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Home ताज़ा समाचार

सुप्रीम कोर्ट ने अतीक अहमद के 2 नाबालिग बेटों की कस्टडी मांग रही बुआ की याचिका पर सुनवाई टाली

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September 11, 2023
in ताज़ा समाचार
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नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मारे गए गैंगस्टर अतीक अहमद की बहन की याचिका पर सुनवाई टाल दी, जिसमें उसने अपने दो नाबालिग बेटों की कस्टडी की मांग की है, जो पिछले छह महीने से प्रयागराज के राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में बंद हैं। 

न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई छह सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित कर दी।

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शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, मामले की आगे की सुनवाई 30 अक्टूबर को होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सेवानिवृत्त संयुक्‍त निदेशक के.सी. जॉर्ज को बच्चों की इच्छाओं का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सौंपी थी।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था, “राज्य सरकार उनकी मदद करेगी और सभी सुविधाएं देगी…और उनकी सुविधानुसार बच्चों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करेगी, ताकि वह 25.08.2023 से पहले एक सीलबंद कवर में इस अदालत में रिपोर्ट कर सकें।”

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दो नाबालिग बच्चों से जुड़े मामले में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी कि यदि उनका कोई रिश्तेदार है, तो उन्हें सुधार गृह से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

मारे गए गैंगस्टर की बहन शाहीन अहमद ने इस साल मई में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने नाबालिगों को साथ रखने की इजाजत की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी मां जीवित है और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि उनके संरक्षक मौजूद हैं।

कथित तौर पर, दो अन्य महिलाएं आयशा नूरी और ज़ैनब फातिमा ने इन दो नाबालिग बच्चों की संरक्षक होने का दावा करते हुए उनकी रिहाई और साथ रखने की इजाजत के लिए अलग-अलग आवेदन भी दायर किए हैं।

दावा किया जा रहा है कि 24 फरवरी को प्रयागराज में वकील उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के बाद राज्य पुलिस ने अतीक के दोनों नाबालिग बेटों को राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में रख दिया।

–आईएएनएस

एसजीके

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नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मारे गए गैंगस्टर अतीक अहमद की बहन की याचिका पर सुनवाई टाल दी, जिसमें उसने अपने दो नाबालिग बेटों की कस्टडी की मांग की है, जो पिछले छह महीने से प्रयागराज के राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में बंद हैं। 

न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई छह सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, मामले की आगे की सुनवाई 30 अक्टूबर को होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सेवानिवृत्त संयुक्‍त निदेशक के.सी. जॉर्ज को बच्चों की इच्छाओं का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सौंपी थी।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था, “राज्य सरकार उनकी मदद करेगी और सभी सुविधाएं देगी…और उनकी सुविधानुसार बच्चों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करेगी, ताकि वह 25.08.2023 से पहले एक सीलबंद कवर में इस अदालत में रिपोर्ट कर सकें।”

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दो नाबालिग बच्चों से जुड़े मामले में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी कि यदि उनका कोई रिश्तेदार है, तो उन्हें सुधार गृह से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

मारे गए गैंगस्टर की बहन शाहीन अहमद ने इस साल मई में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने नाबालिगों को साथ रखने की इजाजत की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी मां जीवित है और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि उनके संरक्षक मौजूद हैं।

कथित तौर पर, दो अन्य महिलाएं आयशा नूरी और ज़ैनब फातिमा ने इन दो नाबालिग बच्चों की संरक्षक होने का दावा करते हुए उनकी रिहाई और साथ रखने की इजाजत के लिए अलग-अलग आवेदन भी दायर किए हैं।

दावा किया जा रहा है कि 24 फरवरी को प्रयागराज में वकील उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के बाद राज्य पुलिस ने अतीक के दोनों नाबालिग बेटों को राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में रख दिया।

–आईएएनएस

एसजीके

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नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मारे गए गैंगस्टर अतीक अहमद की बहन की याचिका पर सुनवाई टाल दी, जिसमें उसने अपने दो नाबालिग बेटों की कस्टडी की मांग की है, जो पिछले छह महीने से प्रयागराज के राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में बंद हैं। 

न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई छह सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, मामले की आगे की सुनवाई 30 अक्टूबर को होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सेवानिवृत्त संयुक्‍त निदेशक के.सी. जॉर्ज को बच्चों की इच्छाओं का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सौंपी थी।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था, “राज्य सरकार उनकी मदद करेगी और सभी सुविधाएं देगी…और उनकी सुविधानुसार बच्चों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करेगी, ताकि वह 25.08.2023 से पहले एक सीलबंद कवर में इस अदालत में रिपोर्ट कर सकें।”

