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Home ताज़ा समाचार

शिवसेना यूबीटी के बदले सुर, मुखपत्र में सीएम फडणवीस की तारीफ, कहा ‘देवाभाऊ प्रशंसा के पात्र’

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January 3, 2025
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मुंबई, 3 जनवरी (आईएएनएस)। पूरा देश जब नए वर्ष के जश्न में डूबा था तो महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस गढ़चिरौली में थे। ऐसी सुबह जिसमें उम्मीदों का वायदा था। 11 नक्सलियों ने मुख्यधारा में लौटने की खातिर आत्मसमर्पण किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पोस्ट में उनके प्रयासों को सराहा तो अब धुर विरोधी दल शिवसेना यूबीटी ने भी अपने मुखपत्र सामना में उनकी कोशिशों की प्रशंसा की है।

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लिखा गया है- मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नए साल पर गढ़चिरौली जिले को चुना। जब मंत्रिमंडल के कई मंत्री मलाईदार महकमों और विशेष जिले के ही पालकमंत्री पद के लिए अड़े बैठे हुए थे, मुख्यमंत्री फडणवीस गढ़चिरौली पहुंचे और उस नक्सल प्रभावित जिले में विकास के एक नए पर्व की शुरुआत की।

जब पूरा देश नए साल के स्वागत और जश्न में मगन था तब मुख्यमंत्री फडणवीस ने नए साल का पहला दिन गढ़चिरौली में बिताया। सिर्फ बिताया ही नहीं, बल्कि कई विकास परियोजनाओं का भूमिपूजन, उद्घाटन किया। कुछ परियोजनाओं का लोकार्पण किया। उस वक्त बोलते हुए उन्होंने गढ़चिरौली के विकास के नए दौर का हवाला दिया। यदि मुख्यमंत्री ने जो कहा वह सच है तो यह न केवल गढ़चिरौली, बल्कि कहना होगा कि यह पूरे महाराष्ट्र के लिए सकारात्मक होगा।

मुख्य रूप से गढ़चिरौली जिले के आम लोगों, गरीब आदिवासियों के लिए यह दिन वास्तव में एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा। आक्षेप इस बात पर लिया जाता है कि गढ़चिरौली जिले में नक्सलियों के कारण अब तक साधारण विकास भी नहीं हो सका है। इस बात में तथ्य है, लेकिन ऐसी जगहों पर अक्सर हुक्मरानों की इच्छाशक्ति ही महत्वपूर्ण साबित होती है। यदि मुख्यमंत्री फडणवीस ने इसे करके दिखाने का फैसला लिया है तो यह खुशी की बात है। नक्सलवाद भारतीय समाज पर एक कलंक है। माओवाद के नाम पर जवान लड़के शरीर पर फौजी वर्दी चढ़ाते हैं। बंदूकें उठाते हैं। जंगल से सत्ता के खिलाफ एक समानांतर सशस्त्र सरकार चलाई जाती है।

शोषकों के विरुद्ध और साहूकारी के खिलाफ लड़ाई का झांसा देकर बेरोजगारों को नक्सली आर्मी में भर्ती किया जाता है और सरकार के खिलाफ लड़ाया जाता है। ये सब किया जाता है माओवाद के नाम पर। गरीबी और बेरोजगारी के कारण, युवा ‘ताकत बंदूक की नली से आती है’ के माओवादी विचारों की ओर मुड़ा है। गढ़चिरौली जैसे कई इलाके विकास से वंचित रहे और यहीं पर नक्सली आंदोलन पनपा है।

इस संपादकीय में उम्मीद जताई गई कि सीएम आदिवासी समाज की जिंदगी बदलेंगे।

लिखा है- कुल मिलाकर यही लग रहा है कि ‘भावी पालक मंत्री’ फडणवीस गढ़चिरौली में कुछ नया करेंगे, वहां के आदिवासियों की जिंदगी बदल देंगे। हालांकि, गढ़चिरौली के विकास को अपने दावों के अनुरूप ही पूरा करने के लिए उन्हें गढ़चिरौली के विकास का ‘रोडमैप’ लागू करना होगा। गढ़चिरौली में अब तक ऐसा नहीं हुआ है।

यदि मौजूदा मुख्यमंत्री गढ़चिरौली को ‘नक्सल जिला’ के बजाय ‘स्टील सिटी’ के रूप में नई पहचान देते हैं तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। फडणवीस गढ़चिरौली को आखिरी नहीं बल्कि महाराष्ट्र के पहले जिले के तौर पर पहचान दिलाने की कोशिश करेंगे। यह गलत नहीं है। गढ़चिरौली के परिवर्तन की शुरुआत नए साल के सूर्योदय से शुरू हो गई है। हालांकि, बीड में बंदूक राज जारी है, लेकिन अगर गढ़चिरौली में संविधान का राज आ रहा है तो मुख्यमंत्री फडणवीस प्रशंसा के पात्र हैं!

