ग्रेटर नोएडा, 26 अगस्त (आईएएनएस)। कई साल बीत गए और घर का सपना पूरा नहीं हुआ। होम बॉयर्स में कोई पूरा पैसा दे चुका है, तो कोई ईएमआई और रेंट दोनों चुका रहा है। किसी को घर मिला भी है तो वह खंडहरनुमा और किसी को सारी सुविधाएं नहीं मिली, जो उसे ब्रोशर में दिखाई गई थी।
अलग-अलग मुद्दों को लेकर होम बायर्स अपने संघर्ष को जारी रखे हुए हैं। अपने घर का सपना पूरा करने के लिए होम बायर्स अलग-अलग संस्थाओं के जरिए अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। समय-समय पर वह प्रोटेस्ट करते हैं। अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों तक अपनी बात पहुंचते हैं और धरना-प्रदर्शन भी करते हैं।
अगर तीनों प्राधिकरण की बात की जाए तो करीब 35,000 से लेकर 40,000 करोड़ तक बिल्डर्स पर अथॉरिटी का बकाया है। खुद नोएडा अथॉरिटी ही 26,000 करोड़ के बकाया को वापस लेने की जुगत में लगी हुई है।
इन प्राधिकरणों के बकाए की मार आम जनता भी झेल रही है क्योंकि जिनको घर मिल चुका है उनकी रजिस्ट्री भी अटकी है। रजिस्ट्री ना होने से वह घर पर ना तो लोन ले सकते हैं और ना ही किसी को बेच सकते हैं।
बिना रजिस्ट्री के घर पूरी तरीके से होम बायर का नहीं होता है। सबसे बड़ी बात है कि उसके बिना वह स्ट्रक्चरल डिफेक्ट और अन्य असुविधाओं का क्लेम नहीं कर सकता है।
दूसरी तरफ बिल्डर का कहना है कि उन पर जबरन पेनाल्टी लगाकर ड्यू अमाउंट बढ़ा दिया गया है।
बिल्डर और बायर की परेशानियों को देखते हुए कई अलग-अलग संस्थाओं का गठन हुआ। जिनमें इस वक्त नेफोव के साथ काफी ज्यादा होम बायर्स जुड़े हुए हैं और यह संस्था भी उनके हितों में काम कर रही है।
ऐसी संस्थाओं के होने से बिल्डर और अधिकारियों की जवाबदेही तय होना शुरू हो जाती है। समय-समय पर ऐसी संस्थाएं लोगों के साथ मिलकर सड़कों पर उतरकर धरना-प्रदर्शन समेत कई ऐसी चीज करती हैं, जिन पर सरकार का ध्यान आकर्षित होता है।
नेफोवा के साथ मिलकर निवासियों ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के साथ औपचारिक शिकायतें दर्ज की है। मुद्दों के हस्तक्षेप और शीघ्र समाधान की मांग की है।
इसके अतिरिक्त उन्होंने रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण के समक्ष अपनी चिताओं को उठाया है। उसमें लोगों और बायर्स की समस्याओं को हाईलाइट किया गया है। नेफोवा ने उच्च अधिकारियों से संपर्क करके अपने प्रयासों को बढ़ाया है।
मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और यहां तक राष्ट्रपति को भी पत्र लिखकर बिल्डरों की लापरवाही के कारण लोगों को जिन गंभीर परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, उसे हाईलाइट किया है। यह संस्था खरीदारों के साथ मिलकर लंबे समय से प्रदर्शन करती आ रही है।
ताजा उदाहरण के तौर पर पिछले 36 सप्ताह से साप्ताहिक विरोध-प्रदर्शन चल रहा है।
रजिस्ट्री और कब्जे की मांग को लेकर नेफोवा का प्रतिनिधिमंडल यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कई बार मुलाकात भी कर चुका है और उनकी तरफ से कई आश्वासन भी दिए गए हैं।
