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सुखबीर बादल ने कहा, बासमती निर्यात पर प्रतिबंध भेदभावपूर्ण

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August 28, 2023
in राष्ट्रीय
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सुखबीर बादल ने कहा, बासमती निर्यात पर प्रतिबंध भेदभावपूर्ण
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चंडीगढ़, 28 अगस्त (आईएएनएस)। शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने सोमवार को केंद्र के चावल के निर्यात पर प्रभावी प्रतिबंध लगाने के फैसले को “भेदभावपूर्ण” बताया और इसकी समीक्षा करने का आग्रह किया।

उन्‍होंने 1,200 डॉलर प्रति टन से सस्‍ते बासमती चावल पर लगाए गए प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “जब भी हमारे किसान वैश्विक चावल की कीमतों में वृद्धि से लाभान्वित होते हैं, केंद्र इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देता है। यह भेदभावपूर्ण है। प्रतिबंध को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।” सरकार का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य गैर-बासमती चावल को पुनर्वर्गीकृत करके उसका निर्यात करने की जालसाजी को रोकने के लिए सस्‍ते बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाई गई है।

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उन्होंने कहा, “हालांकि इसका असर बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा।”

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और उबले चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने को एक और किसान विरोधी निर्णय करार देते हुए बादल ने कहा, “ऐसे प्रतिबंधों की बजाय केंद्र सरकार को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाना चाहिए।”

इस बात पर जोर देते हुए कि वैश्विक कीमतों की तुलना में कम एमएसपी पर अपनी धान बेचने के लिए मजबूर होने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी है, बादल ने कहा, “अब जब चावल के उच्च निर्यात मूल्य के कारण उन्हें लाभ होने वाला है, तो इसका निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से किसानों को वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में वृद्धि के लाभ से वंचित कर दिया गया था।

एसएडी अध्‍यक्ष ने कहा, “किसानों को बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की सख्त जरूरत है, जिससे उनमें से कई को पहली फसल नष्ट होने पर धान की दोबारा रोपाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास उनकी फसल के नुकसान के लिए कोई उचित मुआवजा नहीं है। (आप) सरकार ‘गिरदवारी’ प्रक्रिया पूरी करने में भी विफल रही है। चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ उबले चावल पर अत्यधिक शुल्क राज्य में कृषि संकट को बढ़ा देगा।”

उन्‍होंने यह भी कहा कि अनुमानों के विपरीत, चावल की कीमतें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में केवल मामूली वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं और इन्हें जबरन कम नहीं किया जाना चाहिए।

बादल ने कहा कि “देश में मुद्रास्फीति पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ सब्जियों की ऊंची कीमतों की वजह से बढ़ी है और इन दोनों कारणों पर तुरंत ध्‍यान दिया जाना चाहिए।”

बादल ने यह भी कहा कि देश में खुले बाजार में धान की कीमतें कम करने का जानबूझकर किया गया प्रयास इस साल के अंत तक कृषि आय को दोगुना करने के केंद्र के संकल्प के खिलाफ है।

–आईएएनएस

एकेजे

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चंडीगढ़, 28 अगस्त (आईएएनएस)। शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने सोमवार को केंद्र के चावल के निर्यात पर प्रभावी प्रतिबंध लगाने के फैसले को “भेदभावपूर्ण” बताया और इसकी समीक्षा करने का आग्रह किया।

उन्‍होंने 1,200 डॉलर प्रति टन से सस्‍ते बासमती चावल पर लगाए गए प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “जब भी हमारे किसान वैश्विक चावल की कीमतों में वृद्धि से लाभान्वित होते हैं, केंद्र इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देता है। यह भेदभावपूर्ण है। प्रतिबंध को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।” सरकार का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य गैर-बासमती चावल को पुनर्वर्गीकृत करके उसका निर्यात करने की जालसाजी को रोकने के लिए सस्‍ते बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाई गई है।

उन्होंने कहा, “हालांकि इसका असर बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा।”

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और उबले चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने को एक और किसान विरोधी निर्णय करार देते हुए बादल ने कहा, “ऐसे प्रतिबंधों की बजाय केंद्र सरकार को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाना चाहिए।”

इस बात पर जोर देते हुए कि वैश्विक कीमतों की तुलना में कम एमएसपी पर अपनी धान बेचने के लिए मजबूर होने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी है, बादल ने कहा, “अब जब चावल के उच्च निर्यात मूल्य के कारण उन्हें लाभ होने वाला है, तो इसका निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से किसानों को वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में वृद्धि के लाभ से वंचित कर दिया गया था।

एसएडी अध्‍यक्ष ने कहा, “किसानों को बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की सख्त जरूरत है, जिससे उनमें से कई को पहली फसल नष्ट होने पर धान की दोबारा रोपाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास उनकी फसल के नुकसान के लिए कोई उचित मुआवजा नहीं है। (आप) सरकार ‘गिरदवारी’ प्रक्रिया पूरी करने में भी विफल रही है। चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ उबले चावल पर अत्यधिक शुल्क राज्य में कृषि संकट को बढ़ा देगा।”