–आईएएनएस

केआर/

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मुंबई, 3 जनवरी (आईएएनएस)। पूरा देश जब नए वर्ष के जश्न में डूबा था तो महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस गढ़चिरौली में थे। ऐसी सुबह जिसमें उम्मीदों का वायदा था। 11 नक्सलियों ने मुख्यधारा में लौटने की खातिर आत्मसमर्पण किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पोस्ट में उनके प्रयासों को सराहा तो अब धुर विरोधी दल शिवसेना यूबीटी ने भी अपने मुखपत्र सामना में उनकी कोशिशों की प्रशंसा की है।

लिखा गया है- मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नए साल पर गढ़चिरौली जिले को चुना। जब मंत्रिमंडल के कई मंत्री मलाईदार महकमों और विशेष जिले के ही पालकमंत्री पद के लिए अड़े बैठे हुए थे, मुख्यमंत्री फडणवीस गढ़चिरौली पहुंचे और उस नक्सल प्रभावित जिले में विकास के एक नए पर्व की शुरुआत की।

जब पूरा देश नए साल के स्वागत और जश्न में मगन था तब मुख्यमंत्री फडणवीस ने नए साल का पहला दिन गढ़चिरौली में बिताया। सिर्फ बिताया ही नहीं, बल्कि कई विकास परियोजनाओं का भूमिपूजन, उद्घाटन किया। कुछ परियोजनाओं का लोकार्पण किया। उस वक्त बोलते हुए उन्होंने गढ़चिरौली के विकास के नए दौर का हवाला दिया। यदि मुख्यमंत्री ने जो कहा वह सच है तो यह न केवल गढ़चिरौली, बल्कि कहना होगा कि यह पूरे महाराष्ट्र के लिए सकारात्मक होगा।

मुख्य रूप से गढ़चिरौली जिले के आम लोगों, गरीब आदिवासियों के लिए यह दिन वास्तव में एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा। आक्षेप इस बात पर लिया जाता है कि गढ़चिरौली जिले में नक्सलियों के कारण अब तक साधारण विकास भी नहीं हो सका है। इस बात में तथ्य है, लेकिन ऐसी जगहों पर अक्सर हुक्मरानों की इच्छाशक्ति ही महत्वपूर्ण साबित होती है। यदि मुख्यमंत्री फडणवीस ने इसे करके दिखाने का फैसला लिया है तो यह खुशी की बात है। नक्सलवाद भारतीय समाज पर एक कलंक है। माओवाद के नाम पर जवान लड़के शरीर पर फौजी वर्दी चढ़ाते हैं। बंदूकें उठाते हैं। जंगल से सत्ता के खिलाफ एक समानांतर सशस्त्र सरकार चलाई जाती है।

शोषकों के विरुद्ध और साहूकारी के खिलाफ लड़ाई का झांसा देकर बेरोजगारों को नक्सली आर्मी में भर्ती किया जाता है और सरकार के खिलाफ लड़ाया जाता है। ये सब किया जाता है माओवाद के नाम पर। गरीबी और बेरोजगारी के कारण, युवा ‘ताकत बंदूक की नली से आती है’ के माओवादी विचारों की ओर मुड़ा है। गढ़चिरौली जैसे कई इलाके विकास से वंचित रहे और यहीं पर नक्सली आंदोलन पनपा है।

इस संपादकीय में उम्मीद जताई गई कि सीएम आदिवासी समाज की जिंदगी बदलेंगे।

लिखा है- कुल मिलाकर यही लग रहा है कि ‘भावी पालक मंत्री’ फडणवीस गढ़चिरौली में कुछ नया करेंगे, वहां के आदिवासियों की जिंदगी बदल देंगे। हालांकि, गढ़चिरौली के विकास को अपने दावों के अनुरूप ही पूरा करने के लिए उन्हें गढ़चिरौली के विकास का ‘रोडमैप’ लागू करना होगा। गढ़चिरौली में अब तक ऐसा नहीं हुआ है।

यदि मौजूदा मुख्यमंत्री गढ़चिरौली को ‘नक्सल जिला’ के बजाय ‘स्टील सिटी’ के रूप में नई पहचान देते हैं तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। फडणवीस गढ़चिरौली को आखिरी नहीं बल्कि महाराष्ट्र के पहले जिले के तौर पर पहचान दिलाने की कोशिश करेंगे। यह गलत नहीं है। गढ़चिरौली के परिवर्तन की शुरुआत नए साल के सूर्योदय से शुरू हो गई है। हालांकि, बीड में बंदूक राज जारी है, लेकिन अगर गढ़चिरौली में संविधान का राज आ रहा है तो मुख्यमंत्री फडणवीस प्रशंसा के पात्र हैं!

