deshbandhu

deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Menu
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Facebook Twitter Youtube
  • भोपाल
  • इंदौर
  • उज्जैन
  • ग्वालियर
  • जबलपुर
  • रीवा
  • चंबल
  • नर्मदापुरम
  • शहडोल
  • सागर
  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
ADVERTISEMENT
Home ताज़ा समाचार

लड़कों के साथ की पढ़ाई, बनीं देश की पहली महिला सर्जन और विधायक, जानें कौन थीं मुथुलक्ष्मी रेड्डी?

by
July 30, 2024
in ताज़ा समाचार
0
लड़कों के साथ की पढ़ाई, बनीं देश की पहली महिला सर्जन और विधायक, जानें कौन थीं मुथुलक्ष्मी रेड्डी?
0
SHARES
2
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp
ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 30 जुलाई (आईएएनएस)। 21वीं सदी में भले ही महिलाओं को उनके अधिकार आसानी से मिल जाते हों। लेकिन, एक दौर ऐसा भी था। जब महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता था और उन्हें अपना हक पाने के लिए समाज के तानों को झेलना पड़ता था। 18वीं सदी में भारत में एक ऐसी ही महिला का जन्म हुआ। जिसने न सिर्फ समाज को बदलने का काम किया। बल्कि वे देश की पहली महिला विधायक और सर्जन भी बनीं।

हम बात कर रहे हैं डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की। देश की पहली महिला विधायक और सर्जन डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की आज 138वीं जयंती है। उनका जन्म 1886 में तमिलनाडु (तब मद्रास) के पुडुकोट्टई में हुआ था। जब वह पैदा हुईं, तब देश में अंग्रेजों का राज था।

READ ALSO

मणिपुर में कोरोना के 14 नए मामले, कुल मामले बढ़कर 20 हुए

ग्लोबल टेनिस क्रिकेट लीग : पहली अंतरराष्ट्रीय टेनिस बॉल लीग शारजाह में होगी आयोजित

मुथुलक्ष्मी रेड्डी के पिता नारायण स्वामी अय्यर महाराजा कॉलेज में प्रिंसिपल थे और उनकी मां चंद्रामाई देवदासी समुदाय से थीं। मुथुलक्ष्मी रेड्डी को बचपन से ही पढ़ाई का शौक था। हालांकि, माता-पिता उनकी शादी कम उम्र में ही करना चाहते थे। लेकिन, उन्हें सिर्फ पढ़ाई करनी थी। उन्होंने अपने माता-पिता की बात का विरोध किया और उन्हें पढ़ाई के लिए राजी कर लिया।

पिता के प्रिंसिपल होने के बावजूद उन्हें शिक्षा हासिल करने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। मैट्रिक तक उनके पिता और कुछ शिक्षकों ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया। बाद में मुथुलक्ष्मी ने तमिलनाडु के महाराजा कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन, उनके फॉर्म को इसलिए खारिज कर दिया गया, क्योंकि वह एक महिला थीं।

बताया जाता है कि उस समय कॉलेज में सिर्फ लड़के ही पढ़ाई करते थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान आई चुनौतियों से पार पाया और बाद में मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। वह मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने वाली पहली महिला छात्रा बनीं। यहीं उनकी एनी बेसेंट और सरोजिनी नायडू से भी मुलाकात हुई। इसके बाद वह इंग्लैंड गईं और आगे की पढ़ाई की।

वह 1912 में भारत की पहली महिला सर्जन बनीं। इसके बाद 1927 में वह भारत की पहली महिला विधायक चुनी गईं। इस दौरान उन्होंने मद्रास विधानसभा में लड़कियों की कम उम्र में होने वाली शादी के लिए नियम बनाएं। उन्होंने महिलाओं के शोषण के खिलाफ भी आवाज उठाई। देवदासी प्रथा को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई।

मुथुलक्ष्मी रेड्डी को महात्मा गांधी और सरोजिनी नायडू ने काफी प्रभावित किया। सरोजिनी नायडू से मुलाकात के बाद उन्होंने महिलाओं से जुड़ी बैठकों में हिस्सा लेना शुरू किया और उनके हित में कई महत्वपूर्ण काम किए। वह अनाथ बच्चों और लड़कियों के बारे में काफी चिंतित थीं। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए 1931 में अव्वाई होम की स्थापना की। हालांकि, उनको सबसे अधिक सदमा अपनी बहन की मौत का लगा। जिनका कैंसर के कारण निधन हो गया।

