अयोध्या, 11 जनवरी (आईएएनएस)। 22 जनवरी को श्रीरामलला की होने वाली प्राण प्रतिष्ठा के वक्त पूरी अयोध्या पुलकित होगी। राम का आदर्श जीवन मंच पर जीवन्त होगा। देश विदेश की अनेक रामलीला मंडलियां अपने अपने तरीके से प्राण प्रतिष्ठा समारोह को दिव्यता प्रदान करेंगी।
सांस्कृतिक विभाग के मुताबिक 22 जनवरी से यहां सिंगापुर, कंबोडिया, श्रीलंका, थाईलैंड और इंडोनेशिया आदि देशों के कलाकार, श्रीराम के जीवन आदर्श को मंचित करेंगे। इसके लिए उन्हें आमंत्रित किया गया है। इनके द्वारा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र को जीवन्त करने का प्रयास होगा।
22 जनवरी से ही मध्य प्रदेश, हिमाचल, हरियाणा, कर्नाटक, सिक्किम, केरल, छत्तीसगढ़, जम्मू कश्मीर, लद्दाख और चंडीगढ़ के रामदल भी अयोध्या में श्रीराम के जीवन चरित्र को मंचित करना शुरू कर देंगे। प्राण प्रतिष्ठा के बाद भी यह जारी रहेगा। राम की व्यापकता और स्वीकार्यता की वजह से भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में भी राम, अलग-अलग स्वरूप में देखे और पूजे जाते हैं।
उत्तराखंड की रामलीला मंडली ने मंगलवार से इसे शुरू कर दिया है। सबके राम का यह स्वरूप अयोध्या में जीवंत होने लगा है। 3500 कलाकारों का संगम इस बाबत देश और दुनिया के अनेक देशों के 3500 कलाकारों का संगम, अयोध्या में होगा। यह प्रतिदिन देखने को मिलेगा। अलग अलग रामदलों के लगभग 500 कलाकार मंच पर रामकथा का मंचन करेंगे और हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं, सुनहिं बहुिविधि सब संता को मूर्त रूप देंगे।
धर्म विशेषज्ञों की मानें तो राम का चरित्र एक आदर्श है। कोई समाज इसकी अनदेखी नहीं कर सकता। यही वजह है कि भाषा और मजहब की सारी दीवारों को लांघते हुए आज देश और दुनिया के अनेक देशों में रामलीलाओं का मंचन हो रहा है। आलम यह है कि 86 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले इंडोनेशिया और अंग्रेजी भाषी त्रिनिडाड में भी रामलीला का मंचन होता है। बौद्धिस्ट देश श्रीलंका, थाइलैंड और रूस भी इसके अपवाद नहीं हैं।
अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित माउंट मेडोना स्कूल में 40 वर्षों से जून के पहले हफ्ते में रामलीला का मंचन होता है। आजादी के पहले पाकिस्तान स्थित करांची के रामबाग की रामलीला मशहूर रही। अब इसका नाम आरामबाग है और मैदान की जगह कंक्रीट के जंगल हैं। मान्यता है कि सीता के साथ शक्तिपीठ हिंगलाज जाते समय भगवान श्रीराम ने इसी जगह विश्राम किया था।
भारत में वाराणसी की रामनगर, इटावा के जसवंतनगर, प्रयागराज और अल्मोड़ा की रामलीलाएं मशहूर हैं। इनका स्वरूप अलग-अलग हो सकता है, लेकिन सबके केंद्र में राम ही हैं। मसलन भुवनेश्वर में ये साही जातरा हो जाती है, तो चमाेली में रम्मण। कुछ जगहों पर तो रामायण के अन्य प्रसंगों जैसे धनुष यज्ञ, भरत मिलाप को भी केंद्र बनाकर आयोजन होते हैं।
सांस्कृतिक जानकर गिरीश पांडेय कहते हैं कि भारत में रामलीला का इतिहास 500 साल से भी अधिक पुराना है। हर दो-चार गांव के अंतराल पर अमूमन क्वार के एकम से लेकर एकादशी के दौरान रामलीलाओं का दौर चलता है। यहां के लोगों के लिए राम आस हैं और लोग रामभरोसे। सबके दाता भी राम है। वह जो चाहेंगे वही होगा। होइहि वही, सोई जो राम रचि राखा।
लिहाजा वर्षों पहले कठिन हालातों में गिरिमिटिया के रूप में जो लोग मॉरीशस, टोबैगो, ट्रीनीडाड, सूरीनाम आदि देशों में गये, वह अपने साथ भरोसे के रूप में राम को ले गये। उनकी पहल से राममंदिर भी बने और रामलीलाएं भी शुरू हुईं। फीजी जैसे छोटे से देश में 50 से अधिक रामलीला मंडलियां हैं। ट्रीनीडॉड की रामलीला मंडली लगभग 100 साल पुरानी है। उसी राम का जो हमारे लिए मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।
–आईएएएनएस
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