प्रयागराज, 2 जून (आईएएनएस)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि पसंद का नाम रखने या व्यक्तिगत पसंद के अनुसार नाम बदलने का अधिकार भारत के संविधान में निहित मौलिक अधिकारों के दायरे में आता है।
न्यायमूर्ति अजय भनोट ने समीर राव की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया, जिसमें उत्तर प्रदेश के बरेली में माध्यमिक शिक्षा परिषद के क्षेत्रीय सचिव ने नाम बदलने वाले एक आवेदन को खारिज कर दिया था।
हाईकोर्ट ने उत्तरदाताओं को याचिकाकर्ता को शाहनवाज से एमडी समीर राव में अपना नाम बदलने और उक्त परिवर्तन को शामिल करते हुए नए हाई स्कूल (कक्षा 10) और इंटरमीडिएट (कक्षा 12) प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता ने हाई स्कूल और इंटरमीडिएट शिक्षा बोर्ड द्वारा हाई स्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा प्रमाणपत्रों में अपना नाम बदलने के लिए अपने आवेदन की अस्वीकृति को चुनौती दी थी।
अपने फैसले में, हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि पसंद का नाम रखने या व्यक्तिगत वरीयता के अनुसार नाम बदलने का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) (अ), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के दायरे में आता है।
हाईकोर्ट ने कहा, अधिकारियों ने मनमाने ढंग से नाम बदलने के आवेदन को खारिज कर दिया और कानून में खुद को गलत तरीके से निर्देशित किया। अधिकारियों की कार्रवाई अनुच्छेद 19 (1) (ए), अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 14 के तहत गारंटीकृत याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।
तथ्यों के अनुसार, माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा 2013 और 2015 में जारी किए गए हाई स्कूल परीक्षा प्रमाण पत्र और इंटरमीडिएट परीक्षा प्रमाण पत्र में याचिकाकर्ता का नाम क्रमश: शाहनवाज के रूप में दर्ज था।
सितंबर-अक्टूबर 2020 में, उसने सार्वजनिक रूप से अपना नाम शाहनवाज से बदलकर एमडी समीर राव करने का खुलासा किया।
इसके बाद, उसने 2020 में बोर्ड में अपना नाम शाहनवाज से बदलकर एमडी समीर राव करने के लिए आवेदन किया। 24 दिसंबर, 2020 उक्त आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया था।
–आईएएनएस
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