नई दिल्ली, 21 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने एनएसई कर्मचारियों की अवैध फोन टैपिंग मामले में मंगलवार को नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की पूर्व एमडी और सीईओ चित्रा रामकृष्ण की जमानत को चुनौती देने वाली सीबीआई को अपना पक्ष रखने के लिए चार सप्ताह का समय दिया।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने उन्हें जमानत देने के 22 दिसंबर, 2022 के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।
उच्च न्यायालय ने मामले को 3 अप्रैल को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया, जिससे रामकृष्ण के वकील को सीबीआई की याचिका पर लिखित प्रतिक्रिया दाखिल करने का समय मिल गया।
इससे पहले, 9 फरवरी को हाईकोर्ट ने घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उन्हें जमानत दे दी थी।
इस महीने की शुरुआत में रामकृष्ण ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (पीसी अधिनियम) के तहत ‘सार्वजनिक कर्तव्य’ और ‘लोक सेवक’ की परिभाषाओं को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस शलिंदर कौर की खंडपीठ ने सुनवाई 19 दिसंबर तय करते हुए केंद्र सरकार और सीबीआई से जवाब मांगा है।
रामकृष्ण ने पीसी अधिनियम की धारा 2(बी) और 2(सी)(viii) का विरोध करते हुए तर्क दिया है कि वे सार्वजनिक भूमिका नहीं निभाने वाले व्यक्तियों को गलत तरीके से फंसा सकते हैं।
एनएसई सह-स्थान घोटाले के आरोपी रामकृष्ण पर कर्मचारियों के पदनाम और मुआवजे में हेरफेर करने का आरोप है।
रामकृष्ण का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एन. हरिहरन ने कंपनी अधिनियम के तहत एनएसई की निजी कंपनी की स्थिति पर जोर देते हुए कहा था कि ये परिभाषाएं गलत तरीके से निजी व्यक्तियों तक फैली हुई हैं।
हरिहरन ने अभियोजन मंजूरी की वैधता पर भी सवाल उठाया था और तर्क दिया था कि इसमें उचित औचित्य का अभाव है। उन्होंने तर्क दिया था कि मंजूरी रद्द करने से विशेष अदालत का अधिकार क्षेत्र ख़तरे में पड़ जाएगा, जिसका सीबीआई के वकील अनुपम एस. शर्मा ने खंडन किया।
शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट की एक मिसाल का हवाला देते हुए कहा कि सरकार की ओर से “थोड़ी सी सहायता” भी संगठन के कर्मचारियों को लोक सेवकों के रूप में वर्गीकृत कर सकती है।
–आईएएनएस
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