लखनऊ, 28 अक्टूबर (आईएएनएस)। किसान संघ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व राष्ट्रीय संगठन मंत्री ठाकुर संकठा प्रसाद सिंह की शताब्दी जयंती पर उनके जीवन पर आधारित पुस्तक ‘कर्मयोगी ठाकुर संकठा प्रसाद जी’ के लोकार्पण के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह शामिल हुए।
उन्होंने कहा कि संकठा बहुत बड़े मन के थे और बड़े मन का व्यक्ति लोगों के दिल जीत लेता है। मेरा पूर्ण विश्वास है कि संकठा का पुनर्जन्म नहीं हुआ और वे मोक्ष को प्राप्त हुए होंगे क्योंकि उनके जीवन का हर नियम, प्रक्रिया व विधान राष्ट्र की सुरक्षा की गारंटी देने वाला राष्ट्रधर्म रहा है।
राजनाथ सिंह ने कहा कि देश का कृषि मंत्री बनने के बाद जब मैं ठाकुर संकठा प्रसाद सिंह जी से मिला और उनसे पूछा कि किसानों के लिए हमें क्या करना चाहिए तो उन्होंने कहा कि किसानों का ब्याज कम कर दो। उनके सुझाव पर ही मैंने अटल जी से बात करके किसानों को 14 से 18 फीसद पर मिलने वाले किसान ऋण की दर को 8.5 प्रतिशत कराया था। संकठा संघ की ऋषि परंपरा के एक ऋषि थे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि संघ प्रचारक के रूप में समाज निर्माण करते हुए राष्ट्र निर्माण का आजीवन काम करने वाले ठाकुर संकठा प्रसाद सिंह समर्पण व अनुशासन के पर्यायवाची निष्काम कर्मयोगी थे। वे अनुशासन में कठोर तथा संवेदना में फूल जैसे कोमल थे। जब ऐसे तपस्वी प्रचारक के बारे में आज हम सभी स्मरण कर रहे हैं तो आवश्यक है कि उनके जीवन के गुण भी हमारे जीवन में जरूर आयें।
उन्होंने कहा कि संकठा अपने कार्यकर्ताओं में सदैव एक चंद्रगुप्त देखते थे। प्रचारक का स्वभाव जल जैसा होना चाहिए अर्थात जल को जिस पात्र में रखा जाता है तत्काल उसका आकार ग्रहण कर लेता है, ठीक उसी प्रकार एक प्रचारक से अपेक्षा रहती है कि उसे जिस संगठन में भेजा जाए तत्काल उसे स्वीकार करें और उसमें लग जाए।
दत्तात्रेय ने कहा कि संकठा में यह गुण पूर्ण रूप से भरा था। उनका मानना था कि सामाजिक संगठनों को आंदोलन करना तो चाहिए किंतु बहुत कम मात्रा में अर्थात जैसे पूरे भोजन में चटनी की तरह ही। उनके अनुशासन पालन का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब किसान संघ अपनी वार्षिक सदस्यता की अवधि तय कर रहा था तो संकठा जी का मत था कि किसानों की सदस्यता प्रति वर्ष होनी चाहिए ताकि किसानों से जल्दी-जल्दी संपर्क हो सके किंतु जब सामूहिक निर्णय 3 वर्ष के लिए हुआ तो उन्होंने उसे सहर्ष स्वीकार किया।
संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख स्वांतरंजन ने कहा कि ठाकुर संकठा प्रसाद से मेरा संपर्क वाराणसी में 60 के दशक से हुआ। हम सबके बचपन से ही प्रेरक संकठा जी 1970 के संघ शिक्षा वर्ग प्रयागराज में पर्यवेक्षक थे और दंड-युद्ध के समय जब मैं चोटिल हो गया तो कठोर स्वभाव के ठाकुर साहब मुझे रुग्णालय जाकर मिले तथा मुझे आवश्यक सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाई।
1974 के कानपुर संघ शिक्षा विभाग शिविर में मैंने ठाकुर साहब को एक बीमार स्वयंसेवक की पलटी हाथ से साफ करते हुए देखा है। वे अध्ययन के दौरान ही 1942 में मीरजापुर में प्रचारक माधव देशमुख के संपर्क में आए तथा 1942 के भारत आंदोलन में भाग लिया और जेल भी गए।
जेल से लौटकर मीरजापुर में शाखा लगाने लगे और 1943, 1944, 1945 में क्रमशः संघ का प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय वर्ष शिक्षण प्राप्त किया। संकठा जी 1943 में प्रचारक बन कर जौनपुर गये। वे बस्ती, आजमगढ़, सीतापुर, फर्रुखाबाद और झांसी में प्रचारक रहे। 1979 में भारतीय किसान परिषद का गठन किया गया तो उसके संगठन मंत्री बनाए गए। संगठन बाद में भारतीय किसान संघ के रूप में स्थापित हुआ।
भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र ने कहा कि ठाकुर साहब ऊपर से नारियल की तरह कठोर, लेकिन अंदर से बहुत कोमल थे। दो-दो आपातकाल झेलने के साथ ही संगठन के लिए पगडंडी बनाने वाले ठाकुर साहब ने जीवन में काफी संघर्ष किया था।
–आईएएनएस
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