रांची, 5 अगस्त (आईएएनएस)। चाईबासा जिला अंतर्गत सदर प्रखंड के खूंटा गांव में गौड़ (गोप) जाति के लोग एक महीने से अपने घरों में बंधक की जिंदगी जी रहे हैं। उनका “गुनाह” सिर्फ इतना है कि वे मवेशी चराने का पुश्तैनी काम अब नहीं करना चाहते। इससे नाराज गांव की दूसरी जातियों-समुदायों के लोगों ने उनके घरों की झाड़ियों से घेराबंदी कर दी है।
उन्हें धमकी दी जा रही है कि वे या तो मवेशियों को चराएं या फिर गांव छोड़कर चले जाएं। प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद भी यह विवाद सुलझ नहीं पा रहा है। स्थिति यह है कि इनके घरों से बाहर निकलने के रास्ते की इस तरह घेरेबंदी कर दी गई है कि उनका बाहर निकलना दुश्वार हो गया है। लोग जरूरी काम या फिर मजदूरी करने बाहर नहीं जा पा रहे हैं। इन परिवारों के बच्चों का स्कूल तक जाना बंद हो गया है।
पीड़ित परिवार के पांच-सात महिला-पुरुष किसी तरह घर से निकलकर चाईबासा के उपायुक्त से मिलने पहुंचे। उन्होंने कहा कि घरों से बाहर न निकलने की वजह से उनकी रोजी-रोटी पर आफत आ गई है। या तो उनके घरों के रास्ते खुलवाए जाएं या फिर गौड़ जाति के लोगों को गांव से हटकर पुलिस संरक्षण में सामूहिक रुप से थाने में रहने की अनुमति प्रदान की जाए।
उन्होंने कहा कि जब हम मवेशी चराने के बजाय कोई और काम करना चाहते हैं, तो हमें इसके लिए मजबूर क्यों किया जा रहा है? क्या हम आजाद देश के बाशिंदे नहीं हैं। हमें केस-मुकदमे से लेकर मारपीट की धमकी दी जा रही है। अगर हमें न्याय नहीं मिला, तो हमलोग आमरण अनशन पर बैठेंगे, जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होगी।
दरअसल यह मामला 5 जुलाई से चल रहा है। हैरान करने वाली बात यह है कि शुरुआत में थाना से लेकर एसडीओ तक मामला पहुंचा, लेकिन प्रशासनिक पदाधिकारियों ने भी समाज के लोगों पर दबाव बनाते हुए मवेशी चराने का फैसला सुना दिया था। इससे नाराज गौड़ समाज के लोगों ने पंद्रह दिन पहले भी उपायुक्त अनन्य मित्तल से मुलाकात कर इसकी जानकारी दी थी।
इसके बाद उपायुक्त के निर्देश पर एसडीओ ने गांव के सभी समुदायों के लोगों के साथ बैठक भी की थी। इस दौरान बंद किया गया रास्ता खोलने का निर्देश दिया गया था। इसके बाद भी इस मामले में गतिरोध बरकरार है।
—आईएएनएस
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