्थियां वहां रखी जाएंगी। लेकिन, जब भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा, तो इसे वापस उनके स्वदेश लाया जाएगा।”

श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन 1930 में स्विटजरलैंड में हुआ, जबकि उनकी आखिरी उम्मीद यह थी कि जब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा तो उनकी अस्थियां वापस भारत लाई जाएगी। हालांकि, उनकी ‘अंतिम इच्छा’ आजादी के 56 साल बाद ही पूरी हुई।

अगस्त 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम अनुरोध का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को जिनेवा से भारत लेकर आए। 22 अगस्त 2003 को सीएम मोदी विले डी जिनेवे और स्विस सरकार से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लेने के लिए जिनेवा के सेंट जॉर्ज कब्रिस्तान, स्विट्जरलैंड पहुंचे। जिससे इस देशभक्त की लंबे समय से अधूरी रही इच्छा पूरी हुई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक भव्य ‘वीरांजलि यात्रा’ का आयोजन किया, जो एक स्मारकीय यात्रा थी। इस यात्रा में श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा, जो दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों से होकर गुजरा और उसके बाद कच्छ के मांडवी में वर्मा परिवार को सौंपा गया।

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नई दिल्ली, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)। केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने शुक्रवार को स्विट्जरलैंड में भारतीय राजदूत के रूप में अपने कार्यकाल को याद किया और बताया कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा की ‘आखिरी इच्छा’ को पूरा किया। उन्होंने ऐसा कुछ किया, जिसे किसी अन्य प्रधानमंत्री ने करने का प्रयास नहीं किया या यहां तक ​​कि इसके बारे में सोचा भी नहीं था।

केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस बात पर भी दुख जताया कि देश को आजादी मिलने के दशकों बाद भी महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

केंद्रीय मंत्री ने एक वीडियो संदेश में पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, “स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की अस्थियों को भारत लाने के प्रयास में वो भी किस तरह भावुक हो गए थे।”

हरदीप पुरी ने कहा, “जुलाई 2003 में मुझे फोन आया और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनेवा आने की इच्छा जताई। चूंकि, मैं वहां राजदूत के रूप में तैनात था, इसलिए मुझे जिनेवा में एक समारोह आयोजित करने का सम्मान और सौभाग्य मिला, जिसमें श्यामजी की अस्थियां उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी) को सौंपी गईं।”

उन्होंने आगे बताया, “स्वतंत्र भारत में किसी अन्य नेता ने अस्थियों को वापस लाने और राष्ट्र के इस महान सपूत को सम्मानित करने के बारे में नहीं सोचा था। मगर, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अस्थियों को वापस लाए, श्यामजी के जन्मस्थान मांडवी में अंतिम संस्कार किया और एक स्मारक बनवाया।”

केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया, “श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्विस कब्रिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार उनकी और पत्नी भानुमति की अस्थियां वहां रखी जाएंगी। लेकिन, जब भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा, तो इसे वापस उनके स्वदेश लाया जाएगा।”

श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन 1930 में स्विटजरलैंड में हुआ, जबकि उनकी आखिरी उम्मीद यह थी कि जब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा तो उनकी अस्थियां वापस भारत लाई जाएगी। हालांकि, उनकी ‘अंतिम इच्छा’ आजादी के 56 साल बाद ही पूरी हुई।

अगस्त 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम अनुरोध का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को जिनेवा से भारत लेकर आए। 22 अगस्त 2003 को सीएम मोदी विले डी जिनेवे और स्विस सरकार से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लेने के लिए जिनेवा के सेंट जॉर्ज कब्रिस्तान, स्विट्जरलैंड पहुंचे। जिससे इस देशभक्त की लंबे समय से अधूरी रही इच्छा पूरी हुई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक भव्य ‘वीरांजलि यात्रा’ का आयोजन किया, जो एक स्मारकीय यात्रा थी। इस यात्रा में श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा, जो दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों से होकर गुजरा और उसके बाद कच्छ के मांडवी में वर्मा परिवार को सौंपा गया।

