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राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा : करीब 10 लाख लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से हैं पीड़ित

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August 25, 2024
in ताज़ा समाचार
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नई दिल्ली, 25 अगस्त (आईएएनएस)। आंखें शरीर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। आंखें ही है जिससे हम दुनिया के सारे रंगों का आनंद ले सकते हैं। यह प्रमुख संवेदी अंग हमारे दिमाग को बाहरी दुनिया की जानकारी देता है। लेकिन, दुनिया में लाखों लोग ऐसे है जो कॉर्निया को प्रभावित करने वाली समस्या से पीड़ित हैं और कॉर्निया के प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि कॉर्निया में खराबी आने पर उसके प्रत्यारोपण के अलावा कोई इलाज नहीं है।

नेत्रदान को जीवनदान माना जाता है। यह एक ऐसा महानता का काम है कि अगर आप इसे करते हैं तो किसी के जीवन में रंग भर सकते हैं। इसी विषय पर लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 25 अगस्त से 8 सितंबर तक राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है। इस दौरान लोगों को नेत्रदान के प्रति जागरूक किया जाता है।

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कॉर्निया प्रत्यारोपण के जरिये जरूरतमंद की आंखों की रोशनी वापस लाने के लिए लोग अपने जीवन में नेत्रदान करने का फैसला करते हैं। इस प्रक्रिया में दान करने वाले व्यक्ति की मौत के बाद उसकी आंखें जरूरतमंद को दान की जाती है, जिससे कॉर्निया के पीड़ित मरीज के जीवन में रोशनी आ जाती है।

बता दें कि दुनिया में लाखों लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं। नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस एंड विजुअल इम्पेयरमेंट (एनपीसीबीवीआई) के अनुसार देश में लगभग 10 लाख लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं, जो इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कोई उनके जीवन में रंग भर सके।

14वें नेशनल कॉर्निया एंड आई बैंकिंग कॉन्फ्रेंस के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक लोगों को कॉर्नियल प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, लेकिन इनमें से केवल 25,000 लोगों का ही प्रत्यारोपण हो पाता है।

कॉर्निया प्रत्यारोपण को केराटोप्लास्टी भी कहा जाता है। इसमें सर्जरी के जरिए डोनर से प्राप्त स्वस्थ कॉर्निया को मरीज में ट्रांसप्लांट किया जाता है। बता दें कि सफल सर्जरी काफी हद तक दान किए गए कॉर्निया की स्थिति पर निर्भर करती है।

नेत्रदान का महत्व के बारे में आईएएनएस ने बिहार विधान परिषद के मनोनीत सदस्य, प्रोफेसर एमेरिटस आरआईओ इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना एवं दक्षिण एशियाई नेत्र विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष, इंडियन रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी सोसायटी के अध्यक्ष और विश्व आरओपी परिषद के भारत के अध्यक्ष राजवर्धन झा आजाद से बात की।

उन्होंने कहा, ”नेत्रदान महादान है। जिस तरह से शरीर के अन्य अंगों का दान किया जाता है, इसी तरह नेत्रदान भी किया जाता है। यह हमारे देश में पिछले कई दशकों से किया जा रहा है। नेत्रदान की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह मृत्‍यु के बाद भी दान की जा सकती है।”

राजवर्धन झा आजाद ने कहा, ”हमारे देश में पिछले लगभग 40 साल से लोग नेत्रदान कर रहे हैं। इस दिशा में कई स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़कर कई लोग काम कर रहे हैं, जहां आप अपने जीते जी अपने नेत्रदान कर सकते हैं।”

उन्होंने नेत्रदान की अपील करते हुए कहा, ”लोग अपनी मृत्यु के बाद नेत्रदान जरूर करें, जिससे जरूरतमंद लोग इस दुनिया को देख सकें। प्रत्यारोपण के लिए आंख का पारदर्शी अगला हिस्सा यानी कॉर्निया ही निकाला जाता है, और जरूरतमंद की आंख में लगा दिया जाता है।”

