नई दिल्ली, 21 अगस्त (आईएएनएस)। भारत में मिट्टी का कटाव एक गंभीर समस्या है। यहां की लगभग 60 प्रतिशत भूमि मिट्टी के कटाव का सामना करती है। देश के 305.9 मिलियन हेक्टेयर के कुल क्षेत्रफल में से लगभग 145 मिलियन हेक्टेयर भूमि को तत्काल संरक्षण प्रयासों की जरुरत है।
आईआईटी मंडी टीम ने मिट्टी के कटाव पर रिसर्च की है। इस अध्ययन से पता चला है कि प्राकृतिक वनस्पति जड़ें और अतिरिक्त रेशे मिलकर मिट्टी की एकजुटता में सुधार ला सकते हैं।
आईआईटी के शोधकर्ताओं ने मिट्टी के अपरदन को रोकने के लिए पौधों और रेशों की संभावना को जांचा है। इसके नतीजों को प्रसिद्ध जर्नल ऑफ सॉइल एंड सेडिमेंट्स में प्रकाशित किया गया है।
मिट्टी का अपरदन एक गंभीर वैश्विक एवं पर्यावरणीय समस्या है। इस ओर पूरी दुनिया द्वारा महत्वपूर्ण रूप से ध्यान दिया जा रहा है।
एफएओ के नेतृत्व वाली ग्लोबल सॉयल पार्टनरशिप की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में सालाना 75 अरब टन मिट्टी का अपरदन होता है, जिसके परिणामस्वरूप सालाना लगभग 400 अरब अमेरिकी डॉलर का अनुमानित वित्तीय नुकसान हो रहा है।
मिट्टी अपरदन के भूमि पर दूरगामी परिणाम पड़ते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता कम होना, जल-धारण करने की क्षमता में कमी, फसल की पैदावार में कमी, अपवाह में वृद्धि और जल निकायों में अवसादन के कारण पर्यावरणीय क्षति होती है।
इसके अतिरिक्त मिट्टी का कटाव जमीन को अस्थिर करता है, जिससे उच्च ढलानों पर भूस्खलन की आशंका बढ़ जाती है। यह लंबे समय से ज्ञात है कि पौधों की जड़ें मिट्टी के गुणों को बढ़ाकर बारिश की बूंदों को रोककर और जल प्रवाह को कम करके मिट्टी के कटाव को प्रभावी ढंग से कम कर सकती हैं।
आईआईटी मंडी ने बताया कि बायोइंजीनियरिंग की प्रक्रिया मिट्टी को स्थिर करने और कटाव को कम करने के लिए जीवित पौधों और रेशों का उपयोग करता है। मिट्टी को बचाने के अलावा बायोइंजीनियरिंग देशी पौधों की प्रजातियों का उपयोग करके जैव विविधता को भी बढ़ावा देती है।
शोधकर्ताओं ने वर्षा अनुरूपी स्थितियों के अंतर्गत मिट्टी के कटाव अध्ययन के लिए एक लागत प्रभावी प्रयोगशाला सेटअप स्थापित किया है। इस सेटअप के माध्यम से मिट्टी के कटाव पर वर्षा की तीव्रता, ढलान, मिट्टी की बनावट और वनस्पति आवरण के प्रभावों की नियंत्रित जांच की जाती है।
शोध टीम ने मिट्टी के कटाव को मापने और इसे रोकने में बायोइंजीनियरिंग तरीकों की प्रभावशीलता दिखाने के लिए छवि विश्लेषण का उपयोग किया है।
आईआईटी के डॉ. अर्णव भावसर विनायक ने कहा, “सड़क के तटबंधों, ढलानों और छोटे प्राकृतिक हिस्सों जैसे छोटे क्षेत्रों के लिए छवि विश्लेषण बेहतर तरीके से काम करता है। लेकिन बड़े क्षेत्रों के लिए मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) और रिमोट-सेंसिंग इमेजिंग बेहतर हैं। हमारा दृष्टिकोण जो आकृति पहचान का उपयोग करता है, वह मौजूदा तकनीकों से बेहतर है, जो अक्सर जटिल और महंगी होती हैं।”
इस अध्ययन से पता चला है कि प्राकृतिक वनस्पति जड़ें और अतिरिक्त रेशे मिलकर मिट्टी की एकजुटता में उल्लेखनीय सुधार ला सकते हैं। मिट्टी का प्रकार, नमी की मात्रा और सुदृढीकरण सामूहिक रूप से अपरदन दर को प्रभावित करते हैं, जो मिट्टी संरक्षण रणनीतियों को बनाने के लिए एक बेहतर र्दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।
शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि प्राकृतिक वनस्पति और भारतीय गूस घास की जड़ें किसी गंभीर अपरदन क्षेत्र को ऐसे क्षेत्र में बदल सकतीं है, जहां मिट्टी का कोई अपरदन नहीं होगा।
इस अध्ययन से पता चलता है कि सही सामग्री का चयन (रेशा या पौधों) और उसकी मात्रा कटाव के प्रकार (बूंदों या प्रवाह के कारण) और कटाव के रूप (शीट या रिल) पर निर्भर करेगा।
इस तरह के अनुसंधान का उद्देश्य कटाव नियंत्रण विधियों को और प्रभावी बनाना है और प्राकृतिक सामग्रियों के उपयोग को प्रोत्साहित करता है।
इसके व्यावहारिक रूप और भविष्य के संदर्भ में डॉ. केवी. उदय ने कहा, “हमने प्रकृति-आधारित अपरदन शमन समाधानों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए एक सरल विधि विकसित की है।
हमारी पद्धति बारिश की बूंदों से प्रेरित कटाव और जल प्रवाह से प्रेरित कटाव के बीच अंतर कर सकती है। वर्तमान पद्धतियों में इस क्षमता की कमी है। इसके अलावा संख्यात्मक अध्ययन बड़े क्षेत्रों में मिट्टी के कटाव नियंत्रण के लिए विशिष्ट रणनीतियों को बढ़ाने में मदद करते हैं।”
–आईएएनएस
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