–आईएएनएस

एसके/एबीएम

नई दिल्ली, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)। केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने शुक्रवार को स्विट्जरलैंड में भारतीय राजदूत के रूप में अपने कार्यकाल को याद किया और बताया कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा की ‘आखिरी इच्छा’ को पूरा किया। उन्होंने ऐसा कुछ किया, जिसे किसी अन्य प्रधानमंत्री ने करने का प्रयास नहीं किया या यहां तक ​​कि इसके बारे में सोचा भी नहीं था।

केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस बात पर भी दुख जताया कि देश को आजादी मिलने के दशकों बाद भी महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

केंद्रीय मंत्री ने एक वीडियो संदेश में पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, “स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की अस्थियों को भारत लाने के प्रयास में वो भी किस तरह भावुक हो गए थे।”

हरदीप पुरी ने कहा, “जुलाई 2003 में मुझे फोन आया और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनेवा आने की इच्छा जताई। चूंकि, मैं वहां राजदूत के रूप में तैनात था, इसलिए मुझे जिनेवा में एक समारोह आयोजित करने का सम्मान और सौभाग्य मिला, जिसमें श्यामजी की अस्थियां उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी) को सौंपी गईं।”

उन्होंने आगे बताया, “स्वतंत्र भारत में किसी अन्य नेता ने अस्थियों को वापस लाने और राष्ट्र के इस महान सपूत को सम्मानित करने के बारे में नहीं सोचा था। मगर, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अस्थियों को वापस लाए, श्यामजी के जन्मस्थान मांडवी में अंतिम संस्कार किया और एक स्मारक बनवाया।”

केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया, “श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्विस कब्रिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार उनकी और पत्नी भानुमति की अस्थियां वहां रखी जाएंगी। लेकिन, जब भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा, तो इसे वापस उनके स्वदेश लाया जाएगा।”

श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन 1930 में स्विटजरलैंड में हुआ, जबकि उनकी आखिरी उम्मीद यह थी कि जब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा तो उनकी अस्थियां वापस भारत लाई जाएगी। हालांकि, उनकी ‘अंतिम इच्छा’ आजादी के 56 साल बाद ही पूरी हुई।

अगस्त 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम अनुरोध का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को जिनेवा से भारत लेकर आए। 22 अगस्त 2003 को सीएम मोदी विले डी जिनेवे और स्विस सरकार से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लेने के लिए जिनेवा के सेंट जॉर्ज कब्रिस्तान, स्विट्जरलैंड पहुंचे। जिससे इस देशभक्त की लंबे समय से अधूरी रही इच्छा पूरी हुई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक भव्य ‘वीरांजलि यात्रा’ का आयोजन किया, जो एक स्मारकीय यात्रा थी। इस यात्रा में श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा, जो दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों से होकर गुजरा और उसके बाद कच्छ के मांडवी में वर्मा परिवार को सौंपा गया।

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नई दिल्ली, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)। केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने शुक्रवार को स्विट्जरलैंड में भारतीय राजदूत के रूप में अपने कार्यकाल को याद किया और बताया कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा की ‘आखिरी इच्छा’ को पूरा किया। उन्होंने ऐसा कुछ किया, जिसे किसी अन्य प्रधानमंत्री ने करने का प्रयास नहीं किया या यहां तक ​​कि इसके बारे में सोचा भी नहीं था।

केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस बात पर भी दुख जताया कि देश को आजादी मिलने के दशकों बाद भी महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

केंद्रीय मंत्री ने एक वीडियो संदेश में पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, “स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की अस्थियों को भारत लाने के प्रयास में वो भी किस तरह भावुक हो गए थे।”

हरदीप पुरी ने कहा, “जुलाई 2003 में मुझे फोन आया और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनेवा आने की इच्छा जताई। चूंकि, मैं वहां राजदूत के रूप में तैनात था, इसलिए मुझे जिनेवा में एक समारोह आयोजित करने का सम्मान और सौभाग्य मिला, जिसमें श्यामजी की अस्थियां उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी) को सौंपी गईं।”

