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Home ताज़ा समाचार

देश में धूम मचा रहा कुशीनगर का केला

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October 8, 2024
in ताज़ा समाचार
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लखनऊ, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश सरकार की ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ओडीओपी) योजना ने कुशीनगर के केले को देशभर में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। इस योजना के तहत केले की खेती को उद्योग का दर्जा मिला है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं और किसानों की आय में जबरदस्त वृद्धि हुई है।

कृषि जानकारों के अनुसार लगभग 17 साल पहले जहां सिर्फ 500 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, आज यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। गोरखपुर मंडल के सभी जिलों के साथ कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग इसके स्वाद के मुरीद तो हैं ही, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी पहुंच बन गई है। अब यहां रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है तो किसानों के चेहरों से गायब हुई खुशियां भी लौटीं हैं।

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कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी 9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है।

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) घोषित करने के बाद केले की खेती और इसके प्रसंस्करण से उप-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट्स) बनाने का रुझान बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार, और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया और चप्पल आदि बना रही हैं। इन उत्पादों की अच्छी-खासी मांग और लोकप्रियता भी है।

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती थी, जो अब बढ़कर करीब 16,000 हेक्टेयर तक हो गई है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर किसानों को लगभग 31,000 रुपए का अनुदान भी प्रदान करती है। इस बावत कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने बहुत प्रयास किये।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

–आईएएनएस

विकेटी/एएस

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लखनऊ, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश सरकार की ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ओडीओपी) योजना ने कुशीनगर के केले को देशभर में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। इस योजना के तहत केले की खेती को उद्योग का दर्जा मिला है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं और किसानों की आय में जबरदस्त वृद्धि हुई है।

कृषि जानकारों के अनुसार लगभग 17 साल पहले जहां सिर्फ 500 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, आज यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। गोरखपुर मंडल के सभी जिलों के साथ कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग इसके स्वाद के मुरीद तो हैं ही, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी पहुंच बन गई है। अब यहां रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है तो किसानों के चेहरों से गायब हुई खुशियां भी लौटीं हैं।

कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी 9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है।

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) घोषित करने के बाद केले की खेती और इसके प्रसंस्करण से उप-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट्स) बनाने का रुझान बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार, और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया और चप्पल आदि बना रही हैं। इन उत्पादों की अच्छी-खासी मांग और लोकप्रियता भी है।

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती थी, जो अब बढ़कर करीब 16,000 हेक्टेयर तक हो गई है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर किसानों को लगभग 31,000 रुपए का अनुदान भी प्रदान करती है। इस बावत कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने बहुत प्रयास किये।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

–आईएएनएस

विकेटी/एएस

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लखनऊ, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश सरकार की ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ओडीओपी) योजना ने कुशीनगर के केले को देशभर में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। इस योजना के तहत केले की खेती को उद्योग का दर्जा मिला है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं और किसानों की आय में जबरदस्त वृद्धि हुई है।

कृषि जानकारों के अनुसार लगभग 17 साल पहले जहां सिर्फ 500 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, आज यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। गोरखपुर मंडल के सभी जिलों के साथ कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग इसके स्वाद के मुरीद तो हैं ही, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी पहुंच बन गई है। अब यहां रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है तो किसानों के चेहरों से गायब हुई खुशियां भी लौटीं हैं।

कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी 9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है।

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) घोषित करने के बाद केले की खेती और इसके प्रसंस्करण से उप-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट्स) बनाने का रुझान बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार, और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया और चप्पल आदि बना रही हैं। इन उत्पादों की अच्छी-खासी मांग और लोकप्रियता भी है।

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती थी, जो अब बढ़कर करीब 16,000 हेक्टेयर तक हो गई है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर किसानों को लगभग 31,000 रुपए का अनुदान भी प्रदान करती है। इस बावत कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने बहुत प्रयास किये।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

–आईएएनएस

विकेटी/एएस

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लखनऊ, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश सरकार की ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ओडीओपी) योजना ने कुशीनगर के केले को देशभर में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। इस योजना के तहत केले की खेती को उद्योग का दर्जा मिला है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं और किसानों की आय में जबरदस्त वृद्धि हुई है।

कृषि जानकारों के अनुसार लगभग 17 साल पहले जहां सिर्फ 500 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, आज यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। गोरखपुर मंडल के सभी जिलों के साथ कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग इसके स्वाद के मुरीद तो हैं ही, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी पहुंच बन गई है। अब यहां रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है तो किसानों के चेहरों से गायब हुई खुशियां भी लौटीं हैं।

कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी 9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है।

