श्रीनगर, 27 मई (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नौ साल के कार्यकाल ने जम्मू-कश्मीर को खून से लथपथ उथल-पुथल वाली भूमि से आशा और उम्मीदों की भूमि में बदल दिया है।
जम्मू-कश्मीर 1990 के बाद से हिंसा के एक स्तर से दूसरे स्तर पर चला गया। इस दौरान सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों अनाथ हो गए। जबकि एक पूरे अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडित समुदाय पर बहुत अत्याचार किया गया और उन्हें उनके घरों से बाहर कर दिया गया था।
देश में मोदी के सत्ता की बागडोर संभालने से पहले कश्मीर भारत के नजरिए से एक खोई हुई भूमि की तरह दिखता था। यहां तक कि राष्ट्रवाद के एक दूरस्थ संदर्भ का मतलब उग्रवादियों से प्रतिशोध था। जिस किसी ने भी भारतीय होने का दावा किया, उसे भारतीय एजेंट करार दिया जाता।
आम आदमी आतंकवादियों और सुरक्षाबलों के बीच गोलीबारी में फंस गया था। हथियारों से लैस अलगाववादी रात के दौरान घरों में घुसकर निवासियों को भोजन और आश्रय देने के लिए मजबूर करते हैं।
सुरक्षाबल दिन के समय जहां अलगाववादियों ने शरण ली हुई है वहां तोड़फोड़ करने आते हैं। शिक्षा, व्यवसाय और जीवन की सामान्य गतिविधियां अलगाववादियों द्वारा बंद के आह्वान और अधिकारियों द्वारा घोषित कर्फ्यू के कारण बंधक बनी रहीं।
राज्य की हुकूमत सरकारी कार्यालयों के भीतर चलती थी जबकि अलगाववादियों ने ग्राउंड पर गोलियां चलाईं। अलगाववादियों ने डराने-धमकाने और बल प्रयोग से विभिन्न सरकारी सेवाओं, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में घुसपैठ की, जबकि प्रशासन बेबस नजर आ रहा था।
मोदी यह सब बदलने के लिए प्रतिबद्ध लग रहे थे। धीरे-धीरे और लगातार, सुरक्षाबलों ने जमीन पर नियंत्रण कर लिया। केवल आतंकवादी हमलों का जवाब देने से लेकर जमीन पर उग्रवादियों का आक्रामक पीछा करने तक सुरक्षाबलों की भूमिका को बदलना कोई आसान काम नहीं था।
टेरर फंडिंग कश्मीर में एक तरह का उद्योग बन गया था। पिछले 9 वर्षों के दौरान, सुरक्षाबलों द्वारा आतंकी फंडिंग के लगभग सभी माध्यमों को नष्ट कर दिया गया है।बंद और पथराव करने वालों के खिलाफ कर्रवाई करके उन्हें जेल में डाल दिया गया। इन नौ वर्षों के दौरान नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में असंभव को संभव कर दिखाया।
केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त कर दिया। विशेष दर्जे को समाप्त करके जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करके जो असंभव लग रहा था, उस संभव किया।
प्रशासन को प्रभावी बनाया गया। भ्रष्टाचार विरोधी संगठन को और अधिक ताकत दी गई और ग्राम पंचायतों तथा शहरी स्थानीय निकायों को सही मायने में सार्वजनिक संस्था बनाकर जमीनी स्तर पर लोगों को सशक्त बनाया गया।
देश के अन्य राज्यों की तर्ज पर पंचायती राज की स्थापना की गई और इन बुनियादी लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए चुनाव हुए। तीन दशकों की हिंसा के दौरान पर्यटन को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। इस क्षेत्र में एक वास्तविक बदलाव हासिल किया गया था।
पिछले साल 1.75 करोड़ पर्यटकों की रिकॉर्ड संख्या ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया और इसमें माता वैष्णो देवी मंदिर और अमरनाथ गुफा मंदिर के तीर्थयात्री शामिल नहीं हैं। शैक्षणिक संस्थान सामान्य रूप से काम कर रहे हैं जबकि कारोबार एक बार फिर पटरी पर लौट आया है।
जम्मू-कश्मीर में निवेश करने के लिए बड़े औद्योगिक और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा प्रस्तावों ने स्थानीय युवाओं के लिए नए अवसर खोले हैं। हो सकता है कि हिंसा पूरी तरह खत्म न हुई हो, लेकिन यह निश्चित रूप से उसके किनारों पर चली गई है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नरेंद्र मोदी के नौ साल के शासन के दौरान अलगाववाद ने कश्मीर में हमदर्द खो दिए हैं।
अपने नौ वर्षों के कार्यकाल के दौरान नरेंद्र मोदी जम्मू-कश्मीर में हर नागरिक को शांति और विकास में एक हितधारक बनाने में बदलाव लाने में सफल रहे हैं।
–आईएएनएस
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