deshbandhu

deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Menu
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Facebook Twitter Youtube
  • भोपाल
  • इंदौर
  • उज्जैन
  • ग्वालियर
  • जबलपुर
  • रीवा
  • चंबल
  • नर्मदापुरम
  • शहडोल
  • सागर
  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
ADVERTISEMENT
Home ताज़ा समाचार

पुण्यतिथि विशेष: मानव सेवा आसान नहीं और मदर टेरेसा ने इसी मार्ग को चुना

by
September 5, 2024
in ताज़ा समाचार
0
0
SHARES
1
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp
ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

READ ALSO

‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर विपक्ष राजनीति कर रहा : आनंद परांपजे

राहुल गांधी ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और भारतीय सेना का किया अपमान : संबित पात्रा

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

Related Posts

ताज़ा समाचार

‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर विपक्ष राजनीति कर रहा : आनंद परांपजे

June 4, 2025
ताज़ा समाचार

राहुल गांधी ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और भारतीय सेना का किया अपमान : संबित पात्रा

June 4, 2025
ताज़ा समाचार

विराट का सपना पूरा, आरसीबी 18 साल बाद बना नया आईपीएल चैंपियन

June 4, 2025
ताज़ा समाचार

ब्रिटेन दौरा भारत और पाकिस्तान के बारे में नहीं आतंकवाद के बारे में : भारतीय उच्चायुक्त

June 4, 2025
ताज़ा समाचार

महाराष्ट्र के नासिक में कोविड-19 का पहला मामला, शिवसेना सांसद हेमंत गोडसे पॉजिटिव, घर पर क्वारंटीन

June 4, 2025
ताज़ा समाचार

असम : मुख्यमंत्री ने शहरी बाढ़ से निपटने के लिए वेटलैंड के संरक्षण का किया आह्वान

June 4, 2025
Next Post

जेपीसी की बैठक; जगदंबिका पाल बोले- ऐसा बिल लेकर आएं जो वक्फ के उद्देश्यों को साकार करे

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ADVERTISEMENT

Contact us

Address

Deshbandhu Complex, Naudra Bridge Jabalpur 482001

Mail

deshbandhump@gmail.com

Mobile

9425156056

Important links

  • राशि-भविष्य
  • वर्गीकृत विज्ञापन
  • लाइफ स्टाइल
  • मनोरंजन
  • ब्लॉग

Important links

  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
  • ई पेपर

Related Links

  • Mayaram Surjan
  • Swayamsiddha
  • Deshbandhu

Social Links

083417
Total views : 5886203
Powered By WPS Visitor Counter

Published by Abhas Surjan on behalf of Patrakar Prakashan Pvt.Ltd., Deshbandhu Complex, Naudra Bridge, Jabalpur – 482001 |T:+91 761 4006577 |M: +91 9425156056 Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions The contents of this website is for reading only. Any unauthorised attempt to temper / edit / change the contents of this website comes under cyber crime and is punishable.

Copyright @ 2022 Deshbandhu. All rights are reserved.

  • Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions
No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर

Copyright @ 2022 Deshbandhu-MP All rights are reserved.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In