उन्‍होंने यह भी कहा कि अनुमानों के विपरीत, चावल की कीमतें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में केवल मामूली वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं और इन्हें जबरन कम नहीं किया जाना चाहिए।

बादल ने कहा कि “देश में मुद्रास्फीति पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ सब्जियों की ऊंची कीमतों की वजह से बढ़ी है और इन दोनों कारणों पर तुरंत ध्‍यान दिया जाना चाहिए।”

बादल ने यह भी कहा कि देश में खुले बाजार में धान की कीमतें कम करने का जानबूझकर किया गया प्रयास इस साल के अंत तक कृषि आय को दोगुना करने के केंद्र के संकल्प के खिलाफ है।

–आईएएनएस

एकेजे

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चंडीगढ़, 28 अगस्त (आईएएनएस)। शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने सोमवार को केंद्र के चावल के निर्यात पर प्रभावी प्रतिबंध लगाने के फैसले को “भेदभावपूर्ण” बताया और इसकी समीक्षा करने का आग्रह किया।

उन्‍होंने 1,200 डॉलर प्रति टन से सस्‍ते बासमती चावल पर लगाए गए प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “जब भी हमारे किसान वैश्विक चावल की कीमतों में वृद्धि से लाभान्वित होते हैं, केंद्र इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देता है। यह भेदभावपूर्ण है। प्रतिबंध को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।” सरकार का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य गैर-बासमती चावल को पुनर्वर्गीकृत करके उसका निर्यात करने की जालसाजी को रोकने के लिए सस्‍ते बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाई गई है।

उन्होंने कहा, “हालांकि इसका असर बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा।”

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और उबले चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने को एक और किसान विरोधी निर्णय करार देते हुए बादल ने कहा, “ऐसे प्रतिबंधों की बजाय केंद्र सरकार को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाना चाहिए।”

इस बात पर जोर देते हुए कि वैश्विक कीमतों की तुलना में कम एमएसपी पर अपनी धान बेचने के लिए मजबूर होने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी है, बादल ने कहा, “अब जब चावल के उच्च निर्यात मूल्य के कारण उन्हें लाभ होने वाला है, तो इसका निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से किसानों को वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में वृद्धि के लाभ से वंचित कर दिया गया था।

एसएडी अध्‍यक्ष ने कहा, “किसानों को बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की सख्त जरूरत है, जिससे उनमें से कई को पहली फसल नष्ट होने पर धान की दोबारा रोपाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास उनकी फसल के नुकसान के लिए कोई उचित मुआवजा नहीं है। (आप) सरकार ‘गिरदवारी’ प्रक्रिया पूरी करने में भी विफल रही है। चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ उबले चावल पर अत्यधिक शुल्क राज्य में कृषि संकट को बढ़ा देगा।”

उन्‍होंने यह भी कहा कि अनुमानों के विपरीत, चावल की कीमतें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में केवल मामूली वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं और इन्हें जबरन कम नहीं किया जाना चाहिए।

बादल ने कहा कि “देश में मुद्रास्फीति पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ सब्जियों की ऊंची कीमतों की वजह से बढ़ी है और इन दोनों कारणों पर तुरंत ध्‍यान दिया जाना चाहिए।”

बादल ने यह भी कहा कि देश में खुले बाजार में धान की कीमतें कम करने का जानबूझकर किया गया प्रयास इस साल के अंत तक कृषि आय को दोगुना करने के केंद्र के संकल्प के खिलाफ है।

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उन्‍होंने 1,200 डॉलर प्रति टन से सस्‍ते बासमती चावल पर लगाए गए प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “जब भी हमारे किसान वैश्विक चावल की कीमतों में वृद्धि से लाभान्वित होते हैं, केंद्र इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देता है। यह भेदभावपूर्ण है। प्रतिबंध को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।” सरकार का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य गैर-बासमती चावल को पुनर्वर्गीकृत करके उसका निर्यात करने की जालसाजी को रोकने के लिए सस्‍ते बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाई गई है।

उन्होंने कहा, “हालांकि इसका असर बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा।”

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और उबले चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने को एक और किसान विरोधी निर्णय करार देते हुए बादल ने कहा, “ऐसे प्रतिबंधों की बजाय केंद्र सरकार को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाना चाहिए।”

इस बात पर जोर देते हुए कि वैश्विक कीमतों की तुलना में कम एमएसपी पर अपनी धान बेचने के लिए मजबूर होने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी है, बादल ने कहा, “अब जब चावल के उच्च निर्यात मूल्य के कारण उन्हें लाभ होने वाला है, तो इसका निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से किसानों को वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में वृद्धि के लाभ से वंचित कर दिया गया था।