–आईएएनएस

एमकेएस/एकेजे

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नई दिल्ली, 25 अगस्त (आईएएनएस)। आंखें शरीर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। आंखें ही है जिससे हम दुनिया के सारे रंगों का आनंद ले सकते हैं। यह प्रमुख संवेदी अंग हमारे दिमाग को बाहरी दुनिया की जानकारी देता है। लेकिन, दुनिया में लाखों लोग ऐसे है जो कॉर्निया को प्रभावित करने वाली समस्या से पीड़ित हैं और कॉर्निया के प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि कॉर्निया में खराबी आने पर उसके प्रत्यारोपण के अलावा कोई इलाज नहीं है।

नेत्रदान को जीवनदान माना जाता है। यह एक ऐसा महानता का काम है कि अगर आप इसे करते हैं तो किसी के जीवन में रंग भर सकते हैं। इसी विषय पर लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 25 अगस्त से 8 सितंबर तक राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है। इस दौरान लोगों को नेत्रदान के प्रति जागरूक किया जाता है।

कॉर्निया प्रत्यारोपण के जरिये जरूरतमंद की आंखों की रोशनी वापस लाने के लिए लोग अपने जीवन में नेत्रदान करने का फैसला करते हैं। इस प्रक्रिया में दान करने वाले व्यक्ति की मौत के बाद उसकी आंखें जरूरतमंद को दान की जाती है, जिससे कॉर्निया के पीड़ित मरीज के जीवन में रोशनी आ जाती है।

बता दें कि दुनिया में लाखों लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं। नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस एंड विजुअल इम्पेयरमेंट (एनपीसीबीवीआई) के अनुसार देश में लगभग 10 लाख लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं, जो इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कोई उनके जीवन में रंग भर सके।

14वें नेशनल कॉर्निया एंड आई बैंकिंग कॉन्फ्रेंस के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक लोगों को कॉर्नियल प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, लेकिन इनमें से केवल 25,000 लोगों का ही प्रत्यारोपण हो पाता है।

कॉर्निया प्रत्यारोपण को केराटोप्लास्टी भी कहा जाता है। इसमें सर्जरी के जरिए डोनर से प्राप्त स्वस्थ कॉर्निया को मरीज में ट्रांसप्लांट किया जाता है। बता दें कि सफल सर्जरी काफी हद तक दान किए गए कॉर्निया की स्थिति पर निर्भर करती है।

नेत्रदान का महत्व के बारे में आईएएनएस ने बिहार विधान परिषद के मनोनीत सदस्य, प्रोफेसर एमेरिटस आरआईओ इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना एवं दक्षिण एशियाई नेत्र विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष, इंडियन रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी सोसायटी के अध्यक्ष और विश्व आरओपी परिषद के भारत के अध्यक्ष राजवर्धन झा आजाद से बात की।

उन्होंने कहा, ”नेत्रदान महादान है। जिस तरह से शरीर के अन्य अंगों का दान किया जाता है, इसी तरह नेत्रदान भी किया जाता है। यह हमारे देश में पिछले कई दशकों से किया जा रहा है। नेत्रदान की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह मृत्‍यु के बाद भी दान की जा सकती है।”

राजवर्धन झा आजाद ने कहा, ”हमारे देश में पिछले लगभग 40 साल से लोग नेत्रदान कर रहे हैं। इस दिशा में कई स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़कर कई लोग काम कर रहे हैं, जहां आप अपने जीते जी अपने नेत्रदान कर सकते हैं।”

उन्होंने नेत्रदान की अपील करते हुए कहा, ”लोग अपनी मृत्यु के बाद नेत्रदान जरूर करें, जिससे जरूरतमंद लोग इस दुनिया को देख सकें। प्रत्यारोपण के लिए आंख का पारदर्शी अगला हिस्सा यानी कॉर्निया ही निकाला जाता है, और जरूरतमंद की आंख में लगा दिया जाता है।”