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दो नाबालिग बच्चों से जुड़े मामले में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी कि यदि उनका कोई रिश्तेदार है, तो उन्हें सुधार गृह से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

मारे गए गैंगस्टर की बहन शाहीन अहमद ने इस साल मई में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने नाबालिगों को साथ रखने की इजाजत की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी मां जीवित है और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि उनके संरक्षक मौजूद हैं।

कथित तौर पर, दो अन्य महिलाएं आयशा नूरी और ज़ैनब फातिमा ने इन दो नाबालिग बच्चों की संरक्षक होने का दावा करते हुए उनकी रिहाई और साथ रखने की इजाजत के लिए अलग-अलग आवेदन भी दायर किए हैं।

दावा किया जा रहा है कि 24 फरवरी को प्रयागराज में वकील उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के बाद राज्य पुलिस ने अतीक के दोनों नाबालिग बेटों को राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में रख दिया।

–आईएएनएस

एसजीके

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नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मारे गए गैंगस्टर अतीक अहमद की बहन की याचिका पर सुनवाई टाल दी, जिसमें उसने अपने दो नाबालिग बेटों की कस्टडी की मांग की है, जो पिछले छह महीने से प्रयागराज के राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में बंद हैं। 

न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई छह सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, मामले की आगे की सुनवाई 30 अक्टूबर को होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सेवानिवृत्त संयुक्‍त निदेशक के.सी. जॉर्ज को बच्चों की इच्छाओं का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सौंपी थी।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था, “राज्य सरकार उनकी मदद करेगी और सभी सुविधाएं देगी…और उनकी सुविधानुसार बच्चों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करेगी, ताकि वह 25.08.2023 से पहले एक सीलबंद कवर में इस अदालत में रिपोर्ट कर सकें।”

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दो नाबालिग बच्चों से जुड़े मामले में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी कि यदि उनका कोई रिश्तेदार है, तो उन्हें सुधार गृह से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

मारे गए गैंगस्टर की बहन शाहीन अहमद ने इस साल मई में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने नाबालिगों को साथ रखने की इजाजत की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी मां जीवित है और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि उनके संरक्षक मौजूद हैं।

कथित तौर पर, दो अन्य महिलाएं आयशा नूरी और ज़ैनब फातिमा ने इन दो नाबालिग बच्चों की संरक्षक होने का दावा करते हुए उनकी रिहाई और साथ रखने की इजाजत के लिए अलग-अलग आवेदन भी दायर किए हैं।

दावा किया जा रहा है कि 24 फरवरी को प्रयागराज में वकील उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के बाद राज्य पुलिस ने अतीक के दोनों नाबालिग बेटों को राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में रख दिया।

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नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मारे गए गैंगस्टर अतीक अहमद की बहन की याचिका पर सुनवाई टाल दी, जिसमें उसने अपने दो नाबालिग बेटों की कस्टडी की मांग की है, जो पिछले छह महीने से प्रयागराज के राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में बंद हैं। 

न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई छह सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, मामले की आगे की सुनवाई 30 अक्टूबर को होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सेवानिवृत्त संयुक्‍त निदेशक के.सी. जॉर्ज को बच्चों की इच्छाओं का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सौंपी थी।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था, “राज्य सरकार उनकी मदद करेगी और सभी सुविधाएं देगी…और उनकी सुविधानुसार बच्चों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करेगी, ताकि वह 25.08.2023 से पहले एक सीलबंद कवर में इस अदालत में रिपोर्ट कर सकें।”

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दो नाबालिग बच्चों से जुड़े मामले में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी कि यदि उनका कोई रिश्तेदार है, तो उन्हें सुधार गृह से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

मारे गए गैंगस्टर की बहन शाहीन अहमद ने इस साल मई में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने नाबालिगों को साथ रखने की इजाजत की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी मां जीवित है और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि उनके संरक्षक मौजूद हैं।

कथित तौर पर, दो अन्य महिलाएं आयशा नूरी और ज़ैनब फातिमा ने इन दो नाबालिग बच्चों की संरक्षक होने का दावा करते हुए उनकी रिहाई और साथ रखने की इजाजत के लिए अलग-अलग आवेदन भी दायर किए हैं।