एसएडी अध्‍यक्ष ने कहा, “किसानों को बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की सख्त जरूरत है, जिससे उनमें से कई को पहली फसल नष्ट होने पर धान की दोबारा रोपाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास उनकी फसल के नुकसान के लिए कोई उचित मुआवजा नहीं है। (आप) सरकार ‘गिरदवारी’ प्रक्रिया पूरी करने में भी विफल रही है। चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ उबले चावल पर अत्यधिक शुल्क राज्य में कृषि संकट को बढ़ा देगा।”

उन्‍होंने यह भी कहा कि अनुमानों के विपरीत, चावल की कीमतें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में केवल मामूली वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं और इन्हें जबरन कम नहीं किया जाना चाहिए।

बादल ने कहा कि “देश में मुद्रास्फीति पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ सब्जियों की ऊंची कीमतों की वजह से बढ़ी है और इन दोनों कारणों पर तुरंत ध्‍यान दिया जाना चाहिए।”

बादल ने यह भी कहा कि देश में खुले बाजार में धान की कीमतें कम करने का जानबूझकर किया गया प्रयास इस साल के अंत तक कृषि आय को दोगुना करने के केंद्र के संकल्प के खिलाफ है।

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उन्‍होंने 1,200 डॉलर प्रति टन से सस्‍ते बासमती चावल पर लगाए गए प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “जब भी हमारे किसान वैश्विक चावल की कीमतों में वृद्धि से लाभान्वित होते हैं, केंद्र इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देता है। यह भेदभावपूर्ण है। प्रतिबंध को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।” सरकार का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य गैर-बासमती चावल को पुनर्वर्गीकृत करके उसका निर्यात करने की जालसाजी को रोकने के लिए सस्‍ते बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाई गई है।

उन्होंने कहा, “हालांकि इसका असर बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा।”

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और उबले चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने को एक और किसान विरोधी निर्णय करार देते हुए बादल ने कहा, “ऐसे प्रतिबंधों की बजाय केंद्र सरकार को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाना चाहिए।”

इस बात पर जोर देते हुए कि वैश्विक कीमतों की तुलना में कम एमएसपी पर अपनी धान बेचने के लिए मजबूर होने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी है, बादल ने कहा, “अब जब चावल के उच्च निर्यात मूल्य के कारण उन्हें लाभ होने वाला है, तो इसका निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से किसानों को वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में वृद्धि के लाभ से वंचित कर दिया गया था।

एसएडी अध्‍यक्ष ने कहा, “किसानों को बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की सख्त जरूरत है, जिससे उनमें से कई को पहली फसल नष्ट होने पर धान की दोबारा रोपाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास उनकी फसल के नुकसान के लिए कोई उचित मुआवजा नहीं है। (आप) सरकार ‘गिरदवारी’ प्रक्रिया पूरी करने में भी विफल रही है। चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ उबले चावल पर अत्यधिक शुल्क राज्य में कृषि संकट को बढ़ा देगा।”

उन्‍होंने यह भी कहा कि अनुमानों के विपरीत, चावल की कीमतें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में केवल मामूली वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं और इन्हें जबरन कम नहीं किया जाना चाहिए।

बादल ने कहा कि “देश में मुद्रास्फीति पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ सब्जियों की ऊंची कीमतों की वजह से बढ़ी है और इन दोनों कारणों पर तुरंत ध्‍यान दिया जाना चाहिए।”

बादल ने यह भी कहा कि देश में खुले बाजार में धान की कीमतें कम करने का जानबूझकर किया गया प्रयास इस साल के अंत तक कृषि आय को दोगुना करने के केंद्र के संकल्प के खिलाफ है।

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उन्‍होंने 1,200 डॉलर प्रति टन से सस्‍ते बासमती चावल पर लगाए गए प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “जब भी हमारे किसान वैश्विक चावल की कीमतों में वृद्धि से लाभान्वित होते हैं, केंद्र इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देता है। यह भेदभावपूर्ण है। प्रतिबंध को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।” सरकार का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य गैर-बासमती चावल को पुनर्वर्गीकृत करके उसका निर्यात करने की जालसाजी को रोकने के लिए सस्‍ते बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाई गई है।

उन्होंने कहा, “हालांकि इसका असर बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा।”

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और उबले चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने को एक और किसान विरोधी निर्णय करार देते हुए बादल ने कहा, “ऐसे प्रतिबंधों की बजाय केंद्र सरकार को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाना चाहिए।”

इस बात पर जोर देते हुए कि वैश्विक कीमतों की तुलना में कम एमएसपी पर अपनी धान बेचने के लिए मजबूर होने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी है, बादल ने कहा, “अब जब चावल के उच्च निर्यात मूल्य के कारण उन्हें लाभ होने वाला है, तो इसका निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से किसानों को वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में वृद्धि के लाभ से वंचित कर दिया गया था।