–आईएएनएस

एमकेएस/एकेजे

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नई दिल्ली, 25 अगस्त (आईएएनएस)। आंखें शरीर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। आंखें ही है जिससे हम दुनिया के सारे रंगों का आनंद ले सकते हैं। यह प्रमुख संवेदी अंग हमारे दिमाग को बाहरी दुनिया की जानकारी देता है। लेकिन, दुनिया में लाखों लोग ऐसे है जो कॉर्निया को प्रभावित करने वाली समस्या से पीड़ित हैं और कॉर्निया के प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि कॉर्निया में खराबी आने पर उसके प्रत्यारोपण के अलावा कोई इलाज नहीं है।

नेत्रदान को जीवनदान माना जाता है। यह एक ऐसा महानता का काम है कि अगर आप इसे करते हैं तो किसी के जीवन में रंग भर सकते हैं। इसी विषय पर लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 25 अगस्त से 8 सितंबर तक राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है। इस दौरान लोगों को नेत्रदान के प्रति जागरूक किया जाता है।

कॉर्निया प्रत्यारोपण के जरिये जरूरतमंद की आंखों की रोशनी वापस लाने के लिए लोग अपने जीवन में नेत्रदान करने का फैसला करते हैं। इस प्रक्रिया में दान करने वाले व्यक्ति की मौत के बाद उसकी आंखें जरूरतमंद को दान की जाती है, जिससे कॉर्निया के पीड़ित मरीज के जीवन में रोशनी आ जाती है।

बता दें कि दुनिया में लाखों लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं। नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस एंड विजुअल इम्पेयरमेंट (एनपीसीबीवीआई) के अनुसार देश में लगभग 10 लाख लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं, जो इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कोई उनके जीवन में रंग भर सके।

14वें नेशनल कॉर्निया एंड आई बैंकिंग कॉन्फ्रेंस के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक लोगों को कॉर्नियल प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, लेकिन इनमें से केवल 25,000 लोगों का ही प्रत्यारोपण हो पाता है।

कॉर्निया प्रत्यारोपण को केराटोप्लास्टी भी कहा जाता है। इसमें सर्जरी के जरिए डोनर से प्राप्त स्वस्थ कॉर्निया को मरीज में ट्रांसप्लांट किया जाता है। बता दें कि सफल सर्जरी काफी हद तक दान किए गए कॉर्निया की स्थिति पर निर्भर करती है।

नेत्रदान का महत्व के बारे में आईएएनएस ने बिहार विधान परिषद के मनोनीत सदस्य, प्रोफेसर एमेरिटस आरआईओ इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना एवं दक्षिण एशियाई नेत्र विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष, इंडियन रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी सोसायटी के अध्यक्ष और विश्व आरओपी परिषद के भारत के अध्यक्ष राजवर्धन झा आजाद से बात की।

उन्होंने कहा, ”नेत्रदान महादान है। जिस तरह से शरीर के अन्य अंगों का दान किया जाता है, इसी तरह नेत्रदान भी किया जाता है। यह हमारे देश में पिछले कई दशकों से किया जा रहा है। नेत्रदान की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह मृत्‍यु के बाद भी दान की जा सकती है।”

राजवर्धन झा आजाद ने कहा, ”हमारे देश में पिछले लगभग 40 साल से लोग नेत्रदान कर रहे हैं। इस दिशा में कई स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़कर कई लोग काम कर रहे हैं, जहां आप अपने जीते जी अपने नेत्रदान कर सकते हैं।”

उन्होंने नेत्रदान की अपील करते हुए कहा, ”लोग अपनी मृत्यु के बाद नेत्रदान जरूर करें, जिससे जरूरतमंद लोग इस दुनिया को देख सकें। प्रत्यारोपण के लिए आंख का पारदर्शी अगला हिस्सा यानी कॉर्निया ही निकाला जाता है, और जरूरतमंद की आंख में लगा दिया जाता है।”

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नेत्रदान को जीवनदान माना जाता है। यह एक ऐसा महानता का काम है कि अगर आप इसे करते हैं तो किसी के जीवन में रंग भर सकते हैं। इसी विषय पर लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 25 अगस्त से 8 सितंबर तक राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है। इस दौरान लोगों को नेत्रदान के प्रति जागरूक किया जाता है।