–आईएएनएस

केआर/

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मुंबई, 3 जनवरी (आईएएनएस)। पूरा देश जब नए वर्ष के जश्न में डूबा था तो महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस गढ़चिरौली में थे। ऐसी सुबह जिसमें उम्मीदों का वायदा था। 11 नक्सलियों ने मुख्यधारा में लौटने की खातिर आत्मसमर्पण किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पोस्ट में उनके प्रयासों को सराहा तो अब धुर विरोधी दल शिवसेना यूबीटी ने भी अपने मुखपत्र सामना में उनकी कोशिशों की प्रशंसा की है।

लिखा गया है- मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नए साल पर गढ़चिरौली जिले को चुना। जब मंत्रिमंडल के कई मंत्री मलाईदार महकमों और विशेष जिले के ही पालकमंत्री पद के लिए अड़े बैठे हुए थे, मुख्यमंत्री फडणवीस गढ़चिरौली पहुंचे और उस नक्सल प्रभावित जिले में विकास के एक नए पर्व की शुरुआत की।

जब पूरा देश नए साल के स्वागत और जश्न में मगन था तब मुख्यमंत्री फडणवीस ने नए साल का पहला दिन गढ़चिरौली में बिताया। सिर्फ बिताया ही नहीं, बल्कि कई विकास परियोजनाओं का भूमिपूजन, उद्घाटन किया। कुछ परियोजनाओं का लोकार्पण किया। उस वक्त बोलते हुए उन्होंने गढ़चिरौली के विकास के नए दौर का हवाला दिया। यदि मुख्यमंत्री ने जो कहा वह सच है तो यह न केवल गढ़चिरौली, बल्कि कहना होगा कि यह पूरे महाराष्ट्र के लिए सकारात्मक होगा।

मुख्य रूप से गढ़चिरौली जिले के आम लोगों, गरीब आदिवासियों के लिए यह दिन वास्तव में एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा। आक्षेप इस बात पर लिया जाता है कि गढ़चिरौली जिले में नक्सलियों के कारण अब तक साधारण विकास भी नहीं हो सका है। इस बात में तथ्य है, लेकिन ऐसी जगहों पर अक्सर हुक्मरानों की इच्छाशक्ति ही महत्वपूर्ण साबित होती है। यदि मुख्यमंत्री फडणवीस ने इसे करके दिखाने का फैसला लिया है तो यह खुशी की बात है। नक्सलवाद भारतीय समाज पर एक कलंक है। माओवाद के नाम पर जवान लड़के शरीर पर फौजी वर्दी चढ़ाते हैं। बंदूकें उठाते हैं। जंगल से सत्ता के खिलाफ एक समानांतर सशस्त्र सरकार चलाई जाती है।

शोषकों के विरुद्ध और साहूकारी के खिलाफ लड़ाई का झांसा देकर बेरोजगारों को नक्सली आर्मी में भर्ती किया जाता है और सरकार के खिलाफ लड़ाया जाता है। ये सब किया जाता है माओवाद के नाम पर। गरीबी और बेरोजगारी के कारण, युवा ‘ताकत बंदूक की नली से आती है’ के माओवादी विचारों की ओर मुड़ा है। गढ़चिरौली जैसे कई इलाके विकास से वंचित रहे और यहीं पर नक्सली आंदोलन पनपा है।

इस संपादकीय में उम्मीद जताई गई कि सीएम आदिवासी समाज की जिंदगी बदलेंगे।

लिखा है- कुल मिलाकर यही लग रहा है कि ‘भावी पालक मंत्री’ फडणवीस गढ़चिरौली में कुछ नया करेंगे, वहां के आदिवासियों की जिंदगी बदल देंगे। हालांकि, गढ़चिरौली के विकास को अपने दावों के अनुरूप ही पूरा करने के लिए उन्हें गढ़चिरौली के विकास का ‘रोडमैप’ लागू करना होगा। गढ़चिरौली में अब तक ऐसा नहीं हुआ है।

यदि मौजूदा मुख्यमंत्री गढ़चिरौली को ‘नक्सल जिला’ के बजाय ‘स्टील सिटी’ के रूप में नई पहचान देते हैं तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। फडणवीस गढ़चिरौली को आखिरी नहीं बल्कि महाराष्ट्र के पहले जिले के तौर पर पहचान दिलाने की कोशिश करेंगे। यह गलत नहीं है। गढ़चिरौली के परिवर्तन की शुरुआत नए साल के सूर्योदय से शुरू हो गई है। हालांकि, बीड में बंदूक राज जारी है, लेकिन अगर गढ़चिरौली में संविधान का राज आ रहा है तो मुख्यमंत्री फडणवीस प्रशंसा के पात्र हैं!

