नई दिल्ली, 15 सितंबर (आईएएनएस)। भारतीय वायु सेना के महान योद्धा और अनुशासन की प्रतिमूर्ति, एयर चीफ मार्शल अर्जन सिंह, देश के उन नायकों में से एक थे जिनकी वीरता और समर्पण की गाथा आने वाली पीढ़ियों को सदियों तक प्रेरित करती है। 1965 की भारत-पाक युद्ध के नायक के रूप में प्रसिद्ध अर्जन सिंह, केवल एक सैनिक नहीं, बल्कि सच्चे राष्ट्रभक्त थे, जिन्होंने अपनी अंतिम सांस तक अनुशासन और समर्पण की मिसाल कायम की थी।
अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल, 1919 को अविभाजित भारत के पंजाब के लायलपुर में हुआ था। पिता, दादा और परदादा भी सेना में रह चुके थे। पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं, अर्जन सिंह का बचपन ऐसा ही था। वह तैराकी में इतने शानदार थे कि एक मील और आधा मील की फ्रीस्टाइल तैराकी प्रतियोगिताओं में अखिल भारतीय रिकॉर्ड तक उनके नाम था। 1938 में, अर्जन सिंह ने 19 साल की उम्र में रॉयल एयर फोर्स क्रैनवेल में ट्रेनिंग के दौरान भारतीय कैडेट्स के बैच में टॉप किया था। अर्जन सिंह वहां तैराकी के अलावा एथलेटिक्स और हॉकी टीमों के उपकप्तान भी थे।
जल्द ही उनकी नेतृत्व क्षमता और दूरदर्शिता का बोलबाला हो चुका था। द्वितीय विश्व युद्ध उनके करियर का पहला युद्ध था। जिसके दौरान बर्मा अभियान में अर्जन सिंह ने असाधारण नेतृत्व, बेहतरीन कौशल और साहस दिखाया था। जिसके लिए उन्हें 1944 में ‘डिस्टिंग्विश्ड फ्लाइंग क्रॉस’ (डीएफसी) से सम्मानित किया गया था। अगस्त 1945 में, उन्हें यूके के ब्रैकनेल में रॉयल एयर फोर्स स्टाफ कॉलेज में प्रशिक्षण के लिए चुना गया था।
देश की आजादी तक वह भारतीय वायुसेना में अपनी मुख्य पहचान बना चुके थे। 15 अगस्त 1947 को, उन्होंने लाल किले के ऊपर 100 से अधिक भारतीय वायु सेना के विमानों की परेड का नेतृत्व किया। इसी दिन उन्हें ग्रुप कैप्टन के पद पर एयरफोर्स स्टेशन, अंबाला का कमांड संभालने का अवसर मिला था। यह बड़ा ही संवेदनशील समय था जब देश का विभाजन हो चुका था, वायु सेना का बंटवारा हो गया था और भारत सांप्रदायिक दंगों के कठिन दौर से जूझ रहा था। अर्जन सिंह ने इन चीजों से उभरने में प्रशासन की काफी मदद की थी।
1949 में अर्जन सिंह ने ऑपरेशनल कमांड के एयर ऑफिसर कमांडिंग का पद संभाला। बाद में उनको एयर वाइस मार्शल के पद पर पदोन्नति दी गई। साल 1963 तक वह वीसीएएस बन चुके थे। इसके दो साल बाद एयर मार्शल अर्जन सिंह ने 1965 के भारत-पाक युद्ध में वायु सेना का नेतृत्व किया। यह वह युद्ध था जिसके लिए अर्जन सिंह सबसे ज्यादा जाने जाते हैं।
इस युद्ध में पाकिस्तान के इरादे कश्मीर लेने के थे। उन्होंने एक सरप्राइज अटैक भी कर दिया था और वह चंब तक पहुंच गए थे। इसके बाद पाकिस्तान की कोशिश थी जम्मू-कश्मीर में अखनूर पर कब्जा करने की। सामरिक और रणनीतिक दृष्टि से इस बेहद अहम जगह को भारत किसी भी कीमत पर खोने नहीं दे सकता था। अब वह समय आ चुका था जब भारतीय आर्मी को एयरफोर्स की सहायता की जरूरत थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अर्जन सिंह को फैसला लेने की पूरी छूट दी थी।
एयर मार्शल डेन्ज़िल कीलोर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि तब चीफ (अर्जन सिंह) से पूछा गया, “आपको इसके लिए कितना समय चाहिए?” अर्जन सिंह का जवाब था- “सिर्फ एक घंटा।” इसके कुछ ही देर बार भारत 36 एयरक्राफ्ट आसमान में उड़ रहे थे। इंडियन एयरफोर्स ने पाकिस्तानी टैंकों के हमले को चंब में रोक दिया था। उन्होंने पाकिस्तान के मुख्य सैन्य बलों को इतना नुकसान पहुंचाया था कि उन्हें समझ आ चुका था कि वह अब अखनूर पर हमला नहीं कर सकते थे। इसके बाद भारतीय आर्मी भी जोश के साथ पाकिस्तान पर टूट पड़ी थी।
