इम्फाल, 21 जून (आईएएनएस)। मणिपुर मंत्रिमंडल की एक उप-समिति की रिपोर्ट से पता चला है कि म्यांमार के 2,187 अवैध अप्रवासियों ने चार जिलों में 41 स्थानों पर बस्तियां बसाई हैं।
उप-समिति की अध्यक्षता जनजातीय मामलों और पहाड़ी विकास मंत्री लेटपाओ हाओकिप कर रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में म्यांमार के सबसे अधिक 1,147 नागरिक टेंग्नौपाल में रह रहे हैं। इसके बाद चंदेल में 881, चुराचांदपुर में 154 और कामजोंग में पांच हैं।
उप-समिति, जिसके सदस्यों में राज्य मंत्री अवांगबो न्यूमई और थौनाओजम बसंता भी शामिल हैं, ने मार्च और अप्रैल में आदिवासी बहुल जिलों का दौरा किया। इस दौरान वे अवैध प्रवासियों से मिले, और उनसे मानवीय राहत और आश्रय प्रदान करने के बारे में बात की।
राज्य में 3 मई को जातीय हिंसा भड़कने से पहले सरकार ने म्यांमार के उस नागरिक की पहचान करने और उसे चयनित हिरासत केंद्रों में रखने का फैसला किया था, जिसने पहले राज्य में शरण मांगी थी।
फरवरी 2021 में सेना के सत्ता में आने के बाद संघर्ष प्रभावित म्यांमार से महिलाओं और बच्चों सहित लगभग 5,000 अप्रवासी भाग गए हैं।
हाओकिप उन 10 आदिवासी विधायकों में से एक हैं, जिन्होंने 3 मई को जातीय हिंसा के प्रकोप के बाद एक अलग प्रशासन की मांग की है।
10 विधायकों में हाओकिप सहित सात विधायक भाजपा के हैं।
मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने पिछले सप्ताह कहा कि सीमा पार से घुसपैठियों और उग्रवादियों ने राज्य में चल रही अशांति फैलाई है और यह दो समुदायों के बीच दुश्मनी नहीं है।
मणिपुर की म्यांमार के साथ लगभग 400 किमी की बिना बाड़ वाली सीमा है।
एक आधिकारिक रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले चरण में ही इतनी बड़ी संख्या में अवैध प्रवासियों की पहचान राज्य में बसे अवैध प्रवासियों के बीच दहशत का कारण बन गई है।
रिपोर्ट आईएएनएस के पास उपलब्ध है। इसमें कहा गया है कि मणिपुर सरकार के ड्रग्स के खिलाफ युद्ध अभियान ने राज्य में म्यांमार के नागरिकों की जा रही अफीम की खेती और नशीले पदार्थों के कारोबार को बुरी तरह प्रभावित किया है।
इस कारण से मणिपुर में हाल में उनके द्वारा हिंसा फैलाई गई है। इसे म्यांमार के ड्रग्स माफिया का समर्थन प्राप्त है।
विभिन्न कुकी नागरिक संगठन (सीएसओ) आरोप लगाते रहे हैं कि मणिपुर सरकार अवैध अप्रवासियों की पहचान के नाम पर भारतीय नागरिकों को परेशान कर रही है। कुकी का कहना है कि वे दशकों से मणिपुर की पहाड़ियों में रह रहे हैं, और यहां तक कि अंग्रेजों के खिलाफ भी लड़े थे जिसे अब एंग्लो-कुकी युद्ध (1917-1919) के रूप में जाना जाता है।
बहुसंख्यक मेइती और कुकी जनजातियों के बीच जातीय हिंसा से राज्य तबाह हो गया है। इसमें 120 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और विभिन्न समुदायों के 400 से अधिक लोग घायल हो गए हैं।
–आईएएनएस
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