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) घोषित करने के बाद केले की खेती और इसके प्रसंस्करण से उप-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट्स) बनाने का रुझान बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार, और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया और चप्पल आदि बना रही हैं। इन उत्पादों की अच्छी-खासी मांग और लोकप्रियता भी है।

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती थी, जो अब बढ़कर करीब 16,000 हेक्टेयर तक हो गई है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर किसानों को लगभग 31,000 रुपए का अनुदान भी प्रदान करती है। इस बावत कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने बहुत प्रयास किये।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

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कृषि जानकारों के अनुसार लगभग 17 साल पहले जहां सिर्फ 500 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, आज यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। गोरखपुर मंडल के सभी जिलों के साथ कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग इसके स्वाद के मुरीद तो हैं ही, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी पहुंच बन गई है। अब यहां रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है तो किसानों के चेहरों से गायब हुई खुशियां भी लौटीं हैं।

कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी 9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है।

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) घोषित करने के बाद केले की खेती और इसके प्रसंस्करण से उप-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट्स) बनाने का रुझान बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार, और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया और चप्पल आदि बना रही हैं। इन उत्पादों की अच्छी-खासी मांग और लोकप्रियता भी है।

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती थी, जो अब बढ़कर करीब 16,000 हेक्टेयर तक हो गई है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर किसानों को लगभग 31,000 रुपए का अनुदान भी प्रदान करती है। इस बावत कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने बहुत प्रयास किये।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

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लखनऊ, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश सरकार की ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ओडीओपी) योजना ने कुशीनगर के केले को देशभर में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। इस योजना के तहत केले की खेती को उद्योग का दर्जा मिला है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं और किसानों की आय में जबरदस्त वृद्धि हुई है।

कृषि जानकारों के अनुसार लगभग 17 साल पहले जहां सिर्फ 500 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, आज यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। गोरखपुर मंडल के सभी जिलों के साथ कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग इसके स्वाद के मुरीद तो हैं ही, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी पहुंच बन गई है। अब यहां रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है तो किसानों के चेहरों से गायब हुई खुशियां भी लौटीं हैं।

कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी 9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है।

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) घोषित करने के बाद केले की खेती और इसके प्रसंस्करण से उप-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट्स) बनाने का रुझान बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार, और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया और चप्पल आदि बना रही हैं। इन उत्पादों की अच्छी-खासी मांग और लोकप्रियता भी है।

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती थी, जो अब बढ़कर करीब 16,000 हेक्टेयर तक हो गई है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर किसानों को लगभग 31,000 रुपए का अनुदान भी प्रदान करती है। इस बावत कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने बहुत प्रयास किये।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

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लखनऊ, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश सरकार की ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ओडीओपी) योजना ने कुशीनगर के केले को देशभर में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। इस योजना के तहत केले की खेती को उद्योग का दर्जा मिला है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं और किसानों की आय में जबरदस्त वृद्धि हुई है।

कृषि जानकारों के अनुसार लगभग 17 साल पहले जहां सिर्फ 500 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, आज यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। गोरखपुर मंडल के सभी जिलों के साथ कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग इसके स्वाद के मुरीद तो हैं ही, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी पहुंच बन गई है। अब यहां रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है तो किसानों के चेहरों से गायब हुई खुशियां भी लौटीं हैं।

कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी 9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है।

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) घोषित करने के बाद केले की खेती और इसके प्रसंस्करण से उप-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट्स) बनाने का रुझान बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार, और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया और चप्पल आदि बना रही हैं। इन उत्पादों की अच्छी-खासी मांग और लोकप्रियता भी है।

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती थी, जो अब बढ़कर करीब 16,000 हेक्टेयर तक हो गई है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर किसानों को लगभग 31,000 रुपए का अनुदान भी प्रदान करती है। इस बावत कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने बहुत प्रयास किये।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

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लखनऊ, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश सरकार की ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ओडीओपी) योजना ने कुशीनगर के केले को देशभर में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। इस योजना के तहत केले की खेती को उद्योग का दर्जा मिला है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं और किसानों की आय में जबरदस्त वृद्धि हुई है।

कृषि जानकारों के अनुसार लगभग 17 साल पहले जहां सिर्फ 500 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, आज यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। गोरखपुर मंडल के सभी जिलों के साथ कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग इसके स्वाद के मुरीद तो हैं ही, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी पहुंच बन गई है। अब यहां रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है तो किसानों के चेहरों से गायब हुई खुशियां भी लौटीं हैं।

कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी 9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है।

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) घोषित करने के बाद केले की खेती और इसके प्रसंस्करण से उप-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट्स) बनाने का रुझान बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार, और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया और चप्पल आदि बना रही हैं। इन उत्पादों की अच्छी-खासी मांग और लोकप्रियता भी है।

