नई दिल्ली, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। संसद का शीतकालीन सत्र सोमवार को शुरू हुआ और सत्र के पहले दिन राज्यसभा में भारतीय डाकघर अधिनियम में संशोधन का बिल ध्वनिमत से पारित किया गया है। इसके जरिए वर्ष 1898 के ‘भारतीय डाकघर अधिनियम’ को निरस्त करने का प्रावधान है।
केंद्र सरकार के मुताबिक डाकघर, केंद्र सरकार के नियमों द्वारा निर्धारित सेवाएं प्रदान करेगा। डाकघर को डाक टिकट जारी करने का विशेषाधिकार प्राप्त होगा। सरकार का मानना है कि देशभर के डाकघर नागरिक केंद्रित सेवाएं पहुंचाने का बड़ा माध्यम बन चुके हैं, यही कारण है कि अब पुराने डाक अधिनियम के स्थान पर नया कानून बनाया जा रहा है।
केंद्रीय दूरसंचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस विधेयक पर बोलते हुए सदन में कहा कि इस कानून के आ जाने से प्रक्रियाएं पारदर्शी होंगी। इसका उद्देश्य डाक सेवाओं को विस्तार देना है। केंद्रीय मंत्री ने बताया कि देश में डाक सेवा बैंकिंग की ही भांति काम कर रही है। डाकघरों में करीब 26 करोड़ खाते हैं, जिनमें 17 लाख करोड़ रुपये हैं। सामान्य भारतीय परिवारों के लिए यह पैसे जोड़ने व बचाने का एक जरिया है। सुकन्या समृद्धि योजना के तहत तीन करोड़ खाते हैं और इनमें करीब 1.41 लाख करोड़ रुपये जमा हैं।
कई विपक्षी सदस्यों द्वारा डाक सेवाओं के निजीकरण का आरोप लगाने पर केंद्रीय मंत्री ने कहा कि निजीकरण का सवाल ही नहीं उठता। डाक सेवाओं के निजीकरण का न तो विधेयक में प्रावधान है और न ही सरकार की ऐसी कोई मंशा है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से प्रक्रियाओं को सरल किया गया और सुरक्षा उपाय किए गए हैं। डाकघरों को व्यावहारिक रूप से बैंक में बदला गया है। केंद्र सरकार के मुताबिक 2004 से 2014 के बीच 670 डाकघर बंद किए गए। मोदी सरकार आने के उपरांत वर्ष 2014 से 2023 तक लगभग 5 हजार नए डाकघर खोले गए।
सरकार ने यह भी बताया कि इसके अलावा 5746 डाकघर खुलने की प्रक्रिया में हैं। डाक विभाग में 1.25 लाख लोगों को रोजगार दिया गया है। 1,60,000 डाकघरों को कोर व डिजिटल बैंकिंग से जोड़ा जा चुका है। साथ ही डाकघर में 434 पासपोर्ट सेवा केंद्र बने हैं। 13,500 डाकघरों में आधार सेवा केंद्र हैं।
–आईएएनएस
जीसीबी/एबीएम