नई दिल्ली, 29 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने एक सामान्य निर्देश जारी करते हुए आदेश दिया है कि उसके समक्ष उच्च न्यायालयों या अधीनस्थ अदालतों में दायर किसी भी याचिका या कार्यवाही में पक्षकारों के ज्ञापन में वादियों की जाति या धर्म का उल्लेख नहीं किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने एक स्थानांतरण याचिका पर सुनवाई करते हुए आश्चर्य से कहा कि अन्य विवरणों के अलावा, पार्टियों के ज्ञापन में दोनों पक्षों की जाति का उल्लेख किया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि यदि नीचे की अदालतों के समक्ष दायर पक्षों के ज्ञापन में किसी भी तरह से बदलाव किया जाता है, तो रजिस्ट्री आपत्ति उठाती है और वर्तमान मामले में चूंकि दोनों पक्षों की जाति का उल्लेख निचली अदालत के समक्ष किया गया था, इसलिए उनके पास कोई आपत्ति नहीं है। शीर्ष अदालत के समक्ष कार्यवाही में उनकी जाति का उल्लेख करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
इस पर, अदालत ने कहा : “हमें इस अदालत या नीचे की अदालतों के समक्ष किसी भी वादी की जाति या धर्म का उल्लेख करने का कोई कारण नहीं दिखता। इस तरह की प्रथा को त्याग दिया जाना चाहिए और इसे तुरंत बंद किया जाना चाहिए।”
इसने अपनी रजिस्ट्री को निर्देश देते हुए एक आदेश पारित किया कि अब से पार्टियों के ज्ञापन में पार्टियों की जाति या धर्म का उल्लेख नहीं किया जाएगा, भले ही ऐसा कोई विवरण निचली अदालतों के समक्ष प्रस्तुत किया गया हो।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी उच्च न्यायालयों को यह सुनिश्चित करने के लिए एक निर्देश भी जारी किया कि उनके या उनके संबंधित अधिकार क्षेत्र के तहत अधीनस्थ अदालतों में दायर किसी भी याचिका या मुकदमे या कार्यवाही में पक्षकारों के ज्ञापन में किसी वादी की जाति या धर्म का उल्लेख नहीं किया जाए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि उसके आदेश की एक प्रति सख्ती से अनुपालन के लिए सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों को भेजी जाएगी और इसके निर्देशों को तत्काल अनुपालन के लिए बार के सदस्यों के ध्यान में लाया जाएगा।
–आईएएनएस
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