कोलकाता, 10 दिसंबर (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल के पूर्व महाधिवक्ता (एजी) को अपने पद से इस्तीफा दिए हुए एक महीना बीत चुका हैै, लेकिन अभी तक उनके स्थान पर कोई नियुक्ति नहीं हुई है।
पूर्व महाधिवक्ता एस.एन. मुखोपाध्याय ने 10 नवंबर को यूके से एक ईमेल भेज कर राज्यपाल सी.वी. आनंदा बोस को अपना इस्तीफा सौंप दिया था। तब से राज्य सरकार ने किसी और को उनकी जगह नियुक्ति नहीं की है।
वहां यह सवाल राज्य के कानूनी हलकों में घूम रहा है कि कोई भी वरिष्ठ वकील वर्तमान तृणमूल कांग्रेस शासन के दौरान पिछले महाधिवक्ता के अनुभवों को देखते हुए कुर्सी स्वीकार करने को तैयार नहीं है, जहां सत्तारूढ़ पार्टी का हस्तक्षेप उनके स्वतंत्र कामकाज में बाधा बन जाता है।
राज्य के कानूनी हलकों में इस तरह के सवालों को पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के 13 साल के शासन के दौरान सभी पांच महाधिवक्ता के अचानक इस्तीफे के आंकड़ों से भी बल मिल रहा है, जिसकी शुरुआत अनिंद्य मित्रा से हुई, उसके बाद बिमल चटर्जी, जयंत मित्रा, किशोर दत्ता और अंत में एस.एन. मुखोपाध्याय रहे।
यह आंकड़ा पिछले वाम मोर्चा शासन के विपरीत एक अध्ययन है, जहां 35 साल लंबे शासन के दौरान सिर्फ तीन महाधिवक्ता थे — स्नेहांग्शु कांता आचार्य, नारानारायण गुप्तु और बलिया रॉय। वाम मोर्चा शासन में पहले महाधिवक्ता आचार्य के निधन को छोड़कर, साधन गुप्ता को गुप्तू के पदभार संभालने से पहले अंतरिम अवधि के दौरान कुछ समय के लिए अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में नियुक्त किया गया था।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा, ”कानूनी हलकों का मानना है कि एक स्थायी महाधिवक्ता के बिना मामलों को चलाने वाली राज्य सरकार राज्य के बारे में अच्छी तस्वीर पेश नहीं करती है। एक महाधिवक्ता किसी भी विश्वविद्यालय में किसी भी विषय के विभाग के प्रमुख की तरह होता है। इसलिए वर्तमान में पश्चिम बंगाल में महत्वपूर्ण कानूनी विभाग प्रमुख के बिना ही चल रहा है। अगर यह लंबे समय तक जारी रहा तो राज्य सरकार के लिए परिणाम चिंताजनक होंगे।”
–आईएएनएस
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