नई दिल्ली, 28 दिसंबर (आईएएनएस)। जैसा कि भारत उम्मीद से कहीं अधिक तेज गति से 5जी को रिलीज कर रहा है, अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल दूरसंचार (आईएमटी) सेवाओं के लिए 6 गीगाहट्र्ज बैंड की पहचान करना न केवल लॉन्ग-टर्म नेटवर्क योजना में सहायता करने के लिए, बल्कि राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन को 2024-25 तक 50 एमबीपीएस तक की ब्रॉडबैंड गति प्राप्त करने में भी मदद करने के लिए महत्वपूर्ण है। सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने बुधवार को यह जानकारी दी है।
6 गीगाहट्र्ज अंतिम मिड-बैंड अवसर है जो न्यूनतम 2 गीगाहट्र्ज सन्निहित मिड-बैंड स्पेक्ट्रम के प्रावधान की पेशकश करता है, जो 2025 से आगे मोबाइल संचार के लिए गंभीर रूप से आवश्यक हो जाएगा।
सीओएआई के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. एस.पी. कोचर (सेवानिवृत्त) ने कहा, चूंकि मिड-बैंड व्यापक कवरेज और क्षमता प्रदान करते हैं, इसलिए वे 5जी मोबाइल नेटवर्क के तीव्र और लागत-कुशल परिनियोजन के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह इस तथ्य से स्थापित होता है कि 176 वैश्विक 5जी नेटवर्को में से लगभग 70 प्रतिशत (120 नेटवर्क) ने मिड-बैंड का उपयोग किया है।
जीएसएमए की एक रिपोर्ट बताती है कि आवश्यक अतिरिक्त मिड-बैंड स्पेक्ट्रम के अभाव में, 5जी डेटा रेट लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बेस स्टेशनों की संख्या बढ़ाकर मोबाइल नेटवर्क को काफी हद तक सघन बनाने की जरूरत होगी।
कोचर ने कहा, अगर दूरसंचार सेवा प्रदाता (टीएसपी) ऐसा नहीं करते हैं, तो 6 गीगाहट्र्ज बैंड में कम स्पेक्ट्रम आवंटित करने पर 5जी डाउनलोड स्पीड घटकर 50 फीसदी हो जाएगी, या यदि 1.2 गीगाहट्र्ज के असाइनमेंट की तुलना में केवल 700 मेगाहट्र्ज बैंड आईएमटी को आवंटित किया जाता है तो 80 प्रतिशत हो जाएगी।
कोचर ने कहा, ऊर्जा खपत में इस तरह की अवांछित वृद्धि भारत की वैश्विक आकांक्षाओं और इसके कार्बन फुटप्रिंट और संबंधित हरित उद्देश्यों में कमी के प्रति प्रतिबद्धता के विपरीत भी होगी।
–आईएएनएस
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