उस हादसे ने मुथुलक्ष्मी को तोड़ा नहीं बल्कि उन्होंने एक मिशन बना लिया। और इस जानलेवा बीमारी से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए साल 1954 में कैंसर इंस्टिट्यूट की नींव रखी। इस इंस्टिट्यूट में हर साल 80 हजार से अधिक मरीजों का इलाज होता है।

साल 1956 में सामाजिक कामों के लिए उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साल 1968 में डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी ने 81 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया।

–आईएएनएस

एफएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 30 जुलाई (आईएएनएस)। 21वीं सदी में भले ही महिलाओं को उनके अधिकार आसानी से मिल जाते हों। लेकिन, एक दौर ऐसा भी था। जब महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता था और उन्हें अपना हक पाने के लिए समाज के तानों को झेलना पड़ता था। 18वीं सदी में भारत में एक ऐसी ही महिला का जन्म हुआ। जिसने न सिर्फ समाज को बदलने का काम किया। बल्कि वे देश की पहली महिला विधायक और सर्जन भी बनीं।

हम बात कर रहे हैं डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की। देश की पहली महिला विधायक और सर्जन डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की आज 138वीं जयंती है। उनका जन्म 1886 में तमिलनाडु (तब मद्रास) के पुडुकोट्टई में हुआ था। जब वह पैदा हुईं, तब देश में अंग्रेजों का राज था।

मुथुलक्ष्मी रेड्डी के पिता नारायण स्वामी अय्यर महाराजा कॉलेज में प्रिंसिपल थे और उनकी मां चंद्रामाई देवदासी समुदाय से थीं। मुथुलक्ष्मी रेड्डी को बचपन से ही पढ़ाई का शौक था। हालांकि, माता-पिता उनकी शादी कम उम्र में ही करना चाहते थे। लेकिन, उन्हें सिर्फ पढ़ाई करनी थी। उन्होंने अपने माता-पिता की बात का विरोध किया और उन्हें पढ़ाई के लिए राजी कर लिया।

पिता के प्रिंसिपल होने के बावजूद उन्हें शिक्षा हासिल करने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। मैट्रिक तक उनके पिता और कुछ शिक्षकों ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया। बाद में मुथुलक्ष्मी ने तमिलनाडु के महाराजा कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन, उनके फॉर्म को इसलिए खारिज कर दिया गया, क्योंकि वह एक महिला थीं।

बताया जाता है कि उस समय कॉलेज में सिर्फ लड़के ही पढ़ाई करते थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान आई चुनौतियों से पार पाया और बाद में मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। वह मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने वाली पहली महिला छात्रा बनीं। यहीं उनकी एनी बेसेंट और सरोजिनी नायडू से भी मुलाकात हुई। इसके बाद वह इंग्लैंड गईं और आगे की पढ़ाई की।

वह 1912 में भारत की पहली महिला सर्जन बनीं। इसके बाद 1927 में वह भारत की पहली महिला विधायक चुनी गईं। इस दौरान उन्होंने मद्रास विधानसभा में लड़कियों की कम उम्र में होने वाली शादी के लिए नियम बनाएं। उन्होंने महिलाओं के शोषण के खिलाफ भी आवाज उठाई। देवदासी प्रथा को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई।

मुथुलक्ष्मी रेड्डी को महात्मा गांधी और सरोजिनी नायडू ने काफी प्रभावित किया। सरोजिनी नायडू से मुलाकात के बाद उन्होंने महिलाओं से जुड़ी बैठकों में हिस्सा लेना शुरू किया और उनके हित में कई महत्वपूर्ण काम किए। वह अनाथ बच्चों और लड़कियों के बारे में काफी चिंतित थीं। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए 1931 में अव्वाई होम की स्थापना की। हालांकि, उनको सबसे अधिक सदमा अपनी बहन की मौत का लगा। जिनका कैंसर के कारण निधन हो गया।

उस हादसे ने मुथुलक्ष्मी को तोड़ा नहीं बल्कि उन्होंने एक मिशन बना लिया। और इस जानलेवा बीमारी से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए साल 1954 में कैंसर इंस्टिट्यूट की नींव रखी। इस इंस्टिट्यूट में हर साल 80 हजार से अधिक मरीजों का इलाज होता है।