एसएडी अध्‍यक्ष ने कहा, “किसानों को बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की सख्त जरूरत है, जिससे उनमें से कई को पहली फसल नष्ट होने पर धान की दोबारा रोपाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास उनकी फसल के नुकसान के लिए कोई उचित मुआवजा नहीं है। (आप) सरकार ‘गिरदवारी’ प्रक्रिया पूरी करने में भी विफल रही है। चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ उबले चावल पर अत्यधिक शुल्क राज्य में कृषि संकट को बढ़ा देगा।”

उन्‍होंने यह भी कहा कि अनुमानों के विपरीत, चावल की कीमतें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में केवल मामूली वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं और इन्हें जबरन कम नहीं किया जाना चाहिए।

बादल ने कहा कि “देश में मुद्रास्फीति पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ सब्जियों की ऊंची कीमतों की वजह से बढ़ी है और इन दोनों कारणों पर तुरंत ध्‍यान दिया जाना चाहिए।”

बादल ने यह भी कहा कि देश में खुले बाजार में धान की कीमतें कम करने का जानबूझकर किया गया प्रयास इस साल के अंत तक कृषि आय को दोगुना करने के केंद्र के संकल्प के खिलाफ है।

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उन्‍होंने 1,200 डॉलर प्रति टन से सस्‍ते बासमती चावल पर लगाए गए प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “जब भी हमारे किसान वैश्विक चावल की कीमतों में वृद्धि से लाभान्वित होते हैं, केंद्र इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देता है। यह भेदभावपूर्ण है। प्रतिबंध को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।” सरकार का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य गैर-बासमती चावल को पुनर्वर्गीकृत करके उसका निर्यात करने की जालसाजी को रोकने के लिए सस्‍ते बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाई गई है।

उन्होंने कहा, “हालांकि इसका असर बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा।”

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और उबले चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने को एक और किसान विरोधी निर्णय करार देते हुए बादल ने कहा, “ऐसे प्रतिबंधों की बजाय केंद्र सरकार को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाना चाहिए।”

इस बात पर जोर देते हुए कि वैश्विक कीमतों की तुलना में कम एमएसपी पर अपनी धान बेचने के लिए मजबूर होने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी है, बादल ने कहा, “अब जब चावल के उच्च निर्यात मूल्य के कारण उन्हें लाभ होने वाला है, तो इसका निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से किसानों को वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में वृद्धि के लाभ से वंचित कर दिया गया था।

एसएडी अध्‍यक्ष ने कहा, “किसानों को बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की सख्त जरूरत है, जिससे उनमें से कई को पहली फसल नष्ट होने पर धान की दोबारा रोपाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास उनकी फसल के नुकसान के लिए कोई उचित मुआवजा नहीं है। (आप) सरकार ‘गिरदवारी’ प्रक्रिया पूरी करने में भी विफल रही है। चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ उबले चावल पर अत्यधिक शुल्क राज्य में कृषि संकट को बढ़ा देगा।”

उन्‍होंने यह भी कहा कि अनुमानों के विपरीत, चावल की कीमतें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में केवल मामूली वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं और इन्हें जबरन कम नहीं किया जाना चाहिए।

बादल ने कहा कि “देश में मुद्रास्फीति पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ सब्जियों की ऊंची कीमतों की वजह से बढ़ी है और इन दोनों कारणों पर तुरंत ध्‍यान दिया जाना चाहिए।”

बादल ने यह भी कहा कि देश में खुले बाजार में धान की कीमतें कम करने का जानबूझकर किया गया प्रयास इस साल के अंत तक कृषि आय को दोगुना करने के केंद्र के संकल्प के खिलाफ है।

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उन्‍होंने 1,200 डॉलर प्रति टन से सस्‍ते बासमती चावल पर लगाए गए प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “जब भी हमारे किसान वैश्विक चावल की कीमतों में वृद्धि से लाभान्वित होते हैं, केंद्र इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देता है। यह भेदभावपूर्ण है। प्रतिबंध को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।” सरकार का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य गैर-बासमती चावल को पुनर्वर्गीकृत करके उसका निर्यात करने की जालसाजी को रोकने के लिए सस्‍ते बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाई गई है।

उन्होंने कहा, “हालांकि इसका असर बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा।”

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और उबले चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने को एक और किसान विरोधी निर्णय करार देते हुए बादल ने कहा, “ऐसे प्रतिबंधों की बजाय केंद्र सरकार को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाना चाहिए।”

इस बात पर जोर देते हुए कि वैश्विक कीमतों की तुलना में कम एमएसपी पर अपनी धान बेचने के लिए मजबूर होने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी है, बादल ने कहा, “अब जब चावल के उच्च निर्यात मूल्य के कारण उन्हें लाभ होने वाला है, तो इसका निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से किसानों को वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में वृद्धि के लाभ से वंचित कर दिया गया था।

