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Home ताज़ा समाचार

स्‍वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे वरिष्‍ठ प्रचारक बालकृष्‍णजी : स्वान्त रंजन

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August 28, 2024
in ताज़ा समाचार
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लखनऊ, 28 अगस्त (आईएएनएस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख एवं पूर्व प्रांत प्रचारक (अवध प्रांत) स्‍व. बालकृष्ण के स्मरण में गोमती नगर के विशाल खण्‍ड स्थित एक स्कूल के सभागार में बुधवार की शाम श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा, “मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वह डांटते थे मगर उनकी डांट में भी अथाह प्रेम होता था। वह स्वयंसेवकों के लिए जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वह शारीरिक के साथ ही उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था। बालकृष्ण स्वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे।”

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उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहा। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “स्‍व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढांढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊंगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।”

अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार ने कहा कि वह एक अनुभवी प्रचारक थे। उनका जीवन बेदाग था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका। साथ ही, संघ के आ‍र्थिकी का अंकेक्षण करते समय वे पाई-पाई का हिसाब करते थे। वे हर हिसाब को बारीकी से खंगालते थे ताकि कहीं कोई हानि न हो। आज भले ही हम उन्हें श्रद्धांजलि देने आए हैं, लेकिन हम उनके जीवन से प्रेरणा भी पा रहे हैं।

इस कार्यक्रम में संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्र नगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

–आईएएनएस

विकेटी/एकेजे

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लखनऊ, 28 अगस्त (आईएएनएस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख एवं पूर्व प्रांत प्रचारक (अवध प्रांत) स्‍व. बालकृष्ण के स्मरण में गोमती नगर के विशाल खण्‍ड स्थित एक स्कूल के सभागार में बुधवार की शाम श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा, “मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वह डांटते थे मगर उनकी डांट में भी अथाह प्रेम होता था। वह स्वयंसेवकों के लिए जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वह शारीरिक के साथ ही उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था। बालकृष्ण स्वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे।”

उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहा। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “स्‍व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढांढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊंगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।”

अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार ने कहा कि वह एक अनुभवी प्रचारक थे। उनका जीवन बेदाग था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका। साथ ही, संघ के आ‍र्थिकी का अंकेक्षण करते समय वे पाई-पाई का हिसाब करते थे। वे हर हिसाब को बारीकी से खंगालते थे ताकि कहीं कोई हानि न हो। आज भले ही हम उन्हें श्रद्धांजलि देने आए हैं, लेकिन हम उनके जीवन से प्रेरणा भी पा रहे हैं।

इस कार्यक्रम में संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्र नगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

–आईएएनएस

विकेटी/एकेजे

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लखनऊ, 28 अगस्त (आईएएनएस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख एवं पूर्व प्रांत प्रचारक (अवध प्रांत) स्‍व. बालकृष्ण के स्मरण में गोमती नगर के विशाल खण्‍ड स्थित एक स्कूल के सभागार में बुधवार की शाम श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा, “मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वह डांटते थे मगर उनकी डांट में भी अथाह प्रेम होता था। वह स्वयंसेवकों के लिए जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वह शारीरिक के साथ ही उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था। बालकृष्ण स्वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे।”

उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहा। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “स्‍व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढांढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊंगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।”

अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार ने कहा कि वह एक अनुभवी प्रचारक थे। उनका जीवन बेदाग था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका। साथ ही, संघ के आ‍र्थिकी का अंकेक्षण करते समय वे पाई-पाई का हिसाब करते थे। वे हर हिसाब को बारीकी से खंगालते थे ताकि कहीं कोई हानि न हो। आज भले ही हम उन्हें श्रद्धांजलि देने आए हैं, लेकिन हम उनके जीवन से प्रेरणा भी पा रहे हैं।

इस कार्यक्रम में संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्र नगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

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इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा, “मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वह डांटते थे मगर उनकी डांट में भी अथाह प्रेम होता था। वह स्वयंसेवकों के लिए जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वह शारीरिक के साथ ही उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था। बालकृष्ण स्वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे।”

उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहा। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “स्‍व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढांढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊंगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।”

अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार ने कहा कि वह एक अनुभवी प्रचारक थे। उनका जीवन बेदाग था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका। साथ ही, संघ के आ‍र्थिकी का अंकेक्षण करते समय वे पाई-पाई का हिसाब करते थे। वे हर हिसाब को बारीकी से खंगालते थे ताकि कहीं कोई हानि न हो। आज भले ही हम उन्हें श्रद्धांजलि देने आए हैं, लेकिन हम उनके जीवन से प्रेरणा भी पा रहे हैं।

इस कार्यक्रम में संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्र नगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

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इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा, “मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वह डांटते थे मगर उनकी डांट में भी अथाह प्रेम होता था। वह स्वयंसेवकों के लिए जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वह शारीरिक के साथ ही उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था। बालकृष्ण स्वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे।”

उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहा। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “स्‍व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढांढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊंगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।”

अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार ने कहा कि वह एक अनुभवी प्रचारक थे। उनका जीवन बेदाग था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका। साथ ही, संघ के आ‍र्थिकी का अंकेक्षण करते समय वे पाई-पाई का हिसाब करते थे। वे हर हिसाब को बारीकी से खंगालते थे ताकि कहीं कोई हानि न हो। आज भले ही हम उन्हें श्रद्धांजलि देने आए हैं, लेकिन हम उनके जीवन से प्रेरणा भी पा रहे हैं।

इस कार्यक्रम में संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्र नगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

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इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा, “मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वह डांटते थे मगर उनकी डांट में भी अथाह प्रेम होता था। वह स्वयंसेवकों के लिए जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वह शारीरिक के साथ ही उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था। बालकृष्ण स्वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे।”

उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहा। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “स्‍व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढांढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊंगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।”

अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार ने कहा कि वह एक अनुभवी प्रचारक थे। उनका जीवन बेदाग था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका। साथ ही, संघ के आ‍र्थिकी का अंकेक्षण करते समय वे पाई-पाई का हिसाब करते थे। वे हर हिसाब को बारीकी से खंगालते थे ताकि कहीं कोई हानि न हो। आज भले ही हम उन्हें श्रद्धांजलि देने आए हैं, लेकिन हम उनके जीवन से प्रेरणा भी पा रहे हैं।

इस कार्यक्रम में संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्र नगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

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इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा, “मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वह डांटते थे मगर उनकी डांट में भी अथाह प्रेम होता था। वह स्वयंसेवकों के लिए जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वह शारीरिक के साथ ही उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था। बालकृष्ण स्वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे।”

उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहा। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “स्‍व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढांढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊंगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।”

अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार ने कहा कि वह एक अनुभवी प्रचारक थे। उनका जीवन बेदाग था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका। साथ ही, संघ के आ‍र्थिकी का अंकेक्षण करते समय वे पाई-पाई का हिसाब करते थे। वे हर हिसाब को बारीकी से खंगालते थे ताकि कहीं कोई हानि न हो। आज भले ही हम उन्हें श्रद्धांजलि देने आए हैं, लेकिन हम उनके जीवन से प्रेरणा भी पा रहे हैं।

इस कार्यक्रम में संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्र नगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

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लखनऊ, 28 अगस्त (आईएएनएस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख एवं पूर्व प्रांत प्रचारक (अवध प्रांत) स्‍व. बालकृष्ण के स्मरण में गोमती नगर के विशाल खण्‍ड स्थित एक स्कूल के सभागार में बुधवार की शाम श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा, “मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वह डांटते थे मगर उनकी डांट में भी अथाह प्रेम होता था। वह स्वयंसेवकों के लिए जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वह शारीरिक के साथ ही उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था। बालकृष्ण स्वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे।”

उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहा। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “स्‍व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढांढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊंगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।”

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इस कार्यक्रम में संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्र नगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

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इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा, “मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वह डांटते थे मगर उनकी डांट में भी अथाह प्रेम होता था। वह स्वयंसेवकों के लिए जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वह शारीरिक के साथ ही उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था। बालकृष्ण स्वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे।”

उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहा। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “स्‍व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढांढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊंगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।”

अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार ने कहा कि वह एक अनुभवी प्रचारक थे। उनका जीवन बेदाग था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका। साथ ही, संघ के आ‍र्थिकी का अंकेक्षण करते समय वे पाई-पाई का हिसाब करते थे। वे हर हिसाब को बारीकी से खंगालते थे ताकि कहीं कोई हानि न हो। आज भले ही हम उन्हें श्रद्धांजलि देने आए हैं, लेकिन हम उनके जीवन से प्रेरणा भी पा रहे हैं।

इस कार्यक्रम में संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्र नगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

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लखनऊ, 28 अगस्त (आईएएनएस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख एवं पूर्व प्रांत प्रचारक (अवध प्रांत) स्‍व. बालकृष्ण के स्मरण में गोमती नगर के विशाल खण्‍ड स्थित एक स्कूल के सभागार में बुधवार की शाम श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा, “मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वह डांटते थे मगर उनकी डांट में भी अथाह प्रेम होता था। वह स्वयंसेवकों के लिए जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वह शारीरिक के साथ ही उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था। बालकृष्ण स्वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे।”

उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहा। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “स्‍व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढांढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊंगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।”

अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार ने कहा कि वह एक अनुभवी प्रचारक थे। उनका जीवन बेदाग था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका। साथ ही, संघ के आ‍र्थिकी का अंकेक्षण करते समय वे पाई-पाई का हिसाब करते थे। वे हर हिसाब को बारीकी से खंगालते थे ताकि कहीं कोई हानि न हो। आज भले ही हम उन्हें श्रद्धांजलि देने आए हैं, लेकिन हम उनके जीवन से प्रेरणा भी पा रहे हैं।

इस कार्यक्रम में संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्र नगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

–आईएएनएस

विकेटी/एकेजे

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लखनऊ, 28 अगस्त (आईएएनएस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख एवं पूर्व प्रांत प्रचारक (अवध प्रांत) स्‍व. बालकृष्ण के स्मरण में गोमती नगर के विशाल खण्‍ड स्थित एक स्कूल के सभागार में बुधवार की शाम श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा, “मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वह डांटते थे मगर उनकी डांट में भी अथाह प्रेम होता था। वह स्वयंसेवकों के लिए जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वह शारीरिक के साथ ही उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था। बालकृष्ण स्वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे।”

उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहा। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “स्‍व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढांढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊंगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।”

अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार ने कहा कि वह एक अनुभवी प्रचारक थे। उनका जीवन बेदाग था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका। साथ ही, संघ के आ‍र्थिकी का अंकेक्षण करते समय वे पाई-पाई का हिसाब करते थे। वे हर हिसाब को बारीकी से खंगालते थे ताकि कहीं कोई हानि न हो। आज भले ही हम उन्हें श्रद्धांजलि देने आए हैं, लेकिन हम उनके जीवन से प्रेरणा भी पा रहे हैं।

इस कार्यक्रम में संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्र नगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

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इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा, “मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वह डांटते थे मगर उनकी डांट में भी अथाह प्रेम होता था। वह स्वयंसेवकों के लिए जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वह शारीरिक के साथ ही उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था। बालकृष्ण स्वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे।”

उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहा। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “स्‍व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढांढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊंगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।”

अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार ने कहा कि वह एक अनुभवी प्रचारक थे। उनका जीवन बेदाग था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका। साथ ही, संघ के आ‍र्थिकी का अंकेक्षण करते समय वे पाई-पाई का हिसाब करते थे। वे हर हिसाब को बारीकी से खंगालते थे ताकि कहीं कोई हानि न हो। आज भले ही हम उन्हें श्रद्धांजलि देने आए हैं, लेकिन हम उनके जीवन से प्रेरणा भी पा रहे हैं।

इस कार्यक्रम में संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्र नगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

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इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा, “मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वह डांटते थे मगर उनकी डांट में भी अथाह प्रेम होता था। वह स्वयंसेवकों के लिए जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वह शारीरिक के साथ ही उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था। बालकृष्ण स्वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे।”

उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहा। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “स्‍व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढांढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊंगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।”

अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार ने कहा कि वह एक अनुभवी प्रचारक थे। उनका जीवन बेदाग था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका। साथ ही, संघ के आ‍र्थिकी का अंकेक्षण करते समय वे पाई-पाई का हिसाब करते थे। वे हर हिसाब को बारीकी से खंगालते थे ताकि कहीं कोई हानि न हो। आज भले ही हम उन्हें श्रद्धांजलि देने आए हैं, लेकिन हम उनके जीवन से प्रेरणा भी पा रहे हैं।

इस कार्यक्रम में संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्र नगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

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इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा, “मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वह डांटते थे मगर उनकी डांट में भी अथाह प्रेम होता था। वह स्वयंसेवकों के लिए जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वह शारीरिक के साथ ही उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था। बालकृष्ण स्वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे।”

उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहा। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “स्‍व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढांढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊंगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।”

अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार ने कहा कि वह एक अनुभवी प्रचारक थे। उनका जीवन बेदाग था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका। साथ ही, संघ के आ‍र्थिकी का अंकेक्षण करते समय वे पाई-पाई का हिसाब करते थे। वे हर हिसाब को बारीकी से खंगालते थे ताकि कहीं कोई हानि न हो। आज भले ही हम उन्हें श्रद्धांजलि देने आए हैं, लेकिन हम उनके जीवन से प्रेरणा भी पा रहे हैं।

इस कार्यक्रम में संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्र नगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

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इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा, “मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वह डांटते थे मगर उनकी डांट में भी अथाह प्रेम होता था। वह स्वयंसेवकों के लिए जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वह शारीरिक के साथ ही उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था। बालकृष्ण स्वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे।”

उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहा। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “स्‍व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढांढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊंगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।”

अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार ने कहा कि वह एक अनुभवी प्रचारक थे। उनका जीवन बेदाग था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका। साथ ही, संघ के आ‍र्थिकी का अंकेक्षण करते समय वे पाई-पाई का हिसाब करते थे। वे हर हिसाब को बारीकी से खंगालते थे ताकि कहीं कोई हानि न हो। आज भले ही हम उन्हें श्रद्धांजलि देने आए हैं, लेकिन हम उनके जीवन से प्रेरणा भी पा रहे हैं।

इस कार्यक्रम में संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्र नगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

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इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा, “मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वह डांटते थे मगर उनकी डांट में भी अथाह प्रेम होता था। वह स्वयंसेवकों के लिए जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वह शारीरिक के साथ ही उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था। बालकृष्ण स्वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे।”

उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहा। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “स्‍व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढांढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊंगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।”

अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार ने कहा कि वह एक अनुभवी प्रचारक थे। उनका जीवन बेदाग था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका। साथ ही, संघ के आ‍र्थिकी का अंकेक्षण करते समय वे पाई-पाई का हिसाब करते थे। वे हर हिसाब को बारीकी से खंगालते थे ताकि कहीं कोई हानि न हो। आज भले ही हम उन्हें श्रद्धांजलि देने आए हैं, लेकिन हम उनके जीवन से प्रेरणा भी पा रहे हैं।

इस कार्यक्रम में संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्र नगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था।

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