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती थी, जो अब बढ़कर करीब 16,000 हेक्टेयर तक हो गई है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर किसानों को लगभग 31,000 रुपए का अनुदान भी प्रदान करती है। इस बावत कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने बहुत प्रयास किये।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

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लखनऊ, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश सरकार की ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ओडीओपी) योजना ने कुशीनगर के केले को देशभर में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। इस योजना के तहत केले की खेती को उद्योग का दर्जा मिला है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं और किसानों की आय में जबरदस्त वृद्धि हुई है।

कृषि जानकारों के अनुसार लगभग 17 साल पहले जहां सिर्फ 500 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, आज यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। गोरखपुर मंडल के सभी जिलों के साथ कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग इसके स्वाद के मुरीद तो हैं ही, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी पहुंच बन गई है। अब यहां रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है तो किसानों के चेहरों से गायब हुई खुशियां भी लौटीं हैं।

कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी 9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है।

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) घोषित करने के बाद केले की खेती और इसके प्रसंस्करण से उप-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट्स) बनाने का रुझान बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार, और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया और चप्पल आदि बना रही हैं। इन उत्पादों की अच्छी-खासी मांग और लोकप्रियता भी है।

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती थी, जो अब बढ़कर करीब 16,000 हेक्टेयर तक हो गई है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर किसानों को लगभग 31,000 रुपए का अनुदान भी प्रदान करती है। इस बावत कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने बहुत प्रयास किये।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

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लखनऊ, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश सरकार की ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ओडीओपी) योजना ने कुशीनगर के केले को देशभर में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। इस योजना के तहत केले की खेती को उद्योग का दर्जा मिला है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं और किसानों की आय में जबरदस्त वृद्धि हुई है।

कृषि जानकारों के अनुसार लगभग 17 साल पहले जहां सिर्फ 500 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, आज यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। गोरखपुर मंडल के सभी जिलों के साथ कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग इसके स्वाद के मुरीद तो हैं ही, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी पहुंच बन गई है। अब यहां रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है तो किसानों के चेहरों से गायब हुई खुशियां भी लौटीं हैं।

कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी 9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है।

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) घोषित करने के बाद केले की खेती और इसके प्रसंस्करण से उप-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट्स) बनाने का रुझान बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार, और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया और चप्पल आदि बना रही हैं। इन उत्पादों की अच्छी-खासी मांग और लोकप्रियता भी है।

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती थी, जो अब बढ़कर करीब 16,000 हेक्टेयर तक हो गई है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर किसानों को लगभग 31,000 रुपए का अनुदान भी प्रदान करती है। इस बावत कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने बहुत प्रयास किये।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

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लखनऊ, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश सरकार की ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ओडीओपी) योजना ने कुशीनगर के केले को देशभर में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। इस योजना के तहत केले की खेती को उद्योग का दर्जा मिला है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं और किसानों की आय में जबरदस्त वृद्धि हुई है।

कृषि जानकारों के अनुसार लगभग 17 साल पहले जहां सिर्फ 500 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, आज यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। गोरखपुर मंडल के सभी जिलों के साथ कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग इसके स्वाद के मुरीद तो हैं ही, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी पहुंच बन गई है। अब यहां रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है तो किसानों के चेहरों से गायब हुई खुशियां भी लौटीं हैं।

कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी 9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है।

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) घोषित करने के बाद केले की खेती और इसके प्रसंस्करण से उप-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट्स) बनाने का रुझान बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार, और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया और चप्पल आदि बना रही हैं। इन उत्पादों की अच्छी-खासी मांग और लोकप्रियता भी है।

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती थी, जो अब बढ़कर करीब 16,000 हेक्टेयर तक हो गई है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर किसानों को लगभग 31,000 रुपए का अनुदान भी प्रदान करती है। इस बावत कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने बहुत प्रयास किये।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

–आईएएनएस

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कृषि जानकारों के अनुसार लगभग 17 साल पहले जहां सिर्फ 500 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, आज यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। गोरखपुर मंडल के सभी जिलों के साथ कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग इसके स्वाद के मुरीद तो हैं ही, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी पहुंच बन गई है। अब यहां रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है तो किसानों के चेहरों से गायब हुई खुशियां भी लौटीं हैं।

कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी 9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है।

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) घोषित करने के बाद केले की खेती और इसके प्रसंस्करण से उप-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट्स) बनाने का रुझान बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार, और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया और चप्पल आदि बना रही हैं। इन उत्पादों की अच्छी-खासी मांग और लोकप्रियता भी है।