उन्होंने आगे बताया, “स्वतंत्र भारत में किसी अन्य नेता ने अस्थियों को वापस लाने और राष्ट्र के इस महान सपूत को सम्मानित करने के बारे में नहीं सोचा था। मगर, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अस्थियों को वापस लाए, श्यामजी के जन्मस्थान मांडवी में अंतिम संस्कार किया और एक स्मारक बनवाया।”

केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया, “श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्विस कब्रिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार उनकी और पत्नी भानुमति की अस्थियां वहां रखी जाएंगी। लेकिन, जब भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा, तो इसे वापस उनके स्वदेश लाया जाएगा।”

श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन 1930 में स्विटजरलैंड में हुआ, जबकि उनकी आखिरी उम्मीद यह थी कि जब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा तो उनकी अस्थियां वापस भारत लाई जाएगी। हालांकि, उनकी ‘अंतिम इच्छा’ आजादी के 56 साल बाद ही पूरी हुई।

अगस्त 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम अनुरोध का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को जिनेवा से भारत लेकर आए। 22 अगस्त 2003 को सीएम मोदी विले डी जिनेवे और स्विस सरकार से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लेने के लिए जिनेवा के सेंट जॉर्ज कब्रिस्तान, स्विट्जरलैंड पहुंचे। जिससे इस देशभक्त की लंबे समय से अधूरी रही इच्छा पूरी हुई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक भव्य ‘वीरांजलि यात्रा’ का आयोजन किया, जो एक स्मारकीय यात्रा थी। इस यात्रा में श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा, जो दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों से होकर गुजरा और उसके बाद कच्छ के मांडवी में वर्मा परिवार को सौंपा गया।

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केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस बात पर भी दुख जताया कि देश को आजादी मिलने के दशकों बाद भी महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

केंद्रीय मंत्री ने एक वीडियो संदेश में पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, “स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की अस्थियों को भारत लाने के प्रयास में वो भी किस तरह भावुक हो गए थे।”

हरदीप पुरी ने कहा, “जुलाई 2003 में मुझे फोन आया और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनेवा आने की इच्छा जताई। चूंकि, मैं वहां राजदूत के रूप में तैनात था, इसलिए मुझे जिनेवा में एक समारोह आयोजित करने का सम्मान और सौभाग्य मिला, जिसमें श्यामजी की अस्थियां उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी) को सौंपी गईं।”

उन्होंने आगे बताया, “स्वतंत्र भारत में किसी अन्य नेता ने अस्थियों को वापस लाने और राष्ट्र के इस महान सपूत को सम्मानित करने के बारे में नहीं सोचा था। मगर, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अस्थियों को वापस लाए, श्यामजी के जन्मस्थान मांडवी में अंतिम संस्कार किया और एक स्मारक बनवाया।”

केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया, “श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्विस कब्रिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार उनकी और पत्नी भानुमति की अस्थियां वहां रखी जाएंगी। लेकिन, जब भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा, तो इसे वापस उनके स्वदेश लाया जाएगा।”

श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन 1930 में स्विटजरलैंड में हुआ, जबकि उनकी आखिरी उम्मीद यह थी कि जब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा तो उनकी अस्थियां वापस भारत लाई जाएगी। हालांकि, उनकी ‘अंतिम इच्छा’ आजादी के 56 साल बाद ही पूरी हुई।

अगस्त 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम अनुरोध का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को जिनेवा से भारत लेकर आए। 22 अगस्त 2003 को सीएम मोदी विले डी जिनेवे और स्विस सरकार से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लेने के लिए जिनेवा के सेंट जॉर्ज कब्रिस्तान, स्विट्जरलैंड पहुंचे। जिससे इस देशभक्त की लंबे समय से अधूरी रही इच्छा पूरी हुई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक भव्य ‘वीरांजलि यात्रा’ का आयोजन किया, जो एक स्मारकीय यात्रा थी। इस यात्रा में श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा, जो दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों से होकर गुजरा और उसके बाद कच्छ के मांडवी में वर्मा परिवार को सौंपा गया।

