नई दिल्ली, 12 नवंबर (आईएएनएस)। हाल के दिनों में भारत में साइबर सुरक्षा घटनाओं में वृद्धि देखी गई है। इससे नागरिक और अधिकारी इस सवाल से जूझ रहे हैं कि व्यक्तिगत डेटा उल्लंघनों की खतरनाक घटनाओं के पीछे कौन है, और उनकी प्रेरणा क्या है?
बैंकिंग, स्वास्थ्य सेवा और ई-कॉमर्स सहित कई क्षेत्रों में कई हाई-प्रोफ़ाइल उल्लंघनों के मामले सामने आए हैं, जिससे हजारों व्यक्तियों की व्यक्तिगत जानकारी उजागर हो गई है। डिजिटल युग में संवेदनशील डेटा की भेद्यता के बारे में चिंता बढ़ गई है।
एक अमेरिकी साइबर सुरक्षा फर्म, रिसिक्योरिटी ने 15 अक्टूबर को रहस्योद्घाटन किया कि 81.5 करोड़ भारतीयों की व्यक्तिगत पहचान योग्य जानकारी (पीआईआई), जिसमें आधार संख्या और पासपोर्ट विवरण शामिल हैं, को डार्क वेब पर बेचा जा रहा है। इस व्यापक डेटा की कीमत 80,000 डॉलर लगाई जा रही है।
इस डेटा के कथित स्रोत के बारे में दावा किया गया था कि इसे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) से चुराया गया था। विशेष रूप से, आईसीएमआर को साइबर हमले के कई प्रयासों का सामना करना पड़ा है। अकेले पिछले साल उसे छह हजार से अधिक घटनाएं दर्ज की गई थीं।
व्यक्तिगत रूप से पहचाने जाने योग्य जानकारी में वे विवरण शामिल होते हैं, जिनका स्वतंत्र रूप से या अन्य प्रासंगिक डेटा के साथ संयोजन में उपयोग किए जाने पर, किसी व्यक्ति की जासूसी की जा सकती है, उसका पता लगाया जा सकता है और उसकी पहचान की जा सकती है।
डार्क वेब पर बिक्री के लिए उपलब्ध डेटा में आधार नंबर, पासपोर्ट जानकारी आदि शामिल हैं।
इन घटनाओं ने डिजिटल युग में अपनी व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा को लेकर जनता के बीच चिंता पैदा कर दी है। कई लोग सवाल कर रहे हैं कि इन उल्लंघनों के पीछे कौन है और उनकी प्रेरणा क्या हो सकती है।
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का सुझाव है कि वित्तीय लाभ चाहने वाले स्वतंत्र हैकरों से लेकर खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के उद्देश्य से सरकार-प्रायोजित परिष्कृत समूहों तक शामिल हो सकते हैं।
इन उल्लंघनों के पीछे के उद्देश्य व्यापक रूप से भिन्न हो सकते हैं। कुछ हैकर्स वित्तीय प्रोत्साहन से प्रेरित होते हैं, जिनका लक्ष्य लाभ के लिए चुराए गए डेटा को डार्क वेब पर बेचना होता है। अन्य लोग राजनीतिक या वैचारिक कारणों से प्रेरित हो सकते हैं, जो संस्थानों को बाधित करने और कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।
वरिष्ठ वकील और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ पवन दुग्गल कहते हैं, “जब साइबर सुरक्षा की बात आती है तो भारत को बहुआयामी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। हम घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय खतरे वाले तत्वों के संयोजन से निपट रहे हैं जो व्यक्तिगत डेटा हासिल करने के लिए लगातार अपने तरीके विकसित कर रहे हैं।”
दुग्गल कहते हैं, “इन उल्लंघनों के पीछे की प्रेरणाएं विविध और जटिल हैं। हम वित्तीय रूप से प्रेरित हमलों, राज्य प्रायोजित जासूसी और हैक्टिविज्म का मिश्रण देख रहे हैं। प्रभावी जवाबी उपाय विकसित करने के लिए इरादे को समझना महत्वपूर्ण है।”
भारत सरकार ने बढ़ते खतरे पर ध्यान दिया है और देश के साइबर सुरक्षा बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने हालिया उल्लंघनों की जांच शुरू कर दी है और अपराधियों की पहचान करने के लिए साइबर सुरक्षा एजेंसियों के साथ सहयोग कर रहा है।
मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा था, “सरकार देश के डिजिटल परिदृश्य की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। हम अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों में निवेश कर रहे हैं, विशेषज्ञों के साथ सहयोग कर रहे हैं और साइबरस्पेस की उभरती चुनौतियों का समाधान करने के लिए व्यापक कानून का मसौदा तैयार कर रहे हैं।”
विशेषज्ञ व्यक्तियों और संगठनों द्वारा मजबूत साइबर सुरक्षा प्रथाओं को अपनाने के महत्व पर जोर देते हैं। इसमें नियमित रूप से पासवर्ड अपडेट करना, मल्टी-फैक्टर प्रमाणीकरण लागू करना और नवीनतम सुरक्षा खतरों के बारे में सूचित रहना शामिल है।
जैसे-जैसे जांच सामने आ रही है, भारत के डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में कमजोरियों को दूर करने और नागरिकों को साइबर हमलों के बढ़ते खतरे से बचाने के लिए सरकार और निजी संस्थाओं दोनों के लिए सहयोग करना महत्वपूर्ण है।
–आईएएनएस
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