साल 1956 में सामाजिक कामों के लिए उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साल 1968 में डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी ने 81 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया।

–आईएएनएस

एफएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 30 जुलाई (आईएएनएस)। 21वीं सदी में भले ही महिलाओं को उनके अधिकार आसानी से मिल जाते हों। लेकिन, एक दौर ऐसा भी था। जब महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता था और उन्हें अपना हक पाने के लिए समाज के तानों को झेलना पड़ता था। 18वीं सदी में भारत में एक ऐसी ही महिला का जन्म हुआ। जिसने न सिर्फ समाज को बदलने का काम किया। बल्कि वे देश की पहली महिला विधायक और सर्जन भी बनीं।

हम बात कर रहे हैं डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की। देश की पहली महिला विधायक और सर्जन डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की आज 138वीं जयंती है। उनका जन्म 1886 में तमिलनाडु (तब मद्रास) के पुडुकोट्टई में हुआ था। जब वह पैदा हुईं, तब देश में अंग्रेजों का राज था।

मुथुलक्ष्मी रेड्डी के पिता नारायण स्वामी अय्यर महाराजा कॉलेज में प्रिंसिपल थे और उनकी मां चंद्रामाई देवदासी समुदाय से थीं। मुथुलक्ष्मी रेड्डी को बचपन से ही पढ़ाई का शौक था। हालांकि, माता-पिता उनकी शादी कम उम्र में ही करना चाहते थे। लेकिन, उन्हें सिर्फ पढ़ाई करनी थी। उन्होंने अपने माता-पिता की बात का विरोध किया और उन्हें पढ़ाई के लिए राजी कर लिया।

पिता के प्रिंसिपल होने के बावजूद उन्हें शिक्षा हासिल करने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। मैट्रिक तक उनके पिता और कुछ शिक्षकों ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया। बाद में मुथुलक्ष्मी ने तमिलनाडु के महाराजा कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन, उनके फॉर्म को इसलिए खारिज कर दिया गया, क्योंकि वह एक महिला थीं।

बताया जाता है कि उस समय कॉलेज में सिर्फ लड़के ही पढ़ाई करते थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान आई चुनौतियों से पार पाया और बाद में मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। वह मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने वाली पहली महिला छात्रा बनीं। यहीं उनकी एनी बेसेंट और सरोजिनी नायडू से भी मुलाकात हुई। इसके बाद वह इंग्लैंड गईं और आगे की पढ़ाई की।

वह 1912 में भारत की पहली महिला सर्जन बनीं। इसके बाद 1927 में वह भारत की पहली महिला विधायक चुनी गईं। इस दौरान उन्होंने मद्रास विधानसभा में लड़कियों की कम उम्र में होने वाली शादी के लिए नियम बनाएं। उन्होंने महिलाओं के शोषण के खिलाफ भी आवाज उठाई। देवदासी प्रथा को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई।

मुथुलक्ष्मी रेड्डी को महात्मा गांधी और सरोजिनी नायडू ने काफी प्रभावित किया। सरोजिनी नायडू से मुलाकात के बाद उन्होंने महिलाओं से जुड़ी बैठकों में हिस्सा लेना शुरू किया और उनके हित में कई महत्वपूर्ण काम किए। वह अनाथ बच्चों और लड़कियों के बारे में काफी चिंतित थीं। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए 1931 में अव्वाई होम की स्थापना की। हालांकि, उनको सबसे अधिक सदमा अपनी बहन की मौत का लगा। जिनका कैंसर के कारण निधन हो गया।

उस हादसे ने मुथुलक्ष्मी को तोड़ा नहीं बल्कि उन्होंने एक मिशन बना लिया। और इस जानलेवा बीमारी से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए साल 1954 में कैंसर इंस्टिट्यूट की नींव रखी। इस इंस्टिट्यूट में हर साल 80 हजार से अधिक मरीजों का इलाज होता है।

साल 1956 में सामाजिक कामों के लिए उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साल 1968 में डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी ने 81 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया।