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मुंबई, 3 जनवरी (आईएएनएस)। पूरा देश जब नए वर्ष के जश्न में डूबा था तो महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस गढ़चिरौली में थे। ऐसी सुबह जिसमें उम्मीदों का वायदा था। 11 नक्सलियों ने मुख्यधारा में लौटने की खातिर आत्मसमर्पण किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पोस्ट में उनके प्रयासों को सराहा तो अब धुर विरोधी दल शिवसेना यूबीटी ने भी अपने मुखपत्र सामना में उनकी कोशिशों की प्रशंसा की है।

लिखा गया है- मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नए साल पर गढ़चिरौली जिले को चुना। जब मंत्रिमंडल के कई मंत्री मलाईदार महकमों और विशेष जिले के ही पालकमंत्री पद के लिए अड़े बैठे हुए थे, मुख्यमंत्री फडणवीस गढ़चिरौली पहुंचे और उस नक्सल प्रभावित जिले में विकास के एक नए पर्व की शुरुआत की।

जब पूरा देश नए साल के स्वागत और जश्न में मगन था तब मुख्यमंत्री फडणवीस ने नए साल का पहला दिन गढ़चिरौली में बिताया। सिर्फ बिताया ही नहीं, बल्कि कई विकास परियोजनाओं का भूमिपूजन, उद्घाटन किया। कुछ परियोजनाओं का लोकार्पण किया। उस वक्त बोलते हुए उन्होंने गढ़चिरौली के विकास के नए दौर का हवाला दिया। यदि मुख्यमंत्री ने जो कहा वह सच है तो यह न केवल गढ़चिरौली, बल्कि कहना होगा कि यह पूरे महाराष्ट्र के लिए सकारात्मक होगा।

मुख्य रूप से गढ़चिरौली जिले के आम लोगों, गरीब आदिवासियों के लिए यह दिन वास्तव में एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा। आक्षेप इस बात पर लिया जाता है कि गढ़चिरौली जिले में नक्सलियों के कारण अब तक साधारण विकास भी नहीं हो सका है। इस बात में तथ्य है, लेकिन ऐसी जगहों पर अक्सर हुक्मरानों की इच्छाशक्ति ही महत्वपूर्ण साबित होती है। यदि मुख्यमंत्री फडणवीस ने इसे करके दिखाने का फैसला लिया है तो यह खुशी की बात है। नक्सलवाद भारतीय समाज पर एक कलंक है। माओवाद के नाम पर जवान लड़के शरीर पर फौजी वर्दी चढ़ाते हैं। बंदूकें उठाते हैं। जंगल से सत्ता के खिलाफ एक समानांतर सशस्त्र सरकार चलाई जाती है।

शोषकों के विरुद्ध और साहूकारी के खिलाफ लड़ाई का झांसा देकर बेरोजगारों को नक्सली आर्मी में भर्ती किया जाता है और सरकार के खिलाफ लड़ाया जाता है। ये सब किया जाता है माओवाद के नाम पर। गरीबी और बेरोजगारी के कारण, युवा ‘ताकत बंदूक की नली से आती है’ के माओवादी विचारों की ओर मुड़ा है। गढ़चिरौली जैसे कई इलाके विकास से वंचित रहे और यहीं पर नक्सली आंदोलन पनपा है।

इस संपादकीय में उम्मीद जताई गई कि सीएम आदिवासी समाज की जिंदगी बदलेंगे।

लिखा है- कुल मिलाकर यही लग रहा है कि ‘भावी पालक मंत्री’ फडणवीस गढ़चिरौली में कुछ नया करेंगे, वहां के आदिवासियों की जिंदगी बदल देंगे। हालांकि, गढ़चिरौली के विकास को अपने दावों के अनुरूप ही पूरा करने के लिए उन्हें गढ़चिरौली के विकास का ‘रोडमैप’ लागू करना होगा। गढ़चिरौली में अब तक ऐसा नहीं हुआ है।

यदि मौजूदा मुख्यमंत्री गढ़चिरौली को ‘नक्सल जिला’ के बजाय ‘स्टील सिटी’ के रूप में नई पहचान देते हैं तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। फडणवीस गढ़चिरौली को आखिरी नहीं बल्कि महाराष्ट्र के पहले जिले के तौर पर पहचान दिलाने की कोशिश करेंगे। यह गलत नहीं है। गढ़चिरौली के परिवर्तन की शुरुआत नए साल के सूर्योदय से शुरू हो गई है। हालांकि, बीड में बंदूक राज जारी है, लेकिन अगर गढ़चिरौली में संविधान का राज आ रहा है तो मुख्यमंत्री फडणवीस प्रशंसा के पात्र हैं!