दावा किया जा रहा है कि 24 फरवरी को प्रयागराज में वकील उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के बाद राज्य पुलिस ने अतीक के दोनों नाबालिग बेटों को राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में रख दिया।

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न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई छह सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, मामले की आगे की सुनवाई 30 अक्टूबर को होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सेवानिवृत्त संयुक्‍त निदेशक के.सी. जॉर्ज को बच्चों की इच्छाओं का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सौंपी थी।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था, “राज्य सरकार उनकी मदद करेगी और सभी सुविधाएं देगी…और उनकी सुविधानुसार बच्चों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करेगी, ताकि वह 25.08.2023 से पहले एक सीलबंद कवर में इस अदालत में रिपोर्ट कर सकें।”

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दो नाबालिग बच्चों से जुड़े मामले में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी कि यदि उनका कोई रिश्तेदार है, तो उन्हें सुधार गृह से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

मारे गए गैंगस्टर की बहन शाहीन अहमद ने इस साल मई में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने नाबालिगों को साथ रखने की इजाजत की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी मां जीवित है और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि उनके संरक्षक मौजूद हैं।

कथित तौर पर, दो अन्य महिलाएं आयशा नूरी और ज़ैनब फातिमा ने इन दो नाबालिग बच्चों की संरक्षक होने का दावा करते हुए उनकी रिहाई और साथ रखने की इजाजत के लिए अलग-अलग आवेदन भी दायर किए हैं।

दावा किया जा रहा है कि 24 फरवरी को प्रयागराज में वकील उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के बाद राज्य पुलिस ने अतीक के दोनों नाबालिग बेटों को राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में रख दिया।

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न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई छह सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, मामले की आगे की सुनवाई 30 अक्टूबर को होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सेवानिवृत्त संयुक्‍त निदेशक के.सी. जॉर्ज को बच्चों की इच्छाओं का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सौंपी थी।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था, “राज्य सरकार उनकी मदद करेगी और सभी सुविधाएं देगी…और उनकी सुविधानुसार बच्चों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करेगी, ताकि वह 25.08.2023 से पहले एक सीलबंद कवर में इस अदालत में रिपोर्ट कर सकें।”

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दो नाबालिग बच्चों से जुड़े मामले में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी कि यदि उनका कोई रिश्तेदार है, तो उन्हें सुधार गृह से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

मारे गए गैंगस्टर की बहन शाहीन अहमद ने इस साल मई में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने नाबालिगों को साथ रखने की इजाजत की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी मां जीवित है और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि उनके संरक्षक मौजूद हैं।

कथित तौर पर, दो अन्य महिलाएं आयशा नूरी और ज़ैनब फातिमा ने इन दो नाबालिग बच्चों की संरक्षक होने का दावा करते हुए उनकी रिहाई और साथ रखने की इजाजत के लिए अलग-अलग आवेदन भी दायर किए हैं।

दावा किया जा रहा है कि 24 फरवरी को प्रयागराज में वकील उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के बाद राज्य पुलिस ने अतीक के दोनों नाबालिग बेटों को राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में रख दिया।

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न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई छह सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, मामले की आगे की सुनवाई 30 अक्टूबर को होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सेवानिवृत्त संयुक्‍त निदेशक के.सी. जॉर्ज को बच्चों की इच्छाओं का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सौंपी थी।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था, “राज्य सरकार उनकी मदद करेगी और सभी सुविधाएं देगी…और उनकी सुविधानुसार बच्चों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करेगी, ताकि वह 25.08.2023 से पहले एक सीलबंद कवर में इस अदालत में रिपोर्ट कर सकें।”

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दो नाबालिग बच्चों से जुड़े मामले में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी कि यदि उनका कोई रिश्तेदार है, तो उन्हें सुधार गृह से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

मारे गए गैंगस्टर की बहन शाहीन अहमद ने इस साल मई में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने नाबालिगों को साथ रखने की इजाजत की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी मां जीवित है और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि उनके संरक्षक मौजूद हैं।

कथित तौर पर, दो अन्य महिलाएं आयशा नूरी और ज़ैनब फातिमा ने इन दो नाबालिग बच्चों की संरक्षक होने का दावा करते हुए उनकी रिहाई और साथ रखने की इजाजत के लिए अलग-अलग आवेदन भी दायर किए हैं।