कॉर्निया प्रत्यारोपण के जरिये जरूरतमंद की आंखों की रोशनी वापस लाने के लिए लोग अपने जीवन में नेत्रदान करने का फैसला करते हैं। इस प्रक्रिया में दान करने वाले व्यक्ति की मौत के बाद उसकी आंखें जरूरतमंद को दान की जाती है, जिससे कॉर्निया के पीड़ित मरीज के जीवन में रोशनी आ जाती है।

बता दें कि दुनिया में लाखों लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं। नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस एंड विजुअल इम्पेयरमेंट (एनपीसीबीवीआई) के अनुसार देश में लगभग 10 लाख लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं, जो इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कोई उनके जीवन में रंग भर सके।

14वें नेशनल कॉर्निया एंड आई बैंकिंग कॉन्फ्रेंस के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक लोगों को कॉर्नियल प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, लेकिन इनमें से केवल 25,000 लोगों का ही प्रत्यारोपण हो पाता है।

कॉर्निया प्रत्यारोपण को केराटोप्लास्टी भी कहा जाता है। इसमें सर्जरी के जरिए डोनर से प्राप्त स्वस्थ कॉर्निया को मरीज में ट्रांसप्लांट किया जाता है। बता दें कि सफल सर्जरी काफी हद तक दान किए गए कॉर्निया की स्थिति पर निर्भर करती है।

नेत्रदान का महत्व के बारे में आईएएनएस ने बिहार विधान परिषद के मनोनीत सदस्य, प्रोफेसर एमेरिटस आरआईओ इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना एवं दक्षिण एशियाई नेत्र विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष, इंडियन रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी सोसायटी के अध्यक्ष और विश्व आरओपी परिषद के भारत के अध्यक्ष राजवर्धन झा आजाद से बात की।

उन्होंने कहा, ”नेत्रदान महादान है। जिस तरह से शरीर के अन्य अंगों का दान किया जाता है, इसी तरह नेत्रदान भी किया जाता है। यह हमारे देश में पिछले कई दशकों से किया जा रहा है। नेत्रदान की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह मृत्‍यु के बाद भी दान की जा सकती है।”

राजवर्धन झा आजाद ने कहा, ”हमारे देश में पिछले लगभग 40 साल से लोग नेत्रदान कर रहे हैं। इस दिशा में कई स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़कर कई लोग काम कर रहे हैं, जहां आप अपने जीते जी अपने नेत्रदान कर सकते हैं।”

उन्होंने नेत्रदान की अपील करते हुए कहा, ”लोग अपनी मृत्यु के बाद नेत्रदान जरूर करें, जिससे जरूरतमंद लोग इस दुनिया को देख सकें। प्रत्यारोपण के लिए आंख का पारदर्शी अगला हिस्सा यानी कॉर्निया ही निकाला जाता है, और जरूरतमंद की आंख में लगा दिया जाता है।”

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नई दिल्ली, 25 अगस्त (आईएएनएस)। आंखें शरीर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। आंखें ही है जिससे हम दुनिया के सारे रंगों का आनंद ले सकते हैं। यह प्रमुख संवेदी अंग हमारे दिमाग को बाहरी दुनिया की जानकारी देता है। लेकिन, दुनिया में लाखों लोग ऐसे है जो कॉर्निया को प्रभावित करने वाली समस्या से पीड़ित हैं और कॉर्निया के प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि कॉर्निया में खराबी आने पर उसके प्रत्यारोपण के अलावा कोई इलाज नहीं है।

नेत्रदान को जीवनदान माना जाता है। यह एक ऐसा महानता का काम है कि अगर आप इसे करते हैं तो किसी के जीवन में रंग भर सकते हैं। इसी विषय पर लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 25 अगस्त से 8 सितंबर तक राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है। इस दौरान लोगों को नेत्रदान के प्रति जागरूक किया जाता है।

कॉर्निया प्रत्यारोपण के जरिये जरूरतमंद की आंखों की रोशनी वापस लाने के लिए लोग अपने जीवन में नेत्रदान करने का फैसला करते हैं। इस प्रक्रिया में दान करने वाले व्यक्ति की मौत के बाद उसकी आंखें जरूरतमंद को दान की जाती है, जिससे कॉर्निया के पीड़ित मरीज के जीवन में रोशनी आ जाती है।

