नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि मैकाले ने यह कहकर भारतीय प्राच्य विद्या का अपमान किया था, कि एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की केवल एक शेल्फ समूचे भारतीय साहित्य के बराबर है।
उन्होंने कहा कि ऐसा कहकर मैकाले ने भारतीयों के मन में प्राचीन भारतीय विद्या के प्रति एक भ्रांति फैलाई। मंगलवार को राजनाथ सिंह ने शिक्षक दिवस के अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय में यह बातें कहीं।
दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में आयोजित महर्षि दयानंद स्मृति व्याख्यानमाला में बोलते हुए उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद सरस्वती और महात्मा हंसराज ने आर्य समाज और डीएवी स्कूल के माध्यम से न सिर्फ इस भ्रांति पर प्रहार किया बल्कि हमारा राष्ट्रीय व सांस्कृतिक आत्मविश्वास भी वापस लौटाया।
उन्होंने कहा कि भारत भूमि ऋषियों की भूमि रही है, जिन्होंने अपनी ज्ञान परंपरा से इस देश में गुरुकुल पद्धति की शुरुआत की। एक ऐसी गुरुकुल पद्धति जिसमें इस राष्ट्र का नेतृत्व करने वाले युवाओं को तैयार किया जाता था। एक ऐसी गुरुकुल पद्धति, जिसने सदैव राजसत्ताओं का मार्गदर्शन किया।
राजनाथ सिंह ने गुरु के महत्व को समझाते हुए कहा कि इस राष्ट्र में एक महान गुरु परंपरा हमेशा से अस्तित्व में रही है। गुरुओं ने शताब्दियों से भारत की ज्ञान परंपरा का वहन किया है। भारत की विशाल गुरु परंपरा के इन्हीं वाहकों में स्वामी दयानंद सरस्वती जी अग्रणी रहे।
उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों से कहा कि कल्पना करिए कि 900 सालों से गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुए भारत में अंधकार कितना घना था। स्वाभाविक है, जब अंधकार इतना घना होगा तो उसके लिए प्रकाश पुंज भी उतना ही तीव्र होना चाहिए। उसके लिए प्रकाश पुंज भी ऐसा होना चाहिए जो उसे घने अंधेरे को अपनी तीव्रता से मात दे सके।
रक्षा मंत्री ने कहा कि भारतीय पुनर्जागरण में स्वामी दयानंद सरस्वती से प्रभावित होकर महात्मा हंसराज जी ने समाज सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया।
राजनाथ सिंह ने कहा, “मेरे विचार में शिक्षा के 3 स्तम्भ होते हैं – पहला- शिक्षक, दूसरा- शिक्षार्थी, जो शिक्षा ग्रहण करता है और तीसरा- शिक्षा के ट्रांसमिशन का माध्यम, जो मूलत किताबें होती हैं।” किताबें ज्ञान का महत्त्वपूर्ण माध्यम होती हैं। किताबों के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान का हस्तांतरण होता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी अनेक किताबों व पत्रिकाओं ने स्वतंत्रता संग्राम को और गति प्रदान की।
उन्होंने कहा, “किताब भी हमारे लिए गुरु के समान है। भारत की बात यदि मैं करूं तो हम देखते हैं कि वेदों, उपनिषदों व प्राचीन शास्त्रों ने किस प्रकार से पुस्तकों के रूप में भारतीय संस्कृति रूपी रथ के लिए एक सारथी की भूमिका निभाई है।”
उन्होंने कहा कि जब भारत की सनातन चेतना कई आक्रमण-कारियों के आघात को झेलकर सुसुप्त अवस्था में जा चुकी थी। जब भारतीय संस्कृति पर एक घना कोहरा छा गया था, तब गोस्वामी तुलसीदास ने राम के चरित्र को श्रीरामचरितमानस के रूप में उतारकर भारतीय समाज को एक प्रेरणा दी।
रक्षा मंत्री ने कहा कि वेद शब्द संस्कृत के मूल धातु ‘विद‘ शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है ‘जानना’। ग़ुलामी के चलते हम यह भूल गये कि वैदिक गणित से न केवल कट गये बल्कि यह भूल गये कि सामान्य गणित से कहीं बेहतर है।
उन्होंने कहा कि हमें स्वामी दयानंद सरस्वती के “वेदों की ओर लौटो” के उस उपदेश पर विचार करना होगा, और वर्तमान जीवन के अनुरूप वेदों की नई-नई व्याख्याएं करनी होंगी। वेदों के ज्ञान की नए सिरे से व्याख्या करने की जरूरत है, जिससे समाज को और सकारात्मकता मिले।
–आईएएनएस
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