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मुंबई, 3 जनवरी (आईएएनएस)। पूरा देश जब नए वर्ष के जश्न में डूबा था तो महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस गढ़चिरौली में थे। ऐसी सुबह जिसमें उम्मीदों का वायदा था। 11 नक्सलियों ने मुख्यधारा में लौटने की खातिर आत्मसमर्पण किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पोस्ट में उनके प्रयासों को सराहा तो अब धुर विरोधी दल शिवसेना यूबीटी ने भी अपने मुखपत्र सामना में उनकी कोशिशों की प्रशंसा की है।

लिखा गया है- मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नए साल पर गढ़चिरौली जिले को चुना। जब मंत्रिमंडल के कई मंत्री मलाईदार महकमों और विशेष जिले के ही पालकमंत्री पद के लिए अड़े बैठे हुए थे, मुख्यमंत्री फडणवीस गढ़चिरौली पहुंचे और उस नक्सल प्रभावित जिले में विकास के एक नए पर्व की शुरुआत की।

जब पूरा देश नए साल के स्वागत और जश्न में मगन था तब मुख्यमंत्री फडणवीस ने नए साल का पहला दिन गढ़चिरौली में बिताया। सिर्फ बिताया ही नहीं, बल्कि कई विकास परियोजनाओं का भूमिपूजन, उद्घाटन किया। कुछ परियोजनाओं का लोकार्पण किया। उस वक्त बोलते हुए उन्होंने गढ़चिरौली के विकास के नए दौर का हवाला दिया। यदि मुख्यमंत्री ने जो कहा वह सच है तो यह न केवल गढ़चिरौली, बल्कि कहना होगा कि यह पूरे महाराष्ट्र के लिए सकारात्मक होगा।

मुख्य रूप से गढ़चिरौली जिले के आम लोगों, गरीब आदिवासियों के लिए यह दिन वास्तव में एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा। आक्षेप इस बात पर लिया जाता है कि गढ़चिरौली जिले में नक्सलियों के कारण अब तक साधारण विकास भी नहीं हो सका है। इस बात में तथ्य है, लेकिन ऐसी जगहों पर अक्सर हुक्मरानों की इच्छाशक्ति ही महत्वपूर्ण साबित होती है। यदि मुख्यमंत्री फडणवीस ने इसे करके दिखाने का फैसला लिया है तो यह खुशी की बात है। नक्सलवाद भारतीय समाज पर एक कलंक है। माओवाद के नाम पर जवान लड़के शरीर पर फौजी वर्दी चढ़ाते हैं। बंदूकें उठाते हैं। जंगल से सत्ता के खिलाफ एक समानांतर सशस्त्र सरकार चलाई जाती है।

शोषकों के विरुद्ध और साहूकारी के खिलाफ लड़ाई का झांसा देकर बेरोजगारों को नक्सली आर्मी में भर्ती किया जाता है और सरकार के खिलाफ लड़ाया जाता है। ये सब किया जाता है माओवाद के नाम पर। गरीबी और बेरोजगारी के कारण, युवा ‘ताकत बंदूक की नली से आती है’ के माओवादी विचारों की ओर मुड़ा है। गढ़चिरौली जैसे कई इलाके विकास से वंचित रहे और यहीं पर नक्सली आंदोलन पनपा है।

इस संपादकीय में उम्मीद जताई गई कि सीएम आदिवासी समाज की जिंदगी बदलेंगे।

लिखा है- कुल मिलाकर यही लग रहा है कि ‘भावी पालक मंत्री’ फडणवीस गढ़चिरौली में कुछ नया करेंगे, वहां के आदिवासियों की जिंदगी बदल देंगे। हालांकि, गढ़चिरौली के विकास को अपने दावों के अनुरूप ही पूरा करने के लिए उन्हें गढ़चिरौली के विकास का ‘रोडमैप’ लागू करना होगा। गढ़चिरौली में अब तक ऐसा नहीं हुआ है।

यदि मौजूदा मुख्यमंत्री गढ़चिरौली को ‘नक्सल जिला’ के बजाय ‘स्टील सिटी’ के रूप में नई पहचान देते हैं तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। फडणवीस गढ़चिरौली को आखिरी नहीं बल्कि महाराष्ट्र के पहले जिले के तौर पर पहचान दिलाने की कोशिश करेंगे। यह गलत नहीं है। गढ़चिरौली के परिवर्तन की शुरुआत नए साल के सूर्योदय से शुरू हो गई है। हालांकि, बीड में बंदूक राज जारी है, लेकिन अगर गढ़चिरौली में संविधान का राज आ रहा है तो मुख्यमंत्री फडणवीस प्रशंसा के पात्र हैं!