बता दें कि दुनिया में लाखों लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं। नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस एंड विजुअल इम्पेयरमेंट (एनपीसीबीवीआई) के अनुसार देश में लगभग 10 लाख लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं, जो इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कोई उनके जीवन में रंग भर सके।

14वें नेशनल कॉर्निया एंड आई बैंकिंग कॉन्फ्रेंस के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक लोगों को कॉर्नियल प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, लेकिन इनमें से केवल 25,000 लोगों का ही प्रत्यारोपण हो पाता है।

कॉर्निया प्रत्यारोपण को केराटोप्लास्टी भी कहा जाता है। इसमें सर्जरी के जरिए डोनर से प्राप्त स्वस्थ कॉर्निया को मरीज में ट्रांसप्लांट किया जाता है। बता दें कि सफल सर्जरी काफी हद तक दान किए गए कॉर्निया की स्थिति पर निर्भर करती है।

नेत्रदान का महत्व के बारे में आईएएनएस ने बिहार विधान परिषद के मनोनीत सदस्य, प्रोफेसर एमेरिटस आरआईओ इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना एवं दक्षिण एशियाई नेत्र विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष, इंडियन रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी सोसायटी के अध्यक्ष और विश्व आरओपी परिषद के भारत के अध्यक्ष राजवर्धन झा आजाद से बात की।

उन्होंने कहा, ”नेत्रदान महादान है। जिस तरह से शरीर के अन्य अंगों का दान किया जाता है, इसी तरह नेत्रदान भी किया जाता है। यह हमारे देश में पिछले कई दशकों से किया जा रहा है। नेत्रदान की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह मृत्‍यु के बाद भी दान की जा सकती है।”

राजवर्धन झा आजाद ने कहा, ”हमारे देश में पिछले लगभग 40 साल से लोग नेत्रदान कर रहे हैं। इस दिशा में कई स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़कर कई लोग काम कर रहे हैं, जहां आप अपने जीते जी अपने नेत्रदान कर सकते हैं।”

उन्होंने नेत्रदान की अपील करते हुए कहा, ”लोग अपनी मृत्यु के बाद नेत्रदान जरूर करें, जिससे जरूरतमंद लोग इस दुनिया को देख सकें। प्रत्यारोपण के लिए आंख का पारदर्शी अगला हिस्सा यानी कॉर्निया ही निकाला जाता है, और जरूरतमंद की आंख में लगा दिया जाता है।”

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नेत्रदान को जीवनदान माना जाता है। यह एक ऐसा महानता का काम है कि अगर आप इसे करते हैं तो किसी के जीवन में रंग भर सकते हैं। इसी विषय पर लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 25 अगस्त से 8 सितंबर तक राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है। इस दौरान लोगों को नेत्रदान के प्रति जागरूक किया जाता है।

कॉर्निया प्रत्यारोपण के जरिये जरूरतमंद की आंखों की रोशनी वापस लाने के लिए लोग अपने जीवन में नेत्रदान करने का फैसला करते हैं। इस प्रक्रिया में दान करने वाले व्यक्ति की मौत के बाद उसकी आंखें जरूरतमंद को दान की जाती है, जिससे कॉर्निया के पीड़ित मरीज के जीवन में रोशनी आ जाती है।

बता दें कि दुनिया में लाखों लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं। नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस एंड विजुअल इम्पेयरमेंट (एनपीसीबीवीआई) के अनुसार देश में लगभग 10 लाख लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं, जो इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कोई उनके जीवन में रंग भर सके।

14वें नेशनल कॉर्निया एंड आई बैंकिंग कॉन्फ्रेंस के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक लोगों को कॉर्नियल प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, लेकिन इनमें से केवल 25,000 लोगों का ही प्रत्यारोपण हो पाता है।

कॉर्निया प्रत्यारोपण को केराटोप्लास्टी भी कहा जाता है। इसमें सर्जरी के जरिए डोनर से प्राप्त स्वस्थ कॉर्निया को मरीज में ट्रांसप्लांट किया जाता है। बता दें कि सफल सर्जरी काफी हद तक दान किए गए कॉर्निया की स्थिति पर निर्भर करती है।

