नई दिल्ली, 10 जनवरी (आईएएनएस)। प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दर्ज धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत एक मामले में गिरफ्तार सुपरटेक ग्रुप के चेयरमैन आर.के. अरोड़ा ने स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का हवाला देते हुए बुधवार को तीन महीने की अंतरिम जमानत के लिए दिल्ली की एक अदालत में याचिका दायर की।
अरोड़ा ने अदालत को सूचित किया कि गिरफ्तारी के बाद से उनका वजन लगभग 10 किलोग्राम कम हो गया है और उन्हें तत्काल इलाज की जरूरत है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार जंगाला की अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 12 जनवरी के लिए स्थगित कर दी।
अरोड़ा की याचिका में कहा गया है कि जेल अधिकारियों ने उन्हें सरकारी डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल रेफर किया था, जहां उनकी जांच हुई और नुस्खे मिले।
चिकित्सा देखभाल के बावजूद, डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल के डॉक्टरों ने अरोड़ा के स्वास्थ्य में सुधार की कमी देखी।
याचिका में सटीक निदान और तत्काल चिकित्सा उपचार की सुविधा के लिए अंतरिम जमानत पर उनकी तत्काल रिहाई का तर्क दिया गया है। इसमें कहा गया है कि लंबे समय तक हिरासत में रहने से अरोड़ा का स्वास्थ्य खतरे में पड़ सकता है, जिससे उनके और उनके परिवार के लिए असहनीय परिणाम हो सकते हैं।
याचिका में जेलों में चिकित्सा सुविधाओं और निजी अस्पतालों में उपलब्ध चिकित्सा सुविधाओं के बीच असमानता को भी रेखांकित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए जेल सुविधाएं अपर्याप्त हैं।
इसमें कहा गया है कि जेल में अरोड़ा की गहन देखभाल की जरूरत है।
पिछले साल अक्टूबर में कोर्ट ने अरोड़ा को डिफॉल्ट जमानत देने से इनकार कर दिया था।
अरोड़ा ने इस आधार पर जमानत मांगी थी कि वित्तीय जांच एजेंसी ने उनके खिलाफ अधूरा आरोपपत्र दाखिल किया था। उन्होंने दावा किया कि अगर जांच एजेंसी गिरफ्तारी से लेकर जांच पूरी करने के लिए कानून द्वारा दी गई वैधानिक अवधि के भीतर आरोप पत्र दायर करने में विफल रहती है तो ईडी ने डिफ़ॉल्ट जमानत पाने के उनके “वैधानिक अधिकार” को खत्म करने के लिए अधूरी चार्जशीट दाखिल की थी।
न्यायाधीश ने 26 सितंबर को अरोड़ा के खिलाफ आरोपपत्र पर संज्ञान लिया था और उनके आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि ईडी ने आरोपियों के खिलाफ जांच पूरी कर ली है।
इस मामले में ईडी द्वारा उनकी 40 करोड़ रुपये की संपत्ति दोबारा कुर्क करने के बाद 27 जून को गिरफ्तार किए गए अरोड़ा ने कहा था कि उन्हें गिरफ्तारी के आधार के बारे में बताए बिना गिरफ्तार किया गया था। हालांकि, अदालत ने यह देखते हुए उनके दावे को खारिज कर दिया कि जांच एजेंसी ने कानून के प्रासंगिक प्रावधानों का अनुपालन किया।
जांच एजेंसी ने 24 अगस्त को इस मामले में अरोड़ा और आठ अन्य के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था। आरोपियों पर कम से कम 670 घर खरीदारों से 164 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी करने का आरोप है।
अभियोजन पक्ष ने पहले अदालत को अवगत कराया था कि कंपनी और उसके निदेशकों ने रियल एस्टेट परियोजनाओं में बुक किए गए फ्लैटों के बदले में संभावित घर खरीदारों से धन इकट्ठा करके लोगों को धोखा देने की आपराधिक साजिश रची थी, लेकिन कब्जा प्रदान करने के सहमत दायित्व का पालन करने में विफल रहे। समय पर फ्लैटों का आवंटन किया और आम जनता को धोखा दिया।
मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा दर्ज की गई कई प्राथमिकियों से उपजा है। आरोप लगाया गया है कि रियल एस्टेट व्यवसाय के माध्यम से एकत्र किए गए धन को मनी लॉन्ड्रिंग के माध्यम से कई फर्मों में निवेश किया गया था, क्योंकि घर खरीदारों से प्राप्त धन को बाद में अन्य व्यवसायों में शामिल फर्मों के कई खातों में स्थानांतरित कर दिया गया था।
अरोड़ा संतोषजनक जवाब नहीं दे सके, जिसके कारण उनकी गिरफ्तारी हुई।
अरोड़ा और सुपरटेक के खिलाफ कई एफआईआर दर्ज की गई हैं। उन्होंने बैंकों से भी ऋण लिया और उनके खाते कथित तौर पर गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में बदल गए।
–आईएएनएस
एसजीके