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मुंबई, 3 जनवरी (आईएएनएस)। पूरा देश जब नए वर्ष के जश्न में डूबा था तो महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस गढ़चिरौली में थे। ऐसी सुबह जिसमें उम्मीदों का वायदा था। 11 नक्सलियों ने मुख्यधारा में लौटने की खातिर आत्मसमर्पण किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पोस्ट में उनके प्रयासों को सराहा तो अब धुर विरोधी दल शिवसेना यूबीटी ने भी अपने मुखपत्र सामना में उनकी कोशिशों की प्रशंसा की है।

लिखा गया है- मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नए साल पर गढ़चिरौली जिले को चुना। जब मंत्रिमंडल के कई मंत्री मलाईदार महकमों और विशेष जिले के ही पालकमंत्री पद के लिए अड़े बैठे हुए थे, मुख्यमंत्री फडणवीस गढ़चिरौली पहुंचे और उस नक्सल प्रभावित जिले में विकास के एक नए पर्व की शुरुआत की।

जब पूरा देश नए साल के स्वागत और जश्न में मगन था तब मुख्यमंत्री फडणवीस ने नए साल का पहला दिन गढ़चिरौली में बिताया। सिर्फ बिताया ही नहीं, बल्कि कई विकास परियोजनाओं का भूमिपूजन, उद्घाटन किया। कुछ परियोजनाओं का लोकार्पण किया। उस वक्त बोलते हुए उन्होंने गढ़चिरौली के विकास के नए दौर का हवाला दिया। यदि मुख्यमंत्री ने जो कहा वह सच है तो यह न केवल गढ़चिरौली, बल्कि कहना होगा कि यह पूरे महाराष्ट्र के लिए सकारात्मक होगा।

मुख्य रूप से गढ़चिरौली जिले के आम लोगों, गरीब आदिवासियों के लिए यह दिन वास्तव में एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा। आक्षेप इस बात पर लिया जाता है कि गढ़चिरौली जिले में नक्सलियों के कारण अब तक साधारण विकास भी नहीं हो सका है। इस बात में तथ्य है, लेकिन ऐसी जगहों पर अक्सर हुक्मरानों की इच्छाशक्ति ही महत्वपूर्ण साबित होती है। यदि मुख्यमंत्री फडणवीस ने इसे करके दिखाने का फैसला लिया है तो यह खुशी की बात है। नक्सलवाद भारतीय समाज पर एक कलंक है। माओवाद के नाम पर जवान लड़के शरीर पर फौजी वर्दी चढ़ाते हैं। बंदूकें उठाते हैं। जंगल से सत्ता के खिलाफ एक समानांतर सशस्त्र सरकार चलाई जाती है।

शोषकों के विरुद्ध और साहूकारी के खिलाफ लड़ाई का झांसा देकर बेरोजगारों को नक्सली आर्मी में भर्ती किया जाता है और सरकार के खिलाफ लड़ाया जाता है। ये सब किया जाता है माओवाद के नाम पर। गरीबी और बेरोजगारी के कारण, युवा ‘ताकत बंदूक की नली से आती है’ के माओवादी विचारों की ओर मुड़ा है। गढ़चिरौली जैसे कई इलाके विकास से वंचित रहे और यहीं पर नक्सली आंदोलन पनपा है।

इस संपादकीय में उम्मीद जताई गई कि सीएम आदिवासी समाज की जिंदगी बदलेंगे।

लिखा है- कुल मिलाकर यही लग रहा है कि ‘भावी पालक मंत्री’ फडणवीस गढ़चिरौली में कुछ नया करेंगे, वहां के आदिवासियों की जिंदगी बदल देंगे। हालांकि, गढ़चिरौली के विकास को अपने दावों के अनुरूप ही पूरा करने के लिए उन्हें गढ़चिरौली के विकास का ‘रोडमैप’ लागू करना होगा। गढ़चिरौली में अब तक ऐसा नहीं हुआ है।

यदि मौजूदा मुख्यमंत्री गढ़चिरौली को ‘नक्सल जिला’ के बजाय ‘स्टील सिटी’ के रूप में नई पहचान देते हैं तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। फडणवीस गढ़चिरौली को आखिरी नहीं बल्कि महाराष्ट्र के पहले जिले के तौर पर पहचान दिलाने की कोशिश करेंगे। यह गलत नहीं है। गढ़चिरौली के परिवर्तन की शुरुआत नए साल के सूर्योदय से शुरू हो गई है। हालांकि, बीड में बंदूक राज जारी है, लेकिन अगर गढ़चिरौली में संविधान का राज आ रहा है तो मुख्यमंत्री फडणवीस प्रशंसा के पात्र हैं!