नेत्रदान का महत्व के बारे में आईएएनएस ने बिहार विधान परिषद के मनोनीत सदस्य, प्रोफेसर एमेरिटस आरआईओ इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना एवं दक्षिण एशियाई नेत्र विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष, इंडियन रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी सोसायटी के अध्यक्ष और विश्व आरओपी परिषद के भारत के अध्यक्ष राजवर्धन झा आजाद से बात की।

उन्होंने कहा, ”नेत्रदान महादान है। जिस तरह से शरीर के अन्य अंगों का दान किया जाता है, इसी तरह नेत्रदान भी किया जाता है। यह हमारे देश में पिछले कई दशकों से किया जा रहा है। नेत्रदान की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह मृत्‍यु के बाद भी दान की जा सकती है।”

राजवर्धन झा आजाद ने कहा, ”हमारे देश में पिछले लगभग 40 साल से लोग नेत्रदान कर रहे हैं। इस दिशा में कई स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़कर कई लोग काम कर रहे हैं, जहां आप अपने जीते जी अपने नेत्रदान कर सकते हैं।”

उन्होंने नेत्रदान की अपील करते हुए कहा, ”लोग अपनी मृत्यु के बाद नेत्रदान जरूर करें, जिससे जरूरतमंद लोग इस दुनिया को देख सकें। प्रत्यारोपण के लिए आंख का पारदर्शी अगला हिस्सा यानी कॉर्निया ही निकाला जाता है, और जरूरतमंद की आंख में लगा दिया जाता है।”

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नेत्रदान को जीवनदान माना जाता है। यह एक ऐसा महानता का काम है कि अगर आप इसे करते हैं तो किसी के जीवन में रंग भर सकते हैं। इसी विषय पर लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 25 अगस्त से 8 सितंबर तक राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है। इस दौरान लोगों को नेत्रदान के प्रति जागरूक किया जाता है।

कॉर्निया प्रत्यारोपण के जरिये जरूरतमंद की आंखों की रोशनी वापस लाने के लिए लोग अपने जीवन में नेत्रदान करने का फैसला करते हैं। इस प्रक्रिया में दान करने वाले व्यक्ति की मौत के बाद उसकी आंखें जरूरतमंद को दान की जाती है, जिससे कॉर्निया के पीड़ित मरीज के जीवन में रोशनी आ जाती है।

बता दें कि दुनिया में लाखों लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं। नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस एंड विजुअल इम्पेयरमेंट (एनपीसीबीवीआई) के अनुसार देश में लगभग 10 लाख लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं, जो इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कोई उनके जीवन में रंग भर सके।

14वें नेशनल कॉर्निया एंड आई बैंकिंग कॉन्फ्रेंस के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक लोगों को कॉर्नियल प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, लेकिन इनमें से केवल 25,000 लोगों का ही प्रत्यारोपण हो पाता है।

कॉर्निया प्रत्यारोपण को केराटोप्लास्टी भी कहा जाता है। इसमें सर्जरी के जरिए डोनर से प्राप्त स्वस्थ कॉर्निया को मरीज में ट्रांसप्लांट किया जाता है। बता दें कि सफल सर्जरी काफी हद तक दान किए गए कॉर्निया की स्थिति पर निर्भर करती है।

नेत्रदान का महत्व के बारे में आईएएनएस ने बिहार विधान परिषद के मनोनीत सदस्य, प्रोफेसर एमेरिटस आरआईओ इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना एवं दक्षिण एशियाई नेत्र विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष, इंडियन रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी सोसायटी के अध्यक्ष और विश्व आरओपी परिषद के भारत के अध्यक्ष राजवर्धन झा आजाद से बात की।

उन्होंने कहा, ”नेत्रदान महादान है। जिस तरह से शरीर के अन्य अंगों का दान किया जाता है, इसी तरह नेत्रदान भी किया जाता है। यह हमारे देश में पिछले कई दशकों से किया जा रहा है। नेत्रदान की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह मृत्‍यु के बाद भी दान की जा सकती है।”