एसएडी अध्‍यक्ष ने कहा, “किसानों को बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की सख्त जरूरत है, जिससे उनमें से कई को पहली फसल नष्ट होने पर धान की दोबारा रोपाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास उनकी फसल के नुकसान के लिए कोई उचित मुआवजा नहीं है। (आप) सरकार ‘गिरदवारी’ प्रक्रिया पूरी करने में भी विफल रही है। चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ उबले चावल पर अत्यधिक शुल्क राज्य में कृषि संकट को बढ़ा देगा।”

उन्‍होंने यह भी कहा कि अनुमानों के विपरीत, चावल की कीमतें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में केवल मामूली वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं और इन्हें जबरन कम नहीं किया जाना चाहिए।

बादल ने कहा कि “देश में मुद्रास्फीति पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ सब्जियों की ऊंची कीमतों की वजह से बढ़ी है और इन दोनों कारणों पर तुरंत ध्‍यान दिया जाना चाहिए।”

बादल ने यह भी कहा कि देश में खुले बाजार में धान की कीमतें कम करने का जानबूझकर किया गया प्रयास इस साल के अंत तक कृषि आय को दोगुना करने के केंद्र के संकल्प के खिलाफ है।

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एकेजे

चंडीगढ़, 28 अगस्त (आईएएनएस)। शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने सोमवार को केंद्र के चावल के निर्यात पर प्रभावी प्रतिबंध लगाने के फैसले को “भेदभावपूर्ण” बताया और इसकी समीक्षा करने का आग्रह किया।

उन्‍होंने 1,200 डॉलर प्रति टन से सस्‍ते बासमती चावल पर लगाए गए प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “जब भी हमारे किसान वैश्विक चावल की कीमतों में वृद्धि से लाभान्वित होते हैं, केंद्र इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देता है। यह भेदभावपूर्ण है। प्रतिबंध को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।” सरकार का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य गैर-बासमती चावल को पुनर्वर्गीकृत करके उसका निर्यात करने की जालसाजी को रोकने के लिए सस्‍ते बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाई गई है।

उन्होंने कहा, “हालांकि इसका असर बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा।”

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और उबले चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने को एक और किसान विरोधी निर्णय करार देते हुए बादल ने कहा, “ऐसे प्रतिबंधों की बजाय केंद्र सरकार को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाना चाहिए।”

इस बात पर जोर देते हुए कि वैश्विक कीमतों की तुलना में कम एमएसपी पर अपनी धान बेचने के लिए मजबूर होने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी है, बादल ने कहा, “अब जब चावल के उच्च निर्यात मूल्य के कारण उन्हें लाभ होने वाला है, तो इसका निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से किसानों को वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में वृद्धि के लाभ से वंचित कर दिया गया था।

एसएडी अध्‍यक्ष ने कहा, “किसानों को बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की सख्त जरूरत है, जिससे उनमें से कई को पहली फसल नष्ट होने पर धान की दोबारा रोपाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास उनकी फसल के नुकसान के लिए कोई उचित मुआवजा नहीं है। (आप) सरकार ‘गिरदवारी’ प्रक्रिया पूरी करने में भी विफल रही है। चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ उबले चावल पर अत्यधिक शुल्क राज्य में कृषि संकट को बढ़ा देगा।”

उन्‍होंने यह भी कहा कि अनुमानों के विपरीत, चावल की कीमतें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में केवल मामूली वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं और इन्हें जबरन कम नहीं किया जाना चाहिए।

बादल ने कहा कि “देश में मुद्रास्फीति पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ सब्जियों की ऊंची कीमतों की वजह से बढ़ी है और इन दोनों कारणों पर तुरंत ध्‍यान दिया जाना चाहिए।”

बादल ने यह भी कहा कि देश में खुले बाजार में धान की कीमतें कम करने का जानबूझकर किया गया प्रयास इस साल के अंत तक कृषि आय को दोगुना करने के केंद्र के संकल्प के खिलाफ है।

–आईएएनएस

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चंडीगढ़, 28 अगस्त (आईएएनएस)। शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने सोमवार को केंद्र के चावल के निर्यात पर प्रभावी प्रतिबंध लगाने के फैसले को “भेदभावपूर्ण” बताया और इसकी समीक्षा करने का आग्रह किया।

उन्‍होंने 1,200 डॉलर प्रति टन से सस्‍ते बासमती चावल पर लगाए गए प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “जब भी हमारे किसान वैश्विक चावल की कीमतों में वृद्धि से लाभान्वित होते हैं, केंद्र इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देता है। यह भेदभावपूर्ण है। प्रतिबंध को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।” सरकार का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य गैर-बासमती चावल को पुनर्वर्गीकृत करके उसका निर्यात करने की जालसाजी को रोकने के लिए सस्‍ते बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाई गई है।

उन्होंने कहा, “हालांकि इसका असर बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा।”

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और उबले चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने को एक और किसान विरोधी निर्णय करार देते हुए बादल ने कहा, “ऐसे प्रतिबंधों की बजाय केंद्र सरकार को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाना चाहिए।”