इस संस्था ने अपने प्रयासों से सड़क से लेकर संसद तक होम बायर्स की परेशानियों को पहुंचाया है। यह और इसके जैसी अन्य संस्थाएं कानूनी लड़ाई में भी होम बायर्स की मदद करती हैं।
सबसे बड़ी बात है कि यह खुद होम बायर्स द्वारा बनाई गई एक संस्था है। स्वास्थ्य विभाग हो या अग्निशमन विभाग, यह संस्थाएं लगातार अधिकारियों तक निवासियों की परेशानियों को पहुंचाती हैं। उन्हें सुलझाने का जोरदार प्रयास किया जाता है।
प्राधिकरण के ग्रुप हाउसिंग का करीब 26,000 करोड़ बिल्डरों के यहां फंसा हुआ है। ये पैसा अब तक वापस जा जाना चाहिए था, लेकिन बिल्डरों ने जमा नहीं किया। इसे वापस लाने के लिए प्राधिकरण ने बिल्डरों को कई मौके व विकल्प दिए। लेकिन, इसका फायदा बिल्डरों ने नहीं लिया।
एक नजर में देखे तो नोएडा में 116 प्रोजेक्ट हैं। जिसमें 1 लाख 66 हजार 878 यूनिट सेंक्शन हैं। जिसमें से 99 हजार 39 यूनिट का ओसी जारी हो चुका है। 61 हजार 699 यूनिट की सब लीज हो चुकी है। 22 हजार 576 का ओसी जारी हो चुका है।
लेकिन, इनकी सब लीज नहीं हो सकी है। क्योंकि बिल्डर ने प्राधिकरण में पैसा जमा नहीं किया है।
हालांकि, प्राधिकरण ने दावा किया कि उनके दिए गए विकल्प के बाद 10 मार्च 2023 तक यानी एक साल में 3475 सबलीज की गई।
प्राधिकरण ने बिल्डरों के लिए रि-शिड्यूलमेंट स्कीम निकाली थी। इसकी आखिरी तिथि 31 मार्च है। हालांकि, हाल ही में क्रेडाई और प्राधिकरण के बीच हुई बैठक में बिल्डरों ने स्कीम को छह महीने के लिए बढ़ाने और हरियाणा की तर्ज पर ओटीएस स्कीम लाने के लिए कहा था। प्राधिकरण ने इससे मना कर दिया।
अब 10 ऐसे ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट व बिल्डर चिह्नित हो गए हैं। इनकी आरसी जारी करने की प्रक्रिया भी प्राधिकरण में शुरू हो गई है। अधिकारियों ने बताया कि हर प्रोजेक्ट में बकायादार बिल्डर के खिलाफ आरसी नहीं जारी होगी।
अगर प्रोजेक्ट में बिल्डर के गैर बिके फ्लैट या व्यवसायिक संपत्तियां हैं तो उनको सील करवाया जाएगा।
अगर जमीन खाली पड़ी हुई है तो उसे चिह्नित कर वापस कब्जे में ली जाएगी। यह दोनों विकल्प, जहां नहीं होंगे उनको आरसी की सूची में डाला जाएगा।
आम्रपाली प्रोजेक्ट पर बकाया 3580.78 करोड़ (कोर्ट केस), यूनिटेक प्रोजेक्ट पर बकाया 9760.06 करोड़ (कोर्ट केस), एनसीएलटी प्रोजेक्ट (15) प्रोजेक्ट पर 3996.96 करोड़, कंपलीट प्रोजेक्ट पर बकाया 1529.73 करोड़, इनकंपलीट प्रोजेक्ट पर बकाया 7140.68 करोड़ है।
नोएडा की 15 बिल्डर परियोजनाओं की दिवालिया होने की प्रक्रिया चल रही है। इनके मामले एनसीएलटी में चल रहे हैं। नोएडा प्राधिकरण के भी करीब 3996.96 करोड़ रुपए फंस गए हैं। पैसे लेने के लिए प्राधिकरण सख्ती भी नहीं बरत पा रहा है।
अधिकारियों ने बताया कि 15 में से चार ऐसी परियोजनाएं हैं, जिनके कुल स्वीकृत फ्लैट में से एक की भी रजिस्ट्री नहीं हो सकी है। रजिस्ट्री के अलावा सोसाइटी से जुड़े आईएफएमएम का पैसा समेत सभी काम आईआरपी के जरिए होंगे।
–आईएएनएस
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