सतना, देशबन्धु. सुविधा के मामले में सतना शहर भले ही महानगरों के मुकाबल पासंग न बैठता हो, मगर देश के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में सतना जिला जरूर शामिल हैं. दुनिया के सबसे उत्तम गुणवत्ता के लाइम स्टोन बाहुल्य क्षेत्र होने से सतना जिलाा सीमेंट कम्पनियों का हब बना हुआ हे. एक समय था जब सतना सीमन्ट फैक्ट्रृी शहर के अंतिम छोर पर स्थित हुआ करती थी, लेकिन आज इसकी स्थिति शहर के मध्य में दर्शा रही है.
बढ़ती वाहनों की संख्या
शहर से लेकर जिले भर में वाहनों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है. ऐसा कोई घर नहीं होगा जहां दो पहिया वाहन न हो. आज जिले की जनसंख्या २५ से ३० लाख के लगभग पहुंच रही है. ऐसे में सवाल यह है कि इनसे निकलने वाले धुएं का असर जनजीवन पर नहीं पड़ता होगा, पड़ता है और गैसों के उत्सर्जन से भी मानव जीवन पर असर पड़ता है तो फिर प्रदूषण विभाग क्या कर रहा है, वह हर महीने रिपोर्ट जारी क्यों नहीं करता कि यहां कि हवा का मानक स्तर क्या हैं और कितनी जहरीली. मगर प्रदूषण विभाग का कोई अता पता ही नहीं है, कुछ लोगो क्या ज्यादातर लोगो को पता ही नहीं है कि केन्द्रीय प्रदूषण विभाग कहां है और कौन अधिकारी है.
ऐसा लगता है कि सिर्फ नाम का प्रदूषण विभाग है और यहां के अधिकारी कर्मचारी बैठे बैठे तनख्वाह ले रहे हैं,धरातल में कोई अता पता ही नहीं रहता है. अगर धरातल में दिखते भी होंगे तो सीमेन्ट फैक्ट्रिूयों एवं कल कारखानों में, जहां उनका पका पकाया काम रहता है.
गौरतलब हो कि सड़को में दौड़ने वाले वाहनो का काफिला और धुआं डस्ट उगलने वाले कारखाने, फक्ट्रिृयां वातावरण में कार्बन आक्साइड व कार्बन मोनो आक्साइड सहित अन्य जहरीले रसायन दिन रात उगलते रहते है. आज से दो तीन दशक पहले शहर क्या जिले भर में वाहनों की इतनी भीड़ नहीं थी जितनी की आज बेताहाशा है. आलम यह है कि आसानी से सड़क पार करना भी अब मुश्किल हो गया है. बाजारवाद के चलते लगातार नित नये दो चार पहिया वाहन नये नये रंग रूप व माडल में आ रहे हैं और सड़को पर फर्राटा मारकर दौड़ रहे है जिनसे रोज सड़क हादसे हो रहे है और लोगो की जाने जा रही हैं.
एक अनुमान के मुताबिक सेमरिया चौक और सर्किट हाउस चौक में हर एक मिनट में एक भारी वाहन गुजरता है. जानकारो की मानें तो अपनी बसाहट की एक शताब्दी पूरा करने वाला सतना में औघोगिक विकास के साथ साथ शहर का विकास हो रहा है और नये आयाम भी बन रहे है, लेकिन वाहनो की बढ़ती भीड़ और बदलती फिजाएं से कब और कैसे निजात मिलेगी, यह सबसे बड़ा यक्ष सवाल है.
लाईन स्टोन की बहुलता ने यहां कई सीमेंट कंपनियों को आकर्षित किया यह सिलसिला अभी भी चल रहा है. पर्यावरण के दृष्टिकोण से सतना जिला एक खतरनाक दौर से गुजर रहा है. वनभूमि और कृषि योग्य जमीन का रकवा लगातार घट रहा है. कारखानों, सीमेंट फैक्ट्रियों के धूल धुआं से यहां की फसलें प्रभावित होती हैं वहीं उपजाऊ जमीनें बंजर भी होती जा रही है.
लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव देखा जा रहा है.सड़कों के किनारे व कारखानों फैक्ट्रियों के आसपास रहने वाले परिवारों में आज कोई न कोई दमा व सांस संबंधी बीमारियों से पीड़ित है. पर्यावरण को लेकर अभी भी लोग इतने जागरूक नहीं हैं जितना कि होना चाहिए. इसलिए स्वास्थ्य के साथ -साथ पर्यावरण का ध्यान रखना भी नितांत आवश्यक है.