–आईएएनएस

एफएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 30 जुलाई (आईएएनएस)। 21वीं सदी में भले ही महिलाओं को उनके अधिकार आसानी से मिल जाते हों। लेकिन, एक दौर ऐसा भी था। जब महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता था और उन्हें अपना हक पाने के लिए समाज के तानों को झेलना पड़ता था। 18वीं सदी में भारत में एक ऐसी ही महिला का जन्म हुआ। जिसने न सिर्फ समाज को बदलने का काम किया। बल्कि वे देश की पहली महिला विधायक और सर्जन भी बनीं।

हम बात कर रहे हैं डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की। देश की पहली महिला विधायक और सर्जन डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की आज 138वीं जयंती है। उनका जन्म 1886 में तमिलनाडु (तब मद्रास) के पुडुकोट्टई में हुआ था। जब वह पैदा हुईं, तब देश में अंग्रेजों का राज था।

मुथुलक्ष्मी रेड्डी के पिता नारायण स्वामी अय्यर महाराजा कॉलेज में प्रिंसिपल थे और उनकी मां चंद्रामाई देवदासी समुदाय से थीं। मुथुलक्ष्मी रेड्डी को बचपन से ही पढ़ाई का शौक था। हालांकि, माता-पिता उनकी शादी कम उम्र में ही करना चाहते थे। लेकिन, उन्हें सिर्फ पढ़ाई करनी थी। उन्होंने अपने माता-पिता की बात का विरोध किया और उन्हें पढ़ाई के लिए राजी कर लिया।

पिता के प्रिंसिपल होने के बावजूद उन्हें शिक्षा हासिल करने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। मैट्रिक तक उनके पिता और कुछ शिक्षकों ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया। बाद में मुथुलक्ष्मी ने तमिलनाडु के महाराजा कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन, उनके फॉर्म को इसलिए खारिज कर दिया गया, क्योंकि वह एक महिला थीं।

बताया जाता है कि उस समय कॉलेज में सिर्फ लड़के ही पढ़ाई करते थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान आई चुनौतियों से पार पाया और बाद में मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। वह मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने वाली पहली महिला छात्रा बनीं। यहीं उनकी एनी बेसेंट और सरोजिनी नायडू से भी मुलाकात हुई। इसके बाद वह इंग्लैंड गईं और आगे की पढ़ाई की।

वह 1912 में भारत की पहली महिला सर्जन बनीं। इसके बाद 1927 में वह भारत की पहली महिला विधायक चुनी गईं। इस दौरान उन्होंने मद्रास विधानसभा में लड़कियों की कम उम्र में होने वाली शादी के लिए नियम बनाएं। उन्होंने महिलाओं के शोषण के खिलाफ भी आवाज उठाई। देवदासी प्रथा को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई।

मुथुलक्ष्मी रेड्डी को महात्मा गांधी और सरोजिनी नायडू ने काफी प्रभावित किया। सरोजिनी नायडू से मुलाकात के बाद उन्होंने महिलाओं से जुड़ी बैठकों में हिस्सा लेना शुरू किया और उनके हित में कई महत्वपूर्ण काम किए। वह अनाथ बच्चों और लड़कियों के बारे में काफी चिंतित थीं। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए 1931 में अव्वाई होम की स्थापना की। हालांकि, उनको सबसे अधिक सदमा अपनी बहन की मौत का लगा। जिनका कैंसर के कारण निधन हो गया।

उस हादसे ने मुथुलक्ष्मी को तोड़ा नहीं बल्कि उन्होंने एक मिशन बना लिया। और इस जानलेवा बीमारी से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए साल 1954 में कैंसर इंस्टिट्यूट की नींव रखी। इस इंस्टिट्यूट में हर साल 80 हजार से अधिक मरीजों का इलाज होता है।

साल 1956 में सामाजिक कामों के लिए उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साल 1968 में डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी ने 81 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया।

–आईएएनएस

एफएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 30 जुलाई (आईएएनएस)। 21वीं सदी में भले ही महिलाओं को उनके अधिकार आसानी से मिल जाते हों। लेकिन, एक दौर ऐसा भी था। जब महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता था और उन्हें अपना हक पाने के लिए समाज के तानों को झेलना पड़ता था। 18वीं सदी में भारत में एक ऐसी ही महिला का जन्म हुआ। जिसने न सिर्फ समाज को बदलने का काम किया। बल्कि वे देश की पहली महिला विधायक और सर्जन भी बनीं।