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केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस बात पर भी दुख जताया कि देश को आजादी मिलने के दशकों बाद भी महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

केंद्रीय मंत्री ने एक वीडियो संदेश में पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, “स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की अस्थियों को भारत लाने के प्रयास में वो भी किस तरह भावुक हो गए थे।”

हरदीप पुरी ने कहा, “जुलाई 2003 में मुझे फोन आया और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनेवा आने की इच्छा जताई। चूंकि, मैं वहां राजदूत के रूप में तैनात था, इसलिए मुझे जिनेवा में एक समारोह आयोजित करने का सम्मान और सौभाग्य मिला, जिसमें श्यामजी की अस्थियां उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी) को सौंपी गईं।”

उन्होंने आगे बताया, “स्वतंत्र भारत में किसी अन्य नेता ने अस्थियों को वापस लाने और राष्ट्र के इस महान सपूत को सम्मानित करने के बारे में नहीं सोचा था। मगर, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अस्थियों को वापस लाए, श्यामजी के जन्मस्थान मांडवी में अंतिम संस्कार किया और एक स्मारक बनवाया।”

केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया, “श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्विस कब्रिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार उनकी और पत्नी भानुमति की अस्थियां वहां रखी जाएंगी। लेकिन, जब भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा, तो इसे वापस उनके स्वदेश लाया जाएगा।”

श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन 1930 में स्विटजरलैंड में हुआ, जबकि उनकी आखिरी उम्मीद यह थी कि जब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा तो उनकी अस्थियां वापस भारत लाई जाएगी। हालांकि, उनकी ‘अंतिम इच्छा’ आजादी के 56 साल बाद ही पूरी हुई।

अगस्त 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम अनुरोध का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को जिनेवा से भारत लेकर आए। 22 अगस्त 2003 को सीएम मोदी विले डी जिनेवे और स्विस सरकार से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लेने के लिए जिनेवा के सेंट जॉर्ज कब्रिस्तान, स्विट्जरलैंड पहुंचे। जिससे इस देशभक्त की लंबे समय से अधूरी रही इच्छा पूरी हुई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक भव्य ‘वीरांजलि यात्रा’ का आयोजन किया, जो एक स्मारकीय यात्रा थी। इस यात्रा में श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा, जो दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों से होकर गुजरा और उसके बाद कच्छ के मांडवी में वर्मा परिवार को सौंपा गया।

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केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस बात पर भी दुख जताया कि देश को आजादी मिलने के दशकों बाद भी महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

केंद्रीय मंत्री ने एक वीडियो संदेश में पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, “स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की अस्थियों को भारत लाने के प्रयास में वो भी किस तरह भावुक हो गए थे।”

हरदीप पुरी ने कहा, “जुलाई 2003 में मुझे फोन आया और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनेवा आने की इच्छा जताई। चूंकि, मैं वहां राजदूत के रूप में तैनात था, इसलिए मुझे जिनेवा में एक समारोह आयोजित करने का सम्मान और सौभाग्य मिला, जिसमें श्यामजी की अस्थियां उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी) को सौंपी गईं।”

उन्होंने आगे बताया, “स्वतंत्र भारत में किसी अन्य नेता ने अस्थियों को वापस लाने और राष्ट्र के इस महान सपूत को सम्मानित करने के बारे में नहीं सोचा था। मगर, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अस्थियों को वापस लाए, श्यामजी के जन्मस्थान मांडवी में अंतिम संस्कार किया और एक स्मारक बनवाया।”

केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया, “श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्विस कब्रिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार उनकी और पत्नी भानुमति की अस्थियां वहां रखी जाएंगी। लेकिन, जब भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा, तो इसे वापस उनके स्वदेश लाया जाएगा।”