इस बात पर जोर देते हुए कि वैश्विक कीमतों की तुलना में कम एमएसपी पर अपनी धान बेचने के लिए मजबूर होने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी है, बादल ने कहा, “अब जब चावल के उच्च निर्यात मूल्य के कारण उन्हें लाभ होने वाला है, तो इसका निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से किसानों को वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में वृद्धि के लाभ से वंचित कर दिया गया था।

एसएडी अध्‍यक्ष ने कहा, “किसानों को बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की सख्त जरूरत है, जिससे उनमें से कई को पहली फसल नष्ट होने पर धान की दोबारा रोपाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास उनकी फसल के नुकसान के लिए कोई उचित मुआवजा नहीं है। (आप) सरकार ‘गिरदवारी’ प्रक्रिया पूरी करने में भी विफल रही है। चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ उबले चावल पर अत्यधिक शुल्क राज्य में कृषि संकट को बढ़ा देगा।”

उन्‍होंने यह भी कहा कि अनुमानों के विपरीत, चावल की कीमतें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में केवल मामूली वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं और इन्हें जबरन कम नहीं किया जाना चाहिए।

बादल ने कहा कि “देश में मुद्रास्फीति पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ सब्जियों की ऊंची कीमतों की वजह से बढ़ी है और इन दोनों कारणों पर तुरंत ध्‍यान दिया जाना चाहिए।”

बादल ने यह भी कहा कि देश में खुले बाजार में धान की कीमतें कम करने का जानबूझकर किया गया प्रयास इस साल के अंत तक कृषि आय को दोगुना करने के केंद्र के संकल्प के खिलाफ है।

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उन्‍होंने 1,200 डॉलर प्रति टन से सस्‍ते बासमती चावल पर लगाए गए प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “जब भी हमारे किसान वैश्विक चावल की कीमतों में वृद्धि से लाभान्वित होते हैं, केंद्र इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देता है। यह भेदभावपूर्ण है। प्रतिबंध को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।” सरकार का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य गैर-बासमती चावल को पुनर्वर्गीकृत करके उसका निर्यात करने की जालसाजी को रोकने के लिए सस्‍ते बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाई गई है।

उन्होंने कहा, “हालांकि इसका असर बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा।”

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और उबले चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने को एक और किसान विरोधी निर्णय करार देते हुए बादल ने कहा, “ऐसे प्रतिबंधों की बजाय केंद्र सरकार को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाना चाहिए।”

इस बात पर जोर देते हुए कि वैश्विक कीमतों की तुलना में कम एमएसपी पर अपनी धान बेचने के लिए मजबूर होने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी है, बादल ने कहा, “अब जब चावल के उच्च निर्यात मूल्य के कारण उन्हें लाभ होने वाला है, तो इसका निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से किसानों को वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में वृद्धि के लाभ से वंचित कर दिया गया था।

एसएडी अध्‍यक्ष ने कहा, “किसानों को बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की सख्त जरूरत है, जिससे उनमें से कई को पहली फसल नष्ट होने पर धान की दोबारा रोपाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास उनकी फसल के नुकसान के लिए कोई उचित मुआवजा नहीं है। (आप) सरकार ‘गिरदवारी’ प्रक्रिया पूरी करने में भी विफल रही है। चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ उबले चावल पर अत्यधिक शुल्क राज्य में कृषि संकट को बढ़ा देगा।”

उन्‍होंने यह भी कहा कि अनुमानों के विपरीत, चावल की कीमतें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में केवल मामूली वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं और इन्हें जबरन कम नहीं किया जाना चाहिए।

बादल ने कहा कि “देश में मुद्रास्फीति पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ सब्जियों की ऊंची कीमतों की वजह से बढ़ी है और इन दोनों कारणों पर तुरंत ध्‍यान दिया जाना चाहिए।”

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उन्होंने कहा, “हालांकि इसका असर बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा।”

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और उबले चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने को एक और किसान विरोधी निर्णय करार देते हुए बादल ने कहा, “ऐसे प्रतिबंधों की बजाय केंद्र सरकार को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाना चाहिए।”

इस बात पर जोर देते हुए कि वैश्विक कीमतों की तुलना में कम एमएसपी पर अपनी धान बेचने के लिए मजबूर होने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी है, बादल ने कहा, “अब जब चावल के उच्च निर्यात मूल्य के कारण उन्हें लाभ होने वाला है, तो इसका निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से किसानों को वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में वृद्धि के लाभ से वंचित कर दिया गया था।

एसएडी अध्‍यक्ष ने कहा, “किसानों को बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की सख्त जरूरत है, जिससे उनमें से कई को पहली फसल नष्ट होने पर धान की दोबारा रोपाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास उनकी फसल के नुकसान के लिए कोई उचित मुआवजा नहीं है। (आप) सरकार ‘गिरदवारी’ प्रक्रिया पूरी करने में भी विफल रही है। चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ उबले चावल पर अत्यधिक शुल्क राज्य में कृषि संकट को बढ़ा देगा।”