हम बात कर रहे हैं डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की। देश की पहली महिला विधायक और सर्जन डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की आज 138वीं जयंती है। उनका जन्म 1886 में तमिलनाडु (तब मद्रास) के पुडुकोट्टई में हुआ था। जब वह पैदा हुईं, तब देश में अंग्रेजों का राज था।

मुथुलक्ष्मी रेड्डी के पिता नारायण स्वामी अय्यर महाराजा कॉलेज में प्रिंसिपल थे और उनकी मां चंद्रामाई देवदासी समुदाय से थीं। मुथुलक्ष्मी रेड्डी को बचपन से ही पढ़ाई का शौक था। हालांकि, माता-पिता उनकी शादी कम उम्र में ही करना चाहते थे। लेकिन, उन्हें सिर्फ पढ़ाई करनी थी। उन्होंने अपने माता-पिता की बात का विरोध किया और उन्हें पढ़ाई के लिए राजी कर लिया।

पिता के प्रिंसिपल होने के बावजूद उन्हें शिक्षा हासिल करने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। मैट्रिक तक उनके पिता और कुछ शिक्षकों ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया। बाद में मुथुलक्ष्मी ने तमिलनाडु के महाराजा कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन, उनके फॉर्म को इसलिए खारिज कर दिया गया, क्योंकि वह एक महिला थीं।

बताया जाता है कि उस समय कॉलेज में सिर्फ लड़के ही पढ़ाई करते थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान आई चुनौतियों से पार पाया और बाद में मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। वह मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने वाली पहली महिला छात्रा बनीं। यहीं उनकी एनी बेसेंट और सरोजिनी नायडू से भी मुलाकात हुई। इसके बाद वह इंग्लैंड गईं और आगे की पढ़ाई की।

वह 1912 में भारत की पहली महिला सर्जन बनीं। इसके बाद 1927 में वह भारत की पहली महिला विधायक चुनी गईं। इस दौरान उन्होंने मद्रास विधानसभा में लड़कियों की कम उम्र में होने वाली शादी के लिए नियम बनाएं। उन्होंने महिलाओं के शोषण के खिलाफ भी आवाज उठाई। देवदासी प्रथा को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई।

मुथुलक्ष्मी रेड्डी को महात्मा गांधी और सरोजिनी नायडू ने काफी प्रभावित किया। सरोजिनी नायडू से मुलाकात के बाद उन्होंने महिलाओं से जुड़ी बैठकों में हिस्सा लेना शुरू किया और उनके हित में कई महत्वपूर्ण काम किए। वह अनाथ बच्चों और लड़कियों के बारे में काफी चिंतित थीं। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए 1931 में अव्वाई होम की स्थापना की। हालांकि, उनको सबसे अधिक सदमा अपनी बहन की मौत का लगा। जिनका कैंसर के कारण निधन हो गया।

उस हादसे ने मुथुलक्ष्मी को तोड़ा नहीं बल्कि उन्होंने एक मिशन बना लिया। और इस जानलेवा बीमारी से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए साल 1954 में कैंसर इंस्टिट्यूट की नींव रखी। इस इंस्टिट्यूट में हर साल 80 हजार से अधिक मरीजों का इलाज होता है।

साल 1956 में सामाजिक कामों के लिए उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साल 1968 में डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी ने 81 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया।

–आईएएनएस

एफएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 30 जुलाई (आईएएनएस)। 21वीं सदी में भले ही महिलाओं को उनके अधिकार आसानी से मिल जाते हों। लेकिन, एक दौर ऐसा भी था। जब महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता था और उन्हें अपना हक पाने के लिए समाज के तानों को झेलना पड़ता था। 18वीं सदी में भारत में एक ऐसी ही महिला का जन्म हुआ। जिसने न सिर्फ समाज को बदलने का काम किया। बल्कि वे देश की पहली महिला विधायक और सर्जन भी बनीं।

हम बात कर रहे हैं डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की। देश की पहली महिला विधायक और सर्जन डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की आज 138वीं जयंती है। उनका जन्म 1886 में तमिलनाडु (तब मद्रास) के पुडुकोट्टई में हुआ था। जब वह पैदा हुईं, तब देश में अंग्रेजों का राज था।