दावा किया जा रहा है कि 24 फरवरी को प्रयागराज में वकील उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के बाद राज्य पुलिस ने अतीक के दोनों नाबालिग बेटों को राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में रख दिया।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मारे गए गैंगस्टर अतीक अहमद की बहन की याचिका पर सुनवाई टाल दी, जिसमें उसने अपने दो नाबालिग बेटों की कस्टडी की मांग की है, जो पिछले छह महीने से प्रयागराज के राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में बंद हैं। 

न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई छह सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, मामले की आगे की सुनवाई 30 अक्टूबर को होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सेवानिवृत्त संयुक्‍त निदेशक के.सी. जॉर्ज को बच्चों की इच्छाओं का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सौंपी थी।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था, “राज्य सरकार उनकी मदद करेगी और सभी सुविधाएं देगी…और उनकी सुविधानुसार बच्चों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करेगी, ताकि वह 25.08.2023 से पहले एक सीलबंद कवर में इस अदालत में रिपोर्ट कर सकें।”

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दो नाबालिग बच्चों से जुड़े मामले में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी कि यदि उनका कोई रिश्तेदार है, तो उन्हें सुधार गृह से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

मारे गए गैंगस्टर की बहन शाहीन अहमद ने इस साल मई में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने नाबालिगों को साथ रखने की इजाजत की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी मां जीवित है और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि उनके संरक्षक मौजूद हैं।

कथित तौर पर, दो अन्य महिलाएं आयशा नूरी और ज़ैनब फातिमा ने इन दो नाबालिग बच्चों की संरक्षक होने का दावा करते हुए उनकी रिहाई और साथ रखने की इजाजत के लिए अलग-अलग आवेदन भी दायर किए हैं।

दावा किया जा रहा है कि 24 फरवरी को प्रयागराज में वकील उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के बाद राज्य पुलिस ने अतीक के दोनों नाबालिग बेटों को राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में रख दिया।

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न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई छह सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, मामले की आगे की सुनवाई 30 अक्टूबर को होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सेवानिवृत्त संयुक्‍त निदेशक के.सी. जॉर्ज को बच्चों की इच्छाओं का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सौंपी थी।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था, “राज्य सरकार उनकी मदद करेगी और सभी सुविधाएं देगी…और उनकी सुविधानुसार बच्चों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करेगी, ताकि वह 25.08.2023 से पहले एक सीलबंद कवर में इस अदालत में रिपोर्ट कर सकें।”

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दो नाबालिग बच्चों से जुड़े मामले में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी कि यदि उनका कोई रिश्तेदार है, तो उन्हें सुधार गृह से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

मारे गए गैंगस्टर की बहन शाहीन अहमद ने इस साल मई में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने नाबालिगों को साथ रखने की इजाजत की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी मां जीवित है और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि उनके संरक्षक मौजूद हैं।

कथित तौर पर, दो अन्य महिलाएं आयशा नूरी और ज़ैनब फातिमा ने इन दो नाबालिग बच्चों की संरक्षक होने का दावा करते हुए उनकी रिहाई और साथ रखने की इजाजत के लिए अलग-अलग आवेदन भी दायर किए हैं।

दावा किया जा रहा है कि 24 फरवरी को प्रयागराज में वकील उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के बाद राज्य पुलिस ने अतीक के दोनों नाबालिग बेटों को राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में रख दिया।

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न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई छह सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, मामले की आगे की सुनवाई 30 अक्टूबर को होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सेवानिवृत्त संयुक्‍त निदेशक के.सी. जॉर्ज को बच्चों की इच्छाओं का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सौंपी थी।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था, “राज्य सरकार उनकी मदद करेगी और सभी सुविधाएं देगी…और उनकी सुविधानुसार बच्चों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करेगी, ताकि वह 25.08.2023 से पहले एक सीलबंद कवर में इस अदालत में रिपोर्ट कर सकें।”

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दो नाबालिग बच्चों से जुड़े मामले में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी कि यदि उनका कोई रिश्तेदार है, तो उन्हें सुधार गृह से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

मारे गए गैंगस्टर की बहन शाहीन अहमद ने इस साल मई में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने नाबालिगों को साथ रखने की इजाजत की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी मां जीवित है और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि उनके संरक्षक मौजूद हैं।

कथित तौर पर, दो अन्य महिलाएं आयशा नूरी और ज़ैनब फातिमा ने इन दो नाबालिग बच्चों की संरक्षक होने का दावा करते हुए उनकी रिहाई और साथ रखने की इजाजत के लिए अलग-अलग आवेदन भी दायर किए हैं।