उन्‍होंने यह भी कहा कि अनुमानों के विपरीत, चावल की कीमतें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में केवल मामूली वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं और इन्हें जबरन कम नहीं किया जाना चाहिए।

बादल ने कहा कि “देश में मुद्रास्फीति पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ सब्जियों की ऊंची कीमतों की वजह से बढ़ी है और इन दोनों कारणों पर तुरंत ध्‍यान दिया जाना चाहिए।”

बादल ने यह भी कहा कि देश में खुले बाजार में धान की कीमतें कम करने का जानबूझकर किया गया प्रयास इस साल के अंत तक कृषि आय को दोगुना करने के केंद्र के संकल्प के खिलाफ है।

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उन्‍होंने 1,200 डॉलर प्रति टन से सस्‍ते बासमती चावल पर लगाए गए प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “जब भी हमारे किसान वैश्विक चावल की कीमतों में वृद्धि से लाभान्वित होते हैं, केंद्र इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देता है। यह भेदभावपूर्ण है। प्रतिबंध को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।” सरकार का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य गैर-बासमती चावल को पुनर्वर्गीकृत करके उसका निर्यात करने की जालसाजी को रोकने के लिए सस्‍ते बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाई गई है।

उन्होंने कहा, “हालांकि इसका असर बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा।”

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और उबले चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने को एक और किसान विरोधी निर्णय करार देते हुए बादल ने कहा, “ऐसे प्रतिबंधों की बजाय केंद्र सरकार को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाना चाहिए।”

इस बात पर जोर देते हुए कि वैश्विक कीमतों की तुलना में कम एमएसपी पर अपनी धान बेचने के लिए मजबूर होने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी है, बादल ने कहा, “अब जब चावल के उच्च निर्यात मूल्य के कारण उन्हें लाभ होने वाला है, तो इसका निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से किसानों को वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में वृद्धि के लाभ से वंचित कर दिया गया था।

एसएडी अध्‍यक्ष ने कहा, “किसानों को बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की सख्त जरूरत है, जिससे उनमें से कई को पहली फसल नष्ट होने पर धान की दोबारा रोपाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास उनकी फसल के नुकसान के लिए कोई उचित मुआवजा नहीं है। (आप) सरकार ‘गिरदवारी’ प्रक्रिया पूरी करने में भी विफल रही है। चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ उबले चावल पर अत्यधिक शुल्क राज्य में कृषि संकट को बढ़ा देगा।”

उन्‍होंने यह भी कहा कि अनुमानों के विपरीत, चावल की कीमतें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में केवल मामूली वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं और इन्हें जबरन कम नहीं किया जाना चाहिए।

बादल ने कहा कि “देश में मुद्रास्फीति पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ सब्जियों की ऊंची कीमतों की वजह से बढ़ी है और इन दोनों कारणों पर तुरंत ध्‍यान दिया जाना चाहिए।”

बादल ने यह भी कहा कि देश में खुले बाजार में धान की कीमतें कम करने का जानबूझकर किया गया प्रयास इस साल के अंत तक कृषि आय को दोगुना करने के केंद्र के संकल्प के खिलाफ है।

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उन्‍होंने 1,200 डॉलर प्रति टन से सस्‍ते बासमती चावल पर लगाए गए प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “जब भी हमारे किसान वैश्विक चावल की कीमतों में वृद्धि से लाभान्वित होते हैं, केंद्र इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देता है। यह भेदभावपूर्ण है। प्रतिबंध को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।” सरकार का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य गैर-बासमती चावल को पुनर्वर्गीकृत करके उसका निर्यात करने की जालसाजी को रोकने के लिए सस्‍ते बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाई गई है।

उन्होंने कहा, “हालांकि इसका असर बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा।”

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और उबले चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने को एक और किसान विरोधी निर्णय करार देते हुए बादल ने कहा, “ऐसे प्रतिबंधों की बजाय केंद्र सरकार को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाना चाहिए।”

इस बात पर जोर देते हुए कि वैश्विक कीमतों की तुलना में कम एमएसपी पर अपनी धान बेचने के लिए मजबूर होने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी है, बादल ने कहा, “अब जब चावल के उच्च निर्यात मूल्य के कारण उन्हें लाभ होने वाला है, तो इसका निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से किसानों को वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में वृद्धि के लाभ से वंचित कर दिया गया था।

एसएडी अध्‍यक्ष ने कहा, “किसानों को बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की सख्त जरूरत है, जिससे उनमें से कई को पहली फसल नष्ट होने पर धान की दोबारा रोपाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास उनकी फसल के नुकसान के लिए कोई उचित मुआवजा नहीं है। (आप) सरकार ‘गिरदवारी’ प्रक्रिया पूरी करने में भी विफल रही है। चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ उबले चावल पर अत्यधिक शुल्क राज्य में कृषि संकट को बढ़ा देगा।”