मुथुलक्ष्मी रेड्डी के पिता नारायण स्वामी अय्यर महाराजा कॉलेज में प्रिंसिपल थे और उनकी मां चंद्रामाई देवदासी समुदाय से थीं। मुथुलक्ष्मी रेड्डी को बचपन से ही पढ़ाई का शौक था। हालांकि, माता-पिता उनकी शादी कम उम्र में ही करना चाहते थे। लेकिन, उन्हें सिर्फ पढ़ाई करनी थी। उन्होंने अपने माता-पिता की बात का विरोध किया और उन्हें पढ़ाई के लिए राजी कर लिया।

पिता के प्रिंसिपल होने के बावजूद उन्हें शिक्षा हासिल करने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। मैट्रिक तक उनके पिता और कुछ शिक्षकों ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया। बाद में मुथुलक्ष्मी ने तमिलनाडु के महाराजा कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन, उनके फॉर्म को इसलिए खारिज कर दिया गया, क्योंकि वह एक महिला थीं।

बताया जाता है कि उस समय कॉलेज में सिर्फ लड़के ही पढ़ाई करते थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान आई चुनौतियों से पार पाया और बाद में मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। वह मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने वाली पहली महिला छात्रा बनीं। यहीं उनकी एनी बेसेंट और सरोजिनी नायडू से भी मुलाकात हुई। इसके बाद वह इंग्लैंड गईं और आगे की पढ़ाई की।

वह 1912 में भारत की पहली महिला सर्जन बनीं। इसके बाद 1927 में वह भारत की पहली महिला विधायक चुनी गईं। इस दौरान उन्होंने मद्रास विधानसभा में लड़कियों की कम उम्र में होने वाली शादी के लिए नियम बनाएं। उन्होंने महिलाओं के शोषण के खिलाफ भी आवाज उठाई। देवदासी प्रथा को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई।

मुथुलक्ष्मी रेड्डी को महात्मा गांधी और सरोजिनी नायडू ने काफी प्रभावित किया। सरोजिनी नायडू से मुलाकात के बाद उन्होंने महिलाओं से जुड़ी बैठकों में हिस्सा लेना शुरू किया और उनके हित में कई महत्वपूर्ण काम किए। वह अनाथ बच्चों और लड़कियों के बारे में काफी चिंतित थीं। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए 1931 में अव्वाई होम की स्थापना की। हालांकि, उनको सबसे अधिक सदमा अपनी बहन की मौत का लगा। जिनका कैंसर के कारण निधन हो गया।

उस हादसे ने मुथुलक्ष्मी को तोड़ा नहीं बल्कि उन्होंने एक मिशन बना लिया। और इस जानलेवा बीमारी से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए साल 1954 में कैंसर इंस्टिट्यूट की नींव रखी। इस इंस्टिट्यूट में हर साल 80 हजार से अधिक मरीजों का इलाज होता है।

साल 1956 में सामाजिक कामों के लिए उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साल 1968 में डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी ने 81 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया।

–आईएएनएस

एफएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 30 जुलाई (आईएएनएस)। 21वीं सदी में भले ही महिलाओं को उनके अधिकार आसानी से मिल जाते हों। लेकिन, एक दौर ऐसा भी था। जब महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता था और उन्हें अपना हक पाने के लिए समाज के तानों को झेलना पड़ता था। 18वीं सदी में भारत में एक ऐसी ही महिला का जन्म हुआ। जिसने न सिर्फ समाज को बदलने का काम किया। बल्कि वे देश की पहली महिला विधायक और सर्जन भी बनीं।

हम बात कर रहे हैं डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की। देश की पहली महिला विधायक और सर्जन डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की आज 138वीं जयंती है। उनका जन्म 1886 में तमिलनाडु (तब मद्रास) के पुडुकोट्टई में हुआ था। जब वह पैदा हुईं, तब देश में अंग्रेजों का राज था।

मुथुलक्ष्मी रेड्डी के पिता नारायण स्वामी अय्यर महाराजा कॉलेज में प्रिंसिपल थे और उनकी मां चंद्रामाई देवदासी समुदाय से थीं। मुथुलक्ष्मी रेड्डी को बचपन से ही पढ़ाई का शौक था। हालांकि, माता-पिता उनकी शादी कम उम्र में ही करना चाहते थे। लेकिन, उन्हें सिर्फ पढ़ाई करनी थी। उन्होंने अपने माता-पिता की बात का विरोध किया और उन्हें पढ़ाई के लिए राजी कर लिया।

