नई दिल्ली, 21 दिसंबर (आईएएनएस) । दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार से चल और अचल संपत्ति दस्तावेजों को आधार से जोड़ने की मांग वाली याचिका पर अभ्यावेदन के रूप में विचार करने को कहा।
न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति गिरीश कठपालिया की खंडपीठ ने कहा कि ये नीतिगत फैसले हैं और अदालतें सरकार से ऐसा करने के लिए नहीं कह सकतीं।
हालांकि, इसमें कहा गया कि प्रतिनिधित्व पर सरकार तीन महीने के भीतर फैसला करेगी।
याचिका 2019 में भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर की गई थी। उनका कहना है कि चल-अचल संपत्तियों को मालिक के आधार नंबर से जोड़ने से भ्रष्टाचार, काले धन और बेनामी लेनदेन पर अंकुश लगेगा।
अदालत ने कहा,“ये नीतिगत निर्णय हैं, अदालतें उन्हें ऐसा करने के लिए कैसे कह सकती हैं। प्रथमदृष्टया, जो बात मुझे समझ में नहीं आ रही है वह यह है कि ये ऐसे क्षेत्र हैं, जिनके बारे में हमारे पास पूरी तस्वीर या डेटा नहीं है, कौन से विभिन्न पहलू सामने आ सकते हैं।”
पीठ ने कहा कि सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि उन्हें इसे एक प्रतिनिधित्व के रूप में माना जाए और उन्हें निर्णय लेने दिया जाए।
इससे पहले अदालत ने याचिका पर जवाब देने के लिए केंद्र और आप सरकार को चार सप्ताह का समय दिया था।
पीठ ने वित्त मंत्रालय, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (एमओएचयूए), ग्रामीण विकास मंत्रालय और कानून मंत्रालय, दिल्ली सरकार और यूआईडीएआई को याचिका पर अपनी प्रतिक्रिया दाखिल करने के लिए समय दिया था।
अप्रैल में, केंद्र के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा ने कहा था कि यह मामला एक महत्वपूर्ण मुद्दा सामने लाता है।
उपाध्याय ने कहा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के आलोक में, सरकार भ्रष्टाचार और काले धन पर अंकुश लगाने और बेनामी संपत्तियों को जब्त करने के लिए उचित कदम उठाने के लिए बाध्य है।
“काला धन धारकों को अपनी गैर-लेखापरीक्षित चल और अचल संपत्तियों की घोषणा करने के लिए मजबूर किया जाएगा और इतनी बेनामी संपत्ति फिर से उत्पन्न करने में कई साल लगेंगे। इस प्रकार, लंबे समय तक यह काले धन के सृजन को समाप्त करने में मदद करेगा।
वार्षिक वृद्धि के बारे में बात करते हुए, उपाध्याय ने दावा किया है कि अगर सरकार ने संपत्ति दस्तावेजों को आधार से जोड़ना अनिवार्य कर दिया, तो इससे दो प्रतिशत की वृद्धि होगी।
–आईएएनएस
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