श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन 1930 में स्विटजरलैंड में हुआ, जबकि उनकी आखिरी उम्मीद यह थी कि जब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा तो उनकी अस्थियां वापस भारत लाई जाएगी। हालांकि, उनकी ‘अंतिम इच्छा’ आजादी के 56 साल बाद ही पूरी हुई।

अगस्त 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम अनुरोध का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को जिनेवा से भारत लेकर आए। 22 अगस्त 2003 को सीएम मोदी विले डी जिनेवे और स्विस सरकार से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लेने के लिए जिनेवा के सेंट जॉर्ज कब्रिस्तान, स्विट्जरलैंड पहुंचे। जिससे इस देशभक्त की लंबे समय से अधूरी रही इच्छा पूरी हुई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक भव्य ‘वीरांजलि यात्रा’ का आयोजन किया, जो एक स्मारकीय यात्रा थी। इस यात्रा में श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा, जो दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों से होकर गुजरा और उसके बाद कच्छ के मांडवी में वर्मा परिवार को सौंपा गया।

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केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस बात पर भी दुख जताया कि देश को आजादी मिलने के दशकों बाद भी महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

केंद्रीय मंत्री ने एक वीडियो संदेश में पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, “स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की अस्थियों को भारत लाने के प्रयास में वो भी किस तरह भावुक हो गए थे।”

हरदीप पुरी ने कहा, “जुलाई 2003 में मुझे फोन आया और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनेवा आने की इच्छा जताई। चूंकि, मैं वहां राजदूत के रूप में तैनात था, इसलिए मुझे जिनेवा में एक समारोह आयोजित करने का सम्मान और सौभाग्य मिला, जिसमें श्यामजी की अस्थियां उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी) को सौंपी गईं।”

उन्होंने आगे बताया, “स्वतंत्र भारत में किसी अन्य नेता ने अस्थियों को वापस लाने और राष्ट्र के इस महान सपूत को सम्मानित करने के बारे में नहीं सोचा था। मगर, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अस्थियों को वापस लाए, श्यामजी के जन्मस्थान मांडवी में अंतिम संस्कार किया और एक स्मारक बनवाया।”

केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया, “श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्विस कब्रिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार उनकी और पत्नी भानुमति की अस्थियां वहां रखी जाएंगी। लेकिन, जब भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा, तो इसे वापस उनके स्वदेश लाया जाएगा।”

श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन 1930 में स्विटजरलैंड में हुआ, जबकि उनकी आखिरी उम्मीद यह थी कि जब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा तो उनकी अस्थियां वापस भारत लाई जाएगी। हालांकि, उनकी ‘अंतिम इच्छा’ आजादी के 56 साल बाद ही पूरी हुई।

अगस्त 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम अनुरोध का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को जिनेवा से भारत लेकर आए। 22 अगस्त 2003 को सीएम मोदी विले डी जिनेवे और स्विस सरकार से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लेने के लिए जिनेवा के सेंट जॉर्ज कब्रिस्तान, स्विट्जरलैंड पहुंचे। जिससे इस देशभक्त की लंबे समय से अधूरी रही इच्छा पूरी हुई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक भव्य ‘वीरांजलि यात्रा’ का आयोजन किया, जो एक स्मारकीय यात्रा थी। इस यात्रा में श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा, जो दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों से होकर गुजरा और उसके बाद कच्छ के मांडवी में वर्मा परिवार को सौंपा गया।

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केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस बात पर भी दुख जताया कि देश को आजादी मिलने के दशकों बाद भी महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

केंद्रीय मंत्री ने एक वीडियो संदेश में पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, “स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की अस्थियों को भारत लाने के प्रयास में वो भी किस तरह भावुक हो गए थे।”