दावा किया जा रहा है कि 24 फरवरी को प्रयागराज में वकील उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के बाद राज्य पुलिस ने अतीक के दोनों नाबालिग बेटों को राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में रख दिया।

–आईएएनएस

एसजीके

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नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मारे गए गैंगस्टर अतीक अहमद की बहन की याचिका पर सुनवाई टाल दी, जिसमें उसने अपने दो नाबालिग बेटों की कस्टडी की मांग की है, जो पिछले छह महीने से प्रयागराज के राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में बंद हैं। 

न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई छह सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, मामले की आगे की सुनवाई 30 अक्टूबर को होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सेवानिवृत्त संयुक्‍त निदेशक के.सी. जॉर्ज को बच्चों की इच्छाओं का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सौंपी थी।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था, “राज्य सरकार उनकी मदद करेगी और सभी सुविधाएं देगी…और उनकी सुविधानुसार बच्चों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करेगी, ताकि वह 25.08.2023 से पहले एक सीलबंद कवर में इस अदालत में रिपोर्ट कर सकें।”

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दो नाबालिग बच्चों से जुड़े मामले में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी कि यदि उनका कोई रिश्तेदार है, तो उन्हें सुधार गृह से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

मारे गए गैंगस्टर की बहन शाहीन अहमद ने इस साल मई में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने नाबालिगों को साथ रखने की इजाजत की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी मां जीवित है और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि उनके संरक्षक मौजूद हैं।

कथित तौर पर, दो अन्य महिलाएं आयशा नूरी और ज़ैनब फातिमा ने इन दो नाबालिग बच्चों की संरक्षक होने का दावा करते हुए उनकी रिहाई और साथ रखने की इजाजत के लिए अलग-अलग आवेदन भी दायर किए हैं।

दावा किया जा रहा है कि 24 फरवरी को प्रयागराज में वकील उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के बाद राज्य पुलिस ने अतीक के दोनों नाबालिग बेटों को राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में रख दिया।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मारे गए गैंगस्टर अतीक अहमद की बहन की याचिका पर सुनवाई टाल दी, जिसमें उसने अपने दो नाबालिग बेटों की कस्टडी की मांग की है, जो पिछले छह महीने से प्रयागराज के राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में बंद हैं। 

न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई छह सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, मामले की आगे की सुनवाई 30 अक्टूबर को होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सेवानिवृत्त संयुक्‍त निदेशक के.सी. जॉर्ज को बच्चों की इच्छाओं का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सौंपी थी।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था, “राज्य सरकार उनकी मदद करेगी और सभी सुविधाएं देगी…और उनकी सुविधानुसार बच्चों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करेगी, ताकि वह 25.08.2023 से पहले एक सीलबंद कवर में इस अदालत में रिपोर्ट कर सकें।”

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दो नाबालिग बच्चों से जुड़े मामले में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी कि यदि उनका कोई रिश्तेदार है, तो उन्हें सुधार गृह से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

मारे गए गैंगस्टर की बहन शाहीन अहमद ने इस साल मई में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने नाबालिगों को साथ रखने की इजाजत की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी मां जीवित है और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि उनके संरक्षक मौजूद हैं।

कथित तौर पर, दो अन्य महिलाएं आयशा नूरी और ज़ैनब फातिमा ने इन दो नाबालिग बच्चों की संरक्षक होने का दावा करते हुए उनकी रिहाई और साथ रखने की इजाजत के लिए अलग-अलग आवेदन भी दायर किए हैं।

दावा किया जा रहा है कि 24 फरवरी को प्रयागराज में वकील उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के बाद राज्य पुलिस ने अतीक के दोनों नाबालिग बेटों को राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में रख दिया।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मारे गए गैंगस्टर अतीक अहमद की बहन की याचिका पर सुनवाई टाल दी, जिसमें उसने अपने दो नाबालिग बेटों की कस्टडी की मांग की है, जो पिछले छह महीने से प्रयागराज के राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में बंद हैं। 

न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई छह सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, मामले की आगे की सुनवाई 30 अक्टूबर को होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सेवानिवृत्त संयुक्‍त निदेशक के.सी. जॉर्ज को बच्चों की इच्छाओं का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सौंपी थी।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था, “राज्य सरकार उनकी मदद करेगी और सभी सुविधाएं देगी…और उनकी सुविधानुसार बच्चों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करेगी, ताकि वह 25.08.2023 से पहले एक सीलबंद कवर में इस अदालत में रिपोर्ट कर सकें।”