पिता के प्रिंसिपल होने के बावजूद उन्हें शिक्षा हासिल करने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। मैट्रिक तक उनके पिता और कुछ शिक्षकों ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया। बाद में मुथुलक्ष्मी ने तमिलनाडु के महाराजा कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन, उनके फॉर्म को इसलिए खारिज कर दिया गया, क्योंकि वह एक महिला थीं।

बताया जाता है कि उस समय कॉलेज में सिर्फ लड़के ही पढ़ाई करते थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान आई चुनौतियों से पार पाया और बाद में मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। वह मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने वाली पहली महिला छात्रा बनीं। यहीं उनकी एनी बेसेंट और सरोजिनी नायडू से भी मुलाकात हुई। इसके बाद वह इंग्लैंड गईं और आगे की पढ़ाई की।

वह 1912 में भारत की पहली महिला सर्जन बनीं। इसके बाद 1927 में वह भारत की पहली महिला विधायक चुनी गईं। इस दौरान उन्होंने मद्रास विधानसभा में लड़कियों की कम उम्र में होने वाली शादी के लिए नियम बनाएं। उन्होंने महिलाओं के शोषण के खिलाफ भी आवाज उठाई। देवदासी प्रथा को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई।

मुथुलक्ष्मी रेड्डी को महात्मा गांधी और सरोजिनी नायडू ने काफी प्रभावित किया। सरोजिनी नायडू से मुलाकात के बाद उन्होंने महिलाओं से जुड़ी बैठकों में हिस्सा लेना शुरू किया और उनके हित में कई महत्वपूर्ण काम किए। वह अनाथ बच्चों और लड़कियों के बारे में काफी चिंतित थीं। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए 1931 में अव्वाई होम की स्थापना की। हालांकि, उनको सबसे अधिक सदमा अपनी बहन की मौत का लगा। जिनका कैंसर के कारण निधन हो गया।

उस हादसे ने मुथुलक्ष्मी को तोड़ा नहीं बल्कि उन्होंने एक मिशन बना लिया। और इस जानलेवा बीमारी से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए साल 1954 में कैंसर इंस्टिट्यूट की नींव रखी। इस इंस्टिट्यूट में हर साल 80 हजार से अधिक मरीजों का इलाज होता है।

साल 1956 में सामाजिक कामों के लिए उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साल 1968 में डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी ने 81 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया।

–आईएएनएस

एफएम/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 30 जुलाई (आईएएनएस)। 21वीं सदी में भले ही महिलाओं को उनके अधिकार आसानी से मिल जाते हों। लेकिन, एक दौर ऐसा भी था। जब महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता था और उन्हें अपना हक पाने के लिए समाज के तानों को झेलना पड़ता था। 18वीं सदी में भारत में एक ऐसी ही महिला का जन्म हुआ। जिसने न सिर्फ समाज को बदलने का काम किया। बल्कि वे देश की पहली महिला विधायक और सर्जन भी बनीं।

हम बात कर रहे हैं डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की। देश की पहली महिला विधायक और सर्जन डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की आज 138वीं जयंती है। उनका जन्म 1886 में तमिलनाडु (तब मद्रास) के पुडुकोट्टई में हुआ था। जब वह पैदा हुईं, तब देश में अंग्रेजों का राज था।

मुथुलक्ष्मी रेड्डी के पिता नारायण स्वामी अय्यर महाराजा कॉलेज में प्रिंसिपल थे और उनकी मां चंद्रामाई देवदासी समुदाय से थीं। मुथुलक्ष्मी रेड्डी को बचपन से ही पढ़ाई का शौक था। हालांकि, माता-पिता उनकी शादी कम उम्र में ही करना चाहते थे। लेकिन, उन्हें सिर्फ पढ़ाई करनी थी। उन्होंने अपने माता-पिता की बात का विरोध किया और उन्हें पढ़ाई के लिए राजी कर लिया।

पिता के प्रिंसिपल होने के बावजूद उन्हें शिक्षा हासिल करने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। मैट्रिक तक उनके पिता और कुछ शिक्षकों ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया। बाद में मुथुलक्ष्मी ने तमिलनाडु के महाराजा कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन, उनके फॉर्म को इसलिए खारिज कर दिया गया, क्योंकि वह एक महिला थीं।

