नई दिल्ली, 20 मई (आईएएनएस)। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को कहा कि केंद्र सरकार सेवा मामलों पर फैसले को पलटने के लिए अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दे रही है।
आप नेता ने अधिकारियों के तबादलों और नियुक्तियों से जुड़े अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की सीधी अवमानना करार दिया।
उन्होंने विपक्षी दलों से यह सुनिश्चित करने की भी अपील की कि विधेयक राज्यसभा में पारित नहीं हो।
इस मुद्दे पर यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए केजरीवाल ने कहा, वे गर्मी की छुट्टियों के लिए सुप्रीम कोर्ट के बंद होने का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने इंतजार किया, क्योंकि वे जानते हैं कि यह अध्यादेश अवैध है।
भाजपा की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, वे जानते हैं कि उनकी दलील अदालत में पांच मिनट नहीं टिकेगी। एक जुलाई को जब सुप्रीम कोर्ट खुलेगा तो हम उसे चुनौती देंगे।
उन्होंने कहा कि सेवा मामले पर अध्यादेश संघीय ढांचे पर हमला है।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि जल्द ही दिल्ली में एक बड़ी रैली होगी।
उन्होंने कहा, लोगों की ओर से जिस तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, मुझे लगता है कि भाजपा को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में सात सीटों में से एक भी सीट नहीं मिलेगी।
उन्होंने आगे कहा कि आप को दिल्ली विधानसभा चुनावों में तीन बार और एमसीडी चुनाव में एक बार प्रचंड बहुमत मिला।
केजरीवाल ने कहा, लोगों ने कहा है कि वे दिल्ली में आप सरकार चाहते हैं और केंद्र सरकार ने बार आप के काम को रोकने की कोशिश की है, वे अब सुप्रीम कोर्ट को सीधी चुनौती दे रहे हैं। 2015 में वे अधिसूचना लाए और फिर वे 2021 में एक कानून लाए और हमसे शक्तियां छीन लीं।
उन्होंने कहा, यह लोकतंत्र और दिल्ली के दो करोड़ लोगों के साथ एक क्रूर मजाक है। केंद्र ने एक हफ्ते के भीतर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया। केंद्र सुप्रीम कोर्ट को खुले तौर पर चुनौती दे रहा है। यह सुप्रीम कोर्ट की सीधी अवमानना है और इसकी महिमा का अपमान है।
केजरीवाल का बयान सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नकारने के लिए केंद्र द्वारा एक अध्यादेश जारी किए जाने के बाद आई है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को सेवाओं पर नियंत्रण का अधिकार दिया था।
केंद्र ने राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण के रूप में जाना जाने वाला एक स्थायी प्राधिकरण स्थापित करने के लिए अध्यादेश लाया है, जिसके अध्यक्ष दिल्ली के मुख्यमंत्री के साथ-साथ मुख्य सचिव, दिल्ली के प्रधान सचिव (गृह) होंगे, जो ट्रांसफर-पोस्टिंग, सतर्कता और अन्य प्रासंगिक मामलों के संबंध में सिफारिशें करेंगे। ।
हालांकि, आम सहमति न बनने की स्थिति में एलजी का निर्णय अंतिम होगा।
सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 11 मई को फैसला सुनाया था कि यह मानना आदर्श है कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई दिल्ली सरकार का अपने अधिकारियों पर नियंत्रण होना चाहिए और एलजी पुलिस और भूमि संबंधी मामलों को छोड़कर हर मसले पर चुनी हुई सरकार की सलाह मानने को बाध्य है।
–आईएएनएस
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