नई दिल्ली, 28 मई (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को प्रधानमंत्री आवास पर विभिन्न अधीनमों के संतों से पवित्र सेंगोल को प्राप्त करने के बाद अपने संबोधन में बिना नाम लिए कांग्रेस की सरकारों द्वारा पवित्र सेंगोल के साथ और तमिल लोगों के साथ किए गए व्यवहार को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि हम सभी जानते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम में तमिलनाडु की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हर युग मे तमिलनाडु भारतीय राष्ट्रवाद का गढ़ रहा है।
तमिल लोगों के दिल में हमेशा से मां भारती की सेवा की और भारतीयों के कल्याण की भावना रही है। बावजूद इसके, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत की आजादी में तमिल लोगों को वह महत्व नहीं दिया गया जो दिया जाना चाहिए था। अब भाजपा ने जब इस विषय को प्रमुखता से उठाना शुरू कर दिया है, तब देश के लोगों को भी यह पता चल रहा है कि तमिलनाडु के साथ क्या व्यवहार हुआ था।
अधीनम के महंतों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, जब आजादी का समय आया, तब सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक को लेकर एक प्रश्न उठा था, उस समय राजा जी और अधीनम के मार्गदर्शन में हमें अपनी प्राचीन तमिल संस्कृति से एक पुण्य मार्ग मिला था। ये मार्ग था- सेंगोल के माध्यम से सत्ता हस्तातंरण का। जब भारत की आजादी का प्रथम पल आया तब ये सेंगोल ही था जिसने गुलामी से पहले वाले कालखंड और स्वतंत्र भारत के उस पहले पल को आपस में जोड़ दिया था।
प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि अच्छा होता कि आजादी के बाद इस पूज्य सेंगोल को पर्याप्त मान-सम्मान दिया जाता, इसे गौरवमयी स्थान दिया जाता, लेकिन इस पवित्र सेंगोल को प्रयागराज में आनंद भवन में वाकिंग स्टिक यानी पैदल चलने पर सहारा देने वाली छड़ी कहकर प्रदर्शनी के लिए रख दिया गया था।
प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि उनकी सरकार अब उस सेंगोल को आनंद भवन से निकाल कर लाई है। आज आजादी के उस प्रथम पल को नए संसद भवन में सेंगोल की स्थापना के समय हमें फिर से पुनर्जीवित करने का मौका मिला है। लोकतंत्र के मंदिर में आज सेंगोल को उचित स्थान मिल रहा है। उन्होंने कहा कि उन्हें खुशी है कि अब भारत की महान परंपरा के प्रतीक सेंगोल को नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा। ये हमें याद दिलाता रहेगा कि हमें कर्तव्य पथ पर चलना है, जनता-जनार्दन के प्रति जवाबदेह बने रहना है।
प्रधानमंत्री ने तमिल संस्कृति और आधुनिक लोकतंत्र के बीच भावुक और आत्मीय संबंधों की बात करते हुए यह भी कहा कि सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर 1947 में पवित्र तिरुवावडुतुरै अधीनम द्वारा एक विशेष सेंगोल तैयार कराया गया था। आज उस दौर की तस्वीरें हमें याद दिला रही हैं कि तमिल संस्कृति और आधुनिक लोकतंत्र के रूप में भारत की नियति के बीच कितना भावुक और आत्मीय संबंध रहा है। आज उन गहरे संबंधों की गाथा इतिहास के दबे हुए पन्नों से बाहर निकलकर एक बार फिर जीवंत हो उठी है।
प्रधानमंत्री ने तमिलनाडु में अधीनमों की महत्वपूर्ण भूमिका का जिक्र करते हुए कहा कि, सैकड़ों वर्षो की गुलामी के बाद भी तमिलनाडु की संस्कृति आज भी जीवंत और समृद्ध है तो इसमें अधीनम जैसी महान और दिव्य परंपरा की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने प्रधानमंत्री आवास पर आए संतों को अगले 25 वर्ष के लक्ष्य की जानकारी देते हुए यह भी बताया कि सरकार ने आजादी के 100 वर्ष पूरे होने पर यानी 2047 तक भारत को मजबूत, आत्मनिर्भर और समावेशी विकसित भारत बनाने का लक्ष्य रखा है।
उन्होंने कहा कि भारत जितना एकजुट होगा उतना ही मजबूत होगा इसलिए हमारी प्रगति के रास्ते में रुकावटें पैदा करने वाले तरह-तरह की चुनौतियां खड़ी करेंगे, जिन्हें भारत की उन्नति खटकती है, वह सबसे पहले हमारी एकता को ही तोड़ने की कोशिश करेंगे, लेकिन उन्हें विश्वास है कि देश को अधीनमों और संतों से आध्यात्मिकता और सामाजिकता की जो शक्ति मिल रही है, उससे हम हर चुनौती का सामना कर लेंगे।
अपने संबोधन से पहले प्रधानमंत्री ने अपने आधिकारिक आवास पर आए विभिन्न अधीनम के महंतों से आशीर्वाद लिया। इस मुलाकात के दौरान अधीनम ने मंत्रोच्चार के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पवित्र सेंगोल भी सौंपा।
आपको बता दें कि वर्ष 1947 में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में अंग्रेजों ने इस सेंगोल को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपा था। रविवार को नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सेंगोल को लोकसभा अध्यक्ष के आसन के समीप स्थापित करेंगे।
–आईएएनएस
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