प्रयागराज, 22 जनवरी (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में भव्य महाकुंभ आयोजित किया गया है। 13 जनवरी से शुरू हुए आस्था के इस संगम में अब तक करोड़ों लोग डुबकी लगा चुके हैं। खास बात यह है कि इस महाकुंभ में हरित महाकुंभ भी देखने को मिल रहा है। चारों तरफ स्वच्छता देखने को मिल रही है और श्रद्धालु पर्यावरण के प्रति सजग नजर आ रहे हैं। यहां पर वॉटर वूमेन शिप्रा पाठक भी एक मुहिम के तहत हरित महाकुंभ को सफल बनाने के लिए एक अभियान चला रही हैं। जिसका नाम दिया गया है ‘एक थाली, एक थैला’।
न्यूज एजेंसी आईएएनएस से वॉटर वूमेन शिप्रा पाठक ने इस अभियान के साथ ही साथ पर्यावरण के प्रति अपने लगाव के बारे में विस्तार से बात की। शिप्रा ने कहा कि महाकुंभ की इस पावन धरती से मैं आप सभी का अभिनंदन करती हूं। आज के युग में पर्यावरण संरक्षण सबसे गंभीर और आवश्यक मुद्दा है। जब हमें पता चला कि 144 वर्षों के बाद एक शुभ संयोग बन रहा है और महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है, तो हमने 6-8 महीने पहले ही छोटे-छोटे संगठनों को जोड़ा और एकजुट किया। हमने तय किया कि जब हम कुंभ में जाएंगे, तो सिर्फ डुबकी नहीं लगाएंगे, हम वहां रहेंगे, ध्यान करेंगे, संतों के दर्शन करेंगे और इसे ग्रीन कुंभ बनाते हुए प्लास्टिक मुक्त भी बनाएंगे। इस पहल के तहत हमने ‘एक थाली, एक थैला’ का नारा दिया
उन्होंने बताया कि उनकी संस्था के द्वारा 25 लाख पौधे भारत की प्रमुख नदियों के किनारे लगाए गए हैं। मैंने 11 हजार किलोमीटर की पदयात्रा की है। लगभग 15 लाख लोग हमसे जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया कि इस अभियान के प्रति जागरुकता लाने के लिए हम यहां आए सभी अखाड़ों में जाते हैं और उन्हें प्रेरित करते हैं, उन्हें एक थैला और थाली देते हैं, उनसे आग्रह करते हैं कि कुंभ के दौरान इसी का इस्तेमाल करें।
पर्यावरण के प्रति अपने प्रेम के बारे में उन्होंने बताया कि जब बचपन में गांव जाने का अवसर मिलता था तो मन काफी खुश हो जाता था क्योंकि गांव में मिट्टी का घर देखने को मिलता था। मिट्टी के खिलौने मिलते थे। विदेश में जाकर भारत के लिए कई सांस्कृतिक कार्यक्रम किए। मैंने वहां देखा कि वहां की नदियां काफी सुंदर और स्वच्छ हैं। लेकिन, हम अपनी नदियों को मां बनाकर गंदा कर रहे हैं। मैंने सोचा कि एक संस्था बनाई जाए और नदियों के संरक्षण के लिए काम किया जाए।
पीएम मोदी के ‘स्वच्छता अभियान’ पर उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के शासन काल में नदियों, जंगलों और पर्यावरण संरक्षण को प्रमुखता से महत्व दिया जा रहा है। जब देश का राजा कुछ कहता है, तो उसका असर पड़ता है। लेकिन, राजा के कहे जाने से कुछ नहीं होगा, नागरिकों को क्रियान्वयन भी करना होगा। हम जैसी संस्थाएं पीएम मोदी की योजनाओं को क्रियान्वयन करने के लिए काम कर रही हैं। सरकार सिर्फ योजना बना सकती है, लेकिन उसका क्रियान्वयन नागरिक ही कर सकते हैं। इसलिए मैं बार-बार कहती हूं कि सरकार समाधान नहीं, संस्कार समाधान है। अगर हमारे भीतर अपनी सभ्यता और संस्कृति के प्रति संस्कार होंगे, तो भारत वेदों का भारत बनेगा। राम-जानकी का भारत बनेगा।
डिजिटल महाकुंभ पर उन्होंने कहा कि इसे डिजिटल बनाना बहुत आवश्यक था। क्योंकि, कुंभ हमारी एक ऐसी सांस्कृतिक विरासत है, जो संसार के शुरू होने से चला आ रहा है। तब से यह संदेश दिया जा रहा है कि नदियों के किनारे सभ्यता होगी और उनसे मिल-जुलकर हम स्नान करेंगे। पीएम मोदी की यह दूरगामी सोच थी कि इस कुंभ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने के लिए इसका डिजिटल बनना बहुत जरूरी था। डिजिटल कुंभ में हम जैसे लोग, जो पर्यावरण के लिए काम करते हैं, हमने इसमें हरित शब्द भी जोड़ दिया है। यह दिव्य, भव्य और डिजिटल कुंभ है, लेकिन हरित कुंभ भी हो।
2019 के कुंभ के दौरान पीएम मोदी ने सफाई कर्मचारियों के पैर धोए थे। इस पर शिप्रा पाठक ने कहा कि वे पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने झाड़ू उठाने में संकोच नहीं किया। जब देश का राजा बिना किसी संकोच के झाड़ू उठाता है, तो एक संकेत होता है कि हमारा राष्ट्र स्वच्छ हो, यह सिर्फ फर्श और जमीन की सफाई नहीं होती है, यह मन के विकारों की सफाई का संदेश भी होता है। कुंभ में पीएम मोदी ने जो सफाई कर्मचारियों के पैर धोए, तो इससे उन्होंने संदेश दिया था कि वो लोग जो नजर नहीं आते, लेकिन उन्हें अगर 10 मिनट के लिए हटा दिया जाए तो अव्यवस्था फैल जाएगी। पीएम मोदी जब सम्मान करते हैं, तो हम भी समझते हैं कि सफाई कर्मचारी भी इंसान हैं। पहले हम कहते थे कि कचरा उठाने वाले लोग आए हैं। पीएम मोदी के सम्मान के बाद उनके प्रति लोगों की सोच बदली है।
उन्होंने अपनी आगे की योजना पर बताया कि फरवरी तक इस कुंभ में रहेंगे और यहां की व्यवस्था को देखेंगे। मानसून आएगा तो पौध रोपण कार्यक्रम को आगे बढ़ाएंगे। अयोध्या से काशी तक पांच लाख पौधे लगाए जाएंगे। महाकुंभ में युवाओं की भागीदारी पर उन्होंने कहा कि युवाओं ने आज समझा है कि गंगा में स्नान करने का क्या महत्व है। युवाओं को हम अपनी सभ्यता और संस्कृति समझा पा रहे हैं।
–आईएएनएस
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