–आईएएनएस

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मुंबई, 3 जनवरी (आईएएनएस)। पूरा देश जब नए वर्ष के जश्न में डूबा था तो महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस गढ़चिरौली में थे। ऐसी सुबह जिसमें उम्मीदों का वायदा था। 11 नक्सलियों ने मुख्यधारा में लौटने की खातिर आत्मसमर्पण किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पोस्ट में उनके प्रयासों को सराहा तो अब धुर विरोधी दल शिवसेना यूबीटी ने भी अपने मुखपत्र सामना में उनकी कोशिशों की प्रशंसा की है।

लिखा गया है- मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नए साल पर गढ़चिरौली जिले को चुना। जब मंत्रिमंडल के कई मंत्री मलाईदार महकमों और विशेष जिले के ही पालकमंत्री पद के लिए अड़े बैठे हुए थे, मुख्यमंत्री फडणवीस गढ़चिरौली पहुंचे और उस नक्सल प्रभावित जिले में विकास के एक नए पर्व की शुरुआत की।

जब पूरा देश नए साल के स्वागत और जश्न में मगन था तब मुख्यमंत्री फडणवीस ने नए साल का पहला दिन गढ़चिरौली में बिताया। सिर्फ बिताया ही नहीं, बल्कि कई विकास परियोजनाओं का भूमिपूजन, उद्घाटन किया। कुछ परियोजनाओं का लोकार्पण किया। उस वक्त बोलते हुए उन्होंने गढ़चिरौली के विकास के नए दौर का हवाला दिया। यदि मुख्यमंत्री ने जो कहा वह सच है तो यह न केवल गढ़चिरौली, बल्कि कहना होगा कि यह पूरे महाराष्ट्र के लिए सकारात्मक होगा।

मुख्य रूप से गढ़चिरौली जिले के आम लोगों, गरीब आदिवासियों के लिए यह दिन वास्तव में एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा। आक्षेप इस बात पर लिया जाता है कि गढ़चिरौली जिले में नक्सलियों के कारण अब तक साधारण विकास भी नहीं हो सका है। इस बात में तथ्य है, लेकिन ऐसी जगहों पर अक्सर हुक्मरानों की इच्छाशक्ति ही महत्वपूर्ण साबित होती है। यदि मुख्यमंत्री फडणवीस ने इसे करके दिखाने का फैसला लिया है तो यह खुशी की बात है। नक्सलवाद भारतीय समाज पर एक कलंक है। माओवाद के नाम पर जवान लड़के शरीर पर फौजी वर्दी चढ़ाते हैं। बंदूकें उठाते हैं। जंगल से सत्ता के खिलाफ एक समानांतर सशस्त्र सरकार चलाई जाती है।

शोषकों के विरुद्ध और साहूकारी के खिलाफ लड़ाई का झांसा देकर बेरोजगारों को नक्सली आर्मी में भर्ती किया जाता है और सरकार के खिलाफ लड़ाया जाता है। ये सब किया जाता है माओवाद के नाम पर। गरीबी और बेरोजगारी के कारण, युवा ‘ताकत बंदूक की नली से आती है’ के माओवादी विचारों की ओर मुड़ा है। गढ़चिरौली जैसे कई इलाके विकास से वंचित रहे और यहीं पर नक्सली आंदोलन पनपा है।

इस संपादकीय में उम्मीद जताई गई कि सीएम आदिवासी समाज की जिंदगी बदलेंगे।

लिखा है- कुल मिलाकर यही लग रहा है कि ‘भावी पालक मंत्री’ फडणवीस गढ़चिरौली में कुछ नया करेंगे, वहां के आदिवासियों की जिंदगी बदल देंगे। हालांकि, गढ़चिरौली के विकास को अपने दावों के अनुरूप ही पूरा करने के लिए उन्हें गढ़चिरौली के विकास का ‘रोडमैप’ लागू करना होगा। गढ़चिरौली में अब तक ऐसा नहीं हुआ है।

यदि मौजूदा मुख्यमंत्री गढ़चिरौली को ‘नक्सल जिला’ के बजाय ‘स्टील सिटी’ के रूप में नई पहचान देते हैं तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। फडणवीस गढ़चिरौली को आखिरी नहीं बल्कि महाराष्ट्र के पहले जिले के तौर पर पहचान दिलाने की कोशिश करेंगे। यह गलत नहीं है। गढ़चिरौली के परिवर्तन की शुरुआत नए साल के सूर्योदय से शुरू हो गई है। हालांकि, बीड में बंदूक राज जारी है, लेकिन अगर गढ़चिरौली में संविधान का राज आ रहा है तो मुख्यमंत्री फडणवीस प्रशंसा के पात्र हैं!