उन्‍होंने यह भी कहा कि अनुमानों के विपरीत, चावल की कीमतें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में केवल मामूली वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं और इन्हें जबरन कम नहीं किया जाना चाहिए।

बादल ने कहा कि “देश में मुद्रास्फीति पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ सब्जियों की ऊंची कीमतों की वजह से बढ़ी है और इन दोनों कारणों पर तुरंत ध्‍यान दिया जाना चाहिए।”

बादल ने यह भी कहा कि देश में खुले बाजार में धान की कीमतें कम करने का जानबूझकर किया गया प्रयास इस साल के अंत तक कृषि आय को दोगुना करने के केंद्र के संकल्प के खिलाफ है।

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उन्‍होंने 1,200 डॉलर प्रति टन से सस्‍ते बासमती चावल पर लगाए गए प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “जब भी हमारे किसान वैश्विक चावल की कीमतों में वृद्धि से लाभान्वित होते हैं, केंद्र इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देता है। यह भेदभावपूर्ण है। प्रतिबंध को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।” सरकार का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य गैर-बासमती चावल को पुनर्वर्गीकृत करके उसका निर्यात करने की जालसाजी को रोकने के लिए सस्‍ते बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाई गई है।

उन्होंने कहा, “हालांकि इसका असर बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा।”

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और उबले चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने को एक और किसान विरोधी निर्णय करार देते हुए बादल ने कहा, “ऐसे प्रतिबंधों की बजाय केंद्र सरकार को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाना चाहिए।”

इस बात पर जोर देते हुए कि वैश्विक कीमतों की तुलना में कम एमएसपी पर अपनी धान बेचने के लिए मजबूर होने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी है, बादल ने कहा, “अब जब चावल के उच्च निर्यात मूल्य के कारण उन्हें लाभ होने वाला है, तो इसका निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से किसानों को वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में वृद्धि के लाभ से वंचित कर दिया गया था।

एसएडी अध्‍यक्ष ने कहा, “किसानों को बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की सख्त जरूरत है, जिससे उनमें से कई को पहली फसल नष्ट होने पर धान की दोबारा रोपाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास उनकी फसल के नुकसान के लिए कोई उचित मुआवजा नहीं है। (आप) सरकार ‘गिरदवारी’ प्रक्रिया पूरी करने में भी विफल रही है। चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ उबले चावल पर अत्यधिक शुल्क राज्य में कृषि संकट को बढ़ा देगा।”

उन्‍होंने यह भी कहा कि अनुमानों के विपरीत, चावल की कीमतें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में केवल मामूली वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं और इन्हें जबरन कम नहीं किया जाना चाहिए।

बादल ने कहा कि “देश में मुद्रास्फीति पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ सब्जियों की ऊंची कीमतों की वजह से बढ़ी है और इन दोनों कारणों पर तुरंत ध्‍यान दिया जाना चाहिए।”

बादल ने यह भी कहा कि देश में खुले बाजार में धान की कीमतें कम करने का जानबूझकर किया गया प्रयास इस साल के अंत तक कृषि आय को दोगुना करने के केंद्र के संकल्प के खिलाफ है।

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उन्‍होंने 1,200 डॉलर प्रति टन से सस्‍ते बासमती चावल पर लगाए गए प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “जब भी हमारे किसान वैश्विक चावल की कीमतों में वृद्धि से लाभान्वित होते हैं, केंद्र इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देता है। यह भेदभावपूर्ण है। प्रतिबंध को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।” सरकार का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य गैर-बासमती चावल को पुनर्वर्गीकृत करके उसका निर्यात करने की जालसाजी को रोकने के लिए सस्‍ते बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाई गई है।

उन्होंने कहा, “हालांकि इसका असर बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा।”

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और उबले चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाने को एक और किसान विरोधी निर्णय करार देते हुए बादल ने कहा, “ऐसे प्रतिबंधों की बजाय केंद्र सरकार को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाना चाहिए।”

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एसएडी अध्‍यक्ष ने कहा, “किसानों को बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उच्च कीमतों की सख्त जरूरत है, जिससे उनमें से कई को पहली फसल नष्ट होने पर धान की दोबारा रोपाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास उनकी फसल के नुकसान के लिए कोई उचित मुआवजा नहीं है। (आप) सरकार ‘गिरदवारी’ प्रक्रिया पूरी करने में भी विफल रही है। चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ उबले चावल पर अत्यधिक शुल्क राज्य में कृषि संकट को बढ़ा देगा।”

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बादल ने यह भी कहा कि देश में खुले बाजार में धान की कीमतें कम करने का जानबूझकर किया गया प्रयास इस साल के अंत तक कृषि आय को दोगुना करने के केंद्र के संकल्प के खिलाफ है।

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