नई दिल्ली, 24 सितंबर (आईएएनएस)। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (डूसू) चुनाव की चार में से तीन सीटों पर भाजपा समर्थित एबीवीपी को जीत मिली है। डीयू के बुद्धिजीवियों का एक धड़ा इसे कांग्रेस समर्थित एनएसयूआई व अन्य विपक्षी छात्र संगठनों की रणनीतिक चूक व हार मान रहा है।
इन बुद्धिजीवियों का मानना है कि जिस प्रकार विपक्षी विचारधारा वाले शिक्षक एकजुट हुए हैं उसी तरह छात्रों को भी एकजुट होना चाहिए था।
दरअसल दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव के बाद अब चुनाव का अगला बड़ा मुकाम दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (डूटा) का चुनाव है। यह चुनाव 27 सितंबर को होना है। छात्र संघ चुनाव नतीजे को देखा जाए तो अभाविप के तुषार डेढ़ा को 23,460 वोट मिले और उन्होंने 3115 वोटों से अध्यक्ष पद जीता है। जबकि एनएसयूआई के हितेश गुलियां को 20345 वोट मिले। लेफ्ट समर्थित एसएफआई और आइसा छात्र संगठन को 5178 वोट मिले हैं।
छात्र राजनीति के पंडितों का कहना है कि भाजपा समर्थित छात्र संगठनों की मजबूती का एहसास सबको था। बावजूद इसके विपक्षी छात्र संगठन साथ नहीं आ सके। हालांकि दिल्ली विश्वविद्यालय में इस बार शिक्षकों की राजनीति छात्रों की राजनीति से बिल्कुल अलग है। यही कारण है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में कई विपक्षी शिक्षक संगठनो ने शिक्षक संघ (डूटा) चुनाव के लिए डेमोक्रेटिक यूनाइटेड टीचर्स अलायंस (डूटा) का गठन किया है।
इस गठबंधन ने डूटा अध्यक्ष पद के लिए डॉ. आदित्य नारायण मिश्रा को अपना उम्मीदवार बनाया है। आदित्य नारायण आम आदमी पार्टी के शिक्षक विंग से जुड़े हैं। आम आदमी पार्टी से जुड़े होने के बावजूद उन्हें कांग्रेस, लेफ्ट वह अन्य विपक्षी शिक्षक संगठनों का समर्थन हासिल है।
दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के मौजूदा अध्यक्ष व फिर से अध्यक्ष का चुनाव लड़ रहे प्रोफेसर एके भागी बीजेपी के करीबी हैं। यानी शिक्षक संघ चुनाव में भाजपा आरएसएस की विचारधारा वाले उम्मीदवार के खिलाफ शेष शिक्षक संगठन एकजुट हो गए हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय के सबसे बड़े शिक्षक संगठनों में से एक डीटीएफ के मुताबिक कांग्रेस की शिक्षक शाखा इंडियन नेशनल टीचर्स कांग्रेस, आप की एकेडमिक फॉर एक्शन एंड डेवलपमेंट टीचर्स एसोसिएशन और वामपंथी झुकाव वाले डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट और अन्य स्वतंत्र शिक्षक संघों जैसे कॉमन टीचर्स फ्रंट, दिल्ली टीचर्स इनिशिएटिव, इंडिपेंडेंट टीचर्स फ्रंट फॉर सोशल जस्टिस और समाजवादी शिक्षक मंच डूटा चुनाव में एक साथ हैं।
डीटीएफ का कहना है कि शिक्षकों की यह ऐतिहासिक रूप से अभूतपूर्व एकता डीयू के शिक्षकों, छात्रों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के सामने संभवत सबसे गंभीर चुनौतियों की पृष्ठभूमि में आई है। इस गठबंधन से बेपरवाह डूटा अध्यक्ष प्रोफेसर ए.के.भागी अपने काम के आधार पर बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रहे हैं। उनके मुताबिक, दिल्ली विश्वविद्यालय और इससे संबद्ध कालेजों के शिक्षकों ने तदर्थवाद, वर्षों तक पदोन्नति न मिलने का जो दर्द झेला हो, वो किसी से छिपा नहीं है।
ऐसे में कोरोना काल समूची मानव मानव जाति पर आपदा बनकर आया। 2021 में दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) की कमान शिक्षकों ने पूर्ण बहुमत के साथ उन्हें सौंपी।
भागी के मुताबिक ये समय था साबित करने का कि हम दूसरों से अलग हैं। हम समस्या को लेकर हंगामा नहीं बल्कि समाधान देते हैं। दो साल का यह समय बेहद चुनौतीपूर्ण रहा। लेकिन शिक्षक संघ ने जिस मुस्तैदी और नेकनीयत के साथ इस दौर में काम किया उसका गवाह वो हर एक तदर्थ शिक्षक है जिसने सालों तक तदर्थवाद का दंश झेला।
उन्होंने कहा कि यहां विनम्रता के साथ बस इतना ही कहा जा सकता है जो 2800 से अधिक स्थाई नियुक्तियां और 10 हजार से ज्यादा यूनिट्स पर शिक्षकों की पदोन्नतियों के साथ पदोन्नति की प्रक्रिया को सहज एवं स्वचालित बनाने काम अगर कोई भी समूह करता है तो उसकी चर्चा होना कतई अनुचित नहीं है।
भागी के मुताबिक उनके संगठन के नेतृत्व वाली डूटा ने महाविद्यालय, कॉलेजों में प्रोफेसरशिप और विभागों में सीनियर प्रोफेसरशिप के पद को लाकर शिक्षकों को वाजिब हक दिलाया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग(यूजीसी) की अनॉमली कमेटी रिपोर्ट, 1991 से पहले नियुक्त शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों के लिए सेवानिवृत्ति लाभ, चार वर्षीय स्नातक प्रोग्राम के 176 क्रेडिट्स के आधार पर शिक्षणकार्य की गणना भी उनकी उपलब्धि है।
भागी के मुताबिक इसके अलावा मातृत्व अवकाश, नॉन-पीएचडी धारकों के लिए असोसिएट प्रोफेसर तक के पदों तक पदोन्नति और 2018 रेगुलेशन्स के तहत भर्ती और पदोन्नति में एड-हॉक और पोस्ट-डॉक्टरल अनुभव को शामिल करना इत्यादि उनकी उपलब्धियां में शामिल है।
–आईएएनएस
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