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दो नाबालिग बच्चों से जुड़े मामले में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी कि यदि उनका कोई रिश्तेदार है, तो उन्हें सुधार गृह से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

मारे गए गैंगस्टर की बहन शाहीन अहमद ने इस साल मई में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने नाबालिगों को साथ रखने की इजाजत की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी मां जीवित है और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि उनके संरक्षक मौजूद हैं।

कथित तौर पर, दो अन्य महिलाएं आयशा नूरी और ज़ैनब फातिमा ने इन दो नाबालिग बच्चों की संरक्षक होने का दावा करते हुए उनकी रिहाई और साथ रखने की इजाजत के लिए अलग-अलग आवेदन भी दायर किए हैं।

दावा किया जा रहा है कि 24 फरवरी को प्रयागराज में वकील उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के बाद राज्य पुलिस ने अतीक के दोनों नाबालिग बेटों को राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में रख दिया।

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नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मारे गए गैंगस्टर अतीक अहमद की बहन की याचिका पर सुनवाई टाल दी, जिसमें उसने अपने दो नाबालिग बेटों की कस्टडी की मांग की है, जो पिछले छह महीने से प्रयागराज के राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में बंद हैं। 

न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई छह सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, मामले की आगे की सुनवाई 30 अक्टूबर को होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सेवानिवृत्त संयुक्‍त निदेशक के.सी. जॉर्ज को बच्चों की इच्छाओं का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सौंपी थी।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था, “राज्य सरकार उनकी मदद करेगी और सभी सुविधाएं देगी…और उनकी सुविधानुसार बच्चों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करेगी, ताकि वह 25.08.2023 से पहले एक सीलबंद कवर में इस अदालत में रिपोर्ट कर सकें।”

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दो नाबालिग बच्चों से जुड़े मामले में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी कि यदि उनका कोई रिश्तेदार है, तो उन्हें सुधार गृह से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

मारे गए गैंगस्टर की बहन शाहीन अहमद ने इस साल मई में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने नाबालिगों को साथ रखने की इजाजत की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी मां जीवित है और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि उनके संरक्षक मौजूद हैं।

कथित तौर पर, दो अन्य महिलाएं आयशा नूरी और ज़ैनब फातिमा ने इन दो नाबालिग बच्चों की संरक्षक होने का दावा करते हुए उनकी रिहाई और साथ रखने की इजाजत के लिए अलग-अलग आवेदन भी दायर किए हैं।

दावा किया जा रहा है कि 24 फरवरी को प्रयागराज में वकील उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के बाद राज्य पुलिस ने अतीक के दोनों नाबालिग बेटों को राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में रख दिया।

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न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई छह सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, मामले की आगे की सुनवाई 30 अक्टूबर को होने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सेवानिवृत्त संयुक्‍त निदेशक के.सी. जॉर्ज को बच्चों की इच्छाओं का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सौंपी थी।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था, “राज्य सरकार उनकी मदद करेगी और सभी सुविधाएं देगी…और उनकी सुविधानुसार बच्चों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान करेगी, ताकि वह 25.08.2023 से पहले एक सीलबंद कवर में इस अदालत में रिपोर्ट कर सकें।”

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दो नाबालिग बच्चों से जुड़े मामले में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए टिप्पणी की थी कि यदि उनका कोई रिश्तेदार है, तो उन्हें सुधार गृह से रिहा कर दिया जाना चाहिए।

मारे गए गैंगस्टर की बहन शाहीन अहमद ने इस साल मई में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने नाबालिगों को साथ रखने की इजाजत की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी मां जीवित है और यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई है कि उनके संरक्षक मौजूद हैं।

कथित तौर पर, दो अन्य महिलाएं आयशा नूरी और ज़ैनब फातिमा ने इन दो नाबालिग बच्चों की संरक्षक होने का दावा करते हुए उनकी रिहाई और साथ रखने की इजाजत के लिए अलग-अलग आवेदन भी दायर किए हैं।

दावा किया जा रहा है कि 24 फरवरी को प्रयागराज में वकील उमेश पाल और उनके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के बाद राज्य पुलिस ने अतीक के दोनों नाबालिग बेटों को राजरूपपुर स्थित बाल संरक्षण गृह में रख दिया।

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