हरदीप पुरी ने कहा, “जुलाई 2003 में मुझे फोन आया और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनेवा आने की इच्छा जताई। चूंकि, मैं वहां राजदूत के रूप में तैनात था, इसलिए मुझे जिनेवा में एक समारोह आयोजित करने का सम्मान और सौभाग्य मिला, जिसमें श्यामजी की अस्थियां उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी) को सौंपी गईं।”

उन्होंने आगे बताया, “स्वतंत्र भारत में किसी अन्य नेता ने अस्थियों को वापस लाने और राष्ट्र के इस महान सपूत को सम्मानित करने के बारे में नहीं सोचा था। मगर, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अस्थियों को वापस लाए, श्यामजी के जन्मस्थान मांडवी में अंतिम संस्कार किया और एक स्मारक बनवाया।”

केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया, “श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्विस कब्रिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार उनकी और पत्नी भानुमति की अस्थियां वहां रखी जाएंगी। लेकिन, जब भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा, तो इसे वापस उनके स्वदेश लाया जाएगा।”

श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन 1930 में स्विटजरलैंड में हुआ, जबकि उनकी आखिरी उम्मीद यह थी कि जब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा तो उनकी अस्थियां वापस भारत लाई जाएगी। हालांकि, उनकी ‘अंतिम इच्छा’ आजादी के 56 साल बाद ही पूरी हुई।

अगस्त 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम अनुरोध का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को जिनेवा से भारत लेकर आए। 22 अगस्त 2003 को सीएम मोदी विले डी जिनेवे और स्विस सरकार से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लेने के लिए जिनेवा के सेंट जॉर्ज कब्रिस्तान, स्विट्जरलैंड पहुंचे। जिससे इस देशभक्त की लंबे समय से अधूरी रही इच्छा पूरी हुई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक भव्य ‘वीरांजलि यात्रा’ का आयोजन किया, जो एक स्मारकीय यात्रा थी। इस यात्रा में श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा, जो दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों से होकर गुजरा और उसके बाद कच्छ के मांडवी में वर्मा परिवार को सौंपा गया।

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केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस बात पर भी दुख जताया कि देश को आजादी मिलने के दशकों बाद भी महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

केंद्रीय मंत्री ने एक वीडियो संदेश में पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, “स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी की अस्थियों को भारत लाने के प्रयास में वो भी किस तरह भावुक हो गए थे।”

हरदीप पुरी ने कहा, “जुलाई 2003 में मुझे फोन आया और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनेवा आने की इच्छा जताई। चूंकि, मैं वहां राजदूत के रूप में तैनात था, इसलिए मुझे जिनेवा में एक समारोह आयोजित करने का सम्मान और सौभाग्य मिला, जिसमें श्यामजी की अस्थियां उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी) को सौंपी गईं।”

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केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया, “श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्विस कब्रिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार उनकी और पत्नी भानुमति की अस्थियां वहां रखी जाएंगी। लेकिन, जब भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा, तो इसे वापस उनके स्वदेश लाया जाएगा।”

श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन 1930 में स्विटजरलैंड में हुआ, जबकि उनकी आखिरी उम्मीद यह थी कि जब भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा तो उनकी अस्थियां वापस भारत लाई जाएगी। हालांकि, उनकी ‘अंतिम इच्छा’ आजादी के 56 साल बाद ही पूरी हुई।

अगस्त 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम अनुरोध का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को जिनेवा से भारत लेकर आए। 22 अगस्त 2003 को सीएम मोदी विले डी जिनेवे और स्विस सरकार से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लेने के लिए जिनेवा के सेंट जॉर्ज कब्रिस्तान, स्विट्जरलैंड पहुंचे। जिससे इस देशभक्त की लंबे समय से अधूरी रही इच्छा पूरी हुई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक भव्य ‘वीरांजलि यात्रा’ का आयोजन किया, जो एक स्मारकीय यात्रा थी। इस यात्रा में श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा, जो दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों से होकर गुजरा और उसके बाद कच्छ के मांडवी में वर्मा परिवार को सौंपा गया।

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