नई दिल्ली, 4 सितंबर (आईएएनएस)। ‘हिम्मत है तो बुलंद कर आवाज का अलम, चुप बैठने से हल नहीं होने का मसला, तो अब चला ‘कलम’। ये शब्द कलम की ताकत को बताने के लिए काफी हैं। कलम से निकली स्याही में इतनी ताकत होती है कि वह समाज को सुधार सकती है। हिंदी साहित्य का इतिहास भी ऐसी ही शख्सियों का गवाह रहा है, जिनकी लिखी रचनाओं ने न केवल समाज को नई दिशा दी बल्कि सत्य और अहिंसा का पाठ भी सिखाया।
4 सितंबर को कुछ ऐसी ही शख्सियतों का जन्मदिन है, जिन्होंने अपनी जिंदगी में आई तमाम चुनौतियों से लड़ते हुए अपने लिए नया रास्ता बनाया। हम बात कर रहे हैं, हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार सियारामशरण गुप्त, साहित्यकार व पत्रकार नंददुलारे वाजपेयी और बंगाली कवि प्रेमेंद्र मित्रा की।
सियारामशरण गुप्त का जन्म 4 सितंबर 1895 को झांसी में हुआ था। वह हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार और राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के छोटे भाई थे। उन पर अपने भाई और गांधीवाद का काफी प्रभाव रहा। उनकी लिखी रचनाओं में करुणा, सत्य-अहिंसा की झलक दिखाई देती है। हालांकि, सियारामशरण गुप्त को सबसे अधिक सदमा उनकी उनकी पत्नी और बेटों के निधन का लगा। वे दु:ख वेदना और करुणा के कवि बन गए।
साल 1914 में उन्होंने अपनी पहली रचना मौर्य विजय लिखी। उन्होंने ‘गोद, ‘नारी, ‘अंतिम आकांक्षा (उपन्यास), ‘मानुषी (कहानी संग्रह), नाटक, निबंध समेत लगभग 50 रचनाएं लिखीं। सियारामशरण ने अपने बड़े भाई मैथिलीशरण गुप्त की काव्यकला को अपनाया था। उनके सभी काव्य द्विवेदी युगीन अभिधावादी कलारूप पर ही आधारित हैं। साल 1962 में उन्हें “सरस्वती’ हीरक जयंती में सम्मानित किया गया। उनका निधन 29 मार्च 1963 को लंबी बीमारी के बाद हो गया।
4 सितंबर 1904 को जन्में प्रेमेंद्र मित्रा बंगाली भाषा के कवि, लेखक और फिल्म निर्देशक थे। बंगाली कवि प्रेमेंद्र मित्रा का अंदाज काफी जुदा था। मानवता की उनकी आलोचना ने उन्हें यह विश्वास दिलाया कि जिंदा रहने के लिए इंसानों को “अपने मतभेदों को भूलना होगा और एकजुट होना होगा।”
प्रेमेंद्र मित्र के लिखे उपन्यास, कविताएं तथा बाल साहित्य में समाज से जुड़े मुद्दों का बहुत गहराई के साथ जिक्र किया गया है। पिता के रेलवे कर्मचारी होने के कारण उन्हें भारत में कई जगहों की यात्रा करने का अवसर मिला। बंगाली कवि के रूप में उन्हें पहचान दिलाई उनकी लिखी कविताओं ने, इनमें प्रोथोमा (प्रथम महिला), सोमरत (सम्राट), फेरारी फौज (द लॉस्ट आर्मी), सागर थेके फेरा (समुद्र से लौटते हुए), होरिन चीता चिल (हिरण, चीता, पतंग), कोखोनो मेघ प्रमुख रूप से शामिल हैं।
यही नहीं, उन्होंने बच्चों और युवाओं को विज्ञान से परिचित कराने के लिए विज्ञान विषय पर भी कथाएं लिखना शुरू कीं। इसके अलावा उन्होंने फिल्मों में भी किस्मत आजमाई। उन्होंने कई बंगाली फिल्मों की कहानी, पटकथा, गीत और संवाद भी लिखे। साल 1957 में प्रेमेंद्र मित्र को उनके कविता संग्रह ‘सागर थेके फेरा’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। प्रेमेंद्र मित्र की मृत्यु 3 मई 1988 को कोलकाता में हुई।
सियारामशरण गुप्त की तरह नंददुलारे वाजपेयी ने भी हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह हिंदी के प्रसिद्ध पत्रकार, समीक्षक, साहित्यकार, आलोचक व संपादक थे। वह कुछ समय तक ‘भारत’ के संपादक रहे।
नंददुलारे वाजपेयी ने ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ में ‘सूरसागर’ और ‘गीता प्रेस’ में ‘रामचरितमानस’ का संपादन किया। 4 सितंबर 1906 को उन्नाव में जन्में नंददुलारे वाजपेयी ने ‘हिन्दी साहित्य बीसवीं शताब्दी’, प्रेमचंद्र-एक साहित्यिक विवेचन’, ‘नया साहित्य : नए प्रश्न’, ‘कवि सुमित्रानन्दन पंत’, ‘साहित्य का आधुनिक युग’, ‘आधुनिक साहित्य सृजन और समीक्षा’, ‘भुलक्कड़ों का देश’ तथा ‘यादें बोल उठीं’ जैसी मुख्य रचनाएं लिखीं।
नंददुलारे वाजपेयी ने ‘सूरसागर’ और ‘रामचरितमानस’ का संपादन करते हुए मध्यकालीन भक्ति काव्य के साथ भारतीय इतिहास, दर्शन का भी गहरा अध्ययन किया। वे कुछ समय तक ‘काशी हिंदू विश्वविद्यालय’ में अध्यापक और कई सालों तक ‘सागर विश्वविद्यालय’ के हिंदी विभाग के अध्यक्ष भी रहे। मौत के समय नंददुलारे वाजपेयी उज्जैन में ‘विक्रम विश्वविद्यालय’ के उपकुलपति थे। 11 अगस्त 1967 में नंददुलारे वाजपेयी ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
–आईएएनएस
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