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती थी, जो अब बढ़कर करीब 16,000 हेक्टेयर तक हो गई है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर किसानों को लगभग 31,000 रुपए का अनुदान भी प्रदान करती है। इस बावत कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने बहुत प्रयास किये।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

–आईएएनएस

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लखनऊ, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश सरकार की ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ओडीओपी) योजना ने कुशीनगर के केले को देशभर में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। इस योजना के तहत केले की खेती को उद्योग का दर्जा मिला है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं और किसानों की आय में जबरदस्त वृद्धि हुई है।

कृषि जानकारों के अनुसार लगभग 17 साल पहले जहां सिर्फ 500 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, आज यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। गोरखपुर मंडल के सभी जिलों के साथ कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग इसके स्वाद के मुरीद तो हैं ही, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी पहुंच बन गई है। अब यहां रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है तो किसानों के चेहरों से गायब हुई खुशियां भी लौटीं हैं।

कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी 9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है।

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) घोषित करने के बाद केले की खेती और इसके प्रसंस्करण से उप-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट्स) बनाने का रुझान बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार, और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया और चप्पल आदि बना रही हैं। इन उत्पादों की अच्छी-खासी मांग और लोकप्रियता भी है।

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती थी, जो अब बढ़कर करीब 16,000 हेक्टेयर तक हो गई है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर किसानों को लगभग 31,000 रुपए का अनुदान भी प्रदान करती है। इस बावत कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने बहुत प्रयास किये।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

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लखनऊ, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश सरकार की ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ओडीओपी) योजना ने कुशीनगर के केले को देशभर में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। इस योजना के तहत केले की खेती को उद्योग का दर्जा मिला है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं और किसानों की आय में जबरदस्त वृद्धि हुई है।

कृषि जानकारों के अनुसार लगभग 17 साल पहले जहां सिर्फ 500 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, आज यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। गोरखपुर मंडल के सभी जिलों के साथ कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग इसके स्वाद के मुरीद तो हैं ही, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी पहुंच बन गई है। अब यहां रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है तो किसानों के चेहरों से गायब हुई खुशियां भी लौटीं हैं।

कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी 9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है।

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) घोषित करने के बाद केले की खेती और इसके प्रसंस्करण से उप-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट्स) बनाने का रुझान बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार, और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया और चप्पल आदि बना रही हैं। इन उत्पादों की अच्छी-खासी मांग और लोकप्रियता भी है।

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती थी, जो अब बढ़कर करीब 16,000 हेक्टेयर तक हो गई है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर किसानों को लगभग 31,000 रुपए का अनुदान भी प्रदान करती है। इस बावत कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने बहुत प्रयास किये।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

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कृषि जानकारों के अनुसार लगभग 17 साल पहले जहां सिर्फ 500 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, आज यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। गोरखपुर मंडल के सभी जिलों के साथ कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग इसके स्वाद के मुरीद तो हैं ही, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी पहुंच बन गई है। अब यहां रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है तो किसानों के चेहरों से गायब हुई खुशियां भी लौटीं हैं।

कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी 9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है।

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) घोषित करने के बाद केले की खेती और इसके प्रसंस्करण से उप-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट्स) बनाने का रुझान बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार, और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया और चप्पल आदि बना रही हैं। इन उत्पादों की अच्छी-खासी मांग और लोकप्रियता भी है।

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती थी, जो अब बढ़कर करीब 16,000 हेक्टेयर तक हो गई है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर किसानों को लगभग 31,000 रुपए का अनुदान भी प्रदान करती है। इस बावत कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने बहुत प्रयास किये।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

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कृषि जानकारों के अनुसार लगभग 17 साल पहले जहां सिर्फ 500 हेक्टेयर में केले की खेती होती थी, आज यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। गोरखपुर मंडल के सभी जिलों के साथ कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग इसके स्वाद के मुरीद तो हैं ही, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी पहुंच बन गई है। अब यहां रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है तो किसानों के चेहरों से गायब हुई खुशियां भी लौटीं हैं।

कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी 9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है।

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) घोषित करने के बाद केले की खेती और इसके प्रसंस्करण से उप-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट्स) बनाने का रुझान बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार, और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया और चप्पल आदि बना रही हैं। इन उत्पादों की अच्छी-खासी मांग और लोकप्रियता भी है।

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती थी, जो अब बढ़कर करीब 16,000 हेक्टेयर तक हो गई है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर किसानों को लगभग 31,000 रुपए का अनुदान भी प्रदान करती है। इस बावत कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने बहुत प्रयास किये।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

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