नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)। राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित है आमेर किला। विश्व विख्यात पहचान रखता है। एक पहाड़ी के ऊपर, माओटा झील के सामने स्थित लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से बना यह किला अब यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल है। वास्तुकला और स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है ये किला। इसी में मौजूद है मां शिला देवी मंदिर। मां काली को ही शासक मान कर यहां राजाओं ने राज किया।
आमेर किले के निर्माण की शुरुआत 16वीं शताब्दी के अंत में राजा मान सिंह ने की थी। इसमें स्थापित माता शिला देवी मंदिर अपनी बेजोड़ वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। शिला माता को काली मां का ही एक रूप माना जाता है। कहा जाता है कि मां के आशीर्वाद से आमेर के राजा मानसिंह ने 80 से अधिक युद्ध जीते थे। जयपुर राजवंश के शासकों ने माता को ही शासक मानकर राज्य किया। शिला माता शक्तिपीठ की स्थापना राजा मानसिंह प्रथम द्वारा कराई गई थी। कहा जाता हैं कि शिलादेवी जयपुर के कछवाहा राजपूत राजाओं की कुल देवी हैं।
शिला माता मंदिर का पुनर्निर्माण मानसिंह द्वितीय ने 1906 में करवाया गया। सम्पूर्ण मंदिर संगमरमर से बना है। शिलादेवी की दाहिनी भुजाओं में तलवार, चक्र, त्रिशूल, बाण तथा बाईं भुजाओं में ढाल, अभयमुद्रा, मुंड और धनुष हैं। मूर्ति काले पत्थर से बनी है तथा एक शिलाखंड पर स्थित है। शिला देवी की यह मूर्ति महिषासुर मर्दिनी के रूप में बनाई गई है।
हमेशा वस्त्र और लाल गुलाब से ढकी रहने वाली मातारानी की मूर्ति का केवल मुंह और हाथ ही दिखाई देते हैं। मूर्ति में देवी मां एक पैर से महिषासुर को दबा रही हैं तथा दाहिने हाथ के त्रिशूल से उस पर प्रहार कर रही हैं। इसीलिए देवी की गर्दन दाहिनी ओर मुड़ी हुई है। यह मूर्ति चमत्कारी मानी जाती है। शिला देवी के बाई ओर कछवाहा राजाओं की कुलदेवी अष्टधातु की हिंगलाज माता की मूर्ति भी बनी हुई है। साथ ही शिला माता देवी के बायीं से दायीं ओर भगवान गणेश, ब्रह्मा, शिव, विष्णु एवं कार्तिकेय की अपने वाहनों पर सवारी करते हुए प्रतिमाएं स्थापित की गई है।
मंदिर का प्रवेश द्वार चांदी की प्लेट से ढका हुआ है, जिस पर दस महाविद्याओं और नवदुर्गा की आकृतियां उकेरी हैं। मंदिर का मुख्य द्वार चांदी से बना है और इस पर नवदुर्गा, शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। यहां काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, श्रीमातंगी और कमला देवी को दस महाविद्याओं के रूप में दर्शाया गया है। मंदिर में मीणाओं की कुल देवी हिंगला की मूर्तियां भी स्थापित हैं। कहते हैं कि कछवाहा राजवंश से पहले यहां मीणाओं का शासन था।
शिला देवी अम्बा माता का ही रूप माना जाता हैं। ऐसी मान्यता है कि आमेर का नाम अम्बा माता के नाम पर ही अम्बेर पड़ा था, जो कालान्तर में आमेर हो गया। माता की प्रतिमा एक शिला पर उत्कीर्ण होने के कारण इसे शिला देवी कहा जाता है। शिला माता के विग्रह को लेकर बहुत सारी मत प्रचलित है। कहा जाता है कि 1580 में बंगाल कूचबिहार का इलाके में आने वाले जसोर के राजा को हराकर शिला देवी के विग्रह को मिर्जा राजा मानसिंह वहां से लेकर आए थे।
मान्यता है कि माता ने राजा मानसिंह से वचन लिया था कि उन्हें प्रतिदिन एक नरबलि दी जाएगी। कुछ समय तक तो राजाओं ने अपना वचन निभाया, लेकिन बाद में नरबलि की जगह पशुबलि दी जाने लगी। इस पर माता नाराज हो गईं और अपना मुख उत्तर दिशा की ओर कर लिया। आज भी माता का मुख उत्तर दिशा की ओर ही है। आखिरी पशुबलि 1972 में दी गई थी। इसके बाद जैन अनुयायियों के विरोध के बाद इसे बंद कर दिया गया।
–आईएएनएस
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