बताया जाता है कि उस समय कॉलेज में सिर्फ लड़के ही पढ़ाई करते थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान आई चुनौतियों से पार पाया और बाद में मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। वह मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने वाली पहली महिला छात्रा बनीं। यहीं उनकी एनी बेसेंट और सरोजिनी नायडू से भी मुलाकात हुई। इसके बाद वह इंग्लैंड गईं और आगे की पढ़ाई की।

वह 1912 में भारत की पहली महिला सर्जन बनीं। इसके बाद 1927 में वह भारत की पहली महिला विधायक चुनी गईं। इस दौरान उन्होंने मद्रास विधानसभा में लड़कियों की कम उम्र में होने वाली शादी के लिए नियम बनाएं। उन्होंने महिलाओं के शोषण के खिलाफ भी आवाज उठाई। देवदासी प्रथा को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई।

मुथुलक्ष्मी रेड्डी को महात्मा गांधी और सरोजिनी नायडू ने काफी प्रभावित किया। सरोजिनी नायडू से मुलाकात के बाद उन्होंने महिलाओं से जुड़ी बैठकों में हिस्सा लेना शुरू किया और उनके हित में कई महत्वपूर्ण काम किए। वह अनाथ बच्चों और लड़कियों के बारे में काफी चिंतित थीं। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए 1931 में अव्वाई होम की स्थापना की। हालांकि, उनको सबसे अधिक सदमा अपनी बहन की मौत का लगा। जिनका कैंसर के कारण निधन हो गया।

उस हादसे ने मुथुलक्ष्मी को तोड़ा नहीं बल्कि उन्होंने एक मिशन बना लिया। और इस जानलेवा बीमारी से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए साल 1954 में कैंसर इंस्टिट्यूट की नींव रखी। इस इंस्टिट्यूट में हर साल 80 हजार से अधिक मरीजों का इलाज होता है।

साल 1956 में सामाजिक कामों के लिए उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साल 1968 में डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी ने 81 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया।

–आईएएनएस

एफएम/केआर

Related Posts

ताज़ा समाचार

मणिपुर में कोरोना के 14 नए मामले, कुल मामले बढ़कर 20 हुए

June 18, 2025
ताज़ा समाचार

ग्लोबल टेनिस क्रिकेट लीग : पहली अंतरराष्ट्रीय टेनिस बॉल लीग शारजाह में होगी आयोजित

June 18, 2025
ताज़ा समाचार

उत्तराखंड को डिजिटल राज्य बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल

June 18, 2025
ताज़ा समाचार

बांग्लादेश : राजनीतिक दलों ने सुधारों पर ‘राष्ट्रीय सहमति आयोग’ के साथ चर्चा की

June 18, 2025
ताज़ा समाचार

राजा रघुवंशी हत्याकांड : शिलांग पुलिस ने सोनम के व्यवहार की जुटाई जानकारी

June 18, 2025
ताज़ा समाचार

सूरीनाम में भारत के राजदूत सुभाष पी गुप्ता ने यूपी के औद्योगिक विकास मंत्री से की मुलाकात

June 18, 2025
Next Post
मनु-सरबजोत की ऐतिहासिक जीत, देश भर से मिली बधाइयां

मनु-सरबजोत की ऐतिहासिक जीत, देश भर से मिली बधाइयां

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ADVERTISEMENT

Contact us

Address

Deshbandhu Complex, Naudra Bridge Jabalpur 482001

Mail

deshbandhump@gmail.com

Mobile

9425156056

Important links

  • राशि-भविष्य
  • वर्गीकृत विज्ञापन
  • लाइफ स्टाइल
  • मनोरंजन
  • ब्लॉग

Important links

  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
  • ई पेपर

Related Links

  • Mayaram Surjan
  • Swayamsiddha
  • Deshbandhu

Social Links

084742
Total views : 5894840
Powered By WPS Visitor Counter

Published by Abhas Surjan on behalf of Patrakar Prakashan Pvt.Ltd., Deshbandhu Complex, Naudra Bridge, Jabalpur – 482001 |T:+91 761 4006577 |M: +91 9425156056 Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions The contents of this website is for reading only. Any unauthorised attempt to temper / edit / change the contents of this website comes under cyber crime and is punishable.

Copyright @ 2022 Deshbandhu. All rights are reserved.

  • Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions
No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर

Copyright @ 2022 Deshbandhu-MP All rights are reserved.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In