श्रीनगर, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। जम्मू-कश्मीर के बारामूला जिले में शनिवार को सर्पिल आकार के सींगों वाला जंगली बकरी मारखोर देखी गई।
वन्यजीव संरक्षण विभाग के अधिकारियों ने इस दुर्लभ जानवर को पकड़ने के प्रयास शुरू कर दिए हैं।
मारखोर (कैप्रा फाल्कोनेरी) एक बड़ी जंगली बकरी की प्रजाति है, जो दक्षिण और मध्य एशिया मुख्य रूप से पाकिस्तान, काराकोरम पर्वत श्रृंखला, अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों और हिमालय की मूल निवासी है और यहां पाई जाती है।
इसे 2015 से आईयूसीएन की लाल सूची में “खतरे के निकट” के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
बारामूला जिले की उरी तहसील के बोनियार क्षेत्र के नूरखा में ग्रामीणों को आज सुबह एक झरने के पास यह जंगली बकरी देखने को मिली।
ग्रामीणों ने तुरंत स्थानीय पुलिस स्टेशन से संपर्क किया और वन्यजीव संरक्षण विभाग की एक टीम इस बकरी को पकड़ने के लिए आ गई।
ग्रामीणों ने बताया कि जंगली बकरी इस क्षेत्र में नहीं पाई जाती है और संभवतः यह पाकिस्तान से नियंत्रण रेखा पार कर बारामूला जिले में प्रवेश कर गई है।
मारखोर पाकिस्तान का राष्ट्रीय पशु है, जहां इसे आम तौर पर पेंचदार सींग वाला बकरा कहा जाता है। ‘मारखोर’ शब्द पश्तो और शास्त्रीय फारसी भाषा से आया है जिसका अर्थ है ‘सांप खाने वाला।’
लोक कथाओं में यह भी माना जाता है कि मारखोर सांपों को मारकर खा जाता है। इसके बाद जुगाली करते समय उसके मुंह से झाग जैसा पदार्थ निकलता है, जो जमीन पर गिरकर सूख जाता है। स्थानीय लोग इस झाग जैसे पदार्थ की तलाश करते हैं, उनका मानना है कि यह सांप के काटने पर जहर उतारने में उपयोगी होता है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 24 मई को अंतर्राष्ट्रीय मारखोर दिवस घोषित किया है।
मारखोर पहाड़ी इलाकों के लिए अनुकूलित हैं और 2,000 से 11,800 फीट की ऊंचाई के बीच पाए जा सकते हैं।
यह जानवर मुख्य रूप से ओक, पाइन और जूनिपर्स से बने झाड़ीदार जंगलों में रहता है। वे व्यवहार में दिनचर हैं, जिसका अर्थ है कि वे ज्यादातर सुबह और देर दोपहर में सक्रिय रहते हैं।
इनका प्रजनन काल शीतकाल में होता है। उनका गर्भकाल 135-170 दिनों तक रहता है और आमतौर पर एक या दो बच्चे पैदा होते हैं, लेकिन कभी-कभी तीन भी हो सकते हैं।
मारखोर झुंड में रहते हैं। आमतौर पर नौ जानवरों की संख्या मानी जाती है। जिनमें वयस्क मादाएं और उनके बच्चे शामिल होते हैं। वयस्क नर ज्यादातर अकेले रहते हैं।
वयस्क मादाएं और शावक मारखोर की अधिकांश आबादी का निर्माण करते हैं, जिनमें वयस्क मादाएं 32 प्रतिशत और बच्चे 31 प्रतिशत हैं। वयस्क नर जनसंख्या का 19 प्रतिशत हिस्सा हैं।
उनकी अलार्म कॉल घरेलू बकरियों की मिमियाहट से मिलती जुलती है। गर्मियों के दौरान नर जंगल में रहते हैं जबकि मादाएं आम तौर पर सबसे ऊंची चट्टानी चोटियों पर चढ़ जाती हैं।
वसंत ऋतु में मादाएं अपने बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए अधिक चट्टानों वाले क्षेत्रों में रहती हैं।
नर अपने शरीर की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए वनस्पतियों तक अधिक पहुंच वाले ऊंचे क्षेत्रों में रहते हैं।
–आईएएनएस
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