राजवर्धन झा आजाद ने कहा, ”हमारे देश में पिछले लगभग 40 साल से लोग नेत्रदान कर रहे हैं। इस दिशा में कई स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़कर कई लोग काम कर रहे हैं, जहां आप अपने जीते जी अपने नेत्रदान कर सकते हैं।”

उन्होंने नेत्रदान की अपील करते हुए कहा, ”लोग अपनी मृत्यु के बाद नेत्रदान जरूर करें, जिससे जरूरतमंद लोग इस दुनिया को देख सकें। प्रत्यारोपण के लिए आंख का पारदर्शी अगला हिस्सा यानी कॉर्निया ही निकाला जाता है, और जरूरतमंद की आंख में लगा दिया जाता है।”

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नेत्रदान को जीवनदान माना जाता है। यह एक ऐसा महानता का काम है कि अगर आप इसे करते हैं तो किसी के जीवन में रंग भर सकते हैं। इसी विषय पर लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 25 अगस्त से 8 सितंबर तक राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है। इस दौरान लोगों को नेत्रदान के प्रति जागरूक किया जाता है।

कॉर्निया प्रत्यारोपण के जरिये जरूरतमंद की आंखों की रोशनी वापस लाने के लिए लोग अपने जीवन में नेत्रदान करने का फैसला करते हैं। इस प्रक्रिया में दान करने वाले व्यक्ति की मौत के बाद उसकी आंखें जरूरतमंद को दान की जाती है, जिससे कॉर्निया के पीड़ित मरीज के जीवन में रोशनी आ जाती है।

बता दें कि दुनिया में लाखों लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं। नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस एंड विजुअल इम्पेयरमेंट (एनपीसीबीवीआई) के अनुसार देश में लगभग 10 लाख लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं, जो इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कोई उनके जीवन में रंग भर सके।

14वें नेशनल कॉर्निया एंड आई बैंकिंग कॉन्फ्रेंस के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक लोगों को कॉर्नियल प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, लेकिन इनमें से केवल 25,000 लोगों का ही प्रत्यारोपण हो पाता है।

कॉर्निया प्रत्यारोपण को केराटोप्लास्टी भी कहा जाता है। इसमें सर्जरी के जरिए डोनर से प्राप्त स्वस्थ कॉर्निया को मरीज में ट्रांसप्लांट किया जाता है। बता दें कि सफल सर्जरी काफी हद तक दान किए गए कॉर्निया की स्थिति पर निर्भर करती है।

नेत्रदान का महत्व के बारे में आईएएनएस ने बिहार विधान परिषद के मनोनीत सदस्य, प्रोफेसर एमेरिटस आरआईओ इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना एवं दक्षिण एशियाई नेत्र विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष, इंडियन रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी सोसायटी के अध्यक्ष और विश्व आरओपी परिषद के भारत के अध्यक्ष राजवर्धन झा आजाद से बात की।

उन्होंने कहा, ”नेत्रदान महादान है। जिस तरह से शरीर के अन्य अंगों का दान किया जाता है, इसी तरह नेत्रदान भी किया जाता है। यह हमारे देश में पिछले कई दशकों से किया जा रहा है। नेत्रदान की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह मृत्‍यु के बाद भी दान की जा सकती है।”

राजवर्धन झा आजाद ने कहा, ”हमारे देश में पिछले लगभग 40 साल से लोग नेत्रदान कर रहे हैं। इस दिशा में कई स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़कर कई लोग काम कर रहे हैं, जहां आप अपने जीते जी अपने नेत्रदान कर सकते हैं।”

उन्होंने नेत्रदान की अपील करते हुए कहा, ”लोग अपनी मृत्यु के बाद नेत्रदान जरूर करें, जिससे जरूरतमंद लोग इस दुनिया को देख सकें। प्रत्यारोपण के लिए आंख का पारदर्शी अगला हिस्सा यानी कॉर्निया ही निकाला जाता है, और जरूरतमंद की आंख में लगा दिया जाता है।”

–आईएएनएस

एमकेएस/एकेजे

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