–आईएएनएस

केआर/

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मुंबई, 3 जनवरी (आईएएनएस)। पूरा देश जब नए वर्ष के जश्न में डूबा था तो महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस गढ़चिरौली में थे। ऐसी सुबह जिसमें उम्मीदों का वायदा था। 11 नक्सलियों ने मुख्यधारा में लौटने की खातिर आत्मसमर्पण किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पोस्ट में उनके प्रयासों को सराहा तो अब धुर विरोधी दल शिवसेना यूबीटी ने भी अपने मुखपत्र सामना में उनकी कोशिशों की प्रशंसा की है।

लिखा गया है- मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नए साल पर गढ़चिरौली जिले को चुना। जब मंत्रिमंडल के कई मंत्री मलाईदार महकमों और विशेष जिले के ही पालकमंत्री पद के लिए अड़े बैठे हुए थे, मुख्यमंत्री फडणवीस गढ़चिरौली पहुंचे और उस नक्सल प्रभावित जिले में विकास के एक नए पर्व की शुरुआत की।

जब पूरा देश नए साल के स्वागत और जश्न में मगन था तब मुख्यमंत्री फडणवीस ने नए साल का पहला दिन गढ़चिरौली में बिताया। सिर्फ बिताया ही नहीं, बल्कि कई विकास परियोजनाओं का भूमिपूजन, उद्घाटन किया। कुछ परियोजनाओं का लोकार्पण किया। उस वक्त बोलते हुए उन्होंने गढ़चिरौली के विकास के नए दौर का हवाला दिया। यदि मुख्यमंत्री ने जो कहा वह सच है तो यह न केवल गढ़चिरौली, बल्कि कहना होगा कि यह पूरे महाराष्ट्र के लिए सकारात्मक होगा।

मुख्य रूप से गढ़चिरौली जिले के आम लोगों, गरीब आदिवासियों के लिए यह दिन वास्तव में एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा। आक्षेप इस बात पर लिया जाता है कि गढ़चिरौली जिले में नक्सलियों के कारण अब तक साधारण विकास भी नहीं हो सका है। इस बात में तथ्य है, लेकिन ऐसी जगहों पर अक्सर हुक्मरानों की इच्छाशक्ति ही महत्वपूर्ण साबित होती है। यदि मुख्यमंत्री फडणवीस ने इसे करके दिखाने का फैसला लिया है तो यह खुशी की बात है। नक्सलवाद भारतीय समाज पर एक कलंक है। माओवाद के नाम पर जवान लड़के शरीर पर फौजी वर्दी चढ़ाते हैं। बंदूकें उठाते हैं। जंगल से सत्ता के खिलाफ एक समानांतर सशस्त्र सरकार चलाई जाती है।

शोषकों के विरुद्ध और साहूकारी के खिलाफ लड़ाई का झांसा देकर बेरोजगारों को नक्सली आर्मी में भर्ती किया जाता है और सरकार के खिलाफ लड़ाया जाता है। ये सब किया जाता है माओवाद के नाम पर। गरीबी और बेरोजगारी के कारण, युवा ‘ताकत बंदूक की नली से आती है’ के माओवादी विचारों की ओर मुड़ा है। गढ़चिरौली जैसे कई इलाके विकास से वंचित रहे और यहीं पर नक्सली आंदोलन पनपा है।

इस संपादकीय में उम्मीद जताई गई कि सीएम आदिवासी समाज की जिंदगी बदलेंगे।

लिखा है- कुल मिलाकर यही लग रहा है कि ‘भावी पालक मंत्री’ फडणवीस गढ़चिरौली में कुछ नया करेंगे, वहां के आदिवासियों की जिंदगी बदल देंगे। हालांकि, गढ़चिरौली के विकास को अपने दावों के अनुरूप ही पूरा करने के लिए उन्हें गढ़चिरौली के विकास का ‘रोडमैप’ लागू करना होगा। गढ़चिरौली में अब तक ऐसा नहीं हुआ है।

यदि मौजूदा मुख्यमंत्री गढ़चिरौली को ‘नक्सल जिला’ के बजाय ‘स्टील सिटी’ के रूप में नई पहचान देते हैं तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। फडणवीस गढ़चिरौली को आखिरी नहीं बल्कि महाराष्ट्र के पहले जिले के तौर पर पहचान दिलाने की कोशिश करेंगे। यह गलत नहीं है। गढ़चिरौली के परिवर्तन की शुरुआत नए साल के सूर्योदय से शुरू हो गई है। हालांकि, बीड में बंदूक राज जारी है, लेकिन अगर गढ़चिरौली में संविधान का राज आ रहा है तो मुख्यमंत्री फडणवीस प्रशंसा के पात्र हैं!

–आईएएनएस

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