अर्जन सिंह ने पीएम शास्त्री को यह नहीं कहा था कि उन्हें वक्त चाहिए। ना ही उन्होंने यह कहा था कि वह अपने लोगों से सलाह करेंगे। वह सिर्फ यह कहने वाले व्यक्ति थे- ‘काम पूरा हो जाएगा।’
अर्जन सिंह का तुरंत फैसला युद्ध में भारत के लिए निर्णायक साबित हुआ था। तब भारत के रक्षा मंत्री रहे वाईबी चव्हाण ने उन्हें “एक शांत, कुशल और दृढ़ नेता” बताया था।
अर्जन सिंह तानाशाह नहीं थे। उनके लोगों को उनकी लीडरशिप पर पूरा भरोसा था। कहा जाता है कि वह अपने हर फाइटर पायलट के साथ भावनात्मक तौर पर जुड़े हुए थे। दूसरी तरफ वह ड्यूटी को लेकर सख्त भी थे। लेकिन हर कोई उनसे आसानी से मिल सकता था और बात कर सकता था।
1965 के युद्ध के दौरान भारतीय वायु सेना का नेतृत्व करने के लिए अर्जन सिंह को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। इसके बाद, युद्ध में वायु सेना के योगदान को देखते हुए, सीएएस के पद को एयर चीफ मार्शल के पद तक उन्नत किया गया और अर्जन सिंह भारतीय वायु सेना के पहले एयर चीफ मार्शल बने थे। दो रैंकों में पांच साल तक चीफ ऑफ एयर स्टाफ का पद संभालने के बाद, अर्जन सिंह ने 16 जुलाई 1969 को सेवानिवृत्ति ली थी।
अपने करियर के दौरान अर्जन सिंह ने 60 से अधिक विभिन्न प्रकार के विमानों को उड़ाया था। 1971 में, उन्हें स्विट्जरलैंड में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया। तीन साल बाद, उन्हें केन्या में देश का उच्चायुक्त नियुक्त किया गया। 1978 में उन्होंने अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य के रूप में भी सेवा दी और बाद में 1983 तक आईआईटी, दिल्ली के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। 1989 में, उन्हें दिल्ली का उपराज्यपाल नियुक्त किया गया था।
2002 में, उन्हें ‘मार्शल ऑफ इंडियन एयरफोर्स’ नियुक्त किया गया था। 17 अप्रैल 2007 को भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अर्जन सिंह को एक पत्र लिखा था और उन्हें भारतीय वायुसेना के मार्शल के रूप में उनकी सेवाओं के लिए सम्मानित किया था। मार्शल अर्जन सिंह का निधन 16 सितंबर 2017 को हुआ था।
तब पीएम नरेंद्र मोदी ने अर्जन सिंह के व्यक्तित्व को याद करते हुए कहा था, “अर्जन सिंह कुछ दिन पहले मुझसे एक कार्यक्रम में मिले थे। 98 की उम्र में भी पूरा यूनिफॉर्म पहनकर आते थे। उनको व्हीलचेयर पर आना पड़ता था। फिर वह देखते ही खड़े होकर सेल्यूट करते थे। मैं उनको प्रार्थना करता था कि ‘मार्शल आपको खड़ा नहीं होना चाहिए।’ लेकिन वह एक ऐसे सोल्जर थे, अनुशासन जिनकी रगों में था। वह ऐसे ही खड़े हो जाते थे।”
पीएम मोदी ने याद किया था कि जब उनको हार्ट अटैक आया तो वह अर्जन सिंह से मिलने हॉस्पिटल गए थे। भारतीय वायुसेना के वीर सैनिक का जज्बा उस स्थिति में भी पहले जैसा था।
पीएम मोदी ने कहा था, “तब उनका शरीर साथ नहीं दे रहा था। लेकिन रगों में अनुशासन की तड़प नजर आती थी। ऐसे वीर सैनिक, वीर योद्धा को हमने खो दिया है। मैं उनको आदरपूर्वक नमन करता हूं, उनको श्रद्धांजलि देता हूं, उनके पराक्रम को यह देश हमेशा के लिए याद रखेगा। उनके अनुशासन, उनके त्याग-तपस्या, मां भारती के प्रति उनके समर्पण को याद रखेगा। और आने वाली पीढ़ियां उनसे प्रेरणा लेते हुए मां भारती के लिए कुछ न कुछ करने का संकल्प